“भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी भाकपा ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कथित मीटबंदी को राजनीतिक उद्देश्यों के लिये एक वर्ग विशेष के विरुद़ध अभियान करार देते हुए कहा कि सरकार को इस दुर्भावनापूर्ण कदम में सुधार करना चाहिये।”
भाकपा के राज्य सचिव गिरीश ने एक बयान में कहा कि मांस के कारोबार से हर समुदाय के लोग जुड़े हैं, लेकिन सरकार और भाजपा से जुड़े लोग इसकी आड़ में मुस्लिम समाज पर हमले बोल रहे हैं।
उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस बूचड़़खाने बंद करने के सरकार के फैसले को अविवेकपूर्ण तरीके से अंजाम दे रही है। वहीं, सरंक्षण प्राप्त अराजक तत्व मांस विक्रेताओं के प्रतिष्ठानों पर हमले कर रहे हैं।
पिले दिनों हाथरस में ऐसी तीन दुकानों में आग लगाने की घटना इसका उदाहरण है।
गिरीश ने कहा कि सरकार का उद्देश्य अगर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण और उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का पालन करना मात्र था तो उसे पहले मांस कारोबारियों को लाइसेंस लेने और सुरक्षित जगहों पर अपनी दुकान स्थानान्तरित करने की चेतावनी दी जानी चाहिये थी। साथ ही अवैध कमाई के चलते कारोबारियों के लाइसेंस का नवीनीकरण नहीं कर रहे या नये लाइसेंस जारी नहीं कर रहे स्थानीय निकायों से ऐसा करने के लिये कहा जाना चाहिये था।
भाकपा नेता ने कहा कि सरकार द्वारा नोटबंदी की तरह राजनैतिक उद्देश्यों से की गयी मीटबंदी के दुष्परिणाम दिखने शुरु हो गये हैं। दाल और सब्जियों के दाम बढ़ना शुरु हो गये हैं और मांस उद्योग तथा व्यापार चौपट होने से बेरोजगारी बढ़ी है। इन तमाम मुसीबतों के मद्देनजर प्रदेश सरकार को अपनी घोषित नीति सबका साथ सबका विकास पर चलते हुये मीटबंदी का कारण बने अपने फैसले में सुधार करना चाहिये।