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    Home»स्पेशल रिपोर्ट»‘अग्निपथ’ से कम नहीं है जेपी नड्डा का नया कार्यकाल
    स्पेशल रिपोर्ट

    ‘अग्निपथ’ से कम नहीं है जेपी नड्डा का नया कार्यकाल

    adminBy adminJanuary 19, 2023No Comments7 Mins Read
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    विशेष

    अनुमान के अनुरूप जगत प्रकाश नड्डा को भाजपा अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल विस्तार मिल गया है। इस फैसले से ठीक एक दिन पहले नड्डा ने भाजपा कार्यकारिणी की बैठक में कहा था कि पार्टी को इस साल होने वाले सभी नौ राज्यों के विधानसभा चुनाव जीतने हैं। अब पार्टी ने उनका कार्यकाल जून 2024 तक के लिए बढ़ा दिया है। अब ये सारे चुनाव नड्डा के कार्यकाल में ही होंगे। खास बात यह है कि इनमें से वे राज्य भी शामिल हैं, जहां पार्टी को पिछली बार हार का सामना करना पड़ा था। इसके अलावा चार राज्य कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ तो ऐसे हैं, जहां भाजपा की सीधी टक्कर कांग्रेस से है। इन राज्यों कर्नाटक और मध्य प्रदेश में तो भगवा दल के लिए चुनौती और बड़ी है, क्योंकि यहां पार्टी को सत्ताविरोधी लहर का भी सामना करना पड़ेगा। इसलिए कहा जा सकता है कि नड्डा के लिए यह कार्यकाल काफी अहम है। यह उनके राजनीतिक कैरियर और लंबे संगठनात्मक अनुभव की परीक्षा है। दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी इन नौ राज्यों में होनेवाले चुनाव के लिए एक नैरेटिव सेट करना चाहती है। इसलिए भाजपा  2024 के चुनाव में जाने से पहले ऐसी जीत दर्ज करना चाहती है, जिससे आम चुनाव का मोमेंटम फिक्स हो जाये। पार्टी नहीं चाहती है कि विधानसभा चुनाव के नतीजे 2018 जैसे ही हों। इस लिहाज से नड्डा के सामने बड़ा चैलेंज है। नड्डा को 2023 को इसलिए भी जीतना होगा, क्योंकि यहीं से मिशन 2024 शुरू होगा। अपने नये कार्यकाल में नड्डा को किन चुनौतियों का सामना करना होगा और उसके लिए उनकी क्या रणनीति होगी, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा ने दिग्गज राजनीतिज्ञ और कुशल संगठनकर्ता जगत प्रकाश नड्डा को फिर से अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंप दी है। वह लालकृष्ण आडवाणी और राजनाथ सिंह के बाद तीसरे ऐसे नेता हैं, जिन्हें लगातार दूसरी बार पार्टी की कमान सौंपी गयी है। पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के इस फैसले के साथ ही यह तय हो गया है कि भाजपा अगला आम चुनाव नड्डा की अध्यक्षता में ही लड़ेगी। मोदी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रह चुके जेपी नड्डा को संगठन का बहुत लंबा तजुर्बा है। अध्यक्ष बनने से पहले वह जम्मू-कश्मीर और यूपी के प्रभारी महासचिव रह चुके हैं। 2010 में नड्डा राष्ट्रीय राजनीति में आये थे। उस वक्त नितिन गडकरी ने उन्हें पार्टी का सचिव नियुक्त किया था।

    हिमाचल में करारी हार, फिर विश्वास क्यों?

    नड्डा को लगातार दूसरी बार अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपने के संकेत तो पहले से ही मिल रहे थे, लेकिन उनके गृह राज्य हिमाचल प्रदेश में हाल में मिली हार के कारण उन पर सवाल भी उठने लगे थे। हिमाचल में भाजपा की हार के बाद माना जा रहा था कि जेपी नड्डा की कुर्सी पर भी संकट के बादल छायेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ऐसा आखिर क्यों हुआ, यह जानना भी दिलचस्प है। नड्डा के बारे में कहा जाता है कि वह मोदी-शाह के फैसलों को लागू कराने में सबसे कारगर भूमिका निभाते हैं। इसका एक किस्सा बहुत मशहूर है। वर्ष 2021 मोदी कैबिनेट में फेरबदल होना था। प्रधानमंत्री आवास पर नये नामों को लेकर पीएम मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा के बीच बैठक हुई। बैठक में कुछ कद्दावर मंत्रियों को हटाने पर भी सहमति बनी। इनमें रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावेड़कर और हर्षवर्धन जैसे नाम शामिल थे। मंत्रियों से इस्तीफा भिजवाने की जिम्मेदारी जेपी नड्डा को सौंपी गयी। नड्डा ने हटाये जाने वाले सभी 12 मंत्रियों को फोन कर इस्तीफा पीएमओ को भेजने के लिए कहा। इस योजना को इतनी आसानी से अंजाम दिया गया कि शुरूआत में किसी को भनक तक नहीं लगी।

