-पहचान के प्रति आश्वस्त होने के लिए उठ रही मांग: हेमंत सोरेन
-मुख्यमंत्री ने बताया क्यों जरूरी है सरना धर्म कोड
-केंद्र को प्रस्ताव भेजने के लिए मांगी सहमति
आजाद सिपाही संवाददाता
रांची। झारखंड विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है। सत्र के 13वें दिन सोमवार को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विधानसभा सदन में एक बार फिर सरना धर्म कोड की मांग को लेकर प्रस्ताव पेश किया। इस दौरान मुख्यमंत्री ने सरना धर्म कोड का महत्व और राज्य के आदिवासी समुदाय की लगातार उठती मांग का हवाला देते हुए, यह प्रस्ताव केंद्र को भेजने के लिए सदन से सहमति मांगी। हेमंत सोरेन ने कहा कि हमारा राज्य आदिवासी बहुल राज्य है। आदिवासी सरना समुदाय पिछले कई वर्षों से सरना धर्म कोड की मांग को लेकर संघर्ष कर रहा है। आज सरना धर्म कोड की मांग इसलिए भी उठी है, क्योंकि वह अपनी पहचान के प्रति आश्वस्त हो सकें। आदिवासी सरना धर्म की घटती जनसंख्या बड़ा सवाल है।
कब कितनी थी आदिवासियों की जनसंख्या:
हेमंत सोरेन ने सदन में बताया कि आदिवासियों की जनसंख्या क्यों कम हो रही है। 1931 से 2011 के आदिवासी जनसंख्या के विश्लेषण से यह पता चलता है पिछले आठ दशकों में 38.03 से घट कर 26.02 प्रतिशत हो गयी। इसमें 12 प्रतिशत की कमी आयी है, जो गंभीर सवाल है। प्रत्येक वर्ष झारखंड की आबादी की अन्य समुदाय से आदिवासी की दर काफी कम है। 1931 से 1941 के बीच आदिवासी आबादी की वृद्धि दर 13.76 है, वहीं अन्य समुदाय की वृद्धि दर 11.13 है। सन 1951 से 1961 के आंकड़े पर गौर करें तो यह आदिवासी की वृद्धि दर 12.71 प्रतिशत है, वही गैर आदिवासी की वृद्धि दर 23.62 प्रतिशत है। 1961 से 1971 के बीच आदिवासियों की वृद्धि दर 15.89 प्रतिशत है, वहीं गैर आदिवासी की वृद्धि दर 26.01 प्रतिशत है। 1971 से 1981 के बीच आदिवासी की वृद्धि दर 16.77 प्रतिशत, वहीं गैर आदिवासी की वृद्धि दर 27.11 प्रतिशत ।1981 से 1991 के बीच आदिवासी की वृद्धि दर 13.41, वही ंगैर आदिवासी समुदाय की वृद्धि दर 28.67 प्रतिशत है। 1991 से 2001 के बीच आदिवासी की वृद्धि दर 17.19, वहीं गैर आदिवासी की वृद्धि दर 25.65 प्रतिशत है।
इस कमी की क्या है वजह
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि जनगणना का समय प्रत्येक दस वर्ष में 9 फरवरी से 28 फरवरी के बीच होता है। यह खाली समय है, जब आदिवासी अपने कार्य से मुक्त होकर बरसात के बाद दूसरे राज्य पलायन कर जाते हैं। ऐसे लोगों की गणना नहीं हो पाती है। वैसे आदिवासियों की गणना सामान्य जाति के रूप में हो जाती है। आदिवासी जनसंख्या की गिरावट की वजह योजना पर पड़ने वाला प्रभाव भी है। जनगणना योजना के साथ- साथ पांचवीं अनुसूची के कई ऐसे जिलों को हटाने की भी मांग होती है, जहां आदिवासी की जनसंख्या में कमी आयी है। जनसंख्या में आयी कमी आदिवासी को मिलनेवाले संवैधानिक अधिकार को प्रभावित करेगा। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन धर्म के इतर अलग सरना कोड आवश्यक है। इसके अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे। इससे आदिवासियों की जनगणना सही हो सकेगी, उनके अधिकारों की रक्षा होगी। योजना, परियोजना का लाभ भी आदिवासियों को मिल सकेगा। आदिवासी की भाषा, जीवन शैली और इतिहास का संरक्षण होगा।
1961 में आदिवासियों का अलग धर्म कोड था:
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सदन में कहा कि सरना कोड आदिवासी समुदाय के विकास के लिए आवश्यक है। वर्ष 1871 से 1951 तक जनगणना में आदिवासी में अलग धर्म कोड था। वर्ष 1961 से 62 की जनगणना से इसे हटा दिया गया। 2011 की जनगणना में देश के 21 राज्य में रहनेवाले लगभग 50 लाख आदिवासी ने सरना धर्म बताया है। झारखंड में रहनेवाले लोग भी वर्षों से इसकी मांग करते रहे हैं। सरकार से ज्ञापन, आवेदन भेज कर मांग की है। उन्होंने विधानसभा से केंद्र को प्रस्ताव भेजने का समर्थन मांगा।