राजस्व वृद्धि पर जोर
वित्त वर्ष 2020-21 के झारखंड के बजट को लेकर काउंटडाउन शुरू हो गया है। आगामी 27 फरवरी से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र के दौरान तीन या चार मार्च को हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार अपना पहला बजट पेश करने जा रही है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव सभी विभागों के साथ बैठक कर मंत्रणा कर चुके हैं। सभी विभागों के अधिकारियों को सरकार की इच्छा से अवगत करा दिया गया है। सभी को बताया गया है कि मूल उद्देश्य जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना है। उनसे किये वादे पूरे करने हैं। खाली खजाना कैसे भरा जाये, इस पर मुख्य फोकस है। इसके लिए राजस्व वसूली में तेजी लाने का निर्देश दिया गया है। खनन और उत्पाद एवं मद्य निषेद्य विभाग को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गयी है कि राजस्व के स्रोतों को मजबूत किया जाये।
सरकार फिजूलखर्ची रोकने को लेकर सख्त है। इसलिए संभव है कि पिछली सरकार की कुछ योजनाओं को बंद कर नयी योजनाएं लायी जायें, तो कुछ योजनाओं का स्वरूप भी बदला जा सकता है। समीक्षा में पाया गया है कि कुछ योजनाएं जनता से सीधे नहीं जुड़ी हैं और खर्चीली हैं। ऐसी योजनाओं को बंद भी किया जा सकता है। इस मद्देनजर बजट आकार में मामूली वृद्धि की संभावना है। योजना विभाग ने सभी विभागों से प्रस्ताव प्राप्त कर आगे की तैयारी शुरू कर दी है। राजस्व उगाही के लिए कमर कस ली गयी है। खनन विभाग को शराब और बालू तस्करों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करते हुए जुर्माना वसूलने का निर्देश दिया गया है।
हर किसी की उम्मीदों का खयाल रखना बड़ी चुनौती
नयी सरकार का यह पहला बजट है। जाहिर है इससे जनता की अपेक्षाएं कुछ अधिक ही जुड़ी रहेंगी। राज्य सरकार के स्तर से बजट को लेकर तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। मुख्य सचिव डीके तिवारी के स्तर से भी विभागीय सचिवों के साथ बैठक की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। वित्तमंत्री रामेश्वर उरांव खुद भी बजट से जुड़ी तैयारियों की मॉनिटरिंग कर रहे हैं। हालांकि, बजट का फोकस बिंदु क्या होगा, बजट की चुनौतियां क्या हैं, इस पर कोई चर्चा वे नहीं करते। गोपनीयता का हवाला देते हैं। संकेत है कि बजट में किसानों, महिलाओं, युवाओं, अनुसूचित जनजाति एवं अनुसूचित जाति पर खास फोकस रखा जायेगा।
केंद्र पर निर्भरता कम करने की कोशिश
वित्तीय वर्ष 2020-21 के बजट में सरकार का विशेष जोर अपने कर राजस्व पर होगा, ताकि भारत सरकार पर निर्भरता कुछ हद तक कम हो सके। राज्य सरकार के अपने संसाधनों का बजट में योगदान महज 25 फीसदी के आसपास बताया जाता है। यदि इसमें गैर कर राजस्व को भी जोड़ दिया जाए, तो भी यह 37 फीसद के दायरे में रहता हैं। सीएजी की रिपोर्ट में भी इस पर चिंता जाहिर की गयी है। राज्य बजट की पूरी तरह से निर्भरता केंद्र से अनुदान पर मिलने वाली राशि और केंद्रीय करों में राज्य की हिस्सेदारी पर ही है। बता दें कि वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए राज्य सरकार ने 85,429 करोड़ का बजट पेश किया था।
तय होगी हेमंत सरकार की जवाबदेही
हेमंत सरकार का पहला बजट गठबंधन की जवाबदेही तो तय करेगा ही, सरकार का फोकस भी स्पष्ट कर देगा। सरकार ने जनता से वादे किये हैं, उन्हें पूरा करने के लिए क्या करने जा रही है, यह स्पष्ट होगा। खास तौर पर ऐसे समय में जब कोष खाली हो, तो यह बजट सरकार की प्राथमिकताएं भी बता देगा। नयी सरकार पर सबकी नजरें टिकी हुई है। जनता ने जिस उम्मीद के साथ बहुमत दिया है, उसे पूरा करना किसी चुनौती से कम नहीं है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य में तेजी से विकास का काम करने की वचनबद्धता भी दोहरायी है। विधानसभा चुनाव के वक्त जनता से किये गये वादों को पूरा करना सरकार की प्राथमिकता सूची में है और यह उसके लिए सही समय भी है। सरकार ने किसानों की ऋणमाफी, बिजली, बेरोजगार पेंशन और वृद्धावस्था पेंशन जैसी आम लोगों से जुड़ी सुविधा को प्राथमिकता सूची में रखा है।
