राजीव
रांची। राजनीति में कौन कब बाजी मार ले जाये, यह तो उस वक्त की परिस्थितियों पर निर्भर करता है। लेकिन यह तल्ख् सच्चाई है कि जनता की नब्ज को पकड़ना सभी नेताओं के बस की बात नहीं। लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि जो नेता इस नब्ज को पकड़ लेता है, वह जननेता बन जाता है। ऐसे ही जननेता हैं लालू प्रसाद यादव। लालू का शरीर राजनीतिक आंच में इतना तप गया है कि भ्रष्टाचार रूपी तीर भी उन पर असर नहीं छोड़ पाता। राजनीति का वह नाम जिसने खुद को इतना मांजा है कि वह सत्ता से दूर भले ही जेल में बैठा हो, लेकिन पूरी सरकार बनाने की कवायद चला सकता है। एक जमाने में कभी महाराष्ट्र की राजनीति में सूरमा रहे बाला साहेब ठाकरे को किंगमेकर कहा जाता था, तो वहीं अब लालू प्रसाद यादव को किंगमेकर कहा जाता है। लालू प्रसाद यादव भले ही सत्ता से दूर जेल में सजा भुगत रहे हैं, लेकिन राजनीति अभी भी उनकी चहारदीवारी पर रोज दस्तक दे रही है। हालांकि जेल के नियमों का हवाला है, पर कानून जब भी मौका देता है, नेताओं का बाजार सज जाता है किंगमेकर से सलाह मशविरा करने के लिए। यहां गौर करनेवाली बात है कि वर्ष 1992 से ही लालू प्रसाद यादव के ऊपर भ्रष्टाचार की काली साया का असर हो गया, लेकिन आज की तारीख तक उनकी राजनीतिक सेह पर वह कुप्रभाव नहीं डाल पायी। वह जब चाहते हैं, जिसे चाहते हैं राजद के शीर्ष पर पहुंचा देते हैं। इस बार भी वह लोकसभा चुनाव में राजद को बिहार में एक बड़ी शक्ति के रूप में उभारने के लिए प्रयासरत हैं।
रांची के ही बिरसा मुंडा जेल में भाजपा के विधायक संजीव सिंह भी बंद हैं। शुरू में तो उन्हें लगा कि भारतीय जनता पार्टी में रहने का कुछ न कुछ लाभ उन्हें जरूर मिलेगा, लेकिन जब नीरज सिंह हत्याकांड में पुलिस ने उन्हें पूरी तरह जकड़ लिया, तो अब उनकी चिंता दूसरी है। संजीव सिंह को अब परिवार के राजनीतिक करियर की चिंता सलाखों के पीछे से सता रही है। संजीव सिंह अच्छी तरह जानते हैं कि अगर उनके परिवार की दखल राजनीति में कायम नहीं रही, तो सिंह मेंशन के नाम को बचाये रखना मुश्किल होगा और निकट भविष्य में उनके ऊपर और परेशानियां आयेंगी। लिहाजा अब वह सलाखों के पीछे से ही छोटे भाई सिद्धार्थ गौतम के लिए चुनावी बिसात बिछाने और जीत का ताना-बाना बुन रहे हैं। संजीव राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी तो नहीं हैं, लेकिन पहली बार में ही उन्होंने राजनीति के कई रंग देख लिये। जेल में भी उन्होंने लालू प्रसाद यादव से राजनीति के कई पाठ पढेÞ। यही पाठ अब उनके छोटे भाई सिद्धार्थ गौतम के काम आयेगी। सिद्धार्थ ने निर्दलीय ही लोकसभा चुनाव के रण में उतरने को लेकर ताल ठोक दिया है।
