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    Home»विशेष»झारखंड को नये तरीके से जाल में फंसा रहे हैं नक्सली
    विशेष

    झारखंड को नये तरीके से जाल में फंसा रहे हैं नक्सली

    shivam kumarBy shivam kumarFebruary 8, 2025No Comments7 Mins Read
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    विशेष
    पोस्ते की अवैध खेती के जरिये बना रहे हैं नशे के कारोबार का केंद्र
    छह जिलों में धड़ल्ले से तैयार किया जा रहा है अफीम का कच्चा माल
    पुलिस प्रशासन के सामने इस नेटवर्क को खत्म करने की है बड़ी चुनौती

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    झारखंड के नक्सलियों को अब एक और नशा चढ़ा है। यह है नशे के कारोबार, यानी अफीम के कच्चे माल, यानी पोस्ते की खेती का। कारण यह कि इस धंधे में पैसा ही पैसा है। नक्सली बेखौफ होकर राज्य के छह जिलों में पोस्ते की खेती करा रहे हैं। चतरा, लातेहार, खूंटी, पलामू, लोहरदगा और रामगढ़ में बड़े पैमाने पर इसकी खेती हो रही है। मोटे तौर पर अनुमान लगाया गया है कि झारखंड में पिछले 10 साल में इतना पोस्ता उपजाया गया है, जिससे करीब 15 हजार क्विंटल अफीम तैयार हुई है। इसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत करीब डेढ़ हजार करोड़ रुपये होगी। नशे की इस खेती को रोकना पुलिस प्रशासन के लिए भी चुनौती बन गया है। जंगली इलाकों में नक्सलियों के संरक्षण में फल-फूल रहे इस अवैध धंधे तक पहुंचना पुलिस के लिए आसान नहीं है। हालांकि बीच-बीच में कई स्थानों पर अभियान चला कर पोस्ते की अवैध खेती नष्ट भी की जा रही है। बताया जाता है कि झारखंड से पैर उखड़ने के बाद नक्सलियों ने यह धंधा शुरू किया है, जिसमें कोई बड़ा खतरा नहीं है और सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें उनकी सहभागिता प्रत्यक्ष रूप से दिखाई भी नहीं देती है। भोले-भाले किसानों के माध्यम से नक्सलियों ने इस कारोबार को इतना फैला लिया है कि अब झारखंड के सामने यह नया खतरा बन कर खड़ा हो गया है। यदि इसे तत्काल रोका नहीं गया, तो आनेवाले समय में यह पूरे झारखंड को अपने जाल में फंसा लेगा। क्या है पोस्ते की अवैध खेती के कारोबार का अर्थशास्त्र और नेटवर्क, क्या हो सकता है इसका असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    झारखंड नक्सलियों और अफीम के लिए सबसे सुरक्षित स्थान बन चुका है। नशा और नक्सलियों का गठजोड़ इतना गहरा हो चुका है कि अब सरकार के लिए यह एक विकराल समस्या बन चुकी है, जिससे उबर पाना इतना आसान नहीं होगा। झारखंड से नक्सली लगभग खदेड़े जा चुके हैं। 24 साल पहले अलग राज्य बनने के समय जहां झारखंड के 23 जिले नक्सल प्रभावित थे, वहीं अब इनकी संख्या दो तक पहुंच गयी है। लेकिन पिछले कुछ सालों में नक्सली संगठनों ने अपने आपको अलग तरीके से झारखंड में एक बार फिर से स्थापित कर लिया है। इसमें महत्वपूर्ण भूमिका नशे की खेती, खास कर अफीम तैयार करने के लिए जरूरी पोस्ते की खेती और उसका व्यापार है। आंकड़ों के अनुसार पिछले चार साल में यह अवैध कारोबार 15 अरब रुपये तक पहुंच गया है। आंकड़े बताते हैं कि झारखंड के आधा दर्जन जिलों में कम से कम छह हजार एकड़ जमीन पर पोस्ते की अवैध खेती हो रही है। इनमें चतरा, लातेहार, खूंटी, पलामू, लोहरदगा और रामगढ़ शामिल हैं। इन जिलों में पोस्ते की अवैध खेती को नष्ट करने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन इसका कोई खास असर पड़ता नहीं दिख रहा है।

    किस साल कितनी अफीम हुई नष्ट
    झारखंड पुलिस के आंकड़ों के अनुसार साल 2024 में 2887 एकड़, 2023 में 2753 एकड़, 2022 में 2500 एकड़, साल 2021 में 2160 एकड़, 2020 में 2676 एकड़, 2019 में 2590 एकड़, 2018 में 2516 एकड़, 2017 में 2810 एकड़, 2016 में 2475 एकड़, 2015 में 1666 एकड़ और 2014 में 2654 एकड़ जमीन से पोस्ते की खेती नष्ट की जा चुकी है। इस साल चार हजार एकड़ से भी ज्यादा पोस्ते की फसल नष्ट की जा चुकी है। ‘जीरो टॉलरेंस पॉलिसी’ के तहत दिसंबर महीने से चल रहे अभियान में विभिन्न जिलों में बड़े पैमाने पर कार्रवाई हुई है। अभियान के दौरान 30 से ज्यादा लोग गिरफ्तार किये गये हैं, जबकि एक सौ से ज्यादा लोगों के खिलाफ एफआइआर हुई है।
    अधिकांश इलाके में अफीम की खेती के लिए बीज से लेकर पूंजी तक नक्सली ही मुहैया कराते हैं। पैसे के लालच और डर से गरीब किसान उनके झांसे में आकर इस धंधे से जुड़ जाते हैं। नशे की इस खेती को रोकना पुलिस के लिए भी चुनौती बन गया है। जंगली इलाकों में नक्सलियों के संरक्षण में फल-फूल रहे इस अवैध धंधे तक पहुंचना पुलिस के लिए आसान नहीं है।

