आगामी 26 मार्च को झारखंड से राज्यसभा की दो सीटों के लिए होनेवाले चुनाव का परिणाम क्या होगा, यह लगभग तय हो चुका है, लेकिन इसके बावजूद यह चुनाव बेहद रोमांचक और राजनीतिक दृष्टि से नयी परंपरा तय करनेवाला होगा। इस चुनाव में दो सीटों के लिए तीन उम्मीदवार मैदान में हैं। इनमें से दो सत्ताधारी महागठबंधन के और एक भाजपा का है। इनमें से किसी दो को जीत कर राज्यसभा तक जाना है। अब यह लगभग तय हो चुका है कि यदि सब कुछ ठीक रहा और अंतिम समय में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ, तो महागठबंधन की ओर से झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन और भाजपा की ओर से दीपक प्रकाश संसद के ऊपरी सदन में झारखंड का प्रतिनिधित्व करेंगे। हालांकि कांग्रेस के शहजादा अनवर पूरा जोर लगाये हुए हैं, लेकिन संख्या बल जुटाना उनके लिए लगातार मुश्किल होता जा रहा है। लेकिन इन तमाम जोड़-तोड़ के बीच इस चुनाव का सबसे बड़ा रोमांच यह है कि इसमें नंबर वन कौन बनेगा। हालांकि इस बार राज्यसभा चुनाव में तकनीकी और वैधानिक रूप से नंबर वन और नंबर टू में कोई अंतर नहीं होगा, लेकिन राजनीतिक दृष्टिकोण से नंबर वन बनना इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसका मनोवैज्ञानिक लाभ मिल सकता है। इसलिए जानकार झारखंड से इस राज्यसभा चुनाव को ‘बैटल आॅफ नंबर्स’ की बजाय ‘बैटल आॅफ नर्व्स’ बता रहे हैं। चुनाव के इस दिलचस्प पहलू पर आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

शुक्रवार 13 मार्च को जब झारखंड विधानसभा के बजट सत्र की उस दिन की कार्यवाही सोमवार तक के लिए स्थगित हुई, तब बाहर निकल रहे सत्ता पक्ष के दो विधायक आपस में राज्यसभा चुनाव की चर्चा कर रहे थे। अपनी गाड़ियों के पहुंचने का इंतजार कर रहे इन दोनों विधायकों में से एक ने पूछा, गुरुजी को कितना वोट मिलेगा। दूसरे ने जवाब दिया, जीतने के लिए 27 वोट चाहिए और उतना मिल जायेगा। तब पहले ने सवाल किया, तब तो हम नंबर वन नहीं रह सकेंगे। दूसरे ने टिप्पणी की, नंबर वन से क्या होगा, गुरुजी सांसद बन जायेंगे, यही काफी है। इस संक्षिप्त बातचीत की गूंज अगले 24 घंटे के भीतर राज्य के राजनीतिक हलकों में सुनाई पड़ने लगी। सवाल यह उठने लगा कि क्या गुरुजी इस चुनाव में नंबर वन बन सकेंगे या फिर उन्हें केवल सांसद बनने से संतोष करना होगा।
झारखंड से राज्यसभा की दो सीटों के लिए होनेवाले चुनाव का सारा रोमांच अब परिणाम को लेकर नहीं, बल्कि इसी नंबर वन को लेकर रह गया है। झामुमो और कांग्रेस के लोग भी समझ चुके हैं कि परिणाम क्या होनेवाला है और अगले छह साल के लिए राज्यसभा कौन जा रहा है। झामुमो के एक बड़े नेता ने तो यहां तक कह दिया कि कांग्रेस बिना किसी मतलब के इस मुकाबले को त्रिकोणीय बना रही है।
क्या है नंबर वन की जंग
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप के अनुसार राज्यसभा चुनाव में नंबर वन और नंबर टू में कोई अंतर नहीं होता और न ही इसमें कुछ तकनीकी या वैधानिक पेंच है। यह पूरी तरह राजनीतिक है, क्योंकि दो सांसद चुने जाने हैं और तीन में से जिसे सबसे कम वोट मिलेंगे, वह पराजित होगा, जबकि ऊपर के दो विजयी घोषित होंगे। बकौल सुभाष कश्यप, जीतनेवाले दोनों प्रत्याशी राज्यसभा के सांसद ही कहलायेंगे और दोनों की स्थिति में भी कोई अंतर नहीं होगा। अब बात राजनीति की। नंबर वन और नंबर टू में भले ही कोई तकनीकी या वैधानिक अंतर न हो, लेकिन इसका राजनीतिक महत्व तो होगा ही। चूंकि झामुमो के नेतृत्व वाला महागठबंधन सत्ता में है, इसलिए उसके प्रत्याशी का नंबर वन नहीं होना विपक्ष को एक मनोवैज्ञानिक हथियार दे देगा।
