फूलो-झानो की धरती पर हेमंत की इस योजना ने झारखंड की महिलाओं की किस्मत बदल दी
-मंईयां सम्मान योजना ने झारखंड की महिलाओं के हाथों को मजबूत कर दिया
-कभी हाथ फैलाना पड़ता था, लेकिन आज उन्हीं हाथों से बच्चों की किस्मत संवार रहीं
-सम्मान से जी रही हैं मंईयां, इलाज, पढ़ाई और बचत का बड़ा आधार बना हेमंत का विजन
-अब गरीबों के बच्चों के नंगे बदन पर कपड़े भी आयेंगे और हाथों में किताबें भी आयेंगी
-अब पारिवारिक कलह की भी भेंट नहीं चढ़ेंगी झारखंड की बेटियां
-झारखंड गठन के बाद पहली ऐसी योजना, जो सीधे लाभुक के पास जा रही, न कोई बिचौलिया, न कोई दलाल
-हेमंत सोरेन ने मंईयां पर फूलों की बारिश तो की, बदले में रूह से निकली दुआ ले गये
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
रांची के नामकुम के खोजाटोली आर्मी कैंप मैदान में सोमवार को आयोजित मंईयां सम्मान समारोह में सीएम हेमंत सोरेन ने 56 लाख से अधिक महिलाओं के लिए वह कर दिखाया, जो आज तक झारखंड गठन के बाद किसी सरकार ने नहीं किया था। झारखंड की बहुचर्चित मंईयां सम्मान योजना के तहत 18-50 साल की महिलाओं को प्रतिमाह 2500 रुपये मिलने शुरू हो गये हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 56 लाख 61 हजार 791 लाभुकों के बैंक अकाउंट में 1415 करोड़ 44 लाख 77 हजार रुपये की राशि डीबीटी के माध्यम से भेज दी। मुख्यमंत्री ने जैसे ही पैसे ट्रांसफर का बटन दबाया, आतिशबाजियां हुईं। लाभुकों ने तालियां बजाते हुए सीएम का अभिवादन किया और ढेर सारा आशीर्वाद दिया। राज्य सरकार की ओर से यह पांचवीं किस्त दी गयी, जिसमें पहली बार बढ़ी हुई राशि 2500 रुपये महिला लाभुकों को दी गयी, इससे पहले 18-50 वर्ष की महिलाओं को एक हजार रुपये हर महीने दिये जा रहे थे। मंईयां सम्मान योजना झारखंड की महिलाओं के लिए सिर्फ एक योजना भर नहीं है, यह उन्हें वह ताकत प्रदान करती है, जिससे वे मुख्यधारा में खुद को जोड़ सकें। आज झारखंड की महिलाएं खुद पर इतराती हैं कि उन्होंने जिसे चुना, सही चुना। झारखंड विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने हेमंत सोरेन को दिल खोल कर आशीर्वाद दिया और बदले में हेमंत भी महिलाओं से किया हुआ वादा निभा रहे हैं। आज झारखंड की महिलाएं एकजुट होकर हेमंत सोरेन को आशीर्वाद दे रही हैं। यह वही हेमंत सोरेन हैं, जिन्होंने अपनी पांच महीने की जेल यात्रा के दौरान भी झारखंड की महिलाओं के उत्थान के लिए सोचा। उन्होंने जेल यात्रा के समय का भी सदुपयोग किया। उन्होंने दिखा दिया कि झारखंड में विकास के अंतिम पायदान पर खड़ी मां-बहनों का विकास वह जेल में रह कर भी कर सकते हैं। बस मंशा होनी चाहिए। मंईयां सम्मान समारोह में सोमवार को जैसे ही हेमंत सोरेन ने एंट्री मारी, मानो एक अलग सी ऊर्जा उस कार्यक्रम स्थल पर जागृत हो गयी। हेमंत सोरेन महिलाओं की खुशी को देख खुद को रोक न सके और उन्होंने महिलाओं के सम्मान में उन पर फूलों की वर्षा करनी शुरू कर दी। हेमंत सोरेन ने मंईयां पर फूलों की बारिश तो की, लेकिन बदले में रूह से निकली दुआ ले गये। कहते हैं दुआ नसीब वालों को ही मिला करती है, क्योंकि वह सीधे दिल से निकलती है, रूह से निकलती है। आज हेमंत सोरेन के विजन के चलते झारखंड के गरीब बच्चों के बदन पर कपड़े दिखने लगे हैं। हाड़ कंपाती ठंड में गरीब बुजुर्ग महिलाओं के शरीर पर स्वेटर, टोपी, शॉल और कंबल भी दिखने लगे हैं। मिट्टी वाले घरों के आंगन में बच्चों के हाथों में किताबें दिखाई देने लगी हैं। अब तो झारखंड की महिलाएं बचत की बात भी करने लगी हैं। इलाज के लिए उन्हें दूसरों का मुंह नहीं देखना पड़ता है, क्योंकि उनके हाथों में सम्मान राशि आने लगी है। 