अगले कुछ घंटे में सदी के दूसरे दशक का पहला साल इतिहास बन जायेगा और दुनिया 2022 में कदम रखेगी। जाते हुए 2021 ने देश-दुनिया के साथ-साथ झारखंड को कई नये सबक सिखाये, तो कई सौगातें भी दीं। वैश्विक महामारी कोरोना की दूसरी लहर से जूझ कर बाहर निकले झारखंड के सवा तीन करोड़ लोग अब 2022 की तरफ उम्मीदों भरी निगाह लगाये बैठे हैं। हरेक दिल में तमन्ना यही है कि नया साल बीते साल की तरह न गुजरे। लेकिन इस दिली तमन्ना के बावजूद इतना तय है कि नया साल झारखंड के सामने कई तरह की चुनौतियां पेश करनेवाला है। भले ही झारखंड के सामने 2022 में कोई बड़ी राजनीतिक चुनौती आने की संभावना नहीं है, लेकिन सामाजिक, आर्थिक और जीवन के दूसरे क्षेत्रों में झारखंड को कई बाधाओं से दो-दो हाथ करना होगा। कोरोना की तीसरी लहर की आशंकाओं के बीच राज्य की स्वास्थ्य मशीनरी की एक बार फिर कड़ी परीक्षा होगी, तो युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होने के लिए अन्य वर्षों की अपेक्षा कड़ी जद्दोजहद करनी होगी, क्योंकि पूरे साल उनकी पढ़ाई लगभग बंद रही। आर्थिक मोर्चे पर भी झारखंड के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा होगा, क्योंकि महामारी के कारण बेपटरी हो चुकी अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाना इतना आसान नहीं है। देश के विभिन्न हिस्सों से बेरोजगार होकर लौटे हुनरमंद झारखंडियों को काम देना बड़ी चुनौती होगी। नये साल में झारखंड के सामन पेश होनेवाली चुनौतियों का विश्लेषण करती आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राहुल सिंह की खास रिपोर्ट।

बदलाव की शुरूआत का क्षण ही इतिहास में दर्ज होता है। मनुष्य को प्रकृति की यह अनुपम सौगात है। वह जब चाहे, पुराने बंधनों-गलतियों से निकल कर नयी शुरूआत कर सकता है। पीछे की बातें भूल जायें, तो हर क्षण नयी संभावनाओं का आरंभ बिंदु हो सकता है। देश-दुनिया उसी संभावना के मुहाने पर खड़ी है, जब नयी सदी के दूसरे दशक का पहला साल इतिहास बन जायेगा और दूसरा साल हमारे दरवाजे पर दस्तक देगा। पीछे की बातें भूल जायें, तो आनेवाले साल का हर क्षण नयी संभावनाओं का आरंभ बिंदु हो सकता है। 2021 को इतिहास में समाता देख झारखंड भी वर्ष 2022 को अपने आगोश में समेटेगा, पिछले सालों की तरह उसके सामने अपने दिल की ख्वाहिश रखेगा, सपने बुनेगा, उम्मीदें बांधेगा और फिर पूरे 365 दिन उनके साथ वक्त के सागर में डूबेगा-उतरायेगा।

लेकिन यह भी सही है कि बदलाव या नयी शुरूआत के क्षण बार-बार नहीं आते। आज झारखंड बदलाव के इसी क्षण की प्रतीक्षा में है। अकूत प्राकृतिक संपदा से भरे सवा तीन करोड़ लोगों का यह झारखंड राज्य 2021 की खट्टी-मीठी यादों को हमेशा के लिए भूलना चाहेगा। लेकिन यादों को भले ही भुला दिया जाये, उन यादों से मिली सीख को तो हमेशा याद रखना ही होगा। झारखंड को इन सीखों से ही 2022 की चुनौतियों का सामना करने की हिम्मत मिलेगी। तो फिर क्यों न उन चुनौतियों की चर्चा करें, जो झारखंड के सामने 2022 में आनेवाली हैं।

स्वास्थ्य : तीसरी लहर की आशंका
नये साल की पहली चुनौती झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था के सामने होगी। कोरोना की तीसरी लहर की आशंकाओं के बीच राज्य की स्वास्थ्य मशीनरी एक बार फिर अग्निपरीक्षा में उतरेगी। नीति आयोग की रिपोर्ट में गवर्नेंस के मामले में झारखंड ने 10 में सात मानकों में अपनी स्थिति में सुधार किया है और स्वास्थ्य में यह राज्य अब देश में 21वें स्थान पर है, लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। कोरोना की दूसरी लहर में करीब 52 सौ लोगों की आहुति देने के बाद झारखंड महामारी से लड़ने के लिए कितना तैयार है, यह अगले कुछ दिनों में पता चल जायेगा।

