निजामुद्दीन मरकज में हुए तब्लीगी जमात कार्यक्रम में शामिल हुए लोगों में से कुछ की कोरोनावायरस से मौत हो जाने और जमात में शामिल लोगों से संक्रमण के प्रसार में तेजी आने के बाद यह कदम उठाया गया है।

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अगर जांच के दौरान अधिक गंभीर अपराध पाए जाते हैं तो पुलिस मामले में और भी कड़ी धाराएं जोड़ने के लिए स्वतंत्र हैं।

पुलिस सूत्रों के अनुसार, साद और अन्य के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 304 जोड़ी गई है।

वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने इस संबंध में आईएएनएस से बात की।

उन्होंने कहा, यह 304 के बजाय धारा 302 का एक स्पष्ट मामला है। तब्लीगी जमात के लोग मार्च में हुए कार्यक्रम में में घोर आपराधिक लापरवाही कर रहे थे, जो देशभर में पॉजिटिव (कोरोना) लोगों के बड़े हिस्से के लिए जिम्मेदार हैं। वे जानते थे कि उनके इस कार्य से संक्रमण फैल जाएगा, जिससे काफी मौतें होने की संभावना है।

रोहतगी ने कहा कि मामले में तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए। मौलवी को आखिरी बार 28 मार्च को देखा गया था। बाद में एक ऑडियो संदेश के माध्यम से उन्होंने खुद से एकांतवास में होने का दावा किया।

धारा 304 के अनुसार दोषी ठहराए जाने वाले व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा दी जा सकती है। यह सजा 10 साल तक बढ़ाई भी जा सकती है।

इससे पहले मौलाना साद पर उन धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था जो जमानती थी। मगर अब धारा 304 शामिल होने के बाद साद के लिए जमानत पाना कठिन होगा।

वरिष्ठ अधिवक्ता ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि यह धारा हत्या के किसी मामले में दूसरी डिग्री के रूप में समझी जा सकता है। इसमें किसी की मौत का इरादा तो नहीं है, लेकिन उन्होंने एक ऐसा काम किया है, जो इतना खतरनाक है और इससे मौत होने की संभावना है।

भाटी ने कहा कि फिलहाल इस मामले की जांच चल रही है, क्योंकि ये लोग अभी तक इसमें शामिल नहीं हुए हैं। जांच के किसी भी चरण में अगर यह पाया जाता है कि साजिश में उनकी भूमिका या अपराध बहुत अधिक जघन्य हैं तो चार्जशीट दाखिल होने से पहले और भी कड़ी धाराएं जोड़ी जा सकती है|

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