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    लॉकडाउन को सफल बनाने चलें गांव की ओर

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskMarch 31, 2020No Comments5 Mins Read
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    आज पूरा देश कोरोना के खिलाफ बड़ी जंग लड़ रहा है। प्रधानमंत्री से लेकर झारखंड के मुख्यमंत्री और दूसरे बड़े नेता इस जंग में मदद की अपील कर चुके हैं। झारखंड के हजारों लोग देश के दूसरे हिस्सों में फंसे हुए हैं और मदद की गुहार लगा रहे हैं। उनकी यथासंभव मदद भी की जा रही है। इधर झारखंड के ग्रामीण इलाकों में भी कई लोग मदद की आस में हैं। इनको न केवल मदद की, बल्कि जागरूक करने की भी जरूरत है। इसलिए अब वक्त आ गया है कि ग्रामीण इलाकों में काम करनेवाले राजनीतिक कार्यकर्ता भी ‘कोरोना फाइटर’ बन जायें और लोगों की मदद करने के साथ उन्हें जागरूक करें। शहरी इलाकों में तो राजनीतिक दल अपनी सामर्थ्य के अनुसार लोगों की मदद कर ही रहे हैं, जरूरत गांवों पर ध्यान देने की है। भारत जैसे गांवों के देश में कोरोना से जंग तब तक नहीं जीती जा सकती, जब तक जमीनी स्तर पर कोरोना के खिलाफ एक सशक्त अभियान न चलाया जाये। और इस बात में कोई संदेह नहीं कि यह अभियान बिना राजनीतिक कार्यकर्ताओं के सक्रिय सहयोग से संभव नहीं हो सकता। इसलिए तमाम राजनीतिक दलों को अपने कार्यकर्ताओं को गांवों में सक्रिय होने के लिए कहा जाये, तो यह जंग जीतना बेहद आसान हो जायेगा। कोरोना से जंग में राजनीतिक कार्यकर्ताओं की भूमिका और महत्व को रेखांकित करती आजाद सिपाही ब्यूरो की रिपोर्ट।

