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    Home»Top Story»भाजपाई अवतार में लौटकर बाबूलाल क्या करेंगे कमाल!
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    भाजपाई अवतार में लौटकर बाबूलाल क्या करेंगे कमाल!

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskFebruary 3, 2020No Comments6 Mins Read
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    झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल अपने पुराने भाजपाई अवतार में लौटेंगे, यह तो तय हो चुका है। सस्पेंस है तो सिर्फ इस बात पर कि भाजपा में वह किस भूमिका में लौटेंगे। भाजपा में उनकी वापसी की तारीख और वक्त क्या होगा, इससे भी पर्दा उठना बाकी है। भाजपा यह अच्छी तरह जानती है कि झारखंड में अभी वह जिन हालात से गुजर रही है, उसमें उसे बाबूलाल जैसी शख्सियत की सख्त जरूरत है। झारखंड में आदिवासियों के साथ-साथ आमजन के बीच भाजपा के लिए अगर कोई आकर्षण पैदा कर सकता है, तो वह हैं बाबूलाल मरांडी। भाजपा झारखंड में पार्टी को रिस्ट्रक्चर करना चाहती है और इसमें बाबूलाल को अहम भूमिका सौंपना चाहती है। झारखंड की राजनीति में बाबूलाल मरांडी की अहमियत को रेखांकित करती दयानंद राय की रिपोर्ट।

    तीन फरवरी को संभवत: बाबूलाल मरांडी रांची लौट आयेंगे। उनके लौटने के साथ ही सियासी हलकों में अटकलबाजियों और चर्चाओं का दौर भी लौटेगा। जैसे वह तारीख कौन सी होगी, जब बाबूलाल अपनी पार्टी का भाजपा में विलय करेंगे ? भाजपा में उनके शामिल होने के बाद वह कौन सी जिम्मेदारी पार्टी देगी? उनके भाजपा में शामिल होने पर झारखंड विकास मोर्चा के विधायक बंधु तिर्की और प्रदीप यादव का अगला कदम क्या होगा? कयास लगाया जा रहा है कि 11 फरवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद वे अपनी पार्टी झाविमो का भाजपा में विलय कर सकते हैं। सवाल यह भी है कि क्या झाविमो के भाजपा में विलय के बाद पार्टी में उस दौर की वापसी हो जायेगी, जिस दौर में बाबूलाल मरांडी के बिना झारखंड भाजपा का पहिया भी नहीं हिलता था? जाहिर है, वह दौर लौटने में थोड़ा वक्त लगेगा, लेकिन इतना तय है कि भाजपा में आते ही वह झारखंड में पार्टी का एक प्रमुख चेहरा बन जायेंगे। उनके भाजपा में लौटने की खबरों का एक सिरा इससे भी जुड़ता है कि अगले दस दिन भाजपा के लिए बड़े उथल-पुथल से भरे होंगे। आठ फरवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होगा और 11 फरवरी को उसके नतीजे आ जायेंगे।
    दिल्ली विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करना भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि वहां केजरीवाल का जलवा कायम है। केजरीवाल से निपटने के लिए भाजपा को अपने 42 सांसदों के साथ 100 बड़े नेताओं की फौज लगानी पड़ रही है। जाहिर है, भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का सारा फोकस अभी दिल्ली चुनाव पर है। दिल्ली चुनाव के बाद ही पार्टी दूसरी प्राथमिकताओं पर काम करेगी। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व झारखंड में पार्टी को पुरानी स्थिति में वापस लाने को चिंतित है। इस दिशा में मंथन भी शुरू हो चुका है। पार्टी को झारखंड में न सिर्फ अपने नये प्रदेश अध्यक्ष का चयन करना है, बल्कि विधायक दल का नेता भी चुनना है। यह काम पार्टी बाबूलाल मरांडी को भाजपा में शामिल कराने के बाद ही करना चाहती है। इस स्थिति से भाजपा में बाबूलाल मरांडी की अहमियत दिनों-दिन बढ़ेगी, ऐसी संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता।

    बंधु और प्रदीप के अगले कदम के इंतजार में बाबूलाल मरांडी
    भाजपा में झाविमो के विलय की कवायद में जुटे बाबूलाल मरांडी विधायक बंधु तिर्की और प्रदीप यादव के अगले कदम के इंतजार में हैं। दूसरी तरफ बंधु और प्रदीप दोनों की नजरें भी बाबूलाल मरांडी के अगले कदम की ओर टिकी हुई हैं। बाबूलाल की भाजपा में वापसी तय है, लेकिन बंधु और प्रदीप झाविमो से छिटकने के बाद कांग्रेस में ही जायेंगे, इसको लेकर असमंजस की स्थिति है। राजनीति के गलियारे में चर्चाएं हैं कि हेमंत सरकार में एक मंत्री पद इन्हीं दो में से किसी एक नेता के लिए खाली रखा गया है, लेकिन इन चर्चाओं में बहुत दम नहीं है। क्योंकि ऐसा होने पर कांग्रेस के अंदर विरोध की लहर तेज होगी। दोनों नेताओं ने कांग्रेस के आलाकमान से मुलाकात की है, इससे साफ हो रहा है कि दोनों कांग्रेस के साथ अपनी राजनीति की पारी को आगे बढ़ाने को इच्छुक हैं। चर्चा यह भी है कि बाबूलाल मरांडी पार्टी के राष्टÑीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की उपस्थिति में भाजपा में शामिल होंगे। इस कार्यक्रम में अमित शाह भी मौजूद रह सकते हैं।

