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    Home»Top Story»इस साल भी झमाझम बरसेगा मानसून
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    इस साल भी झमाझम बरसेगा मानसून

    आजाद सिपाहीBy आजाद सिपाहीApril 18, 2017No Comments5 Mins Read
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    देश में इस साल भी मानसून सामान्य रहेगा। मौसम विभाग ने दक्षिण पश्चिमी मानसून का दीर्घावधि पूर्वानुमान जारी करते हुए कहा कि जून-सितंबर के चार महीनों में सामान्य बारिश होगी। पिछले साल भी मानसून सामान्य रहा था। लगातार दूसरे साल सामान्य मानसून से कृषि एवं अर्थव्यवस्था में प्रगति होगी।

    मौसम विभाग के महानिदेशक डा. के. जे. रमेश ने मंगलवार को यहां प्रेस कांफ्रेस में मानसून का पूर्वानुमान जारी किया। उन्होंने कहा कि मानसून बारिश सामान्य के 96 फीसदी होगी जो मौसम विभाग के मानकों के अनुसार सामान्य बारिश ही है। रमेश ने कहा कि लगातार दूसरे साल सामान्य मानूसन की सूचना देश की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी सूचना है।
    मानसून के चार महीनों जून-सितंबर के बीच मानसून की औसत बारिश 890 मिलीमीटर होती है। इस बार यह 96 फीसदी होगी तो जिसका मतलब यह है कि बारिश 854 मिलीमीटर बारिश होगी। 96 से लेकर 104 फीसदी बारिश को सामान्य मानसून माना जाता है।

    रमेश ने कहा कि इस पूर्वानुमान में पांच अंकों की मॉडलीय त्रुटि हो सकती है। यानी बारिश 101 फीसदी भी हो सकती है तथा 91 फीसदी भी रह सकती है। लेकिन उन्होंने कहा कि मानसून सामान्य रहने की संभावना सबसे ज्यादा 38 फीसदी है। दूसरे, बारिश का वितरण भी पिछले साल की तुलना में अच्छा रहने की उम्मीद है। लेकिन इसको लेकर मौसम विभाग जून में अलग से एक और पूर्वानुमान जारी करेगा।

    अल नीनो की आशंका क्षीण
    मौसम विभाग के अनुसार प्रशांत महासागर में मानसून को प्रभावित करने वाले अलनीनो बनने की संभावना क्षीण है। पहले यह पूर्वानुमान था कि जुलाई अंत तक अलनीनो विकसित हो सकता है। इसकी संभावना 50 फीसदी थी। लेकिन नए पूर्वानुमान के अनुसार अलनीनो बनने की संभावना महज 30 फीसदी रह गई है। दूसरे, यह जुलाई की बजाय अगस्त के अंत और सितंबर के शुरू में विकसित हो सकते हैं। तब तक देश में ज्यादातर मानसूनी बारिश हो चुकी होती है। इसलिए अलनीनो को लेकर विभाग काफी हद तक निश्चित है।

    पांच मॉडलों का इस्तेमाल
    मानसून के पूर्वानुमान में पांच मॉडलों का इस्तेमाल किया गया है। इनमें उत्तरी अटलांटिक और उत्तरी प्रशांत महासागर के मध्य समुद्र सतह का तापमान, भूमध्यरेखीय दक्षिणी हिंद महासागर का तापमान, पूर्व एशिया में औसत समुद्र स्तर दबाव, उत्तर-पश्चिमी यूरोप भूमि सतह वायु तापमान तथा भूमध्यरेखीय प्रशांत उष्ण जल परिमाण शामिल हैं।

    मानसून सामान्य रहने का मतलब
    मानसून के दौरान 890 मिमी बारिश होती है। इस बार 854 मिमी होने का अनुमान है। यह आंकड़ा भी सामान्य के दायरे में आता है। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार इतनी बारिश यदि होती है तो वह कृषि और नदियों, जलाशयों के लिए काफी है। बस, उम्मीद यह की जानी चाहिए कि देश के सभी हिस्सों में बारिश का वितरण एक समान हो। सामान्य बारिश से तात्पर्य यह भी है कि देश सूखे की चपेट में नहीं आ रहा।

    सामान्य मानसून के कई फायदे
    -देश में आधी से अधिक खेती-बाड़ी मानसूनी बारिश पर निर्भर है। इसलिए अच्छी बारिश होगी तो किसानों की खेती अच्छी होगी। जहां सिंचाई के साधन हैं भी तो मानसूनी बारिश होने से किसानों को फायदा होता है। उन्हें ट्यूबवेल नहीं चलाने पड़ते हैं। डीजल और बिजली का खर्च बचता है। खेती की लागत घटती है।
    बिजली संकट नहीं होगा-मानसूनी बारिश अच्छी होती है तो नदियों, जलाशयों में पानी भर जाता है। इससे बिजली उत्पादन जारी रहता है। जबकि कम बारिश होने पर गर्मियों में पानी की कमी से बिजली उत्पादन भी प्रभावित हो जाता है।

    भूजल रिचार्ज होगा-अच्छी बारिश भूजल स्तर को भी रिचार्ज करने में मददगार होती है।
    पानी की कमी-नदियों, जलाशयों में पानी बढ़ने से इसका असर अगले मानसून तक रहता है। इसलिए पानी की कमी भी दूर होती है।
    गर्मी से राहत-मानसून में अच्छी बारिश गर्मी से भी राहत देती है।

    कब पहुंचेगा मानसून
    मानसून की एंट्री केरल से होती है। आमतौर पर मानसून एक जून को केरल पहुंचता है। लेकिन इस बार मानसून कब करेल पहुंचेगा इसकी भविष्यवाणी मई के तीसरे सप्ताह में की जाएगी।

    दिल्ली में मानसून
    दिल्ली में मानसून के पहुंचने की सामान्य तिथि 29 जून है। जबकि पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड और बिहार में यह जून के दूसरे सप्ताह में पहुंचना शुरू हो जाता है।

    मानसून का मतलब
    मासून की उत्पत्तिअरबी शब्द मौसिम हुई है जिका मतलब है हवाओं का मिजाज। ग्रीष्म ऋतु में जब सूर्य हिन्द महासागर में विषुवत रेखा के ठीक ऊपर होता है तो मानसून बनता है। समुद्र गर्म होने लगता है उसका तापमान 30 डिग्री तक पहुंच जाता है। तब धरती का तापमान 45-46 डिग्री हो चुका होता है। ऐसी स्थिति में हिन्द महासागर के दक्षिणी हिस्से में मानसूनी हवाएं सक्रिय होती हैं। ये हवाएं आपस में क्रास करते हुए विषुवत रेखा पार कर एशिया की तरफ बढ़नी शुरू होती हैं। इसी दौरान समुद्र के ऊपर बादलों के बनने की प्रक्रिया शुरू होती हैं। विषुवत रेखा पार करके हवाएं और बादल बारिश करते हुए बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का रुख करते हैं। फिर केरल के जरिये देश में मानसून की एंट्री होती है।

    देश में मानसून के आगमन की तिथियां
    स्थान तिथि
    केरल 1 जून
    हैदराबाद 5 जून
    गुवाहाटी 5 जून
    मुंबई 10 जून
    रांची 10 जून
    पटना 11 जून
    गोरखपुर 13 जून
    वाराणसी 15 जून
    लखनऊ 18 जून
    देहरादून 20 जून
    आगरा 20 जून
    जयपुर 25 जून
    दिल्ली 29 जून
    श्रीनगर 1 जुलाई

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