यह है पूरा गणित
झारखंड विधानसभा की वर्तमान दलगत स्थिति ऐसी है कि नंबर वन और नंबर टू की यह लड़ाई और भी दिलचस्प हो गयी है। झारखंड विधानसभा में कुल 81 सदस्य निर्वाचित होते हैं और एक सदस्य मनोनीत होता है। इस 82 सदस्यीय विधानसभा में अभी दुमका सीट खाली है। राज्यसभा चुनाव में मनोनीत सदस्य को मतदान का अधिकार नहीं होता है। इस तरह 26 मार्च को कुल 80 सदस्य मतदान करेंगे। चुनाव जीतने के लिए 27 मत की जरूरत होगी, यानी दो प्रत्याशी ही जीत सकेंगे। अब दलगत स्थिति पर नजर डालते हैं। सत्ताधारी गठबंधन के पास अभी कुल 48 सदस्य हैं। इनमें झामुमो के 29, कांग्रेस के 16 और राजद के एक विधायक के अलावा झाविमो के दो बागी विधायक शामिल हैं। भाजपा के पास 25 विधायक हैं और बाबूलाल मरांडी भी उसके पास हैं। इसके अलावा आजसू के दो विधायकों का समर्थन उसे हासिल हो गया है। निर्दलीय सरयू राय और राकांपा के कमलेश सिंह और माले के विनोद सिंह किसका समर्थन करेंगे, यह अभी तक साफ नहीं हुआ है।
अब गणित ऐसा है कि झामुमो के 27 वोट गुरुजी को मिल जायेंगे और वह चुनाव जीत जायेंगे। महागठबंधन के दूसरे उम्मीदवार को जिताने के लिए कांग्रेस के 16 विधायकों के साथ झामुमो के बाकी दो वोट और राजद का एक वोट दिलाना होगा। इसके अलावा प्रदीप यादव और बंधु तिर्की भी कांग्रेस के पक्ष में वोट करेंगे, फिर भी कांग्रेस प्रत्याशी को 21 वोट ही मिल सकेंगे और जीतने के लिए उसे छह और वोटों की जरूरत होगी। यदि यह मान भी लिया जाये कि दो निर्दलीय और राकांपा और माले का एक-एक वोट कांग्रेस को मिल जायेगा, तब भी उसे दो और वोट की जरूरत रहेगी। उधर भाजपा के पास 25 वोट हैं और आजसू के दो वोट उसे मिलेंगे ही, यानी दीपक प्रकाश की जीत तय है। बाबूलाल मरांडी के अलावा दो निर्दलीयों के वोट यदि उन्हें मिल गये, तो उन्हें कुल 30 वोट मिल जायेंगे। उस स्थिति में दीपक प्रकाश नंबर वन बन जायेंगे और गुरुजी को नंबर टू से संतोष करना होगा।
गुरुजी की प्रतिष्ठा और झामुमो का धर्मसंकट
राजनीतिक रूप से यह चुनाव गुरुजी जैसी शख्सियत के लिए बेहद प्रतिष्ठा वाला है। झामुमो के सामने यह धर्मसंकट है। यदि वह अपने संस्थापक की प्रतिष्ठा बचाने की कोशिश करता है, तो उसे गठबंधन धर्म का त्याग करना होगा। और यदि वह गठबंधन धर्म का पालन कर अपने अतिरिक्त वोट कांग्रेस को देता है, तो उसे सत्ता में रहने के बावजूद नंबर टू बनने के लिए विवश होना होगा। यह स्थिति उसकी राजनीतिक सेहत के लिए बहुत अच्छी नहीं रहेगी।
इसलिए झारखंड से राज्यसभा के लिए होनेवाला चुनाव केवल संख्या बल की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा मनोवैज्ञानिक मुकाबला है, जिसे जीतने के लिए राजनीतिक समझ, रणनीतिक कौशल और इस्पात जैसे धैर्य की जरूरत है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मुकाबले में बाजी कौन जीतता है।

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