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    Home»झारखंड»युवाओं से छल करने में नहीं झिझका सिस्टम
    झारखंड

    युवाओं से छल करने में नहीं झिझका सिस्टम

    bhanu priyaBy bhanu priyaApril 30, 2021No Comments6 Mins Read
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    देश के युवाओं का जीवन खतरे में है। उस जीवन को बचाने के लिए 1 मई से 18 साल से ऊपर के युवाओं को कोरोना का टीका लगाने की घोषणा केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकारों ने जोर-शोर से की थी। खतरनाक महामारी कोरोना की दूसरी लहर से तबाह भारत में इस जंग के प्रति कितनी गंभीरता दिख रही है, यह इसी बात से प्रमाणित होता है कि एक मई से शुरू होनेवाला टीकाकरण का तीसरा चरण झारखंड में टल गया है। भारत में जिन दो टीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है, उनके निर्माताओं ने इतना बड़ा स्टॉक आपूर्ति करने में हाथ खड़े कर दिये हैं। इसका सीधा मतलब यह है कि भारत के 60 करोड़ ऐसे लोगों को अभी इस महामारी से और 15 दिन तक अकेले लड़ना होगा। भारत की आर्थिक गाड़ी को खींचनेवाले इन युवाओं के साथ ऐसा भद्दा मजाक इससे पहले कभी नहीं हुआ था। पहले तो उन्हें टीकाकरण से दूर रख कर खतरे की आग में जलने के लिए छोड़ दिया गया और अब, जब वे टीका लगवाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं, तो कंपनियों ने अपने कदम पीछे खींच लिये हैं। आपदा के इस दौर में युवाओं के प्रति यह रवैया न केवल अफसोसनाक है, बल्कि यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सिस्टम की लापरवाही भी दिखाता है। पहले निबंधन के लिए बनाया गया पोर्टल क्रैश कर जाता है और उसके बाद कंपनियां टीका सप्लाई करने में आनाकानी करती हैं। कहती हैं, पहले हम केंद्र को 50 प्रतिशत कोटे का टीका सप्लाई करेंगे, फिर राज्यों को देंगे। यानी झारखंड को 15 मई के बाद ही कोवीशील्ड और कोवैक्सीन का टीका मिल पायेगा। आखिर इस कुप्रबंधन का दोषी कौन है और इसका क्या परिणाम होगा, इसकी पड़ताल करती आजाद सिपाही के टीकाकार राहुल सिंह की विशेष रिपोर्ट।

