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    Home»स्पेशल रिपोर्ट»यों ही अमित शाह ने झारखंड की कमान अपने हाथ में नहीं ली है
    स्पेशल रिपोर्ट

    यों ही अमित शाह ने झारखंड की कमान अपने हाथ में नहीं ली है

    adminBy adminFebruary 5, 2023No Comments11 Mins Read
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    -आलाकमान यह जानता है कि झारखंड से पूरा देश रौशन हो रहा है
    -पहले कोल्हान और अब संथाल का दौरा बहुत कुछ कहता है
    2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा ने अभी से कमर कस ली है। चुनाव की कमान खुद अमित शाह ने अपने हाथ में ली है। एक महीन के अंदर झारखंड में उनका दूसरा दौरा हो रहा है। इससे यह कहा जा सकता है कि झारखंड में भाजपा की ओर से चुनावी बिगुल बज चुका है। भाजपा के राजनीतिक चाणक्य कहे जानेवाले अमित शाह ने झारखंड के लिए विशेष रणनीति भी बना ली है। उसी रणनीति के तहत अमित शाह ने राज्य के भाजपा नेताओं को भी चुनाव रण में लगा दिया है। सबको अलग-अलग जिम्मेदारी दी जा चुकी है। अमित शाह चुनाव तैयारी की गतिविधियों पर खुद पैनी नजर रखे हुए हैं। यही कारण है कि एक महीने के अंदर वह दूसरी बार झारखंड दौरे पर आये हैं। पहले 7 जनवरी को चाइबासा और अब 4 फरबरी को देवघर। यानि पहले कोल्हान और अब संथाल को साधने की कोशिश। अमित शाह का झारखंड आना वह भी 28 दिन में दो बार, बहुत कुछ कहता है। झारखंड राज्य भाजपा के लिए कितना महत्वपूर्ण है, यहअमित शाह के दौरों से साफ हो जाता है। वैसे झारखंड फतह भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का भी विषय है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने झारखंड की 14 में से 11 सीटों पर परचम लहराया था। वहीं लोकसभा चुनाव में भाजपा की सहियोगी आजसू ने एक सीट पर जीत दर्ज की थी। एक सीट (चाइबासा) कांग्रेस और एक सीट (राजमहल) जेएमएम के खाते में गयी थी। लेकिन ठीक छह महीने बाद 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को यहां करारा झटका लगा, जबकि पांच साल से मजबूत सरकार चलाने का ढिंढोरा पीटा जा रहा था। झारखंड विधानसभा की 81 सीटों में से 65 पर दावा जतानेवाली भाजपा महज 25 सीटों पर ही सिमट गयी। वहीं जेएमएम ने सबको चौंकाते हुए 30 और कांग्रेस ने 16 सीटों पर कब्जा जमा लिया। चुनाव में आजसू को भी करारा झटका लगा और पचास से अधिक सीटों पर उम्मीदवार उतारनेवाली आजसू के हिस्से सिर्फ दो, जेवीएम को तीन और आरजेडी को एक सीट मिली। भाजपा कोल्हान और संथाल में पूरी तरह राजनीतिक रूप से जमींदोज हो गयी। परिणाम के बाद भाजपा कार्यकर्ता पूरी तरह हिल गये थे। अगर यह कहा जाये कि इस चुनाव में भाजपा ने खुद को ही हरा डाला तो गलत नहीं होगा। आजसू के साथ गठबंधन न होना, सरयू राय सरीखे कई कद्दावर नेताओं का टिकट काटना और दूसरे दलों के नेताओं को पार्टी में लाकर अपने कार्यकर्ताओं के बजाय पूरा सम्मान और टिकट देना भाजपा के लिए आत्मघाती हो गया। टिकट बंटवारे में मनमानी से समाज और वोटरों में भाजपा के खिलाफ गलत मैसेज चला गया। खैर अब पछताय होत क्या, जब चिड़िया चुग गयी खेत वाली कहावत उस वक्त भाजपा के लिए सटीक बैठ गयी। 2019 के विधानसभा चुनाव में ऐसा लगा मानो भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व अपनी आंखों पर पट्टी और कानों में तेल डाल कर बैठा हो। उसने झारखंड में सिर्फ एक व्यक्ति के निर्णय को ही सर्वोपरि मान लिया, जबकि चुनाव पूर्व ही झारखंड में यह चर्चा आम हो गयी थी कि इस चुनाव में भाजपा चारों खाने चित्त हो जायेगी। यह चर्चा खुद भाजपा कार्यकर्ताओं के अंदर हो रही थी, लेकिन इस अंडरकरंट को भाजपा आलाकमान ने पूरी तरह नकार दिया था। जब हार हुई और भाजपा सत्ता से बेदखल हुई, तब केंद्र और राज्य के नेताओं की आंखें खुलीं। दूसरों की तो छोड़िये, पांच साल तक सरकार और पार्टी को हांकनेवाले तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुबर दास खुद चुनाव हार गये थे। विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा झटका आदिवासी मतदाताओं ने दिया, जहां 28 में से सिर्फ दो सीटें ही भाजपा के खाते में आयीं खूंटी और तोरपा यानी कड़िया मुंडा के गढ़ में। इस चुनाव परिणाम ने भाजपा नेतृत्व को सोचने पर मजबूर कर दिया और उसके बाद ही बाबूलाल मरांडी को पार्टी में शामिल करवाया गया। उनके आने से आदिवासियों के बीच भाजपा कार्यकर्ताओं को जरूर बल मिला है, इसमें संदेह नहीं। बाबूलाल के रूप में भाजपा को ऐसा नेता मिल गया, जो आदिवासी इलाकों में जाकर झामुमो और उसके नेतृत्व को ललकार सके। अब जब 2024 का लोकसभा और विधानसभा चुनाव करीब है, तो अमित शाह समय पर एक्टिव हो गये हैं। भाजपा के लिए यह प्लस पॉइंट है। लेकिन सच यह भी है कि इस समय झारखंड में भाजपा गुटबाजी की बीमारी से ग्र्रसित हो चुकी है। इसका उपचार करने के लिए ही अमित शाह ने कमान अपने हाथ में ली है।
    अमित शाह का झारखंड दौरा इसलिए भी और खास है, क्योंकि वह झारखंड में फिलहाल उन्हीं जगहों का दौरा कर रहे हैं, जहां 2019 विधानसभा चुनाव में बीजेपी की करारी हार हुई थी। कोल्हान में तो भाजपा साफ हो गयी थी, वहीं संथाल परगना की 18 विधानसभा सीटों में से सिर्फ चार पर ही भाजपा जीत पायी। उसी चुनाव परिणाम से सबक लेकर भाजपा आलाकमान ने झारखंड को अपने रडार पर लिया है। इस क्रम में क्या है अमित शाह के दौरे के मायने बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
    वर्ष 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा 65 की रट लगाते-लगाते झारखंड की सत्ता से ही बाहर हो गयी थी। एक तरफ जहां भाजपा को आशा के विपरीत संथाल परगना में मुंह की खानी पड़ी थी, वहीं कोल्हान में तो उसका सुपड़ा ही साफ हो गया था। भाजपा के खाते में विधानसभा चुनाव में महज 25 सीटें आयी थीं। खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुबर दास चुनाव हार गये, जबकि उन्हीं के कंधों पर झारखंड की नैया पार कराने की जिम्मेदारी थी। उन्होंने खुद नारा दिया था-अबकी बार 65 पार, भाजपा उसकी आधी भी न ला सकी थी। जब हार हुई तो केंद्रीय नेतृत्व जगा। उससे पहले केंद्रीय नेतृत्व इस मुगालते में था कि भाजपा की प्रचंत जीत हो रही है, जबकि भाजपा के खिलाफ माहौल बन रहा था, यह समूचे झारखंड को पता था। सिर्फ आलाकमान इससे बेखबर था। उस समय शायद वह सुनने को ही तैयार नहीं था। जब चुनाव परिणाम आया, तब आलाकमान चेता। धीरे-धीरे झारखंड के लिए रणनीति बननी शुरू हुई।

