विशेष
-इस अमेरिकी मुनाफाखोर की हर रिपोर्ट विवादित रही है
-शेयर बाजार में नाथन को ‘यलो ट्रेडर’ भी कहा जाता है
पिछले एक पखवाड़े से दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को हिलाने की कोशिश हो रही है। अमेरिका की एक मुनाफाखोर कंपनी हिंडनबर्ग ने भारत के सबसे बड़े उद्योग समूह अडाणी ग्रुप के बारे में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिस पर भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में हंगामा मचा हुआ है। लेकिन वह क्या है कि कहते हैं ना कि ‘हम तो डूबे हैं सनम, तुमको भी ले डूबेंगे, तो हिंडनबर्ग का पूरा प्रकरण भी कुछ इसी तरह का है। हिंडनबर्ग रिसर्च के मुखिया नाथन एंडरसन को अमेरिका में ‘शेयर बाजार का यलो ट्रेडर’ कहा जाता है, जिसका सीधा मतलब ब्लैकमेलर होता है। चूंकि शेयर बाजार में निवेश करनेवालों का भरोसा बाहरी एजेंसियों पर अधिक होता है, इसलिए एंडरसन अपनी रिसर्च और रिपोर्ट के बल पर उन निवेशकों को धोखे में डालता है और खुद कम दाम पर शेयर खरीद कर फिर ऊंचे दामों पर बेच देता है, जिसे बाजार की भाषा में ‘शॉर्ट सेलिंग’ कहते हैं। हिंडनबर्ग की एक रिपोर्ट ने अडाणी ग्रुप को भारी नुकसान तो पहुंचाया ही है, इसने विपक्ष को एक हथियार मुहैया कराने का आभास दिया है, लेकिन दिन बीतने के साथ ही यह पूरा हंगामा ‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया’ की कहावत को चरितार्थ करता दिख रहा है। विपक्ष द्वारा सरकार को घेरने की तमाम कोशिशें विफल हो गयी हैं, तो अडाणी ग्रुप की हालत भी पटरी पर लौटने लगी है। ऐसे में यह जानना दिलचस्प है कि आखिर हिंडनबर्ग प्रकरण के पीछे का पूरा खेल क्या है और इसके पीछे किसका दिमाग है। इन तमाम सवालों के जवाब दे रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
पिछले एक पखवाड़े से देश भर में जो एक नाम चारों तरफ गूंज रहा है और जिसकी बदौलत विपक्षी दल चुनावी लाभ हासिल करने की मंशा पाले बैठे हैं, वह है हिंडनबर्ग। अमेरिका की इस मुनाफाखोर कंपनी ने दुनिया के दूसरे सबसे अमीर शख्स गौतम अडाणी की कंपनी पर आर्थिक अनियमितता और भ्रष्टाचार का आरोप लगा कर दुनिया भर में सनसनी फैला दी। हिंडनबर्ग की इस रिपोर्ट के कारण अडाणी ग्रुप को भारी नुकसान भी हुआ और उसे अपना एफपीओ वापस लेना पड़ा। इस रिपोर्ट ने न केवल भारतीय अर्थ जगत में, बल्कि राजनीति में भी खूब हलचल मचायी। विपक्ष ने जहां सरकार को घेरने की कोशिश की, वहीं पीएम मोदी पर अनाप-शनाप आरोप लगा कर हिंडनबर्ग की सीढ़ी से राजनीतिक ऊंचाई हासिल करने की कोशिश भी की।
अडाणी को मुश्किल में डाल हिंडनबर्ग को क्या मिला
हिंडनबर्ग रिसर्च ने साल 2022 में 10 शेयरों की पहचान ओवरवैल्यूड के रूप में की। इसका नतीजा उन शेयरों के रिटर्न में 42 फीसदी की गिरावट के रूप में सामने आया। हिंडनबर्ग के दो अभियान साल के दो सबसे बड़े शॉर्ट सेलिंग थे। एलन मस्क की हिचकिचाहट के कारण जब ट्विटर डील फंसती दिख रही थी, तब हिंडनबर्ग ने कंपनी के खिलाफ दांव लगाया। बाद में उसने पाला बदला और दोनों तरफ से पैसे कमाये। अब उसने अडाणी ग्रुप के खिलाफ मोर्चा खोला है। स्टॉक में हेराफेरी समेत कई तरह के आरोप लगाये हैं। जवाब में अडाणी समूह ने 413 पन्नों की रिपोर्ट जारी की है। साथ ही मुकदमा करने की बात भी कही है। इस आरोप-प्रत्यारोप के बीच अडाणी ग्रुप के शेयरों में जबरदस्त गिरावट आयी। ग्रुप के मुखिया गौतम अडाणी दुनिया के शीर्ष 10 अरबपतियों की लिस्ट से बाहर हो गये। ग्रुप को अपना एफपीओ तक वापस लेना पड़ा। लेकिन यह कहानी आरोपों की नहीं है। यह कहानी है कि कैसे संदेह का लाभ उठा कर बड़ी जीत हासिल की जा सकती है।
क्या है शॉर्ट सेलिंग
