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    Home»विशेष»विशेष: वास्तविक ‘फाइटर’ थे जगरनाथ महतो
    विशेष

    विशेष: वास्तविक ‘फाइटर’ थे जगरनाथ महतो

    adminBy adminApril 6, 2023Updated:April 6, 2023No Comments7 Mins Read
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    -ढह गया उत्तरी छोटानागपुर में झामुमो का मजबूत स्तंभ
    -झारखंडी हितों की रक्षा के लिए सब कुछ न्योछावर करने को रहते थे तैयार

    झारखंड के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो के निधन के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जो कुछ कहा है, उससे साफ पता चलता है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए जगरनाथ महतो का क्या मतलब था। 2019 में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद जब जगरनाथ महतो को शिक्षा मंत्री बनाया गया था, तब बहुत से लोगों ने उनकी शैक्षणिक योग्यता को लेकर सवाल उठाये थे और कहा था कि महज 10वीं पास नेता शिक्षा मंत्रालय का कामकाज कैसे देख सकेगा। लेकिन अपने चर्चित नाम ‘टाइगर’ और ‘फाइटर’ के अनुरूप झामुमो का यह कद्दावर नेता न केवल अपने मंत्रालय में, बल्कि पूरी झारखंड सरकार का सबसे असरदार मंत्री कहलाने लगा। पारा टीचरों की समस्या हो या सेविका-सहायिकाओं का मुद्दा, जगरनाथ महतो हमेशा सीएम के लिए संकट मोचक बने रहे। जब-जब झारखंडी हितों की बात हुई, 1932 के खतियान का मुद्दा उठा या कुड़मी को एसटी का दर्जा देने की बात हुई, जगरनाथ महतो अगली पंक्ति के योद्धाओं में नजर आये। यही कारण था कि उन्हें उत्तरी छोटानागपुर में बिनोद बिहारी महतो और टेकलाल महतो के बाद झामुमो का सबसे बड़ा नेता कहा जाता था। निर्मल महतो और सांसद सुनील महतो की हत्या और सुधीर महतो के असामयिक निधन के बाद से झामुमो का कुड़मी जनाधार घट रहा था, लेकिन उस जनाधार को अकेले जगरनाथ महतो ने संभालने में बहुत बड़ी भूमिका निभायी। इसलिए उन्हें शिबू सोरेने अपना चौथा बेटा कहते थे और झामुमो में उन्हें ‘दादा’ कहकर संबोधित किया जाता था। जगरनाथ महतो सचमुच एक ‘फाइटर’ थे, जिनका निधन झारखंड के लिए और खास कर झामुमो के लिए बहुत बड़ा नुकसान है। जगरनाथ महतो के जीवन के कुछ पहलुओं के साथ उनके निधन से झामुमो को हुए राजनीतिक नुकसान का आकलन कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    अक्टूबर 2022 में जब शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो को बेहतर इलाज के चेन्नई ले जाया गया था और उनकी हालत में सुधार की खबर नहीं आ रही थी, तब झारखंड के गांवों-कस्बों में पारा टीचरों ने उनके स्वस्थ होने के लिए यज्ञ, हवन-पूजन और प्रार्थना सभाओं का आयोजन किया था। झारखंड ही नहीं, देश के इतिहास में यह शायद पहला मौका था, जब सरकार के साथ अपनी मांगों को लेकर लड़ाई लड़ रहा वर्ग एक मंत्री की बीमारी से इतना बेचैन हो गया था। जगरनाथ महतो थे ही ऐसे ही कि उनके साथ एक बार मिलनेवाला भी उनका मुरीद हो जाता था, क्योंकि वह सीधा-सपाट बोलते थे और साफगोई उनके जीवन में भी अक्सर सामने आता था। वह अपने सिद्धांतों के लिए किसी से भी भिड़ जाते थे और हमेशा संघर्ष का यही स्वभाव उन्हें ‘फाइटर’ बनाता था।
    जगरनाथ महतो के व्यक्तित्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके निधन की खबर मिलने के बाद झारखंड की नौकरशाही में भी शोक पसर गया। किसी राजनीतिक हस्ती के निधन पर आम तौर पर नौकरशाही इस तरह विचलित नहीं होती, लेकिन जगरनाथ महतो की बात ही कुछ और थी।
    झामुमो में सबसे बड़ा कुड़मी चेहरा
    जगरनाथ महतो केवल एक नेता या विधायक नहीं थे। वह सही अर्थों में जन नेता थे। झामुमो के भीतर उनका कद कितना बड़ा था, इसका एहसास अक्सर होता रहता था। झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन उन्हें अपना चौथा बेटा और सीएम हेमंत सोरेन उन्हें अपना बड़ा भाई कहते थे। निर्मल महतो और सांसद सुनील महतो की हत्या और बिनोद बिहारी महतो, टेकलाल महतो और सुधीर महतो के असामयिक निधन के बाद झामुमो के भीतर कुड़मी नेताओं की कमी को जगरनाथ महतो ने ही पूरा किया था। पिछले कुछ वर्षों में झामुमो का कुड़मी जनाधार कम हो रहा था, जिसे जगरनाथ महतो ने अकेले दम पर बहुत हद तक संभाला था।
    झारखंडी हितों और 1932 के सबसे बड़े अगुआ
