विशेष
-बार-बार की हिंसा ने ‘भद्र प्रदेश’ को कर दिया है बदनाम
यह कानून-व्यवस्था का मसला नहीं, सियासत का जहर है
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
पश्चिम बंगाल के हावड़ा इलाके में रामनवमी की शोभायात्रा पर कथित पथराव के बाद दो गुटों के बीच भड़की हिंसा की आग अब भी सुलग रही है। हालांकि हिंसा नहीं हुई, पर सांप्रदायिक तनाव बरकरार है। हिंसा के मुद्दे पर राज्य की सियासत भी गरम हो गयी है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा राज्यपाल से स्थिति के बारे में बात किये जाने और भाजपा की प्रदेश इकाई द्वारा इस मुद्दे पर हाइकोर्ट में याचिका दायर किये जाने से मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी बुरी तरह बिफर गयी हैं। ममता ने इस हिंसा के लिए भाजपा और बजरंग दल को जिम्मेदार ठहराया है और भाजपा ने इसके लिए ममता और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस को। लेकिन इस आरोप-प्रत्यारोप और सियासी शह-मात के खेल के बीच बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि आखिर ‘भद्रलोक का प्रदेश’ इतना तनावपूर्ण कैसे हो गया। क्यों बार-बार राज्य में हिंसा भड़क उठती है। चाहे चुनाव हो या फिर कोई धार्मिक आयोजन, राजनीतिक आंदोलन हो या फिर सामाजिक कार्यक्रम, हर वक्त बंगाल में हिंसा की आशंका बनी रहती है। जानकारों का मानना है कि यह सब कानून-व्यवस्था का मामला कतई नहीं है, बल्कि इसके पीछे जहरीली सियासत की वे चालें हैं, जिनके माध्यम से वोट बैंक तैयार किये जाते हैं। दूसरे शब्दों में इसे तुष्टिकरण भी कह सकते हैं। बंगाल को भारत का सांस्कृतिक और बौद्धिक केंद्र कहा जाता है, लेकिन हाल के दिनों में देखा गया है कि यह प्रदेश छोटी-छोटी बातों पर ही जल उठता है। बंगाल का इतना ज्वलनशील होना देश की सेहत के लिए अच्छा नहीं है, क्योंकि इसका असर देश के दूसरे हिस्सों से लेकर सीमा पार तक होता है। हावड़ा में हुई इस हिंसा की पृष्ठभूमि में बंगाल की स्थिति का आकलन कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से सटी उद्योग नगरी हावड़ा का शिवपुर लगातार दूसरे साल रामनवमी पर सांप्रदायिक हिंसा की आग में जल उठा है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की चेतावनी और मुस्लिम बहुल इलाकों से रामनवमी की शोभायात्रा ले जाने की जिद ने इलाके में सांप्रदायिक हिंसा भड़का दी, जिसमें 15 से अधिक लोग घायल हो गये। जम कर आगजनी और तोड़फोड़ हुई है और संपत्तियों को नुकसान पहुंचा है। हिंसा की यह आग अब तक पूरी तरह बुझी नहीं है, लेकिन इसे लेकर सियासत पूरी तरह उबाल पर है। सबसे चौंकानेवाली बात यह है कि यह हिंसा राज्य सचिवालय नवान्न से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर हुई।
कैसे भड़की हिंसा
अंजनी पुत्र सेना नामक एक संगठन ने रामनवमी का जुलूस निकालने की घोषणा की थी। संगठन के मुताबिक जुलूस को रामकृष्ण घाट तक जाना था। विश्व हिंदू परिषद ने इलाके में रामनवमी जुलूस निकालने के लिए प्रशासन से अनुमति ली थी। प्रशासन ने जुलूस के साथ पुलिसकर्मियों को भी तैनात किया था। जुलूस जैसे ही शिवपुर के फजीर बाजार पहुंचा, उस पर पथराव हो गया। प्रशासन का कहना है कि शोभायात्रा निकालने वालों ने रूट मैप का पालन नहीं किया और गलत रास्ते से शोभायात्रा निकाली। हालांकि आयोजक पुलिस के इस दावे को खारिज करते हैं। उधर तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि जुलूस में डीजे पर भड़काऊ गाने बजाये जा रहे थे, जिसके बाद यह घटना हुई। अंजनी सेना का आरोप है कि पथराव घरों की छतों पर से किया गया और पुलिस उपद्रवियों पर कोई कार्रवाई नहीं कर पायी। पथराव की वजह से यात्रा में शामिल कई लोगों के सिर फूट गये। हिंसा भड़कने के बाद हावड़ा के पुलिस कमिश्नर प्रवीण त्रिपाठी खुद शिवपुर पहुंचे, जिसके बाद पुलिस ने स्थिति को संभाला।
हावड़ा में एक साल में तीन बड़ी हिंसा
हावड़ा में पिछले एक साल में तीन बार इस तरह की हिंसा देखने को मिली है। पिछले साल 10 अप्रैल को रामनवमी के जुलूस पर पथराव के बाद हिंसा भड़की थी। इसमें 10 लोग घायल हुए थे। इसके बाद भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा के बयान के खिलाफ हावड़ा में प्रदर्शन कर रहे कुछ लोगों ने 11 जून को पुलिस की गाड़ी पर पथराव कर दिया। इसके बाद हिंसा भड़की। हिंसा के बाद बंगाल पुलिस ने नूपुर शर्मा को भी नोटिस भेजा था। तीसरी बार यह हिंसा हुई।
