25 फरवरी को जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने दीपक प्रकाश को झारखंड प्रदेश इकाई का प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने की घोषणा की, तो तकरीबन चार दशकों से भाजपा के समर्पित सिपाही के तौर पर काम करनेवाले दीपक के रुतबे का प्रकाश अचानक कई गुणा बढ़ गया। फिर चार मार्च को जब उनकी ताजपोशी हुई तो ताज के साथ-साथ उनके हिस्से में जो चुनौतियां आयी हैं, उसका शायद उन्हें बखूबी एहसास भी है। भाजपा पिछले पांच साल तक राज्य में सत्ता में रही, पर अब वह विपक्ष में है। भाजपा मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर जनमुद्दों को कितना स्वर दे पाती है और आनेवाले दिनों में राजनीतिक अवसरों का कितना इस्तेमाल कर पाती है, यह दारोमदार बहुत हद तक प्रदेश अध्यक्ष के रूप में दीपक प्रकाश के कंधों पर होगा। इसी महीने की 26 तारीख को झारखंड की दो राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव होने हैं। राज्य में सत्तासीन महागठबंधन ने दोनों सीटों पर प्रत्याशी देने की घोषणा की है और उसकी कोशिश होगी कि दोनों सीटों उसके खाते में आये। महागठबंधन के दांव को विफल करते हुए भाजपा इनमें से एक सीट पर भी अपने प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित करना चाहेगी। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर दीपक प्रकाश इसके लिए अगर रणनीतिक कौशल दिखा पाये तो बेशक यह बड़ी बात होगी। भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद दीपक प्रकाश के सामने उपस्थित चुनौतियों और उससे निबटने की उनकी क्षमताओं का विश्लेषण करती दयानंद राय की रिपोर्ट।
बड़ी उपलब्धि अपने साथ बड़ी चुनौती भी लेकर आती है। भाजपा के नये प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश को भी ताज के साथ बेशुमार चुनौतियां मिली हैं। चार दशक लंबे पॉलिटिकल करियर में जिन अनुभवों से वे रगे-पगे हैं, उनके आधार पर कहा जा रहा है कि ऐसी चुनौतियों से निपटने का रण-कौशल उनके पास स्वभाविक रूप से है, पर किसी की भी क्षमता की असली परीक्षा तो ‘रणक्षेत्र’ में ही होती है। दीपक प्रकाश ने पार्टी संगठन के भीतर चाहे जितने कौशल का परिचय दिया हो, उनका असल इम्तिहान तो अब है, जब उनके सामने प्रतिद्ंवद्वी पार्टियों के बरक्स भाजपा को आगे ले जाने की चुनौती है।
झारखंड में राजनीतिक परिस्थितियां जिस तेजी से करवट ले रही हैं, उनमें नयी भूमिका की चुनौतियों पर खरा उतरना उनके लिए आसान नहीं है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में जहां उन्हें राज्यसभा चुनाव में कम से कम एक सीट पर पार्टी प्रत्याशी या पार्टी समर्थित प्रत्याशी की जीत की राह आसान करनी है, वहीं भाजपा प्रदेश की नयी कमिटी का गठन करके भाजपा के साथ-साथ और हाल में झाविमो से भाजपा में आये नेताओं-कार्यकर्ताओं की बड़ी फौज की उम्मीदों पर भी खरा उतरना है। वे यदि झाविमो से भाजपा में आये नेताओं और कार्यकर्ताओं को कमिटी के भीतर ज्यादा से ज्यादा एडजस्ट करने की कोशिश करते हैं, तो भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए स्पेस कम होने की गुंजाइश होगी। दूसरी तरफ वह भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता देते हैं, तो झाविमो से आये नेताओं और कार्यकर्ताओं के रूठने का खतरा है। हालांकि उनके निर्णयों में किसी किस्म की चूक हो, इसकी संभावना कम है। दीपक प्रकाश के सामने तीसरी बड़ी चुनौती हेमंत सोरेन के दुमका सीट हेमंत सोरेन के खाली करने के बाद वहां होनेवाले उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार की जीत तय करने की रणनीति बनाना है। हेमंत इस सीट से अपने भाई बसंत सोरेन को उम्मीदवार बना सकते हैें। झारखंड भाजपा का मुखिया होने के नाते दीपक को महागठबंधन सरकार की खामियों को भी उजागर करने में भूमिका निभानी है।