    11 नवंबर 2022 को झारखंड विधानसभा के विशेष सत्र बुलाकर 1932 को पारित किया गया था और उसके सबसे बड़े अगुआ जगरनाथ महतो रहे थे। दरअसल स्थानीयता के मुद्दे पर हमेशा से मुखर रहने वाले जगरनाथ महतो ने कैबिनेट में अपनी एक अलग पहचान बनायी थी। झारखंड के मुद्दों को लेकर वह अपनी बात बेबाकी से रखते थे। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी जब कैबिनेट और विधानसभा से 1932 को पास कराया था, तो इसका श्रेय जगरनाथ महतो को दिया था। इससे पहले कई मंचों से जगरनाथ महतो ने कहा था कि झारखंडियों को झारखंड में हक नहीं मिलेगा, तो कहां मिलेगा। उन्होंने कहा था कि 1932 का खतियान झारखंड विधानसभा से पास होकर रहेगा। इसे पारित होने से कोई नहीं रोक पायेगा। इतना ही नहीं, झारखंड में 1932 का खतियान लागू होकर भी रहेगा। इसे लेकर वह इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने पहले ही ‘1932 का खतियान हम झारखंडियों की यही पहचान’ लिखा चादर छपवा लिया था। जब विधानसभा में 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति का प्रस्ताव पारित हुआ, तब उन्होंने यही चादर दिशोम गुरु शिबू सोरेन को ओढ़ाया था।
    समता के बाद झामुमो का हाथ थामा और कभी नहीं छोड़ा
    जगरनाथ महतो के बारे में मशहूर है कि वह विनोद बिहारी महतो के लाडले थे। झारखंड आंदोलन के दौरान कई बार उन पर पुलिसिया कार्रवाई हुई। दर्जन भर केस उनके नाम दर्ज हुए। उन्हें करीब 10 बार जेल की हवा भी खानी पड़ी। विनोद बिहारी के निधन के बाद जब राज किशोर महतो गिरिडीह से सांसद बने, तो जगरनाथ ने उनका दामन थामा। दोनों ने मिलकर झारखंड आंदोलन में प्रमुखता से हिस्सा लिया। राजनीति का ककहरा सीखने के बाद पहली बार जगरनाथ महतो ने 2000 में समता पार्टी के टिकट पर डुमरी से विधानसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन हार गये। इसके बाद जगरनाथ महतो तेजी से शिबू सोरेन के नजदीक आये और उनके साथ हो लिये। उसके बाद से जगरनाथ महतो ने शिबू सोरेन का साथ साये की तरह दिया। उन्होंने 2005, 2009, 2014 और 2019 में विधानसभा का चुनाव जीता। वह दो बार लोकसभा का चुनाव भी लड़े, लेकिन सफल नहीं हो सके।
    जगरनाथ महतो अपने विधानसभा क्षेत्र के अलावा पूरे राज्य में इतने लोकप्रिय थे कि लोग उन्हें बेधड़क अपनी बात कह देते थे। झारखंड की जनता उन्हें किसी विधायक या किसी पार्टी के नेता के रूप में नहीं देखती थी। कोरोना काल में वह अपनी नाती की स्कूल फीस जमा करने के लिए बोकारो के निजी स्कूल में लाइन में खड़े रहे, जबकि उस समय भी वह शिक्षा मंत्री थे। उनका व्यवहार ऐसा था कि सभी उनसे जुड़ जाते थे। उनकी पंचायती व्यवस्था ऐसी कि उनके क्षेत्र की ज्यादातर समस्या पुलिस के पास जाने से पहले ही उनकी पंचायत में समाधान के लिए चली आती। हमेशा न्याय पसंद जगरनाथ किसी भी विवाद में दोनों पक्षों की सुनते और पूरी तसल्ली होने के बाद ही अपना फैसला पंचों के फैसले को आधार पर सुनाते। ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले हैं जिसमें जगरनाथ महतो ने गलती करने वाले को आंख दिखायी और जरूरत पड़ने पर डांट-फटकार भी लगायी। कार्यकर्ता किसी भी पार्टी का हो, उन्हें हमेशा अपनी ही पार्टी का समझता था। दिन हो या रात, वह सभी के लिए हर वक्त सुलभ रहा करते थे।
    53 साल की उम्र में फिर से शुरू की पढ़ाई
    झारखंड के शिक्षा मंत्री के रूप में पद संभालते ही जगरनाथ महतो आलोचनाओं से घिर गये। लोगों ने कहा कि 10वीं पास को कैसे शिक्षा मंत्री बना दिया गया है। ऐसे में उन्होंने एक उदाहरण पेश करते हुए 53 साल की उम्र में अपनी पढ़ाई फिर से शुरू की। साल 1995 में मैट्रिक की परीक्षा देने के बाद लगभग 25 सालों बाद 10 अगस्त 2020 को बोकारो के नावाडीह स्थित देवी महतो इंटर कॉलेज में 11वीं कक्षा में दाखिला लिया और आगे की पढ़ाई पूरी करने का मन बनाया। उन्होंने 12वीं की परीक्षा भी दी, लेकिन सफल नहीं हुए। 20- 21 का शैक्षणिक सत्र पूरा होने के साथ झारखंड एकेडमिक काउंसिल की ओर से इंटरमीडिएट रिजल्ट प्रकाशन के दौरान वह जुलाई 2021 के अंतिम सप्ताह में जैक कार्यालय पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने कहा कि था अगर जिंदा रहा, तो अगले साल इंटरमीडिएट का परीक्षा भी दूंगा और पास भी जरूर करूंगा।

     

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