2500 रुपये महीना, यानी साल में 30 हजार कोई मामूली रकम नहीं। यह राशि झारखंड की महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही है। झारखंड गठन के बाद यह एकमात्र ऐसी योजना है, जहां लाभुकों को डायरेक्ट लाभ मिल रहा है। न इसमें कोई बिचौलिया है, न कोई दलाल। कैसे हेमंत सोरेन के एक विजन ने झारखंड की महिलाओं की किस्मत बदल दी, कैसे महिलाओं के हक के लिए एक और हूल का आगाज कर दिया है हेमंत सोरेन ने, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
महिलाएं गर्व कर रही हैं, कह रही हैं, जिसे चुना, सही चुना
हेमंत सोरेन, वह नाम, जिस पर झारखंड की महिलाएं गर्व कर रही हैं। कह रही हैं, उन्होंने जिसे चुना, सही चुना। महिलाओं का कहना है कि आज तक उनके बारे में किसी भी सरकार ने नहीं सोचा था। यह हेमंत सोरेन की सरकार है, जिसने उनके बारे में सोचा। उन्हें उचित सम्मान दिलाने, उन्हें उनका हक दिलाने के बारे में सोचा। यह सोच संस्कार से ही आ सकता है। यह दिशोम गुरु शिबू सोरेन और उनकी पत्नी रूपी सोरेन के संस्कार ही हैं, जिन्होंने हेमंत सोरेन को इतना लायक बनाया। महिलाओं का मानना है कि हेमंत सोरेन बहुत ही भाग्यशाली हैं, जिनके पास पत्नी के रूप में कल्पना सोरेन हैं। कल्पना सोरेन झारखंड की महिलाओं के लिए एक आदर्श हैं। कल्पना सोरेन ने एक ऐसे वक्त में खुद को साबित किया, जब हेमंत सोरेन को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी। और उस पर वह खरी भी उतरीं। हेमंत सोरेन ने जिस उद्देश्य के साथ मंईयां सम्मान योजना की शुरूआत की, वह उद्देश्य पूरा होता हुआ भी दिख रहा है। आज झारखंड की महिलाएं खुद को मजबूत महसूस कर रही हैं। कह रही हैं कि अब उन्हें किसी के सामने हाथ फैलाने की जरूरत नहीं है। अब अपने बच्चों को पढ़ाने, अपना इलाज कराने के लिए उन्हें किसी पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है। वे मजबूती के साथ अपने परिवार के पुरुष सदस्यों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल सकती हैं। वहां उपस्थित महिलाओं ने बताया कि यह राशि कैसे उनके लिए वरदान साबित हो रही है। उन्होंने बताया कि वह अपनी बच्ची को ट्यूशन नहीं पढ़ा पाती थीं, लेकिन अब पढ़ा पायेंगी। कई महिलाओं ने कहा कि वह अब हर महीने गैस सिलेंडर खरीदेंगी। एक महिला ने बताया कि उनके पति बीमार हैं और उनके लिए दवा खरीदने में दिक्कत आती थी, अब नहीं आयेगी। अब उनके पति जियेंगे। ऐसा नहीं है कि मंईयां सम्मान योजना अपनी तरह की कोई पहली योजना है। इस तरह की योजना कई राज्यों में सफलतापूर्वक चल रही हैं। जैसे मध्यप्रदेश में लाडली बहना योजना, महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री माझी लड़की बहिन योजना, छत्तीसगढ़ में महतारी वंदन योजना, कर्नाटक में गृहलक्ष्मी योजना, तेलंगाना में महालक्ष्मी योजना, हिमाचल प्रदेश में इंदिरा गांधी प्यारी बहना सुख-सम्मान निधि योजना, पश्चिम बंगाल में लक्ष्मी भंडार योजना, ओड़िशा में सुभद्रा योजना और गुजरात में नमो श्री योजना भी सुर्खियों में है। लेकिन मंईयां सम्मान योजना सिर्फ एक योजना भर नहीं है। यह हेमंत सोरेन का झारखंड की महिलाओं के प्रति सम्मान है।