चुनौतियों को अवसर के रूप में लेते हैं दीपक प्रकाश
दो मार्च को दिये गये एक इंटरव्यू में दीपक प्रकाश ने कहा कि वे चुनौतियों को अवसर के रूप में लेते हैं। पार्टी के शीर्ष नेताओं के साथ मुझे काम करने का अवसर मिला है। इन नेताओं के मार्गदर्शन और पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं की बदौलत पार्टी का जनाधार बढ़ायेंगे। झारखंड में विपक्ष की भूमिका का निर्वाह सकारात्मक और रचनात्मक तरीके से करेंगे। इस इंटरव्यू में उन्होंने साफ किया कि वे पार्टी की होली के बाद गठित होनेवाले नई कार्यसमिति का गठन वरिष्ठ नेताओं की सलाह से करेंगे। दीपक प्रकाश के इस बयान से साफ हो जाता है कि न सिर्फ उन्हें अपने सामने आनेवाली चुनौतियों का अंदाजा है, बल्कि इससे कैसे निबटना है इसका भी ब्लू प्रिंट उन्होंने कमोबेश तैयार कर लिया है।
अनुभव और व्यवहार कुशलता है प्लस प्वाइंट
झारखंड की राजनीति के जानकारों का कहना है कि प्रदेश अध्यक्ष के पद पर ताजपोशी के साथ दीपक प्रकाश के सामने जो चुनौतियां आयेंगी, उनसे निपटने में वे सक्षम हैं। मृदुभाषी स्वभाव के दीपक प्रकाश 1973 से आरएसएस के सदस्य रहे हैं, इसलिए संघ परिवार का भी उन्हें सहज स्रेह प्राप्त है। पार्टी की प्रदेश कार्यसमिति के गठन में उन्हें मुश्किल इसलिए नहीं होगी, क्योंकि वे लंबे समय से भाजपा के साथ रहे हैं और पार्टी के लगभग हर कार्यकर्ता और नेता को वे जानते हैं। प्रदेश कार्यसमिति के गठन में उन्हें बाबूलाल मरांडी और अर्जुन मुंडा के साथ रघुवर दास और लक्ष्मण गिलुआ सरीखे नेताओं का भी सहयोग मिलेगा। वे भाजपा के साथ झाविमो के कार्यकर्ताओं और नेताओं की महत्वाकांक्षा और उनके कार्यों से वाकिफ हैं, इसलिए योग्य उम्मीदवार को उसके योग्य पद और सम्मान देने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं आयेगी। जहां तक राज्यसभा चुनाव का सवाल है, तो राजनीति के गलियारे में चर्चा है कि पार्टी रघुवर दास या स्वयं उन्हें राज्यसभा चुनाव में उम्मीदवार बना सकती है। यदि पार्टी उन्हें राज्यसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाती है, तो उनके सामने आजसू से राज्यसभा चुनाव में समर्थन के लिए संवाद स्थापित करने और निर्दलीय विधायकों को भी भाजपा के साथ लाने की चुनौती आयेगी। महागठबंधन जिस तरह से झारखंड की दोनों राज्यसभा सीटों में जीत की रणनीति तय करने में लगा हुआ है, वैसे में यह काम दीपक प्रकाश के लिए खासा मुश्किल होगा। पर यदि रणनीति के तहत उन्होंने काम किया, तो यह टफ टास्क भी उनके लिए आसान हो जायेगा। रही बात दुमका सीट पर उपचुनाव की, तो यहां भी उनके सामने बहुत दिक्कत नहीं आयेगी। बीते विधानसभा चुनाव में महत्वपूर्ण जिम्मेवारी का निर्वहन करने के कारण यह काम भी वे आसानी से कर लेंगे, इसकी संभावना अधिक है। उनके सामने एक अन्य जिम्मेदारी पार्टी को वर्ष 2024 में होनेवाले विधानसभा चुनाव के लिए तैयार करने की भी होगी।