रांची: आखिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अदिवासियों के घर-घर अनाज पहुंचाने का सपना पूरा हो ही गया। झारखंड की रघुवर सरकार ने देश में सबसे पहले खाद्य सुरक्षा के सबसे बेहतरीन मॉडल को लागू करते हुए आदिवासियों के घर-घर अनाज पहुंचा दिया। देश में आजादी के बाद की गरीब, आदिवासियों के कल्याण की यह सबसे बेहतरीन योजना मानी जा रही है। झारखंड में इसे डाकिया योजना का नाम दिया गया है। इसकी शुरुआत सोमवार को चैनपुर (पलामू) में स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी, गोड्डा में कल्याण मंत्री लुइस मरांडी और कृषि मंत्री रणधीर सिंह ने साहेबगंज के जसायडीह में पहाड़िया जनजाति लोगों के बीच 35-35 किलो अनाज का वितरण कर किया।
सखी मंडल तैयार करेंगी पैकेट
झारखंड राज्य खाद्य एवं असैनिक आपूर्ति निगम के गोदाम में खाद्यान्न के पैकेट राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के सखी मंडलों द्वारा तैयार किये जायेंगे। संवर्धन सोसाइटी द्वारा कुल 68,731 आदिम जनजाति परिवारों के खाद्यान्न की पैकेजिंग के लिए प्रतिवर्ष लगभग तीन करोड़ रुपये खर्च होंगे। दुर्गम और पहाड़ी क्षेत्र में अनाज पहुंचाने के लिए परिवहन खर्च में 115 रुपये प्रति क्विंटल की दर से भुगतान किया जायेगा। राज्य के 24 जिलों के 168 प्रखंडों में कुल 68,731 आदिम जनजाति परिवार को 35-35 किलो खाद्यान्न प्रतिमाह पहुंचाया जायेगा। इसके लिए प्रतिमाह 24055.85 क्विंटल खाद्यान्न की जरूरत होगी। इसके परिवहन 3.32 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष खर्च होंगे। इसके लिए सभी जिलों को निर्देश जारी कर गोदामों में तैयारी शुरू करने का निर्देश दिया गया है।
दुकानों से भगाये जानेवालों को अब घर बैठे मिलेगा खाद्यान्न का पैकेट
झारखंड में मुख्यमंत्री रघुवर दास की इच्छाशक्ति से आदिवासियों का बरसो पुराना सपना पूरा हो सका। अब तक गरीब आदिवासियों के लिए घर पर अनाज, तो क्या दुकानों पर भी राशन पाना मुश्किल था। राशन दुकानों पर गरीबों को दुत्कार कर भगा दिया जाता था। अब उन्हें इस योजना के तहत घर बैठे अनाज का पैकेट मिलेगा। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना के तहत झारखंड सरकार ने ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में घर-घर अनाज पहुंचाने की योजना बनायी थी। आम तौर पर ग्रामीण और आदिवासियों के लिए पीडीएफ दुकानों से राशन पाना दुश्वारी भरा काम था।
6.32 करोड़ प्रतिवर्ष की दर से खर्च की मंजूरी
राज्य में विशिष्ट जनजाति खाद्यान सुरक्षा योजना (पीवीटीजी डाकिया योजना) के क्रियान्वयन एवं संचालन के लिए प्रतिवर्ष 6.32 करोड़ रुपये की दर से व्यय की स्वीकृति दी गयी है। झारखंड की भौगोलिक बनावट ऐसी है कि यहां अधिकांश क्षेत्र पहाड़ी एवं दुर्गम हैं। इन क्षेत्रों में मुख्यत: आदिम जनजातियां रहती हैं। खाद्यान्न प्राप्त करने के लिए उन्हें लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। उनकी कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए सभी आदिम जनजातियों के निवास तक 35 किलो चावल का पैकेट उपलब्ध कराने के लिए यह योजना शुरू की गयी है। इसके लागू होने के बाद मुख्यमंत्री खाद्य सुरक्षा योजना का विलय इस योजना में हो जायेगा। इसके लिए सभी जिलों को आदिम जनजाति परिवारों को अंत्योदय लाभुकों के रूप में चिह्नित करने का निर्देश दिया गया है। सभी चयनित परिवारों तक 35 किलो खाद्यान्न पैकेट में पहुंचाये जायेंगे।