Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Thursday, June 19
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»Top Story»स्थानीय नीति पर हेमंत सोरेन की साहसिक पहल
    Top Story

    स्थानीय नीति पर हेमंत सोरेन की साहसिक पहल

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskMarch 19, 2020No Comments6 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email

    मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने कार्यकाल के एक सौ दिनों के भीतर स्थानीय नीति को नये सिरे से परिभाषित करने के लिए बहुप्रतीक्षित कदम बढ़ा दिया है और इसके साथ ही झारखंड के स्थापना काल से चला आ रहा यह मुद्दा एक बार फिर चर्चाओं के केंद्र में आ गया है। झारखंड की यह बदनसीबी ही कही जायेगी कि स्थापना के दो दशक बाद भी इसकी अपनी सर्वमान्य स्थानीय नीति नहीं बन सकी है और इसलिए यह भी तय नहीं हो सका है कि असली झारखंडी कौन है। भारत के राजनीतिक इतिहास का यह पहला ऐसा राज्य है, जहां आज तक स्थानीय नीति की सर्वमान्य परिभाषा तय नहीं की जा सकी है। राज्य की स्थापना से लेकर आज तक इस बेहद संवेदनशील और महत्वपूर्ण मुद्दे पर केवल राजनीति ही हुई, जिसका परिणाम तो कुछ नहीं निकला, लेकिन आधा दर्जन लोगों की जान जरूर गयी। इसे झारखंड की विडंबना ही कही जायेगी कि जिनके लिए यह राज्य बना, उन्हें ही अपनी पहचान के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, जबकि दूसरे लोग उनके हक-अधिकार पर कब्जा करते जा रहे हैं। हेमंत सोरेन ने इस मुद्दे का हल करने की दिशा में एक बार फिर पहल की है। इस फैसले के साथ ही उन्होंने झारखंड के सभी राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों के सामने एक बड़ी चुनौती भी पेश की है और यह चुनौती है इस राज्य को स्थानीय नीति के दलदल से बाहर निकालने की। क्या हेमंत सोरेन की इस चुनौती को दूसरे राजनीतिक दल स्वीकार करेंगे और इसका परिणाम क्या होगा, इस पर आजाद सिपाही पॉलिटकल ब्यूरो की खास पेशकश।
    17 मार्च, 2020 को झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया। यह फैसला था राज्य की स्थानीय नीति को नये सिरे से तय करने के लिए समिति बनाने का। इस फैसले की कहानी आज से 18 साल पहले शुरू हुई थी, जब 2002 में राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने झारखंड की स्थानीय नीति को तय करते हुए कहा कि इसका आधार 1932 में तैयार खतियान होगा। इसकी बेहद तीखी प्रतिक्रिया हुई और राज्य भर में हिंसक आंदोलन हुए। 24 जुलाई, 2002 को आधा दर्जन से अधिक लोगों की जान चली गयी और सैकड़ों घायल हुए। डोमिसाइल आंदोलन के नाम से चर्चित उस आंदोलन में अरबों की संपत्ति जल कर राख हो गयी और झारखंड के समाज में एक कभी न मिटनेवाली विभाजक रेखा खिंच गयी। डोमिसाइल आंदोलन के घाव की टीस आज भी झारखंड महसूस करता है। उस डोमिसाइल नीति के कारण बाबूलाल मरांडी की छवि झारखंड के गैर-आदिवासियों के बीच ऐसी बनी, जिससे उनका राजनीतिक कैरियर ही दांव पर लग गया, सरकार गिर गयी, सो अलग।
    बाबूलाल मरांडी की सरकार गिरने के साथ ही डोमिसाइल का मुद्दा ठंडा पड़ने लगा, लेकिन राजनीतिक दलों ने इसकी संवेदनशीलता को पहचान लिया था। तब से लेकर 2016 तक विधानसभा के हर सत्र में यह मुद्दा उठता रहा। सभी राजनीतिक दलों के लिए स्थानीयता या डोमिसाइल एक ऐसा मुद्दा बन गया, जिसके सहारे उनकी राजनीति चलती रही।
    खूब होती रही राजनीति
    राजनीतिक दलों के इस द्वंद्व के बीच झारखंड का आम जन मानस अपनी पहचान के लिए तरसता रहा। जिनके हितों के लिए झारखंड बना था, वे अपने ही घर में बेगाने से होने लगे और बाहर से आये लोग उनके अधिकारों पर कब्जा करते रहे। बेबस झारखंडी अपने सामने ही लुट रहे थे और राजनीतिक दल इस पीड़ा को वोट के रूप में बदल कर अपनी पीठ थपथपा रहे थे। सरकारें बनती रहीं और गिरती रहीं, लेकिन इस संवेदनशील मुद्दे पर केवल राजनीति होती रही।
    दूसरी बार भी आदिवासियों के साथ छल!
