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    Home»Breaking News»खूंटी में कड़िया के विजय रथ को रोक पायेगा महागठबंधन!
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    खूंटी में कड़िया के विजय रथ को रोक पायेगा महागठबंधन!

    azad sipahiBy azad sipahiMarch 5, 2019Updated:March 5, 2019No Comments5 Mins Read
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    रांची। झारखंड की खूंटी लोकसभा सीट से मौजूदा सांसद भाजपा के कड़िया मुंडा फिर ताल ठोक रहे हैं। उन्होंने आठवीं बार इस सीट पर अपनी हुकूमत जमायी है। 2014 में इस सीट पर कुल वोटरों की संख्या 11 लाख 11 हजार 852 थी। इनमें से 7 लाख 36 हजार 955 लोगों ने वोट डाले। वोट डालने वालों में 3 लाख तिहत्तर हजार 120 पुरुष और 3 लाख तिरसठ हजार 835 महिलाएं थीं। यहां 66 फीसदी मतदान हुआ था। अगर डेमोग्राफिक्स की मानें तो इस सीट की कुल जनसंख्या 17 लाख 25 हजार 970 है। इनमे 93.32 फीसदी ग्रामीण आबादी है।

    शहरी आबादी मात्र 6.68 फीसदी। इस क्षेत्र की एक बड़ी जनसंख्या अनुसूचित जनजाति से संबंध रखती है, जो कुल जनसंख्या की कुल 64.85 फीसदी है। 2011 की जनगणना के अनुसार यह जिला झारखंड में लोहरदगा के बाद सबसे कम जनसंख्या वाला जिला है। यह जिला भी लाल गलियारे का हिस्सा है। लाल गलियारा भारत के पूर्वी भाग का एक क्षेत्र है, जहां नक्सलवादी उग्रवादी संगठन सक्रिय हैं।

    इस इलाके की अधिकतम जनसंख्या पुरानी जनजातियों से संबंधित है, जिनका जीवन मुख्यत: कृषि और जंगलों पर निर्भर है। इस लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंदर छह विधानसभा क्षेत्र आते हैं। ये क्षेत्र खरसावां, तमाड़, तोरपा, खूंटी, कोलेबिरा और सिमडेगा हैं। इनमें से खरसावां विधानसभा क्षेत्र सरायकेला खरसावां जिले में आता है। तमाड़ रांची जिला का हिस्सा है, वहीं तोरपा और खूंटी, खूंटी जिला में आते हैं और बाकी के दोनों कोलेबिरा और सिमडेगा का जिला सिमडेगा है। झारखंड का यह ऐसा लोकसभा क्षेत्र है, जहां इसके अंतर्गत आनेवाले सभी विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। झारखंड के तीन जिलों का हिस्सा इसमें आता है।

    आजादी के बाद से सबसे ज्यादा समय तक इस लोकसभा सीट पर भाजपा का कब्जा रहा है। पहली बार वर्तमान सांसद कड़िया मुंडा 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते थे। इसके बाद इस सीट पर झारखंड पार्टी का कब्जा रहा। दोबारा कड़िया मुंडा 1989 में यहां से चुनाव जीते और उन्होंने लगातार 2004 तक इस लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया। 2004 के चुनाव में कांग्रेस की सुशीला केरकट्टा ने इन्हें मात दी। लेकिन कड़िया मुंडा का विजय रथ अगले लोकसभा चुनाव में लौट आया और वह 2009 से अबतक लगातार सांसद हैं। इस दौरान कड़िया मुंडा केंद्र सरकार में मंत्री रहे और यूपीए दो के समय लोकसभा के उपाध्यक्ष भी बने। कड़िया मुंडा अपनी सादगी और इमानदारी के लिए जाने जाते हैं। लंबे राजनीतिक जीवन में इन पर कोई दाग नहीं है। कई ऊंचे संवैधानिक पद पर रहते हुए भी इनकी दिनचर्या नहीं बदली।

