रांची। वैसे तो संथाल की सियासत पर झामुमो का शुरू से दबदबा रहा है। उपराजधानी की सीट पर झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन का एकाधिकार रहा है। वह दुमका सीट से आठ बार सांसद बन चुके हैं। एक बार फिर यहां चुनाव की सरगर्मी बढ़ चुकी है, दावों का दौर भी जारी है। मार्च का महीना ज्यों-ज्यों बीत रहा है, गर्मी के साथ-साथ यह चर्चा भी परवान चढ़ रही है कि लोकसभा चुनाव में कौन कहां से उम्मीदवार होगा। भाजपा ही नहीं, हर पार्टी में लॉबिंग शुरू हो चुकी है।
झारखंड में अगर दुमका लोकसभा की बात करें तो यह सीट किसी भी पार्टी के लिए जीतना एक सम्मान की बात होगी, क्योंकि संथाल का यह भूभाग आदिवासियों के लिए जाना जाता है और झारखंड की पहचान ही आदिवासी राज्य के रूप में है। दूसरी सबसे बड़ी बात कि दिशोम गुरु शिबू सोरेन दुमका से 1980 से लेकर अब तक आठ बार सांसद रह चुके हैं। कहा जाये तो सोरेन परिवार की पहचान को भी दुमका से जोड़ कर देखा जाता है। शिबू सोरेन 1980 से अब तक सिर्फ तीन बार ही दुमका से चुनाव हारे हैं। एक बार 1984 में कांग्रेस के टिकट से लड़ रहे पृथ्वी चंद किस्कू और दो बार बीजेपी की तरफ से लड़ रहे बाबूलाल मरांडी से।
2019 में बदल सकता है समीकरण
दुमका लोकसभा में पिछले तीन बार से बीजेपी दूसरे नंबर पर रही है। दो बार लगातार 2009 और 2014 में सुनील सोरेन ने शिबू सोरेन से मात खायी है। 2009 में जहां सुनील सोरेन को 18,812 वोट से हार का सामना करना पड़ा, वहीं मोदी लहर यानी 2014 में हार का अंतर बढ़ कर 39,030 हो गया। दो बार मिली हार और हार के अंतर का बढ़ता जाना सुनील सोरेन के लिए अच्छा संकेत नहीं माना जा रहा है। ऐसे में बीजेपी एक ऐसे उम्मीदवार की तलाश में है, जो ट्राइबल तो हो ही, साथ ही दिशोम गुरु शिबू सोरेन को मात देने का माद्दा रखता हो।
2014 के विधानसभा चुनाव में दुमका सीट से चुनाव लड़ रहे हेमंत सोरेन को 5,262 वोटों से ही सही, लेकिन हरा कर लुइस मरांडी ने सोरेन परिवार को परास्त करने की परंपरा की नींव रखी है। ऐसे में भाजपा दुमका सीट के लिए नामों की सूची तैयार करते वक्त लुइस मरांडी के नाम पर गंभीरता से विचार करेगी। वहीं झामुमो छोड़ भाजपा में शामिल रमेश हांसदा, जिन्हें पार्टी की तरफ से संथाल परगना का सह प्रभारी बना कर दुमका भेजा गया है, भी दुमका से लोकसभा चुनाव में उतरने की बात को गंभीरता से ले रहे हैं। सच्चाई यह है कि रमेश हांसदा संथाल से नहीं, बल्कि पूर्वी सिंहभूम से आते हैं। अपने पूरे राजनीतिक सफर में अब तक रमेश हांसदा एक बार भी चुनाव नहीं जीत सके हैं।
दुमका लोकसभा सीट का समीकरण
