विशेष
-सचिन के ‘पायलट प्रोजेक्ट’ ने बढ़ायी कांग्रेस की मुसीबत
-निर्णायक दौर में पहुंच गया है कांग्रेस का अंदरूनी कलह
राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने भाजपा राज में हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई नहीं होने के मुद्दे पर अनशन कर राज्य में अपनी ही सरकार पर सवाल खड़े कर दिये हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने कांग्रेस को ऐसे दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहां से पीछे जाना आलाकमान के लिए भी असंभव है। सचिन का यह ‘पायलट प्रोजेक्ट’ चुनावी साल में निर्णायक रूप से सामने आया है। अब राजस्थान में कांग्रेस का अंदरूनी विवाद उस मोड़ पर पहुंच गया है, जहां एक भी गलत या विलंबित फैसला देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के भविष्य को न केवल अंधकार में पहुंचा देगा, बल्कि राजस्थान में उसका सूरज शायद हमेशा के लिए अस्त कर देगा। इस ‘पायलट प्रोजेक्ट’ को कांग्रेस में फिर नयी लड़ाई की शुरूआत के तौर पर देखा जा सकता है। चुनावी साल में पायलट खेमे के इस दांव के पीछे एक बड़ी सियासी रणनीति है। अब यह साफ हो गया है कि पायलट खेमा अब पार्टी के भीतर रह कर लड़ाई को तेज करने की रणनीति पर चल रहा है। पायलट का पूरा एक्शन इसी ‘प्रेशर पॉलिटिक्स’ का हिस्सा है। अशोक गहलोत पार्टी आलाकमान को पार्टी अध्यक्ष के चुनाव के समय ही अपनी ताकत दिखा चुके हैं, इसलिए पायलट खेमे का मानना है कि अब उसकी बारी है कि वह आलाकमान को एक चुनौती दे। इसलिए अनशन स्थल पर न कांग्रेस नेताओं की तस्वीर लगी थी और न ही कांग्रेस का चुनाव चिह्न ही था। इस परिस्थिति में अब यह सवाल महत्वपूर्ण हो जाता है कि कांग्रेस आलाकमान क्या रुख अपनायेगा। साढ़े चार साल से चल रहे इस विवाद के कारण क्या राजस्थान में पंजाब जैसी स्थिति पैदा हो जायेगी। इन सभी सवालों का जवाब तलाश रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
राजस्थान के रण में एक बार फिर खलबली मची हुई है। वजह सियासी मैदान के दो दिग्गजों का आमना-सामना है। ये दिग्गज अलग-अलग दल के नहीं, बल्कि एक ही पार्टी के हैं। यह पार्टी देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस है, जिसने कड़ी मशक्कत के बाद 2018 में राजस्थान की सत्ता हासिल की थी। राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट मतभेदों को लेकर एक बार फिर आमने-सामने हैं। हालांकि यह पहली बार नहीं है, जब दोनों के बीच तलवारें खिंची हैं। पहले भी ये दोनों अपने हितों को लेकर टकरा चुके हैं। हालांकि तब आलाकमान ने मामले को शांत कराया था, लेकिन इस बार गणित कुछ और ही है। राज्य में इसी साल के अंत में विधानसभा का चुनाव होना है और कांग्रेस हर कीमत पर सत्ता में वापस आने की कोशिश में जुटी हुई है। इसलिए सचिन पायलट एक बार फिर अपनी जमीन तलाशने में जुटे हुए हैं। वह पिछली बार की गलती को तो दोहराना नहीं चाहते, लेकिन किसी भी कीमत पर अपनी जरूरतों को भी भुलाना नहीं चाहते हैं। इसलिए उन्होंने अनशन की राह अपनायी है। वह महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती के मौके पर जयपुर के शहीद स्मारक पर अपने समर्थकों के साथ अनशन पर बैठे। खास बात यह है कि यह अनशन सचिन पायलट ने भ्रष्टाचार के खिलाफ किया है। सचिन का आरोप है कि गहलोत सरकार ने वसुंधरा सरकार द्वारा किये गये भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। अब सवाल उठता है कि अपनी ही सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार की यह लड़ाई कैसी है?