    पिछले साल के अंत में जब भारतीय वैज्ञानिकों ने कोरोना से बचाव का टीका विकसित किया था, तो पूरे देश ने उनका अभिनंदन किया था। दुनिया भर में भारतीय वैज्ञानिकों का नाम हुआ था और भारत की इस उपलब्धि को मानव सभ्यता की सबसे बड़ी उपलब्धि कह कर प्रचारित किया गया था। लेकिन महज तीन महीने बाद, जब इस साल मार्च के अंत में कोरोना की दूसरी लहर ने भारत में तबाही मचाने का सिलसिला शुरू किया, तब केंद्र सरकार ने यह घोषणा की कि सबसे पहले कोरोना वारियर्स और 60 प्लस के लोगों की जान की रक्षा की जायेगी। उनका वैक्सीनेशन शुरू हुआ। उसके बाद 45 साल से ऊपर के लोगों को कोरोना का टीका देने की घोषणा की गयी। जब पूरे देश में विरोध होने लगा तो यह घोषणा की गयी कि इस टीकाकरण अभियान में 18 साल से ऊपर के युवक-युवतियों को भी जोड़ा जायेगा। इसका परिणाम यह हुआ कि देखते-देखते कोरोना की दूसरी लहर ने भारत के सबसे मजबूत कंधे, यानी 18 साल से 45 साल तक के लोगों को भी अपना शिकार बनाना शुरू कर दिया। देश की 60 करोड़ की आबादी वाले इस वर्ग को पता ही नहीं चला कि आखिर उसका कसूर क्या था, जो उसे यह मजबूत हथियार नहीं दिया गया।
    लेकिन अब इस आबादी के साथ बेहद भद्दा मजाक किया गया है। यह मजाक उन दो कंपनियों ने किया है, जिनके द्वारा विकसित टीके पर कभी हमने अपनी पीठ ठोकी थी और इन्हें देश का गौरव बताया था। इन कंपनियों ने साफ कह दिया है कि वे 15 मई से पहले राज्यों को टीके का स्टॉक नहीं दे सकतीं, क्योंकि उनकी उत्पादन क्षमता इतनी नहीं है। इसलिए तीसरे चरण के टीकाकरण के लिए राज्यों को अभी इंतजार करना होगा। कंपनियों ने यह मजबूरी उस समय व्यक्त की है, जब केंद्र द्वारा तीसरे चरण के टीकाकरण की तारीख घोषित की जा चुकी है। इसके लिए नीतियां निर्धारित की जा चुकी हैं और राज्य सरकारें दोगुनी कीमत पर टीका खरीदने के लिए तैयार हैं। अधिकांश राज्यों ने तो आॅर्डर और आवश्यक राशि भी कंपनियों को भेज दी है। झारखंड ने भी 50 लाख टीका का आॅर्डर दे दिया है। टीकाकरण के लिए जरूरी रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गयी है। लेकिन एक मई से शुरू होनेवाला यह अभियान अब अचानक रोक दिया गया है। झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री ने प्रेस कांफ्रेंस में यह कहा है कि 1 मई से युवाओं को टीका नहीं दिया जा सकेगा। उन्होंने पूरा दोष केंद्र पर मढ़ा है और कहा है कि उसकी नीतियों ने ही झारखंड के युवाओं के साथ कू्रर मजाक किया है। यानी इन युवाओं को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। टीका के लिए उन्हें अभी इंतजार करना पड़ेगा।
    आखिर इन दो कंपनियों को देश के युवाओं के साथ इतना भद्दा मजाक करने की हिम्मत कहां से मिली, यह बड़ा सवाल है। फिलहाल भारत जिस संकट के दौर से गुजर रहा है, उसमें इस सवाल को छोड़ भी दिया जाये, लेकिन इस कुप्रबंधन की जिम्मेवारी तो तय करनी ही होगी। पहले तो कंपनियों द्वारा केंद्र और राज्यों के लिए अलग-अलग कीमतें तय करने के फैसला ही सवालों के घेरे में है। अब इन कंपनियों ने उस समय हथियार की आपूर्ति करने से मना कर दिया है, जब जंग का ऐलान हो चुका है और दुश्मन लगातार वार कर रहा है। सबसे हैरत की बात यह है कि कंपनियों की इस मनमानी पर भारत सरकार भी चुप है। कंपनियों का यह मनमाना रवैया और केंद्र सरकार की यह चुप्पी भारत के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। भारत की गाड़ी इस आयुवर्ग की ताकत पर ही चल रही है। यह बात सरकार को भी समझनी होगी और दूसरे लोगों को भी। सरकार ने पहले ही अपने इस सबसे मजबूत कंधे को टीकाकरण अभियान से अलग रख कर इसे कमजोर कर दिया है और अब टीकाकरण करनेवाली दो कंपनियां इसे खोखला बनाने पर उतारू हैं। जाहिर है, इसका जोरदार प्रतिरोध होगा, क्योंकि इसका कोई औचित्य नहीं है कि सभी तैयारियां होने के बाद अचानक कहा जाये कि अभी स्टॉक नहीं है। यह बात कंपनियों को पहले ही बता देनी चाहिए थी, ताकि तारीख की घोषणा कर सरकार की भी किरकिरी नहीं होती। यदि कंपनियां 15 मई से पहले राज्यों को टीका देने में सक्षम नहीं थीं, तो आॅर्डर लेते समय ही उन राज्यों को क्यों नहीं बता दिया। अचानक कंपनियों की इस बेरुखी का जवाब देश का हर नौजवान मांगेगा और इस मांग से निश्चित रूप से केंद्र सरकार भी कठघरे में आयेगी कि जब स्टॉक ही नहीं था तो 1 मई से 18 साल से ऊपर के युवाओं को टीका दिलवाने की घोषणा क्यों की गयी!
    बहरहाल, कोरोना के खिलाफ जंग का यह सबसे मजबूत हथियार फिलहाल भोथरा पड़ता दिख रहा है। 18 से 45 साल के आयुवर्ग के लोगों को अभी यह जंग बिना किसी सरकारी सहायता के ही लड़नी होगी। उन्हें अभी खतरे की आग का सामना करते रहना होगा। लेकिन इसका असर भारत के भविष्य पर क्या होगा, इसकी कल्पना मात्र से कंपकंपी पैदा होती है। कोरोना की दूसरी लहर ने इस आयुवर्ग को सबसे अधिक शिकार बनाया है और इसका नुकसान केवल वर्तमान पीढ़ी ही नहीं, भावी पीढ़ी को भी झेलना पड़ेगा। यह भी समझना होगा कि इस नुकसान की भरपाई इतनी आसानी से नहीं होगी, क्योंकि एक युवा के साथ उस देश और समाज के सपने भी खत्म हो जाते हैं।

    निर्माताओं ने 15 दिन से पहले राज्यों को आपूर्ति करने में खड़े किये हाथ

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