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    Home»विशेष»गठबंधन के भीतर चल रहे ‘कोल्ड वार’ से कैसे निबटेंगे नीतीश
    विशेष

    गठबंधन के भीतर चल रहे ‘कोल्ड वार’ से कैसे निबटेंगे नीतीश

    adminBy adminFebruary 26, 2023No Comments7 Mins Read
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    विशेष
    -बिहार में कुर्सी की खींचतान ने बढ़ाया सुशासन बाबू का सिरदर्द
    -जदयू-राजद के नेता एक-दूसरे को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे

    बिहार की सियासत में उठापटक का दौर लगातार जारी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सिरदर्द लगातार बढ़ता जा रहा है। पहले उपेंद्र कुशवाहा के साथ छोड़ जाने का झटका लगा और अब अपने गठबंधन के सहयोगी ‘बड़े भाई’ राजद के नेताओं के साथ कुर्सी की खींचतान ने उन्हें राजनीतिक रूप से ऐसे भंवर में लाकर खड़ा कर दिया है, जहां से बाहर निकलने का रास्ता उन्हें नहीं सूझ रहा है। हालत यह हो गयी है कि नीतीश इन दिनों न अपने विधायकों-कार्यकर्ताओं से अकेले में मिल रहे हैं और न राजद विधायकों-कार्यकर्ताओं से। यहां तक कि कैबिनेट की बैठक के अलावा उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से उनकी कोई बातचीत नहीं हो रही है। बिहार की सियासत पर नजर रखनेवालों के अनुसार यह बेहद गंभीर स्थिति है और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस तरह की राजनीति आम तौर पर नहीं करते हैं। इससे इन आशंकाओं को बल मिला है कि यह तूफान से पहले की शांति है या नीतीश कुमार ने सब कुछ समय के चक्र पर छोड़ दिया है। हकीकत चाहे कुछ भी हो, अपने राजनीतिक करियर में लगातार पाला बदलनेवाले नेताओं की कतार में शुमार नीतीश कुमार इस बार नये किस्म की समस्या में फंसे हैं। बिहार के सत्ताधारी में चल रहे इस ‘कोल्ड वार’ को खत्म करने की जिम्मेदारी उनके साथ तेजस्वी की भी है, लेकिन दोनों नेताओं की ओर से अब तक को कोई प्रयास होता नहीं दिख रहा है। इसके कारण राजनीतिक माहौल में एक तनाव की आहट सुनाई देने लगी है। 2024 के आम चुनाव की तैयारियों में जुटे राजनीतिक दलों के लिए बिहार का यह ‘कोल्ड वार’ किसी अचरज भरे खेल से कम नहीं है। बिहार के इस खेल के बारे में बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
    बिहार में सत्तारूढ़ महागठबंधन के घटक दल जनता दल (यूनाइटेड) और राष्ट्रीय जनता दल एक बार फिर से लड़ रहे हैं। इस बार लड़ाई गठबंधन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को सत्ता हस्तांतरण की संभावना को लेकर है। दो दिन पहले राजद विधायक विजय मंडल ने एक बयान दिया। उन्होंने कहा कि राजद को विश्वास है कि नीतीश कुमार अपनी प्रतिज्ञा का सम्मान करेंगे और मार्च में ही सत्ता तेजस्वी यादव को हस्तांतरित कर दी जायेगी। बकौल मंडल, राजद को 2025 के विधानसभा चुनाव का इंतजार नहीं करना है। उन्होंने उम्मीद जतायी कि होली के बाद सत्ता हस्तांतरण का काम पूरा कर लिया जायेगा, हालांकि उन्होंने इसके लिए कोई तारीख नहीं बतायी। जदयू ने इस पर तत्काल प्रतिक्रिया दी। पार्टी की ओर से कहा गया कि उसे इस तरह के बदलाव की जानकारी नहीं है। अगर राजद विधायक की दोनों पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व द्वारा लिये गये फैसलों तक पहुंच है, तो उन्हें यह भी बताना चाहिए कि फैसला कब किया गया था।
    राजद और जदयू के बीच ताजा विवाद एक दिन पहले जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह द्वारा उपेंद्र कुशवाहा की आलोचना करते हुए दिये गये एक बयान से शुरू हुआ, जिन्होंने इस सप्ताह पार्टी छोड़ दी थी। सिंह ने कहा कि जदयू ने 2025 के विधानसभा चुनाव के बाद तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने का कोई वादा नहीं किया था। उनके बयान ने पिछले साल सीएम नीतीश कुमार की सार्वजनिक घोषणा को लेकर राजद को झटका दिया कि तेजस्वी 2025 के चुनावों में महागठबंधन का नेतृत्व करेंगे, जिसे इस संकेत के रूप में देखा गया था कि अगर महागठबंधन जीतता है, तो तेजस्वी बिहार के सीएम होंगे। जदयू अध्यक्ष ने कहा कि उनके बयान को तोड़ा-मरोड़ा गया है। मैंने कहा था कि 2025 में क्या होगा, इस पर 2025 में चर्चा की जायेगी, 2023 में नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि जदयू का 2025 के चुनावों के बाद भी एक स्वतंत्र अस्तित्व होगा, जो जदयू और राजद के बीच विलय की बात को खत्म करने की ओर इशारा कर रहा है।

