• प्रधानमंत्री ने साफ कहा था: लॉकडाउन का सख्ती से पालन हो, जो जहां है, वहीं रहे
  • झामुमो-कांग्रेस ने पूछा सवाल: प्रधानमंत्री की इस अपील का कौन कर रहा उल्लंघन
    झारखंड भाजपा के लोगों ने राज्य की हेमंत सोरेन सरकार पर कोटा में फंसे झारखंड के छात्रों और देश के दूसरे हिस्सों में फंसे मजदूरों की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए बुधवार को एक दिवसीय उपवास किया। कोरोना संकट से जूझ रहे झारखंड में पिछले एक महीने के दौरान यह बड़ा राजनीतिक कार्यक्रम था, लेकिन क्या सचमुच में इसका सकारात्मक संदेश लोगों के बीच गया! एक तरफ राज्य के लोग खतरनाक कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं और राज्य सरकार का पूरा अमला इसमें व्यस्त है, तो दूसरी तरफ विपक्ष के रूप में भाजपा के लोग सरकार के खिलाफ उपवास कर रहे हैं। तीन दिन पहले भी पार्टी के चार विधायकों ने उपवास किया था। इस उपवास के बारे में झामुमो और कांग्रेस का कहना है कि भाजपा के लोग इस उपवास के माध्यम से आखिर क्या कहना चाहते हैं। यह अब तक लोगों की समझ में नहीं आया है। यदि भाजपा के लोग कोरोना के खिलाफ जंग में सकारात्मक भूमिका निभाना चाहते हैं, तो उन्हें अपने संगठन की ताकत दिखानी चाहिए और सरकार को वास्तविक आंकड़ा देना चाहिए, जिससे इस संकट का हल निकाला जा सके। एक राजनीतिक संगठन होने के नाते भाजपा का भी यह कर्तव्य बनता है कि वह बाहर फंसे झारखंड के लोगों को राहत पहुंचाने की कोशिश करे। मुख्यमंत्री ने सर्वदलीय बैठक में सभी का सहयोग मांगा था और सभी दलों ने इसका भरोसा भी दिया था। अब भाजपा उपवास के माध्यम से क्या साबित कर रही है। झारखंड भाजपा की ‘उपवास राजनीति’ पर आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की विशेष रिपोर्ट।

दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी की झारखंड प्रदेश इकाई से जुड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं ने दुनिया के लिए खतरा बन चुकी महामारी से लड़ाई के दौर में बुधवार 22 अप्रैल को एकदिवसीय उपवास रखा। उपवास का अघोषित उद्देश्य चाहे कुछ भी हो, घोषित उद्देश्य देश के दूसरे हिस्सों में फंसे झारखंड के मजदूरों और छात्रों को वापस लाने में हो रही देरी का विरोध करना था। भाजपा का मानना है कि झारखंड सरकार बाहर फंसे प्रवासी मजदूरों और छात्रों को लाना नहीं चाहती है। यह उद्देश्य वैसे तो बड़ा व्यापक और आम लोगों से जुड़ा हुआ है, लेकिन भाजपा के लोगों ने इस मुद्दे पर आंदोलन कर इसे राजनीतिक मुद्दा बना दिया है।
भाजपा नेताओं के उपवास की चर्चा तो खूब हुई, लेकिन भाजपा पर यह सवाल भी उठने लगा कि आखिर देश के प्रधानमंत्री की इस अपील का क्या अर्थ है: जिसमें उन्होंने कहा था कि लॉकडाउन का सख्ती से पालन करें। जो जहां है, वही रहे, किसी भी हाल में लॉकडाउन न तोड़ें।
भाजपा के उपवास कार्यक्रम के बाद यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब झारखंड की सरकार और आम लोग कोरोना के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए लॉकडाउन का पालन कर रहे हैं और लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिये सात वचन निभा रहे हैं, भाजपा के लोग ही लॉकडाउन को तोड़ने का दबाव क्यों डाल रहे हैं। सवाल तो यह भी उठाया जा रहा है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी ने लॉकडाउन का पालन करने के लिए जो जहां है, वहीं रहे की बात केवल गैर-भाजपा शासित राज्यों के लिए कही थी। ऐसा हरगिज नहीं है। पहले लॉकडाउन का एलान करते हुए और फिर इसकी अवधि बढ़ाते हुए प्रधानमंत्री ने पूरे देश से यह अपील की थी। लेकिन उनकी अपील की धज्जियां उड़ाते हुए यूपी और मध्यप्रदेश की सरकारों ने अपने-अपने राज्यों के लोगों को वापस आने की न केवल अनुमति दी, बल्कि बसें भेज कर उन्हें लाने की व्यवस्था भी की। दूसरी तरफ गैर-भाजपा शासित प्रदेशों की सरकारों ने ‘जो जहां है वहीं रहे’ की नीति का पालन करते हुए चाह कर भी अपने यहां के लोगों को वापस लाने की कोई कोशिश नहीं की। ऐसा कतई नहीं है कि इन सरकारों को बाहर फंसे अपने यहां के लोगों की चिंता नहीं है, लेकिन उन्होंने लॉकडाउन गाइडलाइन का पालन करते हुए अपने यहां के लोगों को उनके हाल पर छोड़ रखा है।
झारखंड भाजपा के लोगों का यह आरोप भी उस समय बेहद कमजोर साबित हो जाता है, जब वे कहते हैं कि राज्य सरकार के पास बाहर फंसे लोगों का आंकड़ा भी नहीं है। यदि ऐसा मान भी लिया जाये, तो भाजपा कोई आंकड़ा क्यों नहीं सार्वजनिक कर देती, ताकि लोग भी जान सकें कि झारखंड के कितने लोग बाहर फंसे हुए हैं। भाजपा यह काम अपनी विराट सांगठनिक ताकत की मदद से कर सकती है। अभी विधानसभा चुनाव के समय भाजपा ने एक बूथ-पांच यूथ तैयार किया था। यदि बूथ स्तर के ये पांच लोग अपने-अपने बूथ से आंकड़ा एकत्र कर लें कि कितने लोग बाहर फंसे हुए हैं, तो बहुत आसानी से पूरा परिदृश्य सामने आ जायेगा। और यदि इस आंकड़े के साथ भाजपा सामने आयेगी, तो सरकार पर भी दबाव बनेगा। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कोरोना के खिलाफ जंग शुरू होने से पहले बुलायी गयी सर्वदलीय बैठक में इस आशय की अपील भी की थी और सभी दलों से मदद भी मांगी थी। भाजपा ने मदद का भरोसा भी दिया था, लेकिन अब वह विरोध पर उतारू हो गयी है, क्योंकि वह इस जंग में जीत का श्रेय राज्य सरकार को लेने देना नहीं चाहती।
भाजपा के लोग उपवास का कार्यक्रम तय करते समय यह भूल गये कि प्रधानमंत्री ने जो सात वचन मांगे थे, यह विरोध कार्यक्रम उसका भी उल्लंघन है।
प्रधानमंत्री ने सात वचनों में यह भी कहा था कि एकजुट होकर और घरों में रह कर कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़नी है। झारखंड भाजपा ने उनका यह वचन भी तोड़ दिया। उपवास करनेवाले नेताओं के समर्थक चेहरा दिखाने ही सही, उपवास स्थल पर पहुंचे। भाजपा के लोगों को यह भी समझना चाहिए उनके नेता दिल्ली से झारखंड पहुंच जाते हैं, लेकिन सरयू राय जैसे विधायक अपने क्षेत्र में जाने के लिए विधिवत अनुमति मांगते हैं और कैबिनेट सचिव तक को पत्र लिखते हैं, क्योंकि वे प्रधानमंत्री द्वारा घोषित लॉकडाउन का उल्लंघन नहीं करना चाहते।
इसलिए यह समय आंदोलन और विरोध का नहीं है, बल्कि पूरी ताकत से कोरोना महामारी से लड़ने का है। राज्य सरकार अपना काम कर रही है और केंद्र सरकार भी अपना काम कर रही है। ऐसे में यदि विपक्ष ने उनका साथ नहीं दिया, तो यह लड़ाई कमजोर पड़ जायेगी। और यदि हम कमजोर पड़ गये, तो फिर तबाही से हमें कोई नहीं बचा सकेगा। वक्त की इस नजाकत को सभी को समझना होगा, चाहे वह किसी भी विचारधारा या राजनीतिक पार्टी से जुड़ा हो।

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