- 37 साल बाद इतिहास दोहरा सकते हैं योगी
- चन्नी जीते, तो इतिहास बनने से बच जायेंगे
देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की गहमा-गहमी के बीच एक बात तय हो गयी है कि यह चुनाव न भाजपा के लिए आसान होने जा रहा है और न विपक्ष के लिए। कहने को तो यूपी और पंजाब के अलावा उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भी चुनाव है, लेकिन 130 करोड़ लोगों के इस देश का ध्यान देश के सबसे बड़े राज्य यूपी और सबसे समृद्ध राज्य पंजाब पर है। इन दोनों राज्यों के वर्तमान मुख्यमंत्री क्रमश: योगी आदित्यनाथ और चरणजीत सिंह चन्नी अपने-अपने कैरियर के सबसे चुनौतीपूर्ण दौर में हैं। यह चुनाव यदि इनकी पार्टियों, भाजपा और कांग्रेस के लिए करो या मरो का मुकाबला है, तो इन दोनों नेताओं के लिए अपनी पहचान कायम करने का चैलेंज भी है। यदि योगी आदित्यनाथ चुनाव जीत जाते हैं, तो वह 37 साल के बाद लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने का इतिहास कायम करेंगे, जबकि पंजाब की राजनीति में कांग्रेस के ट्रंप कार्ड बने चरणजीत सिंह चन्नी चुनाव जीतने के साथ अपने ही घर के भीतर से मिल रही चुनौतियों को झटके में खत्म कर अपनी पार्टी को बड़ी संजीवनी दे सकेंगे। इतना ही नहीं, वह इतिहास के पन्नों में सिमटने से भी बच जायेंगे। इन चुनौतियों को दोनों नेताओं के साथ दोनों पार्टियां भी बखूबी समझ रही हैं, इसलिए कोई रिस्क लेने के लिए तैयार नहीं है। योगी और चन्नी के सामने व्याप्त चुनौतियों की पृष्ठभूमि में यूपी-पंजाब में भाजपा और कांग्रेस की संभावनाओं को टटोलती आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह की खास रिपोर्ट।
उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ और पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ से झारखंड की राजधानी रांची का सीधा कोई कनेक्शन तो नहीं है, लेकिन इन दोनों राज्यों में होनेवाले चुनावों से पूर्वी भारत का यह छोटा सा राज्य बहुत गहरे जुड़ा हुआ है। झारखंड में भाजपा और कांग्रेस के नेता पांच राज्यों में होनेवाले चुनाव और खास कर यूपी और पंजाब के चुनावों के बारे में खूब बातें करते हैं। उनकी बातों का लब्बो-लुआब चुनावी संभावनाओं पर नहीं, बल्कि इन दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के राजनीतिक भविष्य पर केंद्रित रहता है। यह जानना बेहद दिलचस्प है कि इन दोनों राज्यों का कोई भी राजनीतिक घटनाक्रम सैकड़ों मील दूर रांची की नजरों से बच कर नहीं निकलता। झारखंड के भाजपाइयों और कांग्रेसियों के अनुसार योगी आदित्यनाथ और चरणजीत सिंह चन्नी इस चुनाव में पूरी तरह ‘करो या मरो’ के मुकाबले में फंसे हुए हैं। यदि ये दोनों चुनाव जीत गये, तो अपनी-अपनी पार्टियों में इनका स्थान एक झटके में कई पायदान ऊपर पहुंच जायेगा, लेकिन यदि ऐसा नहीं हुआ, तो फिर इनका पूरा कैरियर ही खतरे में पड़ जायेगा।
37 साल बाद इतिहास दोहरायेंगे योगी!