दुमका लोकसभा क्षेत्र आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ है और नक्सल प्रभावित भी है। दुमका लोकसभा के तहत छह विधानसभा की सीटें आती हैं। दुमका, जामताड़ा, सारठ, जामा, शिकारीपाड़ा और नाला। दुमका और सारठ को छोड़ बाकी सभी चार विधानसभा महागठबंधन के कब्जे में है। इस लिहाज से महागठबंधन का उम्मीदवार निश्चित तौर से दुमका लोकसभा में बीजेपी से ज्यादा मजबूत होगा। ऊपर से जब शिबू सोरेन जैसी शख्सियत उम्मीदवार हो, तो किसी दूसरे की जीत ज्यादा कठिन हो जाती है, लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि 2014 के विधानसभा चुनाव में नाला, जामताड़ा और जामा में बीजेपी के प्रत्याशी मामूली अंतर से दूसरे नंबर पर थे। खबरों की मानें, तो नाला में लुइस मरांडी लगातार कैंपेनिंग कर रही हैं और शिकारीपाड़ा में ट्राइबल फेस होने का फायदा लुइस को मिल सकता है। जिले में 90 फीसदी लोग गांव में रहते हैं और 10 प्रतिशत ही लोग शहरी हैं।
कद्दावर नेता शिबू सोरेन को हराना आसान नहीं
शिबू सोरेन झारखंड के कद्दावर नेता हैं और दुमका में किसी भी पार्टी के लिए उन्हें हराना आसान नहीं होगा। बाबूलाल मरांडी इस सीट से दो बार चुनाव जीत चुके हैं। 2019 के लोक सभा चुनाव के लिए कांग्रेस, झामुमो, झाविमो और राजद के बीच गठबंधन है। गठबंधन के मुताबिक झारखंड में कांग्रेस लोक सभा चुनाव में लीड करेगी। वहीं, झामुमो विधानसभा चुनाव को संभालेगा। इस सीट पर तकरीबन आधी आबादी आदिवासियों की है। लेकिन 20 प्रतिशत मुस्लिम वोटर भी हैं। आदिवासी वोटरों को झामुमो का तय वोटर माना जाता है। यहां मुस्लिम वोटर भी शिबू सोरेन के साथ ही होंगे।
दुमका लोक सभा सीट का राजनीतिक परिचय
1957 में दुमका लोकसभा सीट से झारखंड पार्टी के देबी सोरेन जीते थे। 1962 में एससी बेसरा जीते, जो कांग्रेस के उम्मीदवार थे। 1971 में भी कांग्रेस के एससी बेसरा ही जीते थे। बता दें कि एससी बेसरा दुमका सीट से तीन बार जीत चुके हैं। 1977 में यह सीट जनता पार्टी के पास चली गयी और बटेश्वर हेंब्रम जीते। 1980 में पहली बार दुमका से झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर शिबू सोरेन जीते। हालांकि, 1984 में पृथ्वी चंद किस्कू कांग्रेस के टिकट पर जीते। 1989 में शिबू सोरेन ने फिर से वापसी की और लगातार तीन बार 1991, 1996 के भी चुनाव जीते। 1998 में इस सीट से बीजेपी प्रत्याशी बाबूलाल मरांडी जीते। 1999 में भी बाबूलाल मरांडी जीते। 2002 में शिबू सोरेन ने फिर जीत दर्ज की। इसके बाद से वह लगातार 2004, 2009 और 2014 में जीते हैं।
झामुमो और गुरुजी के लिए प्रतिष्ठा की सीट है दुमका
संथाल परगना प्रमंडल का मुख्यालय और झारखंड की उपराजधानी दुमका को झामुमो का अभेद्य किला कहना गलत नहीं होगा। यहां से झामुमो ने राजनीति की सभी ऊंचाइयों को छुआ। पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन यहां से आठ बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। उनके बेटे हेमंत सोरेन दुमका विधानसभा जीत कर ही पहले डिप्टी सीएम बाद में इस राज्य के सीएम बने।
दुमका लोकसभा सीट पर झामुमो इस बार फिर से जीत को सुनिश्चित बता रहा है। झामुमो के प्रवक्ता कहते हैं कि काफी संघर्ष कर झारखंड का निर्माण किया, लेकिन इस राज्य की हालत काफी खराब है। इससे उबरने के लिए अब जनता फिर से उन्हें ही जितायेगी। वह कहते हैं कि गुरुजी की उपस्थिति मात्र से ही जनता फख्र महसूस करती है।