इस सवाल को दबाने के लिए सचिन ने इसे वसुंधरा राजे के कार्यकाल का भ्रष्टाचार बताते हुए इसके खिलाफ जंग का एलान किया। लेकिन एक बार फिर वह यह भूल गये कि सरकार के साढ़े चार साल के कार्यकाल में वह क्या कर रहे थे, यानी निशाना सीधे तौर पर अशोक गहलोत और आलाकमान ही हैं। अनशन के साथ राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले सचिन ने अपना ‘पायलट प्रोजेक्ट’, जिसे वह काफी वक्त से तैयार कर रहे थे, लांच कर दिया है।
क्या है ‘पायलट प्रोजेक्ट’
सचिन पायलट बीते लंबे समय से कांग्रेस पार्टी में अपने वजूद को तलाशने में जुटे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान उन्हें उम्मीद थी कि पार्टी युवा नेतृत्व के हाथ में राजस्थान की बागडोर सौंपेगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं और अशोक गहलोत के सिर सीएम का ताज पहनाया गया। सचिन को उप मुख्यमंत्री बन कर संतोष करना पड़ा, लेकिन यह तमगा भी उनके साथ ज्यादा दिन नहीं रहा। यही वजह है कि राज्य और राजनीति में अपनी मजबूत स्थिति बनाने के लिए सचिन पायलट के पास ज्यादा समय नहीं बचा है। अगले सात महीने में प्रदेश में विधानसभा चुनाव होना है। ऐसे में अगर वह अपनी ही पार्टी में अपनी जगह को मजबूत स्थिति में नहीं ला पाते हैं, तो उनके पास फिर एक ही विकल्प बचता है और वह है ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद समेत कांग्रेस के अन्य बागी नेताओं की तरह पार्टी छोड़ देना और भाजपा का दामन थाम लेना, लेकिन इसके लिए भी उनके पास यही आखिरी वक्त है।
यही वजह है कि सचिन ने अपने ‘पायलट प्रोजेक्ट’ को सही समय पर लांच कर दिया है। इससे या तो वह अपनी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर दबाव बना कर आगामी चुनाव में अपनी मांगों को पूरा करा सकेंगे या फिर समय रहते आलाकमान के इरादों को समझ कर पार्टी छोड़ भाजपा में चले जायेंगे या फिर नयी पार्टी का गठन कर सकते हैं।
पायलट को मनाने की तैयारी
कांग्रेस नेतृत्व वैसे तो सचिन पायलट के रुख से नाराज है। पार्टी की ओर से एक पत्र भी जारी किया गया और सचिन पायलट के अनशन को सही नहीं बताया गया है। बावजूद इसके, पायलट को मनाने की केंद्रीय नेतृत्व ने भरपूर तैयारी की। कांग्रेस के प्रभारी सुखविंदर सिंह रंधावा जयपुर पहुंचे और उन्होंने सचिन पायलट को भ्रष्टाचार वाले मामलों की जांच कराने समेत कुछ अन्य आश्वासन देकर मामला शांत कराने की कोशिश की, लेकिन इससे बात नहीं बनी। अब अनशन के बाद पायलट को दिल्ली बुलाया गया है। उम्मीद की जा रही है कि वह सोनिया गांधी से मुलाकात करेंगे और इसके बाद ही तस्वीर पूरी तरह साफ होगी। अगर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से भी बात नहीं बनती है, तो चुनाव से पहले अशोक गहलोत के साथ-साथ कांग्रेस के लिए भी नयी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। पार्टी के सामने चुनौती यह है कि चुनाव नजदीक है और अंदरूनी कलह के साथ पार्टी नेता किस आधार पर जनता के बीच जायेंगे और किस आधार पर वोट मांगेंगे।
निर्णय लेने में बहुत धीमा है कांग्रेस नेतृत्व
कांग्रेस के लिए भी यह वक्त किसी गहन मंथन का है, क्योंकि सचिन पायलट अचानक अनशन पर नहीं बैठे। इसको लेकर पहले से ही तैयारी चल रही थी, लेकिन कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की ओर से इसको लेकर समय पर कोई कदम नहीं उठाया गया। इस तरह के मामलों में अकसर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की प्रतिक्रिया बेहद धीमी रहती है, जो पार्टी को बड़े नुