15HREG465 चुनाव आयोग का लिफाफा आने के बाद सरकार के कार्यों में आई तेजी: राज्यपाल
रांची, 15 फ़रवरी (हि.स.)। राज्यपाल रमेश बैस ने कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने दो वर्षों के कार्यकाल में जितना काम नहीं किया था, उतना काम चुनाव आयोग का लिफाफा आने के बाद किया। इससे झारखंड का भला हुआ है।
राज्यपाल बैस बुधवार को महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाए जाने के बाद झारखंड से विदा लेने से पहले राजभवन में पत्रकारों से वार्ता कर रहे थे। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सदस्यता को लेकर चुनाव आयोग के भेजे गए लिफाफे का मामले पर बैस ने कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को स्पष्ट कह दिया था कि वह निश्चिंत होकर अपना काम करें, फिर भी यदि कोई अपने छांव से डरे तो मैं क्या करूं। उन्होंने कहा कि 2021 में झारखंड आने के बाद वह यहां जिस गति से विकास कराना चाहते थे, उस गति से नहीं करा पाया। राज्य के मंत्री और अधिकारियों का विजन यदि सही होता तो झारखंड बीमारू राज्य नहीं विकासशील प्रदेश होता। उन्होंने कहा कि झारखंड के लॉ एंड ऑर्डर को ठीक कराने का उन्होंने हरसंभव प्रयास किया, क्योंकि बाहर से इन्वेस्टर तभी आएंगे जब राज्य में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति ठीक रहेगी। यदि यहां शासन व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं रहेगी तो बाहर से लोग आने में कतराएंगे।
राज्यपाल ने कहा कि झारखंड में सबसे अच्छा यह लगा कि यहां के लोग बहुत सीधे सादे हैंए लेकिन उन्हें सबसे मलाल यह रहा कि यहां कानून व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं है। इसके लिए उन्होंने कई बार अधिकारियों को बुलाकर आवश्यक दिशा निर्देश दिए, लेकिन इसके बावजूद स्थिति सुधर नहीं पाई। एक सवाल के जवाब में रमेश बैस ने कहा कि हेमंत सोरेन बहुत अच्छे लीडर हैं, इतनी कम उम्र में मुख्यमंत्री बने हैं। वे ऐसा काम कर सकते हैं जो लैंड मार्क साबित हो सकता है। मैंने बीच-बीच में उन्हें कई सलाह दिया, लेकिन पता नहीं वे क्यों उस पर अमल नहीं कर पाए। छत्तीसगढ़ की तर्ज पर बजट में हेल्थ, एजुकेशन, रोड जैसे कुछ प्रमुख सेक्टर पर फोकस कर काम करना होगा, तभी राज्य का अपेक्षित विकास होगा।
टीएसी पर सरकार के साथ हुए विवाद संबंधी सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2020-21 और 2021-22 में 200 करोड़ रुपए से अधिक की राशि राज्य सरकार को दी थी, लेकिन समीक्षा के दौरान मैंने पाया कि एक रु भी खर्च नहीं हो सका है। इस कारण केंद्र सरकार ने 2022-23 में राशि देने पर रोक लगा दी, लेकिन राज्य के अधिकारियों को इसकी परवाह नहीं। उन्होंने 1932 के खतियान पर कहा कि हाई कोर्ट के फैसले के बाद भी सरकार क्यों जबरदस्ती करना चाहती है, यह समझ में नहीं आया। यदि 1932 का खतियान स्थानीयता का आधार माना जाएगा तो इससे कई जिलों में भारी समस्या होगी। इस पर सही से निर्णय लेना राज्य के लिए हितकारी होगा।