भाजपा अपनी जीत की कर रही है दावेदारी
भाजपा ने 2009 और 2014 में सुनील सोरेन को शिबू सोरेन के सामने मैदान में उतारा था। वह 2009 का चुनाव लगभग 17 हजार और 2014 का चुनाव लगभग 44 हजार मतों के अंतर से हार गये, लेकिन इस बार फिर से सुनील सोरेन का दावा है कि शिबू सोरेन ने जनता को बेवकूफ बनाया है। क्षेत्र का विकास नहीं किया है। हमारी तैयारी बूथ स्तर तक मजबूत है और विकास के मुद्दे पर जनता हमें जितायेगी।
भाजपा के लिए कठिन डगर होगी दुमका की जीत
वैसे तो सभी राजनीतिक दल के अपने अपने दावे हैं, लेकिन देश स्तर पर भाजपा को हराने के लिए विपक्षी दलों द्वारा बड़े बड़े प्रयोग हो रहे हैं। दुमका में गुरुजी को हराने के लिए भाजपा जी-जान से जुटी है। वहीं झामुमो अपनी सीट बचा लेती है, तो नौवीं बार जीत मिल जायेगी। दुमका झारखंड की बेहद महत्वपूर्ण लोकसभा सीट है, जहां से झारखंड के दो मुख्यमंत्री चुनाव जीते हैं। शिबू सोरेन के अलावा बाबूलाल मरांडी भी यहां से चुनाव जीत चुके हैं।
दुमका का सामाजिक तानाबाना
दुमका लोकसभा सीट पर आदिवासी, अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्ग के वोटरों का दबदबा है। इस सीट पर 40 फीसदी आदिवासी, 40 फीसदी पिछड़ी जातियां और 20 प्रतिशत मुस्लिम वोटर हैं। आदिवासी और अल्पसंख्यक वोटरों को झारखंड मुक्ति मोर्चा का परंपरागत वोटर माना जाता है। यही कारण है कि इस सीट से शिबू सोरेन लगातार जीत रहे हैं। इस सीट पर मतदाताओं की संख्या 12.47 लाख है, इसमें 6.46 लाख पुरुष और 6 लाख महिला मतदाता शामिल हैं।
गुरुजी का रिपोर्ट कार्ड
गुरुजी के नाम से मशहूर शिबू सोरेन तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। पहली बार वह 2005 में 10 दिन के लिए, फिर दूसरी बार 2008 से 2009 तक के लिए और तीसरी बार 2009 से 2010 तक के लिए सीएम के पद पर रहे। शिबू सोरेन आठ बार सांसद और यूपीए सरकार के दौरान केंद्रीय कोयला मंत्री भी रह चुके हैं। जनवरी 2019 तक आंकड़ों के अनुसार शिबू सोरेन ने अभी तक अपनी सांसद निधि से क्षेत्र के विकास के लिए 13.58 करोड़ रुपये खर्च किये हैं।
उन्हें सांसद निधि से अभी तक 17.94 करोड़ मिले हैं। उन्होंने 76 फीसदी खर्च किया है। वहीं एक सच्चाई यह भी है कि 74 वर्ष आयु के शिबू सोरेन ने संसद में कुछ खास कमाल नहीं दिखाया है। संसद में प्रश्न पूछने के मामले में इनका औसत शून्य रहा है। इन्होंने न ही किसी डिबेट में हिस्सा लिया है और न ही कोई प्राइवेट मेंबर बिल लेकर आये हैं। कुल मिलाकर इस सीट पर पक्ष और विपक्ष की ओर से चुनावी रण की पूरी तैयारी हो गयी है। इस बार देखना दिलचस्प होगा कि जनता किसे मौका देती है। हालांकि जबसे केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकार बनी है, संथाल परगना प्रमंडल को टारगेट कर काम किया जा रहा है।