    2019 में भाजपा का वोट शेयर लोकसभा चुनाव में 51% था, जबकि विधानसभा चुनाव में 33% ही रह गया
    2019 में जब लोकसभा चुनाव के नतीजे आये थे, तो भाजपा ने 51% वोट हासिल कर 54 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त बनायी थी। 35 विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा की लीड 50 हजार से अधिक थी। इनमें 16 विधानसभा क्षेत्रों में लीड मार्जिन 90 हजार से ज्यादा थी। भाजपा ने राज्य की 14 में से 11 लोकसभा सीटें भी जीती थीं। जबकि उसके समर्थन से आजसू भी एक सीट गिरिडीह पर कामयाब हुई। इसी वजह से भाजपा को झारखंड में सत्ता में वापसी की उम्मीद थी। झारखंड का ट्रेंड भी बताता है कि लोकसभा चुनाव की तुलना में विधानसभा चुनाव में भाजपा का वोट शेयर लगभग 10% गिरता है। इस हिसाब से भाजपा का वोट शेयर 51% से घट कर 41% पर टिकता, तो भी वह सत्ता में वापसी कर लेती। लेकिन कुर्मी-कोइरी समेत पिछड़े और दलितों के बीच ठीक-ठाक आधार रखने वाली सहयोगी पार्टी आजसू उससे छिटक गयी। उसे चुनाव में 8% वोट मिले। नतीजा यह हुआ कि भाजपा का वोट शेयर भी अनुमानित 41% से 8 फीसदी और कम होकर 33% पर रह गया।