खाद्यान्न की कमी कैसे दूर होगी
भुखमरी से होने वाली मौतों को लेकर कई बार झारखंड सुर्खियों में रह चुका है। आंकड़ों की बात करें तो झारखंड को हर साल करीब 50 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न चाहिए, मगर यहां बेहतर से बेहतर स्थिति में भी 40 लाख मीट्रिक टन ही उत्पादन हो पाता है। इस 10 लाख मीट्रिक टन के अंतर को भर पाना गठबंधन सरकार की चुनौैती है। देखना है आगामी बजट में सरकार इसके लिए क्या कदम उठाती है।
युवाओं की अपेक्षा, दूर हो बेरोजगारी
देश में सर्वाधिक बेरोजगारी वाले पांचवें राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के सामने राज्य के युवाओं को रोजगार देने की प्रमुख चुनौती है। राज्य के हर पांच युवा में एक बेरोजगार है। युवा आशा भरी निगाहों से सरकार को देख रहे हैं कि वह उन्हें रोजगार देने के लिए क्या कदम उठायेगी। सैंपल सर्वे आॅफिस की रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड देश के उन 11 राज्यों में शामिल है, जहां बेरोजगार की दर सर्वाधिक है। युवाओं ने हेमंत सरकार को समर्थन दिया है और अब आस लगाये हैं कि सरकार ने जो बेरोजगारी भत्ता देने का वादा किया था, शायद इस बजट में पूरा हो जाये।
85 हजार करोड़ का कर्ज भी सिर पर
झारखंड सरकार पर इस वक्त 85 हजार 234 करोड़ का कर्ज है। 2014 में जब रघुबर दास ने सरकार संभाली थी, तब राज्य पर 37 हजार 593 करोड़ रुपये का कर्ज था। मगर रघुबर सरकार आने के बाद राज्य का कर्ज और तेजी से बढ़ा। 2014 से पहले 14 वर्षों में आई सरकारों ने जितना कर्ज लिया था, उससे कहीं ज्यादा रघुबर सरकार ने लिया। आज यह 85 करोड़ तक पहुंच गया है। ऐसे में खाली खजाने के साथ हेमंत सरकार को सिर पर कर्ज के बोझ का ख्याल रखना होगा।
किसानों की कर्जमाफी बड़ी चुनौती
किसानों की ऋणमाफी पर भारी भरकम राशि खर्च होगी, जिसका वहन करना चुनौतीपूर्ण होगा। इस पर राज्य सरकार फिलहाल 1800 से 2000 करोड़ खर्च करने जा रही है, यह विभागीय सूत्र बताते हैं। किसान सरकार की प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर हैं और कांग्रेस तथा झामुमो के एजेंडे में ऋण माफी शामिल है। सरकार की सबसे बड़ी चुनौती भी किसानों की ऋणमाफी ही है। इसपर करीब 7000 हजार करोड़ खर्च का आकलन किया गया है। इससे राज्य के सरकारी खजाने पर बोझ पड़ेगा। इसलिए प्रथम चरण में सरकार इसमें 2000 करोड़ का प्रावधान कर सकती है।
महिलाएं और पारा शिक्षक
महिलाओं को सरकारी नौकरी में 50 फीसदी आरक्षण और पारा शिक्षकों को स्थायी करने का वादा पूरा भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। सरकार ने चुनाव के दौरान दोनों से वादे किये हैं कि उनकी सारी समस्याएं खत्म होंगी और स्थायी समाधान निकलेगा। इससे इस वर्ग की अपेक्षाएं भी सरकार से जुड़ गयी हैं। पारा शिक्षकों के वेतनमान को लेकर बैठक भी हो चुकी है और आगामी बजट में इस मुद्दे को लेकर विशेष प्रावधान लाया जा सकता है।
गरीब राज्य का टैग कैसे हटे
वर्ष 2000 में बिहार से अलग होने के बाद से झारखंड के माथे पर गरीब राज्य का टैग लगा हुआ है। इस राज्य में अब भी 36.96 प्रतिशत से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करती है। गरीब राज्य के टैग से झारखंड को निजात दिलाना और राज्य के गरीबों का भला करना भी हेमंत सोरेन के पहले बजट की चुनौतियों में शामिल है। सरकार इस दिशा में भी कदम उठाने के संकेत दे चुकी है। 100 यूनिट बिजली मुफ्त देने का प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश ऊर्जा विभाग को दिया गया है। 300 यूनिट तक बिजली खपत करनेवाले गरीबों को इसका लाभ मिल सकता है।
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