विशेष
-हेमंत सोरेन के तरकश में अभी कई तीर मौजूद, हरेक को आजमायेंगे
-इडी और लिफाफे की तलवार से विचलित नहीं हैं
झारखंड की राजनीति में नये साल के पहले दिन से शुरू हुई राजनीतिक उथल-पुथल अब उस स्तर पर पहुंच गयी है, जहां झामुमो के नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार के मुखिया हेमंत सोरेन और केंद्र सरकार-भाजपा के बीच ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ का मुकाबला शुरू हो गया है। इडी और राज्यपाल के जरिये हेमंत सोरेन को घेरने की कोशिशें फिलहाल सफल होती नहीं दिख रही हैं, क्योंकि झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष सह मुख्यमंत्री विधायकों का समर्थन हासिल करने के बाद पूरी मजबूती से डट गये हैं। वह अपने तरकश के तीरों को बेहद सतर्कता और चतुराई के साथ बाहर निकाल रहे हैं। राजनीतिक रूप से इस ‘मनोवैज्ञानिक युद्ध’ का अंतिम परिणाम क्या होगा, इस बारे में कोई भी भविष्यवाणी करना फिलहाल तो असंभव है, लेकिन अब तक की परिस्थितियां बता रही हैं कि हेमंत सोरेन ने फिलहाल बाजी को अपने हाथ में ही थाम कर रखा है। इडी के समन और राज्यपाल के लिफाफे से वह जरा भी विचलित नहीं हैं। सत्तारूढ़ गठबंधन के विधायक दल की बैठक में जो कुछ हुआ, उससे तो यही लगता है कि हेमंत सोरेन और उनके सहयोगी हर परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार हैं। इसलिए उन्होंने विधायकों से ऐसी जगह पर रहने को कहा है, जहां से वे तीन घंटे में राजधानी पहुंच सकें। दूसरी तरफ भाजपा लगातार हेमंत सोरेन को घेर रही है, लेकिन हर बार बाजी उसके हाथ से निकल जा रही है। क्या हैं हेमंत सोरेन के पास विकल्प और क्या हो सकता है झारखंड में, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
सत्ता का खेल बड़ा निराला होता है। कब कौन अर्श से फर्श पर आ जाये या ला दिया जाये, इस बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। फिलहाल झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की स्थिति वैसी ही हो गयी है, जैसी कभी बिहार के मुख्यमंत्री रहते लालू यादव की हुई थी। हालांकि लालू के पास राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाने के सिवाय कोई विकल्प नहीं था, जबकि हेमंत सोरेन के पास कई विकल्प हैं। नये साल के पहले दिन इडी के सातवें समन, झामुमो विधायक डॉ सरफराज अहमद का इस्तीफा और विधि-व्यवस्था को लेकर राज्यपाल की टिप्पणी के साथ झारखंड में शुरू हुआ राजनीतिक बवंडर अब तक पूरी तरह शांत नहीं हुआ है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सत्तारूढ़ गठबंधन के विधायक दल की बैठक में इस बवंडर को शांत करने की कोशिश जरूर की है, लेकिन भाजपा इस बार पीछे हटती दिखाई नहीं दे रही है। लेकिन जहां तक मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की बात है, तो वह अब आर-पार की ही लड़ाई नहीं, पूरी तरह ‘फरिया लेने’ के मूड में नजर आ रहे हैं। इसलिए वह अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं। कुल मिला कर स्थिति यह है कि झारखंड में सियासी संकट का सामना कर रहे हेमंत सोरेन के लिए अगले कुछ दिन अहम होनेवाले हैं। मौजूदा वक्त में सबकी नजरें मुख्यमंत्री के अगले कदम पर टिकी हैं।
झारखंड की सियासी बिसात उन 81 विधायकों के इर्द-गिर्द घूम रही है, जिनका बहुमत फिलहाल मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ है। यहां बहुमत के लिए कुल 41 विधायकों के समर्थन की जरूरत होती है। फिलहाल सत्तारूढ़ गठबंधन के पास 47 विधायक हैं। हेमंत सोरेन ने पिछले 29 दिसंबर को अपनी सरकार की चौथी सालगिरह मनायी। वह झारखंड के पहले आदिवासी मुख्यमंत्री बन गये हैं, जिन्हें लगातार चार साल तक इस पद पर रहने का मौका मिला है। यही एक बात है, जिसे हेमंत सोरेन भुनाना चाहते हैं। वह कहते रहे हैं कि उन्हें गिरफ्तार करने की साजिशें रची जा रही हैं, लेकिन वह इससे नहीं डरते, क्योंकि वह शिबू सोरेन के बेटे हैं और संघर्षों से उनके परिवार का पुराना नाता है। उन्होंने अपनी कई जनसभाओं में यह सवाल उठाया कि आखिर क्या वजह है, जो कोई भी आदिवासी मुख्यमंत्री यहां अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता। वह इसके लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं।
इडी से आर-पार की लड़ाई
