विशेष
-राजस्थान में वसुंधरा राजे को साधा, तो बिहार में कुशवाहा समाज को
-दूरगामी रणनीति के तहत किया गया है दिल्ली-ओड़िशा में बदलाव
दो दिन पहले भारतीय जनता पार्टी ने राजस्थान और बिहार समेत चार राज्यों में नये प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किये। इनमें से राजस्थान में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं। इसलिए इस बदलाव को आगामी लोकसभा और इस साल कुछ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी का बड़ा दांव माना जा रहा है। इस बदलाव को करते हुए पार्टी ने सभी राजनीतिक नफा-नुकसान को ध्यान में रखा है। दरअसल भाजपा ने 2024 के आम चुनाव को ध्यान में तो रखा ही है, साथ ही राजस्थान की सत्ता को दोबारा हासिल करने के लिए अपना सब कुछ झोंकने को तैयार है। लेकिन वसुंधरा राजे और सतीश पूनिया के बीच में फंसी पार्टी के लिए राह मुश्किल दिख रही थी। इसी कारण से भाजपा ने पूनिया को हटा कर दिग्गज ब्राह्मण नेता सीपी जोशी पर दांव लगाया है, जिससे वसुंधरा खेमे को साधने में उसे सफलता हासिल हो गयी है। उधर बिहार में डॉ संजय जायसवाल के स्थान पर सम्राट चौधरी को कमान सौंप कर भाजपा ने राज्य के कुशवाहा समाज को अपनी तरफ खींचने की योजना पर एक बड़ा कदम उठाया है। इसके अलावा भाजपा ने ओड़िशा और दिल्ली के प्रदेश अध्यक्षों को बदल कर अपने मिशन 2024 के लक्ष्यों को साधने की दिशा में कदम बढ़ाया है। आखिर भाजपा को इन चार प्रदेश अध्यक्षों को बदलने की जरूरत क्यों हुई और आगामी चुनावों में इस बदलाव का क्या असर पड़ेगा, यह जानना दिलचस्प हो सकता है। क्या है इसके पीछे भाजपा का पूरा गेमप्लान, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
करीब एक साल बाद होनेवाले लोकसभा चुनाव और इस साल कुछ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी ने चार राज्यों में महत्वपूर्ण संगठनात्मक बदलाव किये। इसके तहत पार्टी ने बिहार विधान परिषद में पार्टी के नेता सम्राट चौधरी को बिहार इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया, जबकि चित्तौड़गढ़ से सांसद सीपी जोशी को भाजपा की राजस्थान इकाई की जिम्मेदारी सौंपी गयी। इनके अलावा दिल्ली भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा को प्रोन्नत करते हुए प्रदेश इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया गया और ओड़िशा के पूर्व मंत्री और वरिष्ठ नेता मनमोहन सामल को राज्य इकाई के अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गयी है। यहां बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि आखिर भाजपा को इस समय यह बदलाव करने की जरूरत क्यों महसूस हुई। इस बदलाव के पीछे उसका कोई खास गेमप्लान है या फिर महज बदलाव के लिए ही यह सब किया गया है।
इन सवालों को जानने से पहले भाजपा की संगठनात्मक कार्यप्रणाली को जानना जरूरी है। अब यह साफ हो चुका है कि दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी का कोई भी फैसला अकारण नहीं लिया जाता। पीएम मोदी, अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा पार्टी का हर कदम सोच-विचार कर उठाते हैं। इसलिए पार्टी आज लगभग अपराजेय स्थिति में आ चुकी है।
राजस्थान में बदलाव के पीछे प्लान 2023
बात शुरू करते हैं राजस्थान से, जहां इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं। पिछले चुनाव में यहां भाजपा को सत्ता गंवानी पड़ी थी, लेकिन इस बार पार्टी कोई रिस्क लेना नहीं चाहती। कांग्रेस के भीतर जारी गहलोत बनाम सचिन पायलट की कलह का फायदा उठाने के क्रम में भाजपा को सहसा महसूस हुआ कि उसके भीतर की स्थिति भी लगभग वैसी ही है। वसुंधरा राजे बनाम प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया की दुश्मनी कहीं इस बार भी पार्टी को भारी न पड़ जाये। इसलिए पार्टी नेतृत्व में चित्तौड़गढ़ के सांसद सीपी जोशी को कमान सौंपने का फैसला किया। ब्राह्मण समाज से ताल्लुक रखने वाले सीपी जोशी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में भारी मतों से जीत दर्ज की और दूसरी बार संसद पहुंचे। वह प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कितने कारगर साबित होंगे, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकी नियुक्ति का सतीश पूनिया और वसुंधरा राजे, दोनों ने स्वागत किया है। पूनिया ने जोशी को बधाई देते हुए कहा, हम सब कृतसंकल्प हैं कि मिल कर 2023 में राजस्थान को कांग्रेस मुक्त बना कर भाजपा की बहुमत की सरकार बनायेंगे। उन्होंने आभार जताया कि उनके जैसे साधारण, किसान के घर में जन्मे एक कार्यकर्ता को तीन वर्षों तक जिम्मेदारी देकर