    झारखंड में भाजपा से आदिवासी बिदक गये थे
    जल-जंगल-जमीन के सवाल पर आदिवासी सरकार से नाराज थे। राज्य में उद्योगों के लिए लैंड बैंक बनाये जा रहे थे। आदिवासी इस जमीन को अपना मानते थे। छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट और संथाल परगना टेनेंसी एक्ट में सरकार ने संशोधन की कोशिश की थी। आदिवासी मान रहे थे कि उनकी जमीन पर से उन्हें बेदखल कर उसे उद्योगपतियों को देने की कोशिश हो रही है। भारी विरोध के चलते इन कानूनों में संशोधन तो नहीं हुआ, लेकिन तत्कालीन मुख्य सचिव राजबाला वर्मा के व्यवहार से आदिवासियों की नाराजगी बढ़ गयी। अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित 28 सीटों में से झामुमो-कांग्रेस के खाते में 25 और भाजपा के खोते में सिर्फ दो सीटें ही आयीं। सत्ता में रहते हुए पारा शिक्षकों, आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका की घोर उपेक्षा से उपजी नाराजगी डबल इंजन की सरकार के विकास कामों पर कुछ ऐसी भारी पड़ी कि प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री की डबल इंजन की सरकार की बार-बार की गुहार भी काम नहीं आयी। दरअसल उस समय सबसे ज्यादा नुकसान पारा शिक्षकों की नाराजगी के कारण हुआ। आंदोलन के दौरान न सिर्फ उन पर लाठियां बरसायी गयी थीं, बल्कि उन्हें नक्सली तक करार दिया गया था।

    अमित शाह ने खुद संभाली झारखंड की कमान
    2019 के बाद झारखंड में जितने भी उपचुनाव हुए भाजपा उसे भी हार गयी। जीत भाजपा के लिए दूर की कौड़ी नजर आने लगी। लेकिन अब जब 2024 का लोकसभा और झारखंड विधानसभा चुनाव नजदीक है, तो एक रणनीति के तहत भाजपा चुनावी मोड में उतर गयी। अमित शाह ने 7 जनवरी 2023 को चाइबासा से चुनावी बिगुल फूंक दिया है। उन्होंने झारखंड को बहुत सीरियसली ले लिया है। पुरे झारखंड में सर्वे का दौर चालू है। एक-एक नेता की रिपोर्ट बन रही है। कौन कितना पानी में है, इसकी भी जानकारी आलाकमान के पास है। फिलहाल अमित शाह 4 फरबरी को देवघर पहुंचे। आगामी लोकसभा चुनाव और झारखंड विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अमित शाह का ये दौरा बीजेपी के लिए काफी अहम माना जा रहा है। देवघर पहुंचते ही अमित शाह ने अपनी पत्नी संग बाबा बैद्यनाथ की पूजा अर्चना की। उसके बाद वह विजय संकल्प रैली में शामिल हुए। उन्होंने देवघर से अपनी मंशा स्पष्ट कर दी कि भाजपा को झारखंड लोकसभा की 14 में से 14 सीटें जितनी हैं। विजय संकल्प रैली में अमित शाह ने हेमंत सोरेन पर तीखा हमला भी किया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि भारत में यदि कहीं सबसे भ्रष्ट सरकार है, तो वह झारखंड में है। उन्होंने कहा कि कोई मंत्री बनता है, कोई मुख्यमंत्री बनता है, तो हाथ से भ्रष्टाचार करता है। लेकिन इन्होंने तो ट्रैक्टर और रेलवे के वैगन से भ्रष्टाचार शुरू कर दिया। अमित शाह ने कहा कि वर्ष 2000 में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने अलग झारखंड राज्य का गठन किया। तब ये उम्मीद थी कि झारखंड के लोगों का विकास होगा, दलित और आदिवासियों का विकास होगा। पिछड़ों और अन्य वर्गां के साथ जो अन्याय हुआ है, उसका निवारण होगा। पूर्ववर्ती सरकार में इस दिशा में कुछ अच्छा काम हुआ, लेकिन फिर से हेमंत सोरेन सत्ता में आ गये। अलग राज्य गठन के वक्त जो सपना देखा गया था, वो अब भी अधूरा है। अमित शाह ने कहा कि सीएम हेमंत सोरेन ये जान लें कि जनता के 1000 आंख और कान होते है,ं वह सभी कुछ देख और सुन रही होती है। झारखंड की जनता हेमंत सोरेन सरकार को हटाने के लिए तैयार बैठी है। जब भी चुनाव होगा, हेमंत सरकार सत्ता से बाहर हो जायेगी।

