रांची। स्थित आजसू पार्टी मुख्यालय में लोकसभा चुनाव को लेकर महत्वपूर्ण बैठक गुरुवार को हुई। गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र के पदाधिकारियों और बूथ प्रभारियों को चुनावी जंग में जीत सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश दिये गये। एक-एक बूथ को लेकर रणनीति बनी। साथ ही तय हुआ कि 23 मार्च को पार्टी की संसदीय बोर्ड की बैठक होगी और उसी दिन प्रत्याशी के नाम की घोषणा कर दी जायेगी। बावजूद इसके सभी जानना चाहते थे कि आखिर किस दूल्हे की बारात सजानी है। दरअसल, भाजपा के साथ हुए समझौते में यह सीट आजसू के खाते में जाने के साथ ही पार्टी के संभावित प्रत्याशियों ने ताल ठोकना शुरू कर दिया है। भले ही कोई खुल कर नहीं बोल रहा है, लेकिन क ोशिश में कोई क ोर कसर नहीं छोड़ रहा। सूत्रों की मानें तो आजसू का एक धड़ा अपने सुप्रीमो सुदेश महतो के नाम से इस सीट पर दांव खेलना चाहता है। आजसू के कार्यकर्ता लोकसभा के बाद पिछले दो विधानसभा चुनावों में हार का सामना कर चुके सुदेश महतो को हर हाल में भाजपा के सहयोग से संसद में भेजना चाहते हैं। आजसू का यह धड़ा सुदेश महतो को भी यह समझाने का प्रयास कर रहा है कि यह सीट आजसू की प्रतिष्ठा से जुड़ी है, लिहाजा यहां से कमजोर उम्मीदवार देना पार्टी हित में नहीं होगा।
वहीं पार्टी में नंबर दो की हैसियत रखनेवाले राज्य के मंत्री चंद्रप्रकाश चौधरी के समर्थक भी चाहते हैं कि वह संसद में जायें। इससे पहले 2004 में वह आजसू के टिकट पर हजारीबाग संसदीय सीट से चुनाव लड़ चुके हैं। पर वह भुवनेश्वर मेहता से हार गये थे। अब इस बार उनके समर्थक चाहते हैं कि वह गिरिडीह सीट से लड़ें। समर्थकों को यह उम्मीद है कि इस बार की स्थिति बदली हुई है और आजसू लोकसभा में अपना खाता खेल सकती है। चंद्रप्रकाश के समर्थकों को उम्मीदवारी से दोहरा फायदा दिख रहा है। एक तो चंद्रप्रकाश चौधरी दिल्ली पहुंच सकते हैं और दूसरा अपनी जगह वह अपने किसी खास को टिकट दिला सकते हैं। वह परिवार का भी सदस्य हो सकता है।
अन्य दावेदारों की बात करें, तो आजसू के कद्दावर नेता और पूर्व प्रशासनिक अधिकारी लंबोदर महतो लंबे समय से इस सीट पर लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी करते रहे हैं। हालांकि वह गोमिया से पिछला विधानसभा चुनाव नहीं जीत सके थे। परंतु इस बार उन्हें भी पता है कि मुकाबले में भाजपा नहीं होगी और उसके कैडर के वोट मिलने की पूरी उम्मीद है। राजनीति में बैटिंग करने के लिए ही लंबोदर महतो ने राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी पद से इस्तीफा देकर गोमिया से नामांकन किया था। यह बात अलग है कि वह कुछ ही वोटों से झामुमो उम्मीदवार बबिता देवी से चुनाव हार गये।
इतना ही नहीं, टुंडी से विधायक और पार्टी के वरिष्ठ नेता राजकिशोर महतो भी इस सीट के एक दावेदार हैं, जो पिछले कुछ वर्षों से यहां चुनाव लड़ने की तैयारी करते रहे हैं। वह पहले भी गिरिडीह सीट से सांसद रह चुके हैं। राजकिशोर महतो पहले भाजपा में ही थे। 2014 के चुनाव में जब भाजपा का आजसू से गठबंधन हुआ, तो भाजपा ने टुंडी सीट आजसू को यह कहते हुए दे दी कि राजकिशोर महतो को आजसू के टिकट पर चुनाव लड़ाया जाये। उनके अलावा यहां से आजसू के टिकट पर पिछले लोकसभा चुनाव में भाग्य आजमाने वाले प्राचार्य डॉ यूसी मेहता भी दावेदारी की दौड़ में शामिल हैं। हालांकि पिछले चुनाव में उनका प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा था और निवर्तमान सांसद रवींद्र पांडेय तथा झामुमो के जगरनाथ महतो से वह काफी पीछे रह गये थे। तमाम दावेदारी के बीच एक प्रत्याशी का चयन पार्टी के नेताओं के लिए आसान तो नहीं होगा, पर उम्मीद है कि अगले कुछ दिनों में किसी एक नाम पर सहमति अवश्य बन जायेगी।
गिरिडीह सीट जीतने के लिए आजसू बना रही रणनीति