    वर्ष 2014 में जब रघुवर दास के नेतृत्व में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी, तो उसने स्थानीय नीति को परिभाषित किया। उस नीति के अनुसार 1986 से पहले इस इलाके में आनेवाले लोगों को झारखंड का स्थायी निवासी माना गया। लेकिन यह नीति झारखंड के उस समाज को अस्वीकार थी, जिसके लिए यह राज्य बना था। इसलिए इसका भी विरोध हुआ और परिणाम यह हुआ कि यह नीति भी कारगर ढंग से लागू नहीं हो सकी। सात अप्रैल, 2016 को कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद 16 अप्रैल को यह नीति प्रभाव में आयी, लेकिन इसने पहले से ही विवादों में घिरे इस मुद्दे को और विवादित बना दिया।
    क्या रही विवाद की वजह
    2016 में लागू की गयी स्थानीयता नीति को लेकर सबसे बड़ा विवाद इसके कट आॅफ डेट को लेकर था। इसका कट आॅफ डेट एक जनवरी, 1986 रखा गया था। यानी इस तारीख तक जो भी झारखंड में आया, उसे झारखंडी माना जाना था। इसका आदिवासी समाज ने पुरजोर विरोध किया। उसका कहना था कि इसका सीधा मतलब यही है कि झारखंड के मूल निवासी, जो सैकड़ों-हजारों साल से इस इलाके में रह रहे हैं, उनके अधिकार पर कुठाराघात। स्वाभाविक तौर पर इसका विरोध हुआ और 2019 के विधानसभा चुनाव में यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना रहा। आदिवासियों ने इस नीति को अपने हितों के प्रतिकूल समझा और इसका परिणाम यह हुआ कि भाजपा की सरकार को उन्होंने सत्ता से उखाड़ फेंका।
    क्यों नहीं सुलझ रहा है मामला
    झारखंड में स्थानीयता की सर्वमान्य परिभाषा आज तक तय नहीं हो सकी है। इसका मूल कारण यह है कि खनिज संपदा से भरपूर इस प्रदेश का देश के दूसरे हिस्से के लोगों ने भरपूर दोहन किया। झारखंडियों के प्रकृति प्रेम की परंपरा को हाशिये पर डाल दिया गया। बाहर से आये लोगों ने यहां के स्वच्छंद और सरल जनजीवन को यहीं के लिए अपरिचित बना दिया। रोजी-रोजगार और उद्योग-धंधों से झारखंडी दूर होते गये। जल-जंगल-जमीन से उन्हें काट दिया गया।
    विस्थापन और पलायन जैसी समस्याएं झारखंडियों के लिए आम हो गयीं और आबादी का यह हिस्सा अपने ही घर में अपरिचित होता गया। जब अलग राज्य बना, तब उनके लिए उनकी पहचान स्थापित करने की राजनीतिक कोशिश हुई। और यहीं बड़ी गलती हो गयी। राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे को अपने-अपने चश्मे से देखना शुरू किया और स्थानीयता की परिभाषा पर वोट की खेती होने लगी।
    हेमंत सोरेन पर है उम्मीदों का बोझ
    2019 के विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत हासिल करने के बाद सत्ता में आये हेमंत सोरेन के लिए स्थानीयता एक अहम मुद्दा है। यह मुद्दा जहां उनकी पहचान और परंपराओं से जुड़ा हुआ है, वहीं झारखंड के करीब एक करोड़ आदिवासियों की उम्मीद भी उन पर टिकी हुई है। इतना ही नहीं, बाहर से आकर इस इलाके को अपना बना चुके लोगों की उम्मीदों का बोझ भी हेमंत सोरेन ढो रहे हैं। उन्होंने स्थानीयता को नये सिरे से परिभाषित करने का जो फैसला किया है, वह उनकी राजनीतिक इच्छाशक्ति और चुनाव में जनता से किये गये वायदे का परिचायक है। उन्होंने यह फैसला कर इस मुद्दे को राजनीति के चंगुल से निकाल कर समाज के सामने रखा है। अब यह सभी राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों के सामने एक चुनौती है कि वे झारखंड की पहचान का सर्वमान्य फॉर्मूला निकाल कर इस प्रदेश को विकास के रास्ते पर आगे ले जाने में कंधे से कंधा मिला कर काम करें।

    Hemant Soren's bold initiative on local policy
    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleसलमान खान संग फिल्म करने के बदले में पूजा हेगड़े ने मांगी 4 गुना फीस
    Next Article रांची में नहीं निकलेगी सरहुल शोभायात्रा
    azad sipahi desk

      Related Posts

      फ्लाईओवर का नामकरण मदरा मुंडा के नाम पर करने की मांग

      June 18, 2025

      पूर्व पार्षद सलाउद्दीन को हाई कोर्ट से मिली अग्रिम जमानत

      June 18, 2025

      झारखंड मंत्रिपरिषद् की बैठक 20 को

      June 18, 2025
      Add A Comment

      Comments are closed.

      Recent Posts
      • फ्लाईओवर का नामकरण मदरा मुंडा के नाम पर करने की मांग
      • पूर्व पार्षद सलाउद्दीन को हाई कोर्ट से मिली अग्रिम जमानत
      • झारखंड मंत्रिपरिषद् की बैठक 20 को
      • राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के साथ प्रशिक्षु अधिकारियों की शिष्टाचार भेंट
      • हिमाचल के लिए केंद्र से 2006 करोड़ रुपये की मंजूरी, जेपी नड्डा ने जताया आभार
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version