    तीन दिन पुराना वाकया है। रांची के पॉश इलाके कांके रोड में एक राजनीतिक दल के नेता और उनके साथ उनके करीब 10 समर्थक पास की बस्ती में लोगों के बीच खाने का पैकेट बांट रहे थे। तस्वीरें उतारी जा रही थीं और लोग भी खाना पाकर नेता जी का गुणगान कर रहे थे। नेता जी से हमने सवाल किया कि वह बस्ती के भीतर जाकर खाना क्यों नहीं बांटते, तो उनका जवाब था कि उनकी पार्टी का निर्देश केवल शहरी इलाके में ही भोजन बांटने का है। नेता जी के साथ जो कार्यकर्ता थे, वे सभी आसपास के गांवों से आये थे। उनसे जब हमने पूछा कि वे अपने गांव में काम क्यों नहीं करते, तो उन्होंने संसाधनों की कमी की बात कही।
    इस वाकये से यह साफ हो गया है कि कोरोना के कारण पिछले एक सप्ताह से जारी लॉकडाउन के दौरान गांवों का हालचाल लेने कोई नहीं गया है। झारखंड के बड़े और छोटे शहरों में राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता खूब काम कर रहे हैं, लेकिन लगता है कि गांवों की ओर उनका ध्यान अभी तक नहीं गया है। यही कारण है कि गांवों में आज तक लॉकडाउन प्रभावी ढंग से लागू नहीं हो सका है। इन गांवों-टोलों में बाहरी लोगों का प्रवेश तो बंद कर दिया गया है, लेकिन स्थानीय लोग कोरोना महामारी को लेकर कितनी सतर्कता बरत रहे हैं, यह देखने की बात है। गुमला में जहां सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ रही हैं, वहीं इटखोरी में लोग मास्क तक लगाना जरूरी नहीं समझ रहे हैं। सेनिटाइजर का इस्तेमाल और साबुन से हाथ धोने की आदत तो अब तक अधिकांश लोगों को नहीं लगी है।
    झारखंड में सत्तारूढ़ झामुमो, कांग्रेस और राजद के कार्यकर्ता जहां शहरी इलाके में बेहद सक्रिय हैं और जी-जान से जरूरतमंदों की मदद करने में जुटे हैं, वहीं विपक्षी भाजपा की ओर से भी प्रभावी तरीके से जरूरतमंदों के बीच खाना-दवा बांटने का अभियान शुरू किया जा चुका है। लेकिन ये गतिविधियां अब तक शहरी इलाकों तक ही सीमित हैं। आज जरूरत गांवों में राहत कार्य चलाने की है, क्योंकि झारखंड को कोरोना के संक्रमण से बचाने के लिए गांवों को सुरक्षित बनाना बेहद जरूरी है। यह सभी जानते हैं कि झारखंड की स्वास्थ्य सेवाएं उतनी अच्छी नहीं हैं कि इस खतरनाक संक्रमण से पीड़ित सभी व्यक्ति का इलाज किया जा सके। राज्य के पास संसाधन सीमित हैं और स्वाभाविक तौर पर शहरों में रहनेवाली आबादी आसानी से इनका लाभ उठा सकती है, जबकि गांवों के लोगों को अस्पताल तक पहुंचने में वक्त लगता है। चूंकि इस बीमारी का इलाज अब तक नहीं मिल सका है, इसलिए गांवों को बचाना बेहद जरूरी है। यदि यह संक्रमण गांवों तक पहुंच गया, तो स्थिति बेकाबू हो सकती है।
    ऐसे में राजनीतिक दलों की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। चूंकि राजनीतिक कार्यकर्ता अपने इलाके के हर घर से परिचित होते हैं और वहां की जमीनी हकीकत भी वे अच्छी तरह जानते हैं, इसलिए वे इस संक्रमण को रोकने में अधिक कारगर हो सकते हैं। जरूरत केवल उन्हें रास्ता दिखाने की है। दल चाहे कोई भी हो, उसकी विचारधारा चाहे कुछ भी हो, आज सभी को कंधे से कंधा मिला कर चलने की जरूरत है। सरकार और प्रशासन अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रहा है, लेकिन उसे भी एक दायरे में रह कर काम करना होता है। चाहे लॉकडाउन का अनुपालन हो या सोशल डिस्टेंसिंग का, राजनीतिक कार्यकर्ता अपने इलाके के लोगों को अच्छी तरह समझा सकता है और उसे जागरूक बना सकता है। इलाके के लोगों की मुश्किलें और उनकी जरूरतों की जानकारी भी स्थानीय राजनीतिक कार्यकर्ताओं को पहले होती है।
    ऐसे में यदि ये राजनीतिक कार्यकर्ता अपने स्तर से ही समस्या का समाधान कर देंगे, तो फिर जिला या राज्य मुख्यालय पर दबाव नहीं बढ़ेगा। इसलिए अब समय आ गया है, जब तमाम राजनीतिक दल अपने मतभेदों को भुला कर झारखंड के गांवों को कोरोना के संक्रमण से बचाने की मुहिम में जुट जायें। इससे उन्हें दोहरा लाभ मिलेगा। एक तो वे जरूरत के वक्त गांवों के साथ खड़े होने का गौरव हासिल करेंगे और दूसरा, संकट खत्म होने के बाद उनकी लोकप्रियता भी बढ़ेगी। इसलिए राजनीतिक दलों को अपने कार्यकर्ताओं को गांव की ओर चलने का आह्वान करना चाहिए, ताकि झारखंड के गांव बचे रह सकें। ग्रामीण इलाके के अपने कार्यकर्ताओं को संसाधन उपलब्ध करा कर उन्हें सक्रिय करना चाहिए, जिसका तत्काल लाभ दिखाई देने लगेगा। न प्रशासन को सख्ती दिखानी होगी और न लोगों को कोई दिक्कत होगी। ऐसा कर झारखंड पूरी दुनिया के सामने एक मिसाल कायम कर सकेगा कि हम रहते शहरों में हैं, लेकिन हमारी आत्मा आज भी गांवों में बसती है और झारखंड अपनी आत्मा को कभी कोरोना से संक्रमित नहीं होने देगा।

    Let's go to the village to make the lockdown successful
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