एक हूल का आगाज कर दिया है हेमंत सोरेन ने
आखिर हेमंत सोरेन को ही झारखंड में ऐसी योजना लागू करने का खयाल कैसे आया। पहले किसी भी सरकार में ऐसी योजना को लागू क्यों नहीं किया गया। इसके पीछे भी कहानी है। हेमंत सोरेन झारखंड को बहुत अच्छी तरह समझते हैं। उन्हें पता है कि झारखंड की महिलाओं को किन परेशानियों से गुजरना पड़ता है। हेमंत सोरेन अबुआ राज की बात करते हैं और अबुआ राज महिलाओं को सशक्त बनाये बिना हासिल नहीं किया जा सकता। 1855 में संथाल हूल के नायकों सिदो-कान्हू, चांद-भैरव ने अंग्रेजी सत्ता पोषित साहूकारी व्यवस्था के खिलाफ हथियार उठाया और आजादी की पहली लड़ाई लड़ी। तब उसमें उनका साथ उनकी दो बहनों, फूलो और झानो ने भी दिया था। यह इसलिए, क्योंकि आदिवासी महिलाएं पहले से ही सशक्त रहती आयी हैं। उन्हें समाज में अपना योगदान पता है। वर्ष 1899-1900 में बिरसा मुंडा के उलगुलान में भी महिलाओं की महती भूमिका थी। बिरसा मुंडा की दो महिला अंगरक्षक भी थीं। सन 1930 के नमक सत्याग्रह के समय खूंटी के टाना भगतों की सभा में आधी संख्या महिलाओं की थी। 1978 में जंगल आंदोलन का दौर था। इसमें भी महिलाएं बड़ी संख्या में शामिल हुई थीं। लेकिन दुर्भाग्यवश फूलो-झानो की परंपरा धीरे-धीरे अपनी चमक खोती गयी। आज आदिवासी औरतों की आवाज दब सी गयी है। यही कारण है कि आदिवासी समाज के कुछ चिंतक, लेखक और समाज सुधारकों ने यह अफवाह फैला दी कि आदिवासी औरत स्वतंत्र-आजाद हैं। उन्हें बराबरी का हक मिला हुआ है। परंतु परिस्थितियां सोच के अनुरूप नहीं हैं। इसलिए झारखंड की महिलाओं के लिए, उनके मुद्दों के लिए एक और हूल की जरूरत थी। और उस हूल का आगाज कर दिया है हेमंत सोरेन ने। हेमंत सोरेन ने उन्हें सशक्त बनाने का जो बीड़ा उठाया है, वह किसी क्रांति से कम नहीं है।
हेमंत सोरेन की एक कल्पना ने झारखंड की महिलाओं की किस्मत बदल दी
झारखंड के आदिवासी समुदाय में लड़कियों के जन्म को गोहार भरने के साथ जोड़ा जाता है। लड़कियां सयानी बेटी के रूप में घर, परिवार और समाज में स्वीकार की जाती हैं। कन्या भ्रूण हत्या यहां न के बराबर है। अत: आदिवासी क्षेत्रों में लड़कियों की सघन उपस्थिति देखी जाती है। झारखंड के आदिवासी समुदाय के पास संघर्ष और आंदोलन का एक लंबा इतिहास है। आदिवासी समुदाय की महिलाओं को भी अपनी स्मृतियों को ताजा रखना होगा, वर्तमान यथार्थ पर बारीकी से विचार करना होगा, शिक्षा और जागरूकता से भविष्य के लिए सपने देखने होंगे। आज झारखंड की महिलाएं, जो हेमंत सोरेन को झोली भर-भर कर आशीर्वाद दे रही हैं, उसके वह सही मायने में हकदार हैं। हेमंत सोरेन ने आखिर झारखंड की महिलाओं के लिए वह कर दिखाया, जिसकी वे हकदार बरसों से रही हैं। चुनाव के दौरान विपक्ष ने कहा कि हेमंत सोरेन यह सब चुनाव जीतने के लिए कर रहे हैं। लेकिन महिलाओं ने विपक्ष को ऐसा जवाब दिया कि आज विपक्ष चारों खाने चित है। आज झारखंड की महिलाएं आत्मविश्वास से लबरेज हैं। उनका खुद पर भरोसा बढ़ा है। आज वे अपने बच्चों के बेहतर भविष्य की कल्पना कर सकती हैं। उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ सकती हैं। सच में हेमंत सोरेन की एक कल्पना ने झारखंड की महिलाओं की किस्मत बदल दी है।