पार्टी ने उन्हें सम्मान दिया। उन्होंने कहा कि इन तीन वर्षों में संगठनात्मक रचना और आंदोलन द्वारा पार्टी को पूरी ताकत से धरातल पर सक्रिय करने में योगदान दे पाया। एक कार्यकर्ता के रूप में पार्टी के निर्देशानुसार जीवनपर्यंत काम करता रहूंगा। पूनिया ने कहा कि उनके कार्यकाल में सदन से लेकर सड़क तक भाजपा ने विपक्ष की भूमिका का निर्वहन ईमानदारी से किया और आज भाजपा राजस्थान में धरातल पर 50 हजार बूथों तक पहुंची है। वसुंधरा राजे ने भी सीपी जोशी को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किये जाने पर बधाई दी और उनके कार्यकाल की सफलता के लिए शुभकामनाएं दीं। जोशी कभी राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बेहद करीबी माने जाते थे। हालांकि उनके बारे में पार्टी के एक वर्ग का मानना है कि वह राजस्थान में भाजपा के किसी गुट के नहीं हैं। बता दें कि पूनिया के वसुंधरा से कभी अच्छे संबंध नहीं रहे। राजस्थान में इसी साल विधानसभा के चुनाव होने हैं। प्रदेश भाजपा के एक नेता ने कहा कि उनकी नियुक्ति इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे गुलाब चंद कटारिया को राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया है, लिहाजा, उदयपुर संभाग में उनकी कमी को पूरा करने के लिए भाजपा को एक मजबूत नेता की जरूरत है, ताकि आगामी चुनावों में पार्टी को इन क्षेत्रों में कोई नुकसान ना हो।
बिहार में कुशवाहा समाज को संदेश
भाजपा ने बिहार प्रदेश की कमान सम्राट चौधरी के हाथों में सौंपी है। उन्हें वैश्य समाज से आनेवाले डॉ संजय जायसवाल के स्थान पर नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। कुशवाहा (अन्य पिछड़ा वर्ग) समाज से आनेवाले सम्राट चौधरी बिहार के दिग्गज नेता रहे शकुनी चौधरी के पुत्र हैं। शकुनी चौधरी सात बार विधायक रहे हैं। जायसवाल ने नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष को बधाई दी और विश्वास व्यक्त किया कि उनके नेतृत्व में निश्चित ही संगठन नयी बुलंदियों को प्राप्त करेगा। सम्राट चौधरी बिहार भाजपा के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। वह 1999 में कृषि मंत्री और 2014 में शहरी विकास और आवास विभाग के मंत्री की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं। चौधरी 54 वर्ष के हैं और 2018 में भाजपा में शामिल होने के बाद उनके कद में लगातार इजाफा हुआ है। कभी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के करीबी रहे सम्राट चौधरी ने वर्ष 2014 में राजद छोड़ कर जदयू का दामन थाम लिया था। इसके बाद वह भाजपा में आये थे। उनकी नियुक्ति कर भाजपा ने एक तीर से दो शिकार किया है। एक तरफ तो उसने राज्य में करीब पांच प्रतिशत कुशवाहा आबादी को अपनी तरफ खींचने की कोशिश की है और दूसरी तरफ नीतीश कुमार से हाल ही में अलग हुए उपेंद्र कुशवाहा को साफ संदेश दे दिया है कि भाजपा उनके किसी झांसे में नहीं आनेवाली है। इसके अलावा राजद और जदयू में सम्राट चौधरी के संपर्कों को भी भाजपा अपना हथियार बनाना चाहती है, ताकि समय आने पर नीतीश कुमार को सामने से चुनौती दी जा सके।
दिल्ली-ओड़िशा में बदलाव के पीछे खास प्लान
भाजपा ने दिल्ली और ओड़िशा में भी नये प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति की है। वीरेंद्र सचदेवा को दिल्ली और मनमोहन सामल को ओड़िशा की कमान सौंपी गयी है। सचदेव को पिछले साल दिसंबर में दिल्ली भाजपा का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था। उन्होंने आदेश गुप्ता की जगह ली थी। कार्यकारी अध्यक्ष का पद संभालने के बाद सचदेवा दिल्ली में बेहद सक्रिय रहे और उन्होंने केजरीवाल सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भाजपा नेताओं के मुताबिक पंजाबी समुदाय से आने वाले सचदेवा को उनके कार्य का इनाम दिया गया है। इतना ही नहीं, पंजाब की वर्तमान राजनीतिक स्थिति और दिल्ली के पंजाबी मतदाताओं को भी ध्यान में रखा गया है। सचदेव के बारे में कहा जाता है कि वह संगठन की हरेक कमजोरी को अच्छी तरह जानते हैं और बूथ मैनेजमेंट में माहिर हैं। मनमोहन सामल को ओड़िशा का प्रदेश अध्यक्ष बना कर भाजपा ने 2024 पर ध्यान लगाया है। वह समीर मोहंती का स्थान लेंगे। प्रदेश अध्यक्ष के रूप में मोहंती का तीन साल का कार्यकाल इसी साल जनवरी में समाप्त हुआ था। सामल पूर्व में भी प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। वह प्रदेश सरकार में राजस्व मंत्री और राज्यसभा के सदस्य भी रह चुके हैं। संगठन के कार्यों में उनकी कुशलता और लोक संपर्क के मोर्चे पर उनकी विशेषज्ञता का पार्टी लाभ उठाना चाहती है।