    बिहार और यूपी में किया कमाल

    जेपी नड्डा 2020 में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये गये थे। इसके बाद करीब 14 राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए हैं। इनमें पांच राज्यों में भाजपा ने अकेले दम पर सरकार बनायी, जबकि दो राज्यों में वह सहयोगी दलों के साथ सरकार बनाने में सफल रही। नड्डा के नेतृत्व में भाजपा ने बिहार और यूपी में भाजपा ने बेहतरीन प्रदर्शन किया। बिहार में 74 सीटें जीतकर भाजपा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी, जबकि यूपी में 250 से ज्यादा सीटें जीतकर भाजपा ने सरकार बनायी। इन दोनों राज्यों में लोकसभा की कुल 120 सीटें हैं।

    नौ राज्यों में जमीन मजबूत करेंगे

    राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के पहले दिन जेपी नड्डा ने सभी महासचिवों और प्रभारियों से कहा कि वे नौ राज्यों में होनेवाले चुनाव में जीत दिलाने की दिशा में काम करें। नड्डा ने कहा कि प्रधानमंत्री जितना मेहनत करते हैं, उतनी मेहनत आप सब भी संगठन के कामकाज में करें। 2023 में जिन नौ राज्यों में चुनाव होने हैं, उनमें से पांच राज्यों में भाजपा की सरकार है, यानी इन पांचों राज्यों में भाजपा के सामने सरकार बचाने की भी चुनौती है। वहीं चार राज्य तेलंगाना, राजस्थान, मिजोरम और छत्तीसगढ़ में जिताने की भी चुनौती है। यह भी एक हकीकत है कि नड्डा के फिर से अध्यक्ष बनने से भाजपा सभी राज्यों में आसानी से रणनीति को अमल में ला सकती है। गठबंधन के साथी बनाने की दिशा में भी पार्टी काम कर रही है। मोदी-शाह के भरोसेमंद होने की वजह से नड्डा यह काम आसानी से कर सकते हैं।

    नौ राज्य हैं नड्डा की सबसे बड़ी चुनौती

    2023 में जिन नौ राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं, उनमें लोकसभा की कुल 116 सीटें हैं। सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश में 29, कर्नाटक में 28 और राजस्थान में 25 सीटें हैं। तेलंगाना की 17 और छत्तीसगढ़ की 11 सीटें भी लोकसभा चुनाव के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं। इन नौ राज्यों में अभी भाजपा के 93 सांसद हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में राजस्थान और त्रिपुरा में पार्टी ने भारी जीत दर्ज की थी। कर्नाटक के बाद तेलंगाना दक्षिण भारत का दूसरा राज्य है, जहां 2019 में भाजपा ने चार सीटें जीती थीं। इसलिए कहा जा सकता है कि लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल मुकाबला 2023 में ही होगा। अगर विधानसभा चुनाव में पार्टी इन राज्यों में कमजोर प्रदर्शन करती है, तो मिशन 2024 फंस सकता है। इसलिए नड्डा के लिए न केवल 93 सीटों का गणित अहम होगा, बल्कि यहां जीतना भी जरूरी होगा।

    चार राज्य देंगे नड्डा को टेंशन

    मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ ऐसे राज्य हैं, जहां भाजपा को सबसे ज्यादा टेंशन होने वाली है। कर्नाटक में कांग्रेस जमीन पर काफी मजबूत है। वहां भाजपा की सीधी टक्कर उससे होनी है। पार्टी को यहां अंदरूनी विरोध और सीएम बोम्मई पर विपक्षी हमले को झेलना होगा। इसके अलावा हाल के दिनों में राज्य में कुछ ऐसे भी विवाद हुए हैं, जिससे पार्टी की मुश्किलें बढ़ी हैं। दूसरी तरफ मध्यप्रदेश में पार्टी को अंदरूनी कलह का सामना करना पड़ रहा है। यहां पार्टी को पिछली बार हार का सामना करना पड़ा था। बाद में ज्योतिरादित्य सिंधिया की कांग्रेस से बगावत के बाद पार्टी ने राज्य ने सरकार बनायी थी। यहां पार्टी को फिर सत्ता में आने के लिए पूरा जोर लगाना होगा। राजस्थान में भाजपा कई धड़ों में बंटी है। वसुंधरा राजे और सतीश पूनिया के बीच तनातनी किसी से छिपी नहीं है। लेकिन पार्टी को यहां एक फायदा यह है कि कांग्रेस में भी उठापटक काफी है और उसका फायदा वह उठा सकती है। छत्तीसगढ़ में पार्टी को कांग्रेस के मजबूत संगठन के साथ-साथ सीएम भूपेश बघेल की चुनौती से पार पाना होगा।

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