रांची बिरसा मुंडा जेल में एक और बड़ा नाम सजा भुगत रहा है। यह व्यक्ति कभी झारखंड की राजनीति को अपनी अंगुली पर नचाता था। ठेका-पट्टा रास्ते चलते बांटना इसके दायें-बायें हाथ का खेल था। कहते हैं, जब पाप का घड़ा भर जाता है, तो वह फूटता ही है। भ्रष्टाचार रूपी पाप का घड़ा फूटा और वह शख्स सजा काट रहा है। भ्रष्टाचार के साथ-साथ हत्या के मामले में वह सजायाफ्ता है। फिलहाल वह सियासत के हाशिये पर चला गया है। वह हर हाल में राजनीति में अपनी धमक बरकरार रखना चाहता है। वह व्यक्ति और कोई नहीं, बल्कि पूर्व मंत्री एनोस एक्का है। सजा मिलने के बाद उसने अपनी विरासत पत्नी को सौंपने की भरपूर कोशिश की। कोलेबिरा के चुनाव में पत्नी मेनन एक्का को उतारा। झामुमो तक से समर्थन हासिल कर लिया, लेकिन मेनन चुनाव हार गयीं। हार के बाद उसका राजनीतिक सूरज अस्त माना जा रहा है, लेकिन जानकार बताते हैं कि कोलेबिरा, खूंटी के कई इलाकों में उनकी आज भी मजबूत पकड़ है। इस कारण भी एनोस एक्का की पूछ कम नहीं हुई है। सलाखों के पीछे नेताजी पर भी चुनाव का रंग पूरी तरह से चढ़ गया है। वह भी चुनावी तपिश को महसूस कर रहे हैं और मुलाकातियों के जरिये अपनी पकड़ का गोपनीय संदेशा भी भिजवा रहे हैं।
लालू के ही इर्द-गिर्द रही मिशन-2019 की राजनीति
तीन दशकों से बिहार की सत्ता और सियासत की धुरी रहे राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव इस बार के चुनाव में भी रिंग मास्टर की भूमिका में हैं। लोकसभा चुनाव से संबंधित महागठबंधन की सारी रणनीति लालू के इर्द-गिर्द ही घूमती दिखायी पड़ रही है। चाहे सीटों का बंटवारा हो या प्रत्याशी तय करने का मामला, लालू जेल से ही सारा खेल सेट कर रहे हैं। विवाद भी वहीं से उठता है और समाधान भी वहीं से निकलता है। प्रत्यक्ष तौर पर राजद के सारे निर्णयों और महागठबंधन के घटक दलों में समन्वय के लिए नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को चेहरा बना दिया गया है। किंतु सच्चाई है कि सीटों के मसले पर माथापच्ची और तकरार को देखते हुए लालू ने पार्टी की कमान खुद संभाल ली है। यही कारण है कि प्रत्येक शनिवार को रिम्स राजनीति का केंद्र बन जाता है। कारण इस दिन लालू से मुलाकात का दिन होता है। इस दिन लालू जिससे चाहते हैं, उसी से मिलते हैं। इसकी वजह है कि मुलाकातियों की फेहरिश्त लंबी होती है और मुलाकात सिर्फ तीन की होनी तय है। इधर, कुछ महीनों की बात करें तो पटना से रांची आने वाले नेताओं के फेरे बढ़ गये हैं। पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के सरकारी आवास से ज्यादा रांची स्थित रिम्स अस्पताल में नेताओं की उपस्थिति होती है। हालात बता रहे हैं कि राजद के अधिकांश राजनीतिक फैसले रांची से ही लिये गये या फिर जा रहे हैं। महागठबंधन के घटक दलों की हिस्सेदारी से लेकर कांग्रेस की महत्वाकांक्षा पर हावी होने के फॉर्मूले भी लालू ने ही तय किया है। इधर, झारखंड में चतरा सीट का सिंबल सुभाष यादव को दिये जाने का निर्णय भी लालू के इशारे पर लिया गया है। वहीं कहा जा रहा है कि लालू प्रसाद के कहने पर ही घूरन राम ने पलामू से तैयारी शुरू कर दी है। विशेषज्ञ बताते हैं कि लालू प्रसाद यादव ने बेटे तेजस्वी से मुलाकात के दौरान झारखंड-बिहार में महागठबंधन का मंत्र दिया था।
इसी का नतीजा है कि बिहार में राजद महागठबंधन से 20 सीटों को झटकने में कामयाब रहा है। झारखंड में जब बात नहीं बनी, तो दो सीटों पर प्रत्याशी की घोषणा कर दी गयी। यह भी सच्चाई है कि राजद की शर्तों पर कांग्रेस ने जब हामी नहीं भरी, तो लालू को हस्तक्षेप करना पड़ा। विपरीत हालात में भी अपनी कश्ती के लिए रास्ता निकालने में माहिर लालू ने सियासी वारिस की हिफाजत के लिए बेगूसराय में कन्हैया कुमार की मंशा पूरी नहीं होने दी।