    नशे के कारोबार का कॉरिडोर बना झारखंड
    वास्तव में झारखंड पूरे देश में नशे के कारोबार का कॉरिडोर बना हुआ है। झारखंड से होकर ही अफीम और गांजा देश के दूसरे हिस्सों, खासकर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश होते हुए दिल्ली-मुंबई तक पहुंच रहा है। इसका पर्दाफाश नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) की छानबीन में भी हो चुका है। अफीम की खेती और इसकी तस्करी को लेकर झारखंड के नक्सल प्रभावित क्षेत्र हमेशा से बदनाम रहे हैं। पुलिस प्रशासन इस नेटवर्क को अब तक पूरी तरह तोड़ने में नाकाम है। हर बार यही जानकारी मिलती है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने से किसानों को पोस्ते की खेती में बढ़ावा मिलता है। फसल तैयार होने पर इसकी ऊंची कीमत भी मिलती है।

    नक्सलियों का नेटवर्क है सक्रिय
    अफीम की खेती के लिए नक्सलियों का बहुत बड़ा नेटवर्क काम कर रहा है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रें में ग्रामीणों को कभी लालच में, तो कभी अपनी जान बचाने के लिए मजबूरन नक्सलियों की बात माननी पड़ती है।

    यूपी और कोलकाता की मंडियों में बिकती है अफीम
    झारखंड में उगाये जाने वाले पोस्ते से तैयार अफीम यूपी और कोलकाता की मंडियों में पहुंचायी जाती है। परदे के पीछे बड़े करोबारी होते हैं, लेकिन तस्करी के लिए स्थानीय दलालों को लगाया जाता है। अफीम निकलना शुरू होते ही दलाल खुद खेतों तक पहुंच जाते हैं। इन दलालों का काम अफीम को यहां से यूपी और कोलकाता की मंडियों तक पहुंचाने का होता है। इसके बाद बड़े सौदागर इसे चेन्नई और बांग्लादेश पहुंचाते हैं। पुलिस के अनुसार बनारस और गोरखपुर के व्यापारी इससे अधिक जुड़े हैं।

    नक्सलियों ने बदली है रणनीति
    पुलिस प्रशासन का दबाव बढ़ने के बाद नक्सलियों ने रणनीति बदली है। पहले पोस्ते की अवैध खेती के लिए वन भूमि का इस्तेमाल होता था, लेकिन अब रैयती जमीन पर भी पोस्ते की अवैध खेती हो रही है। नक्सली नये इलाकों में किसानों को लालच दे रहे हैं और खेती करवा रहे हैं। वैसे लोग, पोस्ते की अवैध खेती के आरोप में जेल जा चुके हैं या जिन पर एफआइआर दर्ज है, वे भी अपने इलाके से निकल कर दूसरे इलाके में जमीन को लीज पर ले रहे हैं। संबंधित जमीन पर बाहर के मजदूरों को रख कर पोस्ता की अवैध खेती करायी जा रही है। इसमें राज्य के बड़े पैमाने पर युवा इन्वॉल्व हो गये हैं। पैसे और नशे के लालच में वे अफीम की खेती में अपना श्रम दे रहे हैं।

    पुलिस प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती
    झारखंड में इस कारोबार को रोकना पुलिस प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है। दावा किया जा रहा है कि पूरे इलाके में निगरानी की जा रही है और जिन इलाकों में पहले पोस्ते की खेती होती थी, उन इलाकों का जायजा लिया जा रहा है। प्रभावित इलाकों में पुलिस ने सर्वे भी शुरू कर दिया है। इसमें ड्रोन की मदद ली जा रही है। पोस्ता की खेती करने के मामले में चिह्नित लोगों का डाटा तैयार किया जा रहा है और उनका पता लगाया जा रहा है। इसके अलावा ग्रामीणों को जागरूक किया जा रहा है। पुलिस स्थानीय जन प्रतिनिधियों से भी संपर्क में है। नुक्कड़-नाटक और अन्य माध्यम से ग्रामीणों को पोस्ता की खेती से होने वाले नुकसान के बारे में बताया जा रहा है। लेकिन सबसे खतरनाक बात यह है कि जिन इलाकों में अफीम की खेती को पुलिस नष्ट कर रही है, उन इलाकों में फिर से अफीम की खेती लहलहा रही है।

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    shivam kumar

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