रांची। शैलेश अग्रवाल की याचिका पर सुनवाई के दौरान झारखंड हाइकोर्ट ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर नाराजगी जतायी। न्यायमूर्ति आनंद सेन की कोर्ट ने शैलेश अग्रवाल के मामले का अनुसंधान 10 साल में पूरा नहीं होने पर इसे गंभीरता से लिया। चाइबासा एसपी के जवाब पर असंतुष्टि जताते हुए राज्य के गृह सचिव से रिपोर्ट मांगी कि राज्य में तीन साल से अधिक लंबित रहने वाले कितने क्रिमिनल केस है? अनुसंधान में देरी के लिए जिम्मेवार अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गयी?
इस संबंध में जिलों के एसपी से जानकारी लेकर शपथ पत्र जिलावार दाखिल करने का निर्देश दिया है। गृह सचिव को व्यक्तिगत स्तर पर जवाब देने को कहा है। अदालत ने गृह विभाग के सचिव को मामले में प्रतिवादी बनाया है। सुनवाई के दौरान चाइबासा के एसपी कोर्ट में सशरीर उपस्थित हुए। अगली सुनवाई छह मार्च को होगी। उस दिन भी चाइबासा एसपी को सशरीर उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है।
प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता शैलेश कुमार सिंह ने अदालत को बताया कि वर्ष 2009 में चाइबासा पुलिस ने ट्रकों में फर्जी कंपनी का नाम लगा कर आयरन ओर खनिज की ढुलाई मामले में प्राथमिकी दर्ज की थी। अनुसंधान के क्रम में ट्रक ड्राइवर से चुटका मिला था। इसमें दुधानी कोक यूनिट प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक शैलेश अग्रवाल का नाम था। जिसके बाद पुलिस ने उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट निकला, जिसे हाइकोर्ट ने निरस्त कर दिया था। साथ ही उन्हें इस मामले में अग्रिम जमानत मिल गयी थी। इसी मामले में नामजद छह आरोपियों के मामले की पुलिस ने जांच कर चार्जशीट दायर की थी।
निचली अदालत ने ट्रायल पूरी होने के बाद आरोपियों को बरी कर दिया था, लेकिन शैलेश अग्रवाल का मामला अब भी लंबित पड़ा हुआ है। प्रार्थी कहा कहना था पुलिस ने इस मामले में उन्हें बेवजह फंसाया है। मामले को वर्षो लंबित रखा गया था। प्रार्थी ने उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को निरस्त करने का आग्रह किया है।