    झारखंड के डेमोग्राफी को भी चेंज करने की कोशिश
    अमित शाह देवघर की संकल्प रैली में भ्रष्टाचार पर हमला नहीं बोला, बल्कि उन्होंने बांग्लादेशी घुसपैठियों पर भी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि झारखंड में सिर्फ भ्रष्टाचार को ही बढ़ावा नहीं मिला है, बल्कि डेमोग्राफी भी चेंज करने की कोशिश की गयी है। वोट बैंक की खातिर सीएम हेमंत सोरेन के चेहरे पर सिर्फ मुस्कान नजर आ रही है। लेकिन वह गुमान नहीं पालें। 2024 के चुनाव में झारखंड की सभी 14 लोकसभा सीटों पर बीजेपी का परचम लहरायेगा। विधानसभा की सभी सीटों पर भी बीजेपी का कब्जा होगा। केंद्रीय मंत्री ने साहिबगंज की रेबिका हत्याकांड का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि पिछली सरकार ने महिला रजिस्ट्री की सुविधा शुरू की, लोगों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू की, उन सभी योजनाओं को बंद कर दिया गया है। केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नक्सलवाद से झारखंड को मुक्त किया गया। कई आॅपरेशन चला कर अनेक नक्सलियों को सरेंडर करवाया गया है।

    खाद कारखाने से किसानों को फायदा मिलेगा
    विजय संकल्प रैली को संबोधित करते हुए अमित शाह ने कहा कि आज का दिन उत्तरप्रदेश के चौरी-चौरा को याद करने का दिन है। देवघर में आज 20 एकड़ में इफको के तरल खाद संयंत्र की आधारशिला रखी गयी। इससे प्रकृति का संवर्धन, संरक्षण और किसानों को फायदा मिलेगा। उन्होंने कहा कि इस वर्ष के बजट में टैक्स देने वालों को बड़ी राहत मिली है। अगले एक वर्ष तक 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज मिलेगा। युवाओं के लिए राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी की स्थापना की जायेगी।
    यानी विजय संकल्प रैली का लब्बोलुआब यही है कि अब आलाकमान झारखंड को सिर्फ प्रदेश नेतृत्व के सहारे ही नहीं छोड़ेगा। आलाकमान झारखंड के महत्व को समझता है। आलाकमान यह जानता है कि भले ही यहां सीटें मात्र 14 हैं, लेकिन झारखंड की खनिज संपदा से ही पूरा देश रौशन हो रहा है। इस रोशनी को वह विलुप्त होते नहीं देखना चाहता। यही कारण है कि अमित शाह अब तक एक महीने के अंदर दो बार झारखंड दौरा कर चुके हैं। उनका दौरा निश्चित रूप से भाजपा की अंदरूनी गुटबाजी को भी खत्म करेगा और नेताओं में काम करने की ऊर्जा प्रदान करेगा।

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