पटना। राज्यपाल डाॅ. राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने शनिवार को राजधानी पटना में आयोजित चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते कहा कि साहित्य समाज को दिशा देने वाली होनी चाहिए। साहित्य समाज का दर्पण होता है। साहित्य के माध्यम से हम कई बातों को समाज के समक्ष रोचक ढंग से प्रस्तुत करते हैं। हमारे प्राचीन साहित्य में हमारी भावनाओं का प्रकटीकरण होता है और उसके आलोक में हम एक दिशा पाते हैं।

राज्यपाल ने कहा कि साहित्य पढ़कर समाज जागृत होता है। भारत में ऐसे कई साहित्य रचे गए हैं जो हमारे मन के तार को झंकृत कर देते हैं। दुर्भाग्य से गुलामी के कालखंड के बाद हम ऐसे साहित्य की रचना नहीं कर पाए। अपनी जड़ों से कटे रहने के कारण राजनैतिक स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी हम अपना मार्ग ढूंढ़ रहे हैं जबकि स्वतंत्रता के बाद पूरा विश्व हमारे ओर आशा की निगाह से देख रहा था लेकिन हमने उस अवसर का उपयोग नहीं किया। इतने दिनों बाद जागरण का अवसर आया है और हम सब उसके साक्षी बन रहे हैं।

राज्यपाल ने कहा कि मनोरंजन के लिए साहित्य लिखना और समाज प्रबोधन के लिए साहित्य लिखना अलग-अलग बातें हैं। भारतीय मनीषियों ने मनोरंजक ढंग से समाज प्रबोधन के लिए साहित्य रचा। वीर सावरकर ने ‘संन्यस्त खड़्ग’ की रचना की।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने ‘स्व’ की चर्चा करते हुए कहा कि ‘स्व’ के आधार पर ही व्यवस्थाएं बननी चाहिए। इसी में ‘स्वभाषा’ भी है। कोई भी स्वतंत्र देश अपनी प्रकृति के अनुसार अपनी व्यवस्थाएं बनाता है। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से स्वतंत्रता के बाद हमने अपनी प्रकृति के अनुरूप अपनी व्यवस्था नहीं बनाई। यह साहित्य में भी दिखा। फलतः देश में स्खलन का दौर शुरू हुआ। भारत के मौलिक बातों को आघात करने वाले साहित्य भी रचे गए। आपस में जोड़ने वाले साहित्य की रचना करनी चाहिए। मनोरंजन का पर्याय फूहड़ता नहीं होता।

कार्यक्रम की अध्यक्षता भारतीय रिजर्व बैंक के सेवानिवृत पदाधिकारी राजकुमार सिन्हा ने की। मंच पर इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय संगठन मंत्री डाॅ. बालमुकुंद, विश्व संवाद केंद्र के अध्यक्ष श्रीप्रकाश नारायण सिंह, कार्यक्रम के संयोजक प्रो. राजेंद्र प्रसाद गुप्ता एवं कार्यक्रम के स्वागताध्यक्ष प्रो. अमरनाथ सिन्हा उपस्थित थे।

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