बार-बार क्यों भड़कती है हिंसा
हावड़ा पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से लगा हुआ है। कोलकाता की तरह हावड़ा में भी कमिश्नर प्रणाली है और यहां अधिकांश बड़े नेताओं का घर है। राज्य का सचिवालय नवान्न भी हावड़ा में ही है। इसके बावजूद हावड़ा में बार-बार हिंसा क्यों भड़क उठती है? इस सवाल का जवाब आसान नहीं है। जानकारों का मानना है कि स्थानीय पुलिस प्रशासन का ढीला-ढाला रवैया ही इस तनाव का कारण है। इसके अलावा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश भी एक वजह है। पचिम बंगाल में इस साल दो हजार से ज्यादा जगहों पर रामनवमी के जुलूस निकालने की अनुमति प्रशासन ने दी थी। अधिकांश जगहों पर विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने इसका आयोजन किया था। जानकार कहते हैं कि पश्चिम बंगाल में डीजे के साथ शोभायात्रा निकालने की पहले कोई परंपरा नहीं थी। यहां अधिकांश लोग भगवान राम की तुलना में कृष्ण को मानते हैं और इसकी वजह चैतन्य महाप्रभु थे। भगवान कृष्ण और नारायण से जुड़े किसी भी आयोजन में हिंसा की खबरें नहीं आती हैं, लेकिन रामनवमी के जुलूस में हर साल कहीं न कहीं से हिंसा की खबरें आ ही जाती हैं। अमूमन उन इलाकों से, जहां मुसलमान ज्यादा हैं। इसलिए इसके पैटर्न को समझने की जरूरत है।
2011 की जनगणना के मुताबिक हावड़ा की आबादी करीब 48 लाख है। इनमें मुसलमानों की आबादी 26 फीसदी से ज्यादा है। पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद, मालदा, दिनाजपुर के बाद हावड़ा में ही मुसलमान सबसे ज्यादा रहते हैं। यहां बंगाली मुसलमान के साथ-साथ हिंदी भाषी मुसलमान भी रहते हैं। राजधानी के करीब होने की वजह से हावड़ा के शिवपुरी में खूब अवैध निर्माण हुआ है। इलाके में मुख्य सड़क के दोनों ओर बहुमंजिली इमारत बनी हुई है। साथ ही इलाके की गलियां काफी संकरी हैं।
सियासत का हथियार बन गया है रामनवमी का त्योहार
पश्चिम बंगाल में कोई एक दशक पहले तक रामनवमी का त्योहार चुनिंदा मंदिरों और आम लोगों के घरों तक ही सीमित था, लेकिन अब सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा के बीच यह पर्व सियासत का प्रमुख हथियार बन गया है। रामनवमी के मौके पर हथियारों के साथ जुलूस निकालने के मुद्दे पर सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी के साथ भाजपा से जुड़े संगठनों का लगातार टकराव होता रहा है। दरअसल रामनवमी और हनुमान जयंती उत्सवों के बहाने विहिप और संघ ने वर्ष 2014 से ही राज्य में पांव जमाने की कवायद शुरू कर दी थी। और हर बीतते साल के साथ आयोजनों का स्वरूप बदला और इन संगठनों के पैरों तले की जमीन भी मजबूत होती रही। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने अगर तमाम राजनीतिक पंडितों के अनुमानों को झुठलाते हुए 42 में से 18 सीटें जीत लीं, तो इसमें इन आयोजनों की अहम भूमिका रही है। उसके बाद साल दर साल इस मौके पर आयोजन और उसकी भव्यता बढ़ती ही जा रही है। बीते लोकसभा चुनावों में भाजपा के मजबूत प्रदर्शन के बाद इस त्योहार पर सियासत का रंग और गहरा हुआ है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण विधानसभा चुनाव में सामने आया, जब भाजपा ने राज्य विधानसभा की 77 सीटें जीत कर वाम मोर्चा और कांग्रेस को पीछे छोड़ दिया। अब जल्दी ही होनेवाले पंचायत चुनावों को ध्यान में रखते हुए दोनों पक्ष सक्रिय हो गये हैं।
शिवपुर हिंसा के मुद्दे पर सियासी टकराव इस कदर बढ़ गया है कि तृणमूल कांग्रेस और भाजपा एक-दूसरे को घेरने में लगे हैं। हिंसक वारदात के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा राज्यपाल से सीधे बात किये जाने और फिर विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी द्वारा हाइकोर्ट में याचिका दायर किये जाने को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राज्य सरकार को अस्थिर करने की साजिश करार देती हैं। उधर भाजपा का कहना है कि यह हिंसा तृणमूल कांग्रेस और ममता की तुष्टिकरण की नीतियों की वजह से हुई है। वास्तविकता चाहे जो हो, लेकिन इतना तय है कि पश्चिम बंगाल की यह स्थिति देश की सेहत के लिए अच्छी नहीं कही जा सकती है।