रांची। लोकसभा चुनाव के लिए कमर कस चुकी भारतीय जनता पार्टी ने जहां सभी राज्यों में संगठन को रेस कर दिया है, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पार्टी के सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों के कामकाज पर गहरी निगाह रखे हुए हैं। प्रधानमंत्री ने हाल ही में अपने नमो एप पर सांसदों के कामकाज पर जनता की राय मांगी थी। बताया जा रहा है कि बड़ी संख्या में लोगों ने अपने-अपने क्षेत्र के सांसदों के बारे में राय जाहिर की है और अब लोकसभा चुनावों के लिए उम्मीदवारों का चयन करते हुए जनता की राय पर भी गौर किया जा रहा है। जानकारी के अनुसार दिल्ली में चल रही संसदीय बोर्ड की बैठक में प्रत्याशी के हर पहलू का आकलन किया जा रहा है।

भाजपा ने उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। पार्टी सूत्रों के अनुसार इस बार करीब-करीब तय हो गया है कि 75 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को टिकट नहीं दिया जायेगा। भाजपा ने लोकसभा चुनाव के लिए आखिरकार अपनी पहली लिस्ट जारी कर दी है। गुरुवार शाम जारी हुई इस लिस्ट में 182 उम्मीदवारों के नाम हैं, जिनमें प्रधानमंत्री मोदी के अलावा अमित शाह का नाम भी है। मोदी जहां वाराणसी से चुनाव लड़ेंगे, वहीं शाह को गांधीनगर सीट पर उम्मीदवार बनाया गया है। लिस्ट में कई नाम वे हैं, जो पहले से तय माने जा रहे थे, लेकिन कुछ नाम या बदलाव चौंकानेवाले रहे।

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह गांधीनगर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। अब तक यह सीट भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के पास थी। हालांकि, आडवाणी अकेले ऐसे नेता नहीं हैं, जिन्हें पार्टी ने अपनी पहली लिस्ट में स्थान नहीं दिया है। आडवाणी के अलावा भाजपा की पहली लिस्ट में उत्तराखंड के जिन उम्मीदवारों के नाम घोषित किये गये हैं, उनमें पौड़ी गढ़वाल से सांसद रहे राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी का नाम नहीं है। खंडूड़ी के बेटे हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए हैं। पार्टी ने पूर्व सीएम की बजाय इस सीट से इस बार तीरथ सिंह रावत को टिकट दिया है। इसी तरह राज्य में एक और पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोशियारी का नाम पहली लिस्ट में नहीं है। कोशियारी ने नैनीताल सीट से चुनाव लड़ा था। उनकी जगह पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट को मैदान में उतारा है। हालांकि, कोशियारी ने खुद ही चुनाव ना लड़ने की घोषणा की थी।

यूपी की बात करें तो यहां भी पार्टी ने अपनी पहली लिस्ट में 2014 में कानपुर से चुनाव जीतने वाले पार्टी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी का नाम शामिल नहीं किया है। आडवाणी की तरह जोशी के टिकट को लेकर लिस्ट जारी होने के पहले से ही आशंकाएं जतायी जा रही थीं। देखा जाये तो भाजपा ने अब तक जीतने भी बड़े नेताओं को टिकट नहीं दिया है, उनमें सभी 75 पार हैं। इनमें अधिकांश ऐसे नेता हैं, जो भाजपा के शुरुआती समय से ही पार्टी की रीढ़ थे।

झारखंड में लोकसभा टिकट को लेकर संसदीय बोर्ड की बैठक में अब तक चर्चा नहीं हुई है। जानकारी है कि जिन प्रदेशों में चौथे चरण से चुनाव शुरू हो रहा है, वहां के प्रत्याशियों के नामों की घोषणा एक-दो दिनों में की जायेगी। 75 पार की फेहरिश्त में देखा जाये तो झारखंड से भाजपा के दो सांसद आते हैं। खूंटी सांसद और पूर्व लोकसभा उपाध्यक्ष कडिया मुंडा और रांची के सांसद रामटहल चौधरी। कड़िया मुंडा 82 साल के हो गये हैं। वहीं रामटहल चौधरी 77 साल के हैं। दोनों ने लंबे समय तक इन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व किया है। जब देश में भाजपा के दो सांसद थे, उस समय झारखंड से एक कड़िया मुंडा सांसद हुआ करते थे। जिस तरह से संसदीय बोर्ड ने अब तक भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की उम्र को देखते हुए टिकट नहीं दिया है, उस हिसाब से कड़िया मुंडा और रामटहल चौधरी पर तलवार लटकी सकती है।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार झारखंड में भाजपा आधा दर्जन सांसदों को दुबारा टिकट नहीं देने जा रही है। हालांकि इसको लेकर अभी भी मंथन चल रहा है। एक सीट पर उम्मीदवार बदलने की भी चर्चा हो रही है। हालांकि एक-दो दिनों में सूची भी सार्वजनिक हो जायेगी। अभी तक टिकटों कटने को लेकर जो प्रमुख कारण सामने आ रहे है,ं उनमें अधिक उम्र से लेकर संगठन और आरएसएस की पसंद-नापसंद भी शामिल है।

राज्य सरकार से बेहतर संबंध नहीं होना और रघुवर सरकार की नीतियों की आलोचना अथवा सार्वजनिक तौर पर अवहेलना करना भी सांसदों पर भारी पड़ सकता है। पार्टी सूत्रों की मानें तो सबसे बड़ा कारण उम्रदराज होना ही है और पार्टी यह मानकर चल रही है कि संगठन मजबूत होगा तो कोई भी जीत जायेगा। स्कूलों का मर्जर करने के केंद्र के आदेश के खिलाफ पत्र सार्वजनिक करनेवाले सांसद रवींद्र राय भी निशाने पर हैं। पब्लिक डोमेन पर राज्य सरकार की नीतियों की आलोचना को केंद्रीय संगठन ने गंभीरता से लिया है। इसके अलावा चतरा को लेकर भी तरह-तरह की चर्चा है।

पार्टी सूत्रों की मानें तो पलामू सांसद वीडी राम और धनबाद के सांसद पशुपति नाथ सिंह भी रडार पर हैं। लोहरदगा सांसद सुदर्शन भगत को लेकर भी संशय है और उन्हें बदलने पर विचार चल रहा है। मोदी लहर में भी उन्होंने सबसे कम अंतर से जीत दर्ज की थी, जबकि उनके लिए आसान राह बना दी थी चमरा लिंडा ने। चमरा लिंडा ने कांग्रेस के रामेश्वर राह की जीत पर ब्रेक लगा दिया था। वैसे भी सुदर्शन भगत ने ऐसा कोई काम नहीं किया है, जिससे लोहरदगा-गुमला के लोग उन्हें याद करें। अभी हाल ही में जिस प्रकार भाजपा सांसदों के टिकट कटे हैं, उससे इन दावों को भी बल मिल रहा है।

Share.

Comments are closed.

Exit mobile version