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    Home»Breaking News»जेएसएससी मामले में हाई कोर्ट की टिप्पणी, सरकार चाहती है कि छात्र बाहर जाएं ही नहीं
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    जेएसएससी मामले में हाई कोर्ट की टिप्पणी, सरकार चाहती है कि छात्र बाहर जाएं ही नहीं

    azad sipahiBy azad sipahiJanuary 27, 2022No Comments2 Mins Read
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    रांची। झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (जेएसएससी) संशोधित नियमावली के खिलाफ दायर याचिका पर झारखंड हाईकोर्ट में जस्टिस रवि रंजन और जस्टिस एसएन प्रसाद की बेंच में गुरुवार को सुनवाई हुई। कोर्ट ने इस दौरान मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि अंतिम मौका दिया जा रहा है, जिसमें सरकार को काउंटर एफिडेविट कोर्ट के समक्ष पेश करना है।

    कोर्ट ने जवाब के लिये सरकार को दस दिनों का समय दिया है। साथ ही कहा कि सरकार चाहती है कि छात्र राज्य में ही पढ़ें, बाहर जायें ही नहीं। अगर ऐसा ही रहा तो जो नई बहाली आ रही है, वह भी प्रभावित हो सकती है। मामले की अगली सुनवाई आठ फरवरी को होगी।

    इसके पहले मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सरकार की ओर से किये गये नियमावली संशोधन को असंवैधानिक बताया था। कोर्ट ने महाधिवक्ता से कहा था कि किन मामलों में संशोधन किया गया है। ऐसा निर्णय लिया गया है तो इससे संबंधित संचिका कोर्ट में पेश की जायें। महाधिवक्ता से पूछा गया है कि संबंधित नियमों के तहत सरकार आरक्षण की धारणा के साथ कार्य कर रही है।

    हिंदी और अंग्रेजी को पेपर टू से हटा कर बंगाली, उर्दू को शामिल करने का क्या औचित्य है। प्रार्थी रमेश हांसदा की ओर से दायर याचिका में संशोधित नियमावली को चुनौती दी गयी है। याचिका में कहा गया है कि नयी नियमावली में राज्य के संस्थानों से ही दसवीं और प्लस टू की परीक्षा पास करने की अनिवार्य किया गया है, जो संविधान की मूल भावना और समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

    वैसे उम्मीदवार जो राज्य के निवासी होते हुए भी राज्य के बाहर से पढ़ाई किए हों, उन्हें नियुक्ति परीक्षा से नहीं रोका जा सकता है। नयी नियमावली में संशोधन कर क्षेत्रीय एवं जनजातीय भाषाओं की श्रेणी से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया है। जबकि उर्दू, बांग्ला और उड़िया को रखा गया है।

    उर्दू को जनजातीय भाषा की श्रेणी में रखा जाना राजनीतिक फायदे के लिए है। राज्य के सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई का माध्यम भी हिंदी है। उर्दू की पढ़ाई एक खास वर्ग के लोग करते हैं। ऐसे में किसी खास वर्ग को सरकारी नौकरी में अधिक अवसर देना और हिंदी भाषी बाहुल अभ्यर्थियों के अवसर में कटौती करना संविधान की भावना के अनुरूप नहीं है। इसलिए नई नियमावली में निहित दोनों प्रावधानों को निरस्त किए जाने की मांग है।

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