Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Monday, May 19
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»देश»एक देश एक चुनाव: लोकसभा के साथ ही हों विधानसभाओं के चुनाव, संवैधानिक बदलाव के लिए आधे राज्यों से अनुमति लेने की सिफारिश
    देश

    एक देश एक चुनाव: लोकसभा के साथ ही हों विधानसभाओं के चुनाव, संवैधानिक बदलाव के लिए आधे राज्यों से अनुमति लेने की सिफारिश

    adminBy adminMarch 14, 2024No Comments5 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email

    – पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति ने राष्ट्रपति को सौंपी रिपोर्ट

    – विधान सभाओं के चुनाव कराने के सौ दिनों के भीतर कराए जाएं नगरपालिकाओं और पंचायतों के चुनाव

    – इन सभी चुनावों के लिए एक ही मतदाता सूची का उपयोग किए जाने की सिफारिश

    नई दिल्ली। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द की अध्यक्षता में केन्द्र और राज्यों में एक साथ चुनाव कराने संबंधित सिफारिशें देने के लिए गठित उच्च स्तरीय समिति ने आज अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी। इसमें सिफारिश की गई है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल पांच साल का हो और किसी कारण से सरकार नहीं बन पाने या सरकार नहीं चल पाने की स्थिति में दोबारा चुनाव केवल बाकी बचे समय के लिए हो।

    रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी सुझावों और दृष्टिकोणों पर सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद समिति एक साथ चुनाव कराने के लिए दो-चरणीय व्यवस्था की सिफारिश करती है। पहले चरण के रूप में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराए जाएंगे। दूसरे चरण में नगरपालिकाओं और पंचायतों के चुनाव लोक सभा और राज्य विधान सभाओं के चुनाव कराने के सौ दिनों के भीतर कराए जायें। इसके लिए होने वाले संवैधानिक बदलाव के लिए कम से कम आधे राज्यों के समर्थन की आवश्यकता होगी।

    समिति ने सिफारिश की है कि सरकार के सभी तीनों स्तरों के निर्वाचनों में प्रयोग के लिए एक ही निर्वाचक नामावली और निर्वाचक फोटो पहचान पत्र (ईपीआईसी) होने चाहिए। इन संशोधनों के लिए कम से कम आधे राज्यों की सहमति की आवश्यकता होगी।

    समिति का कहना है कि त्रिशंकु सदन, अविश्वास प्रस्ताव या ऐसी किसी घटना की स्थिति में लोक सभा के समाप्त न हुए कार्यकाल के लिए नई लोक सभा या राज्य विधान सभा के गठन के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जाने चाहिए। समिति की सिफारिश है कि साजो-सामान संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भारत का चुनाव आयोग राज्य चुनाव आयोगों के परामर्श से पहले से योजना बनाएगा और अनुमान लगाएगा और जनशक्ति, मतदान कर्मियों, सुरक्षा बलों, ईवीएम व वीवीपीएटी आदि की तैनाती के लिए कदम उठाएगा। ताकि एक साथ सरकार के तीनों स्तरों पर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित हों।

    समिति का मानना है कि एक साथ चुनाव मतदाताओं की पारदर्शिता, समावेशिता, सहजता और विश्वास को बढ़ाएंगी। एक साथ चुनाव कराने के लिए भारी समर्थन विकास प्रक्रिया और सामाजिक सामंजस्य को प्रोत्साहित करेगा, लोकतांत्रिक ढांचे की नींव को मजबूत करेगा और भारत की आकांक्षाओं को साकार करेगा।

    पैनल ने कहा कि सभी चुनावों को एक साथ कराने के लिए एक बार का अस्थायी उपाय आवश्यक होगा। आम चुनावों के बाद लोकसभा का गठन किया जाएगा और राष्ट्रपति पहली बैठक की उसी तारीख को अधिसूचना द्वारा परिवर्तन के प्रावधानों को लागू करेंगी। यह तिथि नियत तिथि कहलाएगी। एक बार प्रावधान लागू हो जाते हैं, तो नियत तिथि के बाद किसी भी चुनाव में गठित सभी विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति पर समाप्त हो जाएगा। भले ही विधानसभा का गठन कब हुआ हो।

    पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द की अध्यक्षता में गठित समकालिक चुनावों पर उच्च स्तरीय समिति ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की और अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। 18,626 पृष्ठों वाली रिपोर्ट, 2 सितंबर को अपने गठन के बाद से 191 दिनों के हितधारकों और विशेषज्ञों के साथ व्यापक परामर्श और अनुसंधान कार्य का परिणाम है।

    समिति के अन्य सदस्यों में केंद्रीय गृह मंत्री और सहकारिता मंत्री अमित शाह, राज्यसभा में पूर्व नेता विपक्ष गुलाम नबी आजाद, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ सुभाष सी. कश्यप, हरीश साल्वे, और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी और विधि एवं न्याय मंत्रालय में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल विशेष आमंत्रित थे। उच्च स्तरीय समिति के सचिव डॉ. नितेन चन्द्र थे।

    समिति ने विभिन्न हितधारकों के विचारों को समझने के लिए व्यापक परामर्श किया। 47 राजनीतिक दलों ने अपने विचार और सुझाव प्रस्तुत किए, जिनमें से 32 ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया। कई राजनीतिक दलों ने इस मामले पर एचएलसी के साथ व्यापक चर्चा की थी। सभी राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों के समाचार पत्रों में प्रकाशित सार्वजनिक सूचना के उत्तर में पूरे भारत के नागरिकों से 21,558 प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई थीं। 80 फीसदी लोगों ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया। समिति द्वारा विधि विशेषज्ञों, जैसे भारत के चार पूर्व मुख्य न्यायाधीशों और प्रमुख उच्च न्यायालयों के बारह पूर्व मुख्य न्यायाधीशों, भारत के चार पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्तों, आठ राज्य निर्वाचन आयुक्तों और भारत के विधि आयोग के अध्यक्ष को व्यक्तिगत रूप से बातचीत के लिए आमंत्रित किया गया था। भारत निर्वाचन आयोग से भी विचार मांगे गए थे।

    सीआईआई, फिक्की और एसोचैम जैसे शीर्ष व्यापारिक संगठनों और प्रख्यात अर्थशास्त्रियों से भी पृथक चुनावों के आर्थिक नतीजों पर अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए परामर्श किया गया था। उन्होंने मुद्रास्फीति को बढ़ावा देने और अर्थव्यवस्था को धीमा करने पर पृथक चुनावों के प्रभाव के कारण एक साथ चुनाव की आर्थिक अनिवार्यता की वकालत की। इन निकायों द्वारा समिति को जानकारी दी गई कि बीच-बीच में होने वाले चुनावों का सामाजिक सौहार्द्र बिगाड़ने के अलावा आर्थिक विकास, सार्वजनिक व्यय की गुणवत्ता, शैक्षिक और अन्य परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleमहाराष्ट्र सरकार को 1601 करोड़ रुपये में मिला एयर इंडिया की इमारत का मालिकाना हक
    Next Article नेपाल के विदेश मंत्री ने माना- रूसी सेना में भर्ती नेपाली नागरिकों को वापस लाना असंभव
    admin

      Related Posts

      मारा गया लश्कर-ए-तैयबा का डिप्टी चीफ सैफुल्लाह खालिद, भारत में कई आतंकी हमलों का था मास्टर माइंड

      May 18, 2025

      भारत-पाक संघर्ष के समय आइएसआइ के संपर्क में थी ज्योति मल्होत्रा

      May 18, 2025

      कंगाल पाकिस्तान को कर्ज देकर टेंशन में आया IMF, लगाई 11 शर्तें

      May 18, 2025
      Add A Comment

      Comments are closed.

      Recent Posts
      • मारा गया लश्कर-ए-तैयबा का डिप्टी चीफ सैफुल्लाह खालिद, भारत में कई आतंकी हमलों का था मास्टर माइंड
      • भारत-पाक संघर्ष के समय आइएसआइ के संपर्क में थी ज्योति मल्होत्रा
      • मोरहाबादी स्टेज को ध्वस्त करने का कारण बताये राज्य सरकार : प्रतुल शाहदेव
      • मंईयां सम्मान योजना महज दिखावा : सुदेश
      • JSCA के नए अध्यक्ष बने अजय नाथ शाहदेव, सौरभ तिवारी सचिव चुने गए
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version