हेमंत सोरेन यह भी कहते रहे हैं कि साल 2019 में उनके शपथ लेने के तुरंत बाद से उनकी सरकार गिराने की कोशिशें की जा रही हैं और भाजपा के नेता इसके लिए तरह-तरह की साजिशें रच रहे हैं। उन पर अनर्गल आरोप लगाये जाते रहे हैं और कहीं से सफलता नहीं मिलने पर उनके पीछे प्रवर्तन निदेशालय (इडी) के अफसरों को लगा दिया गया है। इस बीच उन्होंने वैसे कई निर्णय लिये, जो सीधे-सीधे उनके वोटरों को टारगेट करते हैं। 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति का विधेयक, मॉब लिंचिंग रोकथाम से संबंधित विधेयक, निजी सेक्टर की नियुक्ति में भी झारखंड के लोगों के लिए आरक्षण, आदिवासियों और दलितों के लिए 50 की उम्र से ही वृद्धावस्था पेंशन की योजना, राज्यकर्मियों के लिए पुरानी पेंशन योजना की बहाली जैसे निर्णय इसके उदाहरण हैं। इसी दौरान इडी के सात समन के बावजूद वह पूछताछ के लिए उपलब्ध नहीं हुए। 2 जनवरी की दोपहर इडी को भेजे अपने पत्र में उन्होंने इडी के समन को ही गैर-कानूनी बता दिया। साथ ही यह भी आरोप लगाया कि अपने पत्रों को मीडिया में लीक कर इडी उनका मीडिया ट्रायल करा रही है। यह उनकी छवि धूमिल करने की कोशिश है।
हेमंत सोरेन के पास क्या हैं विकल्प
इस राजनीतिक हलचल के बीच मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 3 जनवरी को सत्तारूढ़ गठबंधन के विधायकों की बैठक बुलायी और साफ कर दिया कि वह स्थिति का सामना करेंगे। बैठक में विधायकों से रांची के आसपास ही रहने को कहा गया, ताकि अधिकतम तीन घंटे के भीतर वे रांची पहुंच सकें। इससे पहले हेमंत सोेरेन ने उन तमाम खबरों को सिरे से खारिज कर दिया, जिनमें कहा जा रहा था कि हेमंत सोरेन ने अपनी पत्नी को सीएम का पद सौंपने का फैसला कर लिया है और इसलिए गांडेय सीट खाली करायी गयी है। विधायक दल की बैठक से पहले हेमंत ने अपनी पत्नी कल्पना सोरेन के निकट भविष्य में चुनाव लड़ने की संभावनाओं को खारिज कर दिया था। विधायक दल की बैठक में हेमंत सोरेन के स्टैंड को देख कर समझा जा सकता है कि वह इतनी आसानी से हथियार नहीं डालनेवाले हैं। कल्पना सोरेन के नाम को खारिज करने के बाद भी हेमंत सोरेन पर यदि पद छोड़ने का दबाव बढ़ा. तो वह अपने पिता, यानी शिबू सोरेन को गद्दी सौंप सकते हैं। शिबू सोरेन आज भी झारखंड में ऐसा चेहरा हैं, जिनका विरोध करनेवाला झामुमो में कोई नहीं है। उस स्थिति में भी यदि उपचुनाव को लेकर पेंच फंसा, तो फिर अंतिम विकल्प के तौर पर हेमंत पार्टी के ही किसी वरिष्ठ विधायक को मुख्यमंत्री बनाने की पेशकश कर सकते हैं। इसके लिए उनके मंत्रिमंडल में शामिल जोबा मांझी और चंपाई सोरेन के नामों की चर्चा भी झामुमो खेमे में है। हालांकि हेमंत सोरेन ऐसा करेंगे, इसकी संभावना कम है। इसकी दो वजहें हैं। पहली तो यह कि सोरेन परिवार के अलावा दूसरे किसी नाम पर सहमति बना पाना मुश्किल होगा। दूसरी वजह यह कि बिहार में नीतीश कुमार- जीतन राम मांझी प्रकरण के बाद कोई भी नेता किसी अन्य नाम पर सोचने से परहेज करेगा। हेमंत सोरेन भी यह रिस्क नहीं लेंगे, क्योंकि उनके नेतृत्व में झामुमो ने पिछले चुनाव में अब तक की सबसे अधिक सीटें हासिल की हैं।
विपक्षी खेमे की रणनीति
दूसरी तरफ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि उनकी पार्टी कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिशों का विरोध करेगी। दरअसल भाजपा इस मुद्दे को अपने पक्ष में मोड़ना चाहती है। मरांडी ने इडी को भी शीघ्र कार्रवाई करने की सलाह दी थी। राज्यपाल से उन्होंने आग्रह किया कि वह वैसे किसी व्यक्ति को शपथ दिलाने के लिए आमंत्रित नहीं करें, जो विधानसभा का सदस्य नहीं है। अब उन्होंने कहा है कि उनकी पार्टी राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग नहीं करेगी।
इस पूरे प्रकरण में यह याद रखना जरूरी है कि झारखंड में सत्ता का गणित इतना कमजोर नहीं है कि हेमंत सोरेन के हाथ से सरकार ही निकल जाये, क्योंकि कांग्रेस भाजपा के पक्ष में आ नहीं सकती। राजद को भी भाजपा फूटी आंख नहीं सुहाती। इसलिए फिलहाल तो बाजी हेमंत सोरेन के हाथ में ही दिखती है। लोकतंत्र में बहुमत की ही ताकत होती है और उसी ताकत की बदौलत हेमंत सोरेन किसी भी परिस्थिति का सामना करने के लिए अब तैयार दिख रहे हैं। अब न तो इडी का समन उन्हें विचलित कर रहा है, न ही राज्यपाल के पास धूल फांक रहा लिफाफा।