    भ्रम पैदा करने वाला बयान
    सत्ता में ‘बड़े भाई’ राजद के साथ इस विवाद के अलावा जदयू को कई और मुद्दे परेशान कर रहे हैं। कहा जाता है कि तेजस्वी को लेकर नीतीश कुमार के द्वारा की गयी घोषणा जदयू के अधिकांश नेताओं को पसंद नहीं आयी। जदयू के राजद में विलय की अटकलों को भी मुख्यमंत्री को खारिज करना पड़ा। उपेंद्र कुशवाहा पार्टी छोड़ने से पहले बार-बार नीतीश से सत्ता हस्तांतरण पर राजद के साथ हुए ‘गुप्त सौदे’ का खुलासा करने के लिए कह रहे थे। 2022 के उपचुनावों के परिणाम से जदयू को अधिक चिंता हुई, जहां राजद ने मोकामा सीट को कम अंतर से बरकरार रखा। भाजपा गोपालगंज को बनाये रखने में कामयाब रही, भले ही उसका पूर्व सहयोगी जदयू साथ नहीं था, और उसने कुढ़नी सीट भी जदयू से छीन ली। यह इस बात की ओर इशारा करता है कि नीतीश के प्रमुख मतदाता उनका साथ छोड़ रहे हैं। नीतीश इस बात को लेकर अत्यधिक चिंतित हैं। जदयू के दूसरे नेता भी इस बात को समझ रहे हैं कि नीतीश का राजद के साथ जाने का दांव जनता के बीच अच्छा संदेश नहीं दे गया। पिछले अगस्त में जब से नीतीश ने राजद से हाथ मिलाया है, तब से राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि वह बिहार में तेजस्वी को सत्ता सौंपने के बाद अंतत: राष्ट्रीय राजनीति के लिए दिल्ली का रुख करेंगे। लेकिन पिछले छह महीनों के दौरान, 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले विपक्ष के बीच एकता की अपील करने के अलावा नीतीश द्वारा राष्ट्रीय मंच पर बहुत कम सक्रिय देखा गया है। जदयू नेताओं का कहना है कि समय की मांग थी कि हम अपनी पार्टी को और दलबदल से बचाने के लिए नीतीश के बयान पर भ्रम पैदा करें और अपने वोट बैंक को भी बनाये रखें।

    राजद के साथ शीत युद्ध
    ललन सिंह के बयान के बाद दोनों सहयोगी दलों के बीच शीत युद्ध छिड़ गया है। मंगलवार को राज्य में कृषि पर आयोजित एक सरकारी कार्यक्रम में उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव एक घंटे से ज्यादा देरी से पहुंचे। उस समारोह में नीतीश कुमार राजद के कृषि मंत्री सर्वजीत कुमार के साथ बैठने की बजाय जदयू के मंत्री विजय चौधरी के साथ बैठे। हाल के दिनों में जदयू और राजद के बीच शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर द्वारा रामचरित मानस पर दिये गये बयानों और राजद विधायक सुधाकर सिंह द्वारा नीतीश के खिलाफ दिये गये बयानों पर सार्वजनिक रूप से विवाद हुआ है। राजद के कई नेता निजी तौर पर स्वीकार करते हैं कि जदयू के साथ ये सार्वजनिक झगड़े यह धारणा बनाते हैं कि महागठबंधन सरकार अस्थिर है। लेकिन हमें लगता है कि यह जदयू की दबाव की रणनीति है, जिसे लोकसभा चुनावों के लिए सीटों की संख्या पर हमारे साथ बातचीत करनी होगी। जबकि सहयोगियों के बीच एक चर्चा यह भी है कि नीतीश एक और यू-टर्न ले सकते हैं और भाजपा के साथ फिर से जुड़ सकते हैं, लेकिन बाद में वह ऐसी किसी भी संभावना से इनकार करते हैं। जबकि बिहार विधानपरिषद के नेता प्रतिपक्ष और भाजपा नेता सम्राट चौधरी ने कहा, यह साफ कर दें कि नीतीश कुमार के लिए एनडीए के दरवाजे बंद हैं। वह हमेशा अपने सहयोगियों को किनारे रखते हैं, जिसके कारण वह लंबे समय तक बिहार के सीएम बने रहे।
    अब यह देखना दिलचस्प होगा कि नीतीश कुमार इस ‘कोल्ड वार’ पर क्या रुख अपनाते हैं। इसलिए इन दिनों वह अकेले में किसी से भी नहीं मिल रहे हैं। यहां तक कि जदयू के विधायकों और कार्यकर्ताओं को भी उनसे मिलने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। बिहार की राजनीति का ऊंट अब चाहे जिस करवट बैठ, इतना तय है कि अपने करियर में पहली बार नीतीश कुमार इतने अनिर्णय में दिख रहे हैं।

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