आजसू की रणनीति लोकसभा चुनाव में झामुमो को अपने जाल में फंसाने की है। झामुमो के साथ आजसू की कुर्मी वोट बैंक को लेकर प्रतिस्पर्धा चल रही है। आंकड़ों पर गौर करें तो गिरिडीह में कुर्मी वोटरों की संख्या करीब दो लाख से अधिक है। इस वोट बैंक पर झामुमो का कब्जा रहा है। आजसू के मैदान में उतरने से कुर्मी वोटर बंट जाते हैं। इसका परोक्ष फायदा भाजपा को ही होता रहा है। लेकिन गठबंधन के तहत अब आजसू का उम्मीदवार होगा, तो कुर्मी वोटरों पर झामुमो की पकड़ ढीली हो जायेगी। ऐसे में आजसू कुर्मी वोटरों के मामले में झामुमो पर भारी पड़ सकती है। सुदेश महतो की विधानसभा सीट सिल्ली से लेकर गिरिडीह तक की राजनीतिक स्थिति पर नजर डालें, तो पायेंगे कि कुर्मी वोटरों पर वर्चस्व की जंग झामुमो और आजसू के बीच चल रही है। सुदेश को सिल्ली में दो-दो बार मात देकर झामुमो ने आजसू की कमर तोड़ दी है। वहीं आजसू अब सिल्ली, रामगढ़ से निकल कर हजारीबाग होते हुए विनोद बिहारी महतो की धरती धनबाद एवं गिरिडीह तक पहुंच चुकी है। इससे झामुमो भी बौखलाया हुआ है।
कुर्मी वोट होंगे निर्णायक
गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र के अंदर छह विधानसभा क्षेत्र गिरिडीह, डुमरी, गोमिया, बेरमो, टुंडी और बाघमारा हंै। इन छह विधानसभा क्षेत्रों में से कुर्मी बहुल तीन क्षेत्र डुमरी, गोमिया एवं टुंडी में आजसू का मजबूत जनाधार है। तीनों क्षेत्रों में झामुमो की लड़ाई आजसू से है। टुंडी से आजसू के राजकिशोर महतो विधायक हैं। वहां उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी झामुमो के मथुरा प्रसाद महतो हैं। इसी तरह से गोमिया में झामुमो की बबिता देवी विधायक हैं। वहां उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी आजसू के लंबोदर महतो हैं। डुमरी में झामुमो के जगरनाथ महतो विधायक हैं। वहां भी आजसू मजबूत स्थिति में है। पिछले लोकसभा चुनाव की बात करें तो आजसू गिरिडीह में अकेले मैदान में उतरी थी। कुर्मी वोटरों के ही भरोसे आजसू के डॉ यूसी मेहता 55 हजार 531 वोट लाने में सफल रहे थे।
झामुमो सुप्रीमो की राजनीतिक जन्मभूमि है गिरिडीह
गिरिडीह, बोकारो और धनबाद में फैली इस सीट से 1980 में कांग्रेस के टिकट पर पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे चुनाव जीते। आजादी के बाद कांग्रेस की प्रभाव वाली यह सीट अब बीजेपी के दबदबे वाली सीट है। 1996, 1998, 1999 में इस सीट से बीजेपी जीती। 2004 में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने यह सीट अपने नाम की, लेकिन 2009 के अगले ही चुनाव में फिर बीजेपी ने यहां कब्जा जमाया और पार्टी के रवींद्र कुमार पांडेय चौथी बार सांसद बने। दरअसल आजादी के बाद से इस सीट पर कांग्रेस का वर्चस्व रहा था, लेकिन 1996 से यह भाजपा की प्रभाव वाली सीट बन गयी है।
मौजूदा भाजपा सांसद रवींद्र कुमार पांडेय ने वर्ष 1996 से अब तक पांच बार लोकसभा में प्रतिनिधित्व किया है। कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे ने वर्ष 1980 में और संयुक्त बिहार के कांग्रेस अध्यक्ष रहे डॉ सरफराज अहमद ने वर्ष 1984 में अंतिम बार इस सीट पर कांग्रेस का परचम लहराया था। झामुमो का भी गिरिडीह लोकसभा सीट से भावनात्मक संबंध रहा है। पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन की यह राजनीतिक जन्मभूमि है। साथ ही यह झामुमो के संस्थापक विनोद बिहारी महतो की सीट रही है। विनोद बिहारी महतो 1991 में गिरिडीह के सांसद चुने गये थे। 1992 में उनके निधन के बाद पर उनके पुत्र राजकिशोर महतो झामुमो के टिकट पर यहां से सांसद चुने गये थे। वर्ष 2004 में झामुमो से टेकलाल महतो यहां के सांसद चुने गये थे। पिछले लोकसभा चुनाव में झामुमो ने अपने डुमरी विधायक जगरनाथ महतो को यहां उतारा था। कांटे की लड़ाई में महतो लोकसभा पहुंचने से पिछड़ गये थे। कुल मिलाकर देखें तो वर्ष 1991 के बाद से कांग्रेस यहां लंबे समय से बैकफुट पर चली गयी है और झामुमो भाजपा को लगातार चुनौती दे रहा है।
2014 की मोदी लहर में भी झारखंड में भारतीय जनता पार्टी के विजय रथ को झामुमो ही दुमका और राजमहल लोकसभा सीट में रोक पाया था। गिरिडीह सीट में भी झामुमो ने भाजपा के पसीने छुड़ा दिये थे। वहीं गठबंधन में काफी अधिक सीटें लेकर भी कांग्रेस खाता नहीं खोल पायी थी। इस सीट पर आजसू और झामुमो की राजनीतिक जंग देखने लायक होगी। दोनों ही दल विनोद बिहारी महतो के नाम को भजाने की कोशिश करेंगे। ऊंट किस करवट बैठेगा, यह समय के गर्भ में है।