    भाजपा की जरूरत क्यों बन गये हैं बाबूलाल
    हाल में संपन्न हुए झारखंड विधानसभा चुनाव में करारी पराजय के बाद भाजपा को यह बात अच्छी तरह समझ में आ गयी है कि यदि उसे झारखंड में अपना प्रभुत्व कायम करना है तो हेमंत सोरेन की टक्कर का एक आदिवासी नेता पार्टी में लाना होगा। विधानसभा चुनाव में रघुवर दास की पराजय के बाद अब पार्टी के सामने बाबूलाल सबसे बेहतर विकल्प हैं। उधर, बाबूलाल मरांडी के लिए भी राजनीति में अपना मजबूत वजूद कायम करने के लिए भाजपा में शामिल होना जरूरी माना जा रहा है। वर्ष 2006 मेें झारखंड विकास मोर्चा के गठन के बाद से वे लगातार जिन झंझावातों से होकर गुजरे हैं, उससे उनका आत्मविश्वास हिल गया। यह और बात है कि पार्टी में लगातार टूट के बावजूद दृढ इच्छाशक्ति के धनी बाबूलाल मरांडी ने अपने को टूटने नहीं दिया। हाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी 81 सीटों पर लड़, पर केवल तीन सीटें जीतने में सफल रही। इन परिस्थितियों के कारण भी बाबूलाल मरांडी के लिए भाजपा में लौटना बेहतर विकल्प लग रहा है। वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में झारखंड में दूसरे नंबर की पार्टी बनने के बाद भाजपा की निगाहें अब वर्ष 2024 में होनेवाले विधानसभा चुनाव पर टिकी हैं और इसके लिए पार्टी को बाबूलाल जैसे नेता की जरूरत है जो दूरदर्शी तो हैं ही, भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ-साथ संघ में भी उनकी स्वीकार्यता है। बाबूलाल मरांडी भाजपा की नीतियों और संघ की परंपराओं से भलीभांति अवगत हैं। पार्टी में उनके लिए चुनौतियां तो होंगी, लेकिन उन्हें पता है कि इनका सामना कैसे किया जा सकता है। झारखंड में जिस दौर से भाजपा गुजर रही है वैसे में पार्टी की निगाहें एक कद्दावर आदिवासी चेहरे पर टिकी हैं और वह चेहरा बाबूलाल मरांडी का ही है।

    टक्कर देने का माद्दा रखते हैं बाबूलाल मरांडी
    झारखंड की राजनीति के जानकारों का कहना है कि यदि झारखंड में हेमंत सोरेन के लोकप्रिय चेहरे को टक्कर देने की क्षमता किसी राजनेता में है, तो वह निश्चित रूप से बाबूलाल मरांडी ही हैं। विनम्र स्वभाव और कुशल प्रशासक की बाबूलाल की छवि है। पार्टी चलाने के अनुभवों से वे लैस हैं। वर्ष 2014 में रघुवर दास को झारखंड का पहला गैर आदिवासी मुख्यमंत्री बनाकर और उनके नेतृत्व में सरकार चलाने का हश्र भाजपा देख चुकी है। अब भाजपा उस भूल को दोहराना नहीं चाहती।
    इधर झारखंड के सीएम के रूप में हेमंत सोरेन बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसे में हेमंत सोरेन की लोकप्रिय छवि को काउंटर करने के लिए भाजपा के पास बाबूलाल मरांडी एक बेहतर विकल्प हो सकते हैं। यही कारण है कि भाजपा बाबूलाल को जल्द से जल्द पार्टी में शामिल करना चाहती है। बाबूलाल मरांडी किस दिन अपनी पार्टी का भाजपा में विलय करेंगे यह तो सिर्फ बाबूलाल मरांडी ही जानते हैं, पर उस दिन का इंतजार सबको है। झारखंड के मुख्यमंत्री के तौर पर बाबूलाल मरांडी का 28 महीने का कार्यकाल जनता के जेहन में आज भी ताजा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कब भाजपा में बाबूलाल की वापसी होती है और उसके बाद किस तरह की राजनीतिक परिस्थितियां निर्मित होती हैं।

    What will Babulal do amazing by returning to the BJP avatar!
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