पहले बात करते हैं देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश की, जहां की 403 विधानसभा सीटों के लिए सात चरणों में मतदान होगा। नतीजे 10 मार्च को आयेंगे। इस चुनाव को योगी आदित्यनाथ बनाम विपक्ष बनाने की कवायद पूरी हो गयी है और भाजपा की रणनीति के अनुरूप ही सब कुछ हो रहा है। भाजपा और योगी जानते हैं कि दिल्ली की सत्ता की चाबी इसी प्रदेश से होकर गुजरती है। इसलिए दोनों ही कोई खतरा मोल लेने के मूड में नहीं हैं। दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव और कांग्रेस की प्रियंका गांधी से मिल रही चुनौतियों से निबटना भी योगी को ही है। इन सबसे पार पाकर यदि योगी जीत हासिल करते हैं, तो भाजपा में उनकी अहमियत और बढ़ सकती है। उत्तरप्रदेश में 1985 के बाद हुए चुनावों के बाद कोई भी मुख्यमंत्री लगातार दोबारा सत्ता पर काबिज नहीं हो पाया है। इसलिए मुख्यमंत्री योगी के लिए यह निजी चुनौती भी है। बता दें कि 37 साल पहले कांग्रेस के नारायण दत्त तिवारी लगातार दो बार यूपी के मुख्यमंत्री बने थे। उसके बाद से आज तक दोबारा ऐसा नहीं हो पाया है।
इसके अलावा योगी आदित्यनाथ को सपा और कांग्रेस से मिल रही चुनौती का जवाब देने की भी चुनौती है। पांच साल तक बिना किसी बाधा और विवाद के शासन चलानेवाले योगी आदित्यनाथ पर दलित विरोधी होने का जो आरोप इन दोनों दलों ने लगाया, उसकी काट के रूप में भाजपा ने दमदार बाजी तो चली है, लेकिन यह कितनी प्रभावी होगी, यह देखना बाकी है। हालांकि खुद योगी और भाजपा के दूसरे बड़े नेता लगातार इस छवि को तोड़ने की कोशिश में जुटे हैं, लेकिन दलित-पिछड़ा-मुस्लिम का गठजोड़ भाजपा को परेशान कर रहा है।
पंजाब में चवन्नी बनने से बच जायेंगे चन्नी!
अब बात पंजाब की, जिसे देश के सबसे समृद्ध राज्यों में गिना जाता है। पंजाब में इस बार का चुनाव जहां कांग्रेस के लिए काफी चुनौती भरा रहनेवाला है, वहीं मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के कैरियर का यह सबसे अहम मोड़ है। कैप्टन अमरिंदर सिंह की बगावत के साथ चन्नी के सामने अपनी ही पार्टी के भीतर से मिल रही चुनौतियों से निबटने का बड़ा टास्क है। जिन पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, उनमें केवल पंजाब में ही कांग्रेस की सत्ता है। इसलिए यदि उसकी वापसी होती है, तो यह पार्टी के लिए संजीवनी का काम करेगी और चन्नी पार्टी के कद्दावर नेताओं में शुमार हो जायेंगे। करीब चार महीने पहले उन्हें मुख्यमंत्री बना कर कांग्रेस ने बड़ा दलित कार्ड खेला था, लेकिन अब यह मुलम्मा धीरे-धीरे उतर रहा है। इसके अलावा कृषि कानूनों की वापसी के बाद भी राज्य के किसानों की भाजपा से नाराजगी को चन्नी पूरी तरह भुना नहीं पा रहे हैं। खास कर पीएम मोदी की सुरक्षा में चूक और बाद में इसका खालिस्तानी कनेक्शन उजागर होने से उनकी सरकार कटघरे में खड़ी है। चन्नी ने पंजाब और पंजाबियत का जो सवाल खड़ा करने की कोशिश की है, उसमें आप और शिरोमणि अकाली दल पलीता लगा चुके हैं। कांग्रेस को इसका कितना लाभ होगा, यह अभी देखना बाकी है। आप और कांग्रेस के बीच जारी आरोप-प्रत्यारोप और कैप्टन-भाजपा गठबंधन से मुकाबले में चन्नी अभी से हांफते दिख रहे हैं। इतना ही नहीं, चन्नी के सामने बड़ी चुनौती दलितों को साधने की भी है। राज्य में दलित आबादी 35 फीसदी के लगभग है। दलित वोटों का यह आधार पार्टी को फिर से सत्ता में पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभा सकता है।
यूपी और पंजाब का यह राजनीतिक परिदृश्य किसी रोमांचक फिल्मी पटकथा से कम नहीं है। झारखंड में इतनी बारीकी से यदि इन दोनों राज्यों की सियासत को परखा जा रहा है, तो आसानी से समझा जा सकता है कि इन चुनावों का क्या महत्व है। लेकिन अंतिम परिणाम के लिए तो 10 मार्च तक इंतजार करना ही होगा।