आजाद सिपाही संवाददाता
रांची। झाविमो के केंद्रीय अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा कि जिस मंडल डैम की आधारशिला रखने प्रधानमंत्री आ रहे हैं, उससे झारखंड की जनता का विकास नहीं, विनाश होगा। इससे झारखंड को सिर्फ नुकसान ही होगा, जबकि फायदे बिहार को मिलेंगे। पूर्व मुख्यमंत्री ने बुधवार को पत्रकारों को जानकारी दी कि उनके मुख्यमंत्रित्व काल में भी मंडल डैम निर्माण की बात संज्ञान में लायी गयी थी। पर यह बड़ी विडंबना है कि उक्त डैम के निर्माण के लिए लगभग 2855 वर्ग किलोमीटर जमीन की जरूरत है। जमीन का शत-प्रतिशत अधिग्रहण झारखंड से होना है, जबकि कुल जलसंचय से 83 प्रतिशत बिहार की भूमि सिंचित होनेवाली है। झारखंड की मात्र 17 प्रतिशत जमीन ही सिंचित होगी। यह किसी भी तरीके से न्यायोचित नहीं है।
30 लाख एकड़ जमीन का अधिग्रहण हो चुका है झारखंड में: झाविमो अध्यक्ष ने कहा कि झारखंड बनने के पूर्व सरकार द्वारा विकास के नाम पर 30 लाख एकड़ से अधिक भूमि का अधिग्रहण किया गया। इसी भूमि पर बड़े-बड़े कारखाने खुले, खदान, डैम आदि परियोजनाएं शुरू हुईं। इन परियोजनाओं के लिए हजारों गांव उजाड़े गये। लाखों लोगों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ा।
आज भी मुआवजा सहित अन्य न्यायोचित मांगों को लेकर लोग इन क्षेत्रों में संघर्ष करते मिल जायेंगे। विस्थापितों को समुचित पुनर्वास और मुआवजा अभी तक नहीं मिल पाया है। झारखंड में डैम तो बड़े-बड़े बन गये, किंतु इन डैमों से पेयजल और सिंचाई हेतु पर्याप्त जलापूर्ति नहीं हो पाती है।
झाविमो करेगा आंदोलन
बाबूलाल मरांडी ने कहा कि बहुद्देशीय परियोजनाओं के नाम पर लोगों को उजाड़ने का कुचक्र चलाया जा रहा है, जिसे राज्य की जनता कभी बर्दाश्त नहीं करेगी। झाविमो मंडल डैम परियोजना के निर्माण का पुरजोर विरोध करता है और जनहित में आवश्यकता पड़ी, तो आंदोलन किया जायेगा।
15 गांवों के 1600 परिवार होंगे विस्थापित
मरांडी ने कहा कि उक्त परियोजना से 15 गांव के लगभग 1600 परिवार विस्थापित होंगे। डैम का निर्माण होने से कुल 1,11,521 हेक्टेयर भूमि सिंचिंत होगी। इससे झारखंड की मात्र 19,604 हेक्टेयर एवं बिहार की 91,917 हेक्टेयर भूमि सिंचित होगी। इस परियोजना की आधारशिला वर्ष 1972 में रखी गयी थी, जबकि कार्य 1980 में प्रारंभ हुआ था। अभी तक 792 करोड़ खर्च हो चुके हैं, तब डैम निर्माण काअनुमानित खर्च 1622 करोड़ था, जो बढ़ कर अब 2391 करोड़ हो गया है। मरांडी ने कहा कि इस डैम के निर्माण से झारखंड को फायदा नहीं मिलता देखकर ही उन्होंने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया था।