विरासत संभालने के लिए आगे आये सिद्धार्थ, संजीव का मिला साथ
झरिया विधायक संजीव सिंह के छोटे भाई सिद्धार्थ गौतम उर्फ मनीष सिंह ने लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। वह निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे। सिंह मेंशन शुरू से ही राजनीतिक परिवार है और परिवार की अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा है। साथ ही जनता का समर्थन भी प्राप्त होता रहा है। इसी का नतीजा है कि भाई संजीव सिंह को जेल जाने के बाद सिद्धार्थ गौतम ने राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का फैसला लिया। इसके बाद से संजीव सिंह भी मुलाकातियों के जरिये चुनाव जीतने का मंत्र दे रहे हैं। सिद्धार्थ के चुनावी मैदान में उतरने से बीजेपी उम्मीदवार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। जेल में बंद संजीव सिंह से छोटे या बड़े नेता लगातार मिलते रहे हैं। इधर, गुरुवार को सांसद पीएन सिंह ने संजीव सिंह से मिलना चाहा, लेकिन आचार संहिता लागू होने के कारण उन्हें मिलने से मना कर दिया गया। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि इस मुलाकात की वजह सिद्धार्थ गौतम को चुनावी रण में उतरने से मना करना है, लेकिन जानकार बताते हैं कि सिद्धार्थ गौतम ने भाई संजीव सिंह का आशीर्वाद लेकर ही चुनावी बिगुल फूंका है। हालांकि संजीव सिंह पहली बार ही झरिया से विधायक बने हैं, लेकिन उन्हें राजनीति विरासत में मिली है। वहीं दूसरी ओर जेल में उन्होंने लालू प्रसाद यादव से भी राजनीति की कई कलाबाजियां सीखी हैं। जेल में दोनों के बीच घंटों बातचीत की खबरें भी मीडिया में खूब छायी रही थीं।
झापा के वोटरों को झटकने के लिए एनोस पर नजर
कोलेबिरा उपचुनाव में झारखंड पार्टी के एनोस एक्का का किला ध्वस्त हो गया है। 2005 से लगातार तीन विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कराने वाले एनोस एक्का पारा शिक्षक की हत्या के मामले में जेल में हैं। एनोस अपनी पत्नी मेनन एक्का के सहारे चुनावी वैतरणी भी पार नहीं कर सके। वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस ने राज्य गठन के 18 वर्ष बाद इस सीट पर उपचुनाव के सहारे कब्जा जमाया है। भाजपा विरोधी वोट को गोलबंद करने के लिए राजनीति से जुड़े लोग एनोस से भी संपर्क साध रहे हैं। एनोस एक्का भी तमाम परिस्थितियों पर नजर बनाये हुए हैं। कहा जाता है कि मिलने पहुंचे करीबियों से पल-पल की जानकारी भी लेते हैं। एनोस की आरसी और जीइएल चर्च के इसाई वोटरों में अच्छी पैठ है। परंपरागत इसाई वोटरों को अपने पक्ष में लाने के लिए राजनीतिक दलों की नजर एनोस एक्का पर है। लालू, संजीव और एनोस एक्का की गतिविधियों को देख कर साफ-साफ कहा जा सकता है कि जेल में रह कर भी ये राजनीतिक रूप से कमजोर नहीं हुए हैं, बल्कि उनके समर्थकों की संख्या उनके प्रति ज्यादा बढ़ी है।
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