शिक्षा: पढ़ाई नहीं होने से प्रतिभाओं को परेशानी
जहां तक शिक्षा के क्षेत्र में आनेवाली चुनौतियों का सवाल है, तो यह केवल झारखंड के लिए नहीं है। महामारी ने देश के शैक्षणिक माहौल और गतिविधि को बुरी तरह प्रभावित किया है। स्कूल-कॉलेजों में पूरे साल पढ़ाई नहीं हुई, लेकिन प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होना युवाओं के लिए बाध्यता है। शैक्षणिक दृष्टि से झारखंड का पूरे देश में 26वां स्थान है और इसलिए यहां के युवाओं के सामने उन प्रतियोगी परीक्षाओं की बाधा को दूर करना अलग किस्म की चुनौती होगी। संसाधन विहीन शिक्षण संस्थानों से निकल कर अपनी प्रतिभा के बल पर देश-दुनिया में झारखंड का नाम रोशन करने की बड़ी जवाबदेही इन युवाओं पर होगी। जहां तक अवसरों का सवाल है, तो झारखंड में नये साल में अवसरों की बहुतायत होने की उम्मीद है और तमाम राजनीतिक गतिरोधों के बावजूद नयी नियुक्तियां होने की संभावना भी कई गुना बढ़ गयी है।

सामाजिक क्षेत्र: सामाजिक क्षेत्र की चुनौतियां गंभीर
नये साल में झारखंड के सामने सामाजिक क्षेत्र की चुनौतियां बेहद गंभीर होंगी। महामारी के कारण झारखंड के लाखों लोग बेरोजगार होकर घर लौट आये हैं और अब यहां काम की तलाश में हैं। इनके अलावा पहले से ही यहां बेरोजगारों की फौज खड़ी है। इन सभी को काम देना और अपने संसाधनों का आकार बढ़ाना झारखंड के लिए जरूरी होगा, क्योंकि इसके बिना राज्य के विकास का हर सपना बेकार साबित होगा। महामारी की पहली लहर में झारखंड सरकार ने सामाजिक मोर्चे पर शानदार काम किया, लेकिन दूसरी लहर की सुनामी को रोकने में वे काम नहीं आ सके। अब तीसरी लहर की आशंका के बीच सरकारी और गैर-सरकारी क्षेत्र झारखंडी समाज के लिए क्या कुछ कर पाता है, यह देखनेवाली बात होगी।

अर्थिक क्षेत्र
झारखंड 2021 में वयस्क हो गया और भारतीय समाज में वयस्क होने का मतलब आत्मनिर्भर होना माना जाता है। 2022 में झारखंड के सामने आत्मनिर्भर बनने की चुनौती होगी। इस दिशा में राज्य ने कदम तो बढ़ाया है, लेकिन महामारी के कारण बेपटरी हुई अर्थव्यवस्था और कमजोर आर्थिक गतिविधियों ने इसके पैरों में बेड़ियां जकड़ रखी हैं। झारखंड इन बेड़ियों को अपना संसाधन बढ़ा कर काटना चाहेगा, लेकिन राजनीतिक रूप से संवेदनशील माहौल में कड़े आर्थिक फैसले लेना आसान नहीं होगा। इसके लिए मजबूत इच्छाशक्ति के साथ राजनीतिक दृष्टिकोण का भी परिचय देना होगा। खनिजों से होनेवाली आय को बढ़ाने के उपाय झारखंड को तलाशने होंगे। इसके साथ छोटे और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना होगा। फिर कृषि एक ऐसा क्षेत्र है, जहां सुधार की गुंजाइश हमेशा रहती है। इस बार खरीफ के मौसम में झारखंड के किसानों ने रिकॉर्ड उत्पादन किया है। इससे झारखंड की खेती को नया आयाम मिला है। इस उत्साह को बरकरार रखने की जरूरत होगी। चुनौतियों की फेहरिस्त कभी कम या खत्म नहीं होती। लेकिन जो समाज इस फेहरिस्त को सीमित रखने में कामयाब होता है, वही आगे बढ़ता है। झारखंड को भी चुनौतियों की फेहरिस्त को सीमित रखना होगा, क्योंकि इसे देश के सबसे गरीब राज्यों की सूची से निकल कर सबसे विकसित राज्यों की कतार में शामिल होना है। झारखंड की यही आकांक्षा और यहां के सवा तीन करोड़ लोगों का यही सपना 2022 में सच हो जाये, तो बाकी सब कुछ संभव हो जायेगा।

Share.

Comments are closed.

Exit mobile version