    जब भी अपने लोकसभा क्षेत्र में आते हैं, तो कृषि कार्य में जुट जाते हैं। यही वजह है कि खूंटी लोकसभा क्षेत्र में आज भी इन्हें लोग सम्मान देते हैं। तीन जिलों के विधानसभा क्षेत्र वाले लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करनेवाले वह पहले सांसद हैं। हर बार विपक्ष इनके खिलाफ बड़ी रणनीति के तहत मैदान में उतरता है, लेकिन उसे मुंह की खानी पड़ती है। इस बार भी विपक्ष महागठबंधन कर मैदान में आ रहा है। मजेदार बात तो यह है कि महागठबंधन में यह सीट किसके खाते में जायेगी, इस पर अभी तक सहमति नहीं बनी है।
    कांग्रेस और झामुमो के बीच इस सीट को लेकर टशन चल रहा है। कांग्रेस की तरफ से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप कुमार बलमुचू और पूर्व मंत्री थियोडोर किड़ो आस लगाये बैठे हैं, तो झामुमो की तरफ से तोरपा विधायक पौलुस सुरीन की नजरें टिकी हुई हैं। किसके खाते में यह सीट जाती है, अभी स्पष्ट नहीं है।

    झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन ने इस सीट पर दावेदारी कर दी है, जो महागठबंधन के लिए मुश्किल खड़ा कर सकता है। वहीं भाजपा की बात करें तो ये बातें भी सामने आ रही हैं कि इस बार 70 पार वाले को टिकट नहीं मिलेगा। कड़िया मुंडा 82 वर्ष के हैं। यदि ऐसा होता है, तो भाजपा भी यहां से किसी नये चेहरे को मैदान मे ंउतारेगी। तब झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा और ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा का नाम सामने आ सकता है। नये प्रत्याशी पर यदि भाजपा दांव खेलती है, तो जाहिर है समीकरण भी नया बनेगा। अर्जुन मुंडा झारखंड भाजपा के सबसे बड़े आदिवासी चेहरा हैं, इसमें कोई दो राय नहीं है, लेकिन उनका कार्यक्षेत्र इस लोकसभा के सभी विधानसभा क्षेत्रों में नहीं रहा है। नीलकंठ सिंह मुंडा की बात करें तो भले ही वह लगातार सरकार में मंत्री रहे हैं, लेकिन खूंटी विधानसभा से बाहर नहीं निकल सके हैं। इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि विपक्ष से भी जिन उम्मीदवारों का नाम आ रहा है, उनकी पहचान खूंटी के सभी विधानसभा क्षेत्रों में नहीं है।

    प्रदीप बलमुचू घाटशिला से विधायक रहे हैं, मगर कभी भी खूंटी लोकसभा में इनका प्रभाव नहीं रहा है। थियोडोर किड़ो कोलेबिरा से दो बार विधायक रहे हैं, लेकिन कालांतर में उनका प्रभाव अपने ही विधानसभा क्षेत्र से जाता रहा है। पिछले दिनों कोलेबिरा उपचुनाव के समय कांग्रेस पार्टी ने इनके नाम पर विचार तक नहीं किया था। झामुमो के पौलुस सुरीन भी तोरपा विधानसभा तक ही सीमित हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में वह बहुत कम अंतर से चुनाव जीते थे।

    पिछले लोकसभा चुनाव की बात करें तो इस सीट पर झापा के एनोस एक्का दूसरे स्थान पर थे और कांग्रेस पार्टी तीसरे स्थान पर थी। ऐसे में कहा जा सकता है कि भाजपा यहां अन्य दलों की तुलना में मजबूत है। विधानसभावार देखा जाये, तो खूंटी लोकसभा के अंतर्गत आनेवाले विधानसभा क्षेत्रों में दो सीट पर भाजपा का कब्जा है, दो पर झामुमो का और एक-एक सीट पर कांग्रेस और आजसू का कब्जा है। हालांकि आजसू के विधायक विकास सिंह मुंडा ने पार्टी छोड़ दी है। ऐसे में इस सीट को अपने कब्जे में करने के लिए भाजपा हो या महागठबंधन दोनों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी।

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