पारंपरिक अर्थों में निवेश के बारे में सोचने पर हम दूर की देखते हैं। हमारी सोच होती है कि यह कंपनी अच्छा करेगी, तो इसके शेयर खरीद लिये जायें। समय के साथ शेयर के दाम बढ़ते जायेंगे। लेकिन शॉर्ट सेलिंग बिल्कुल अलग चीज है। इसमें लगता है कि स्टॉक का मूल्य जितना होना चाहिए, उससे कहीं अधिक है। वजह क्या है? शायद इसलिए कि इसकी कमाई पर्याप्त नहीं बढ़ रही या फिर कंपनी कर्ज के ढेर पर बैठी है। ऐसे में शेयर को ऊंचे दाम पर खरीदने की बजाय उन्हें उधार लिया जाता है। फिर कोई कंपनी उस शेयर को कम कीमत पर खरीद लेती है। उसके बाद असली खेल शुरू होता है और उस शेयर की कीमत बढ़ने लगती है। जिस कंपनी ने कम कीमत पर शेयर खरीदे हैं, वह ऊंची कीमत पर उसे बेच देती है और भारी मुनाफा कमा लेती है। यही है शॉर्ट सेलिंग का पूरा खेल या हिंडनबर्ग की असलियत, जो उसने अडाणी ग्रुप के साथ खेला है। अपनी रिपोर्ट में उसने अडाणी ग्रुप के खिलाफ आरोप लगा कर उसके शेयरों के दाम गिरा दिये और कम कीमतों पर उन शेयरों को खरीद लिया। अब एक बार फिर अडाणी के शेयर की कीमत बढ़ रही है और तब हिंडनबर्ग उन शेयरों को बेच कर भारी मुनाफा कमा लेगा। हिंडनबर्ग को अडाणी ग्रुप को परेशानी में डाल कर यही लाभ हुआ है।
क्यों अडाणी ग्रुप को चेलैंज कर रहा है हिंडनबर्ग
हिंडनबर्ग ने अडाणी ग्रुप को अमेरिका में आकर केस करने की चुनौती दी, जिसे लेकर यह माहौल बना दिया गया कि अडाणी ग्रुप इस रिपोर्ट से भयभीत है। अब यह जानना दिलचस्प है कि इस चुनौती का सच क्या है। पहले यह जान लीजिए कि 2017 में बनी अमेरिका की यह रिसर्च कंपनी अब तक करीब 20 कंपनियों को निशाना बना चुकी है और इसमें से सिर्फ दो ही ने हिंडनबर्ग में खिलाफ मानहानि का केस किया। पहली कंपनी – चीन की रियल इस्टेट डेवलपर योंग्त्जे और दूसरी इरोस इंटरनेशनल है। साल 2018 में हिंडनबर्ग ने चीन की रियल इस्टेट कंपनी योंग्त्जे के खिलाफ एक रिपोर्ट जारी की, ठीक वैसे ही जैसे अडाणी ग्रुप के खिलाफ जारी की है। रिपोर्ट में कहा गया कि यह कंपनी केवल पैसे ट्रांसफर करने के लिए बनी है, जो अमेरिका के निवेशकों का पैसा कंपनी के चेयरमैन और उसके शेयर होल्डरों को ट्रांसफर करती है। इस रिपोर्ट के जारी होने के बाद चीन की कंपनी ने हिंडनबर्ग के संस्थापक नाथन एंडरसन और उनकी सहायक कंपनी क्लैरिटी स्प्रिंग के खिलाफ अमेरिका की अदालत में मानहानि का केस किया। साल 2019 में इस केस का फैसला आया। अमेरिका की अदालत ने केस खारिज कर दिया। चीन की कंपनी के मानहानि केस से हिंडनबर्ग तो बच गया, लेकिन हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से वह कंपनी बर्बाद हो गयी। चीन की कंपनी पर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट 6 दिसंबर 2018 को आयी। 7 दिसंबर 2018 को शेयर के दाम 8.28 डॉलर थे, वे 15 फरवरी 2019 को 0.40 डॉलर हो गये और आज की तारीख में 0.00020 डॉलर है।
हिंडनबर्ग करता है बड़ी चालाकी
हिंडनबर्ग अपनी रिपोर्ट में इस तरह के वाक्यों का प्रयोग करता है, जो उसे कानूनी रूप से बचाता है। जैसे चीन की कंपनी के खिलाफ रिपोर्ट में दो वाक्यों का प्रयोग किया और ये दो वाक्य ही कोर्ट में हिंडनबर्ग की ढाल बने। ये वाक्य थे, ‘वी थिंक’ (हम ऐसा सोचते हैं) और ‘वी बिलीव’ (हमें भरोसा है)। अमेरिकी कानून में इन वाक्यों को निष्कर्ष नहीं माना जाता, इसलिए अदालती कार्यवाही में हिंडनबर्ग साफ बच जाता है।
अडाणी ग्रुप के खिलाफ किया खेल
इस तरह अडाणी ग्रुप के खिलाफ रिपोर्ट में भी हिंडनबर्ग ने यही खेल किया है। उसकी रिपोर्ट में नौ जगह ‘वी बिलीव’ का इस्तेमाल किया गया है। अमेरिकी कानून के जानकार बताते हैं कि अमेरिका के ज्यादातर कोर्ट में पब्लिक ट्रेडेड कंपनियों के वित्तीय विश्लेषण को उसका मत (ओपिनियन) मान कर उसे कानूनी संरक्षण दिया जाता है। किसी भी वित्तीय केस में अमेरिकी कोर्ट ज्यादातर यही देखते हैं कि दावा किया गया बयान सही है या गलत और सबसे अहम कि उसका संदर्भ क्या है।
तो इसीलिए दी चुनौती
यही वजह है कि हिंडनबर्ग अडाणी ग्रुप को भी अमेरिका में आकर केस करने की चुनौती दे रहा है, क्योंकि वह जानता है कि अमेरिका के कानून में ऐसे प्रावधान हैं, जिससे वह बड़ी आसानी से किसी को बदनाम करने से बच सकता है। हिंडनबर्ग के पास अपने ही समर्थन में आये अमेरिकी कोर्ट के दो ऐसे फैसले हैं, जो काफी नये हैं और जिनके दम पर हिंडनबर्ग के खिलाफ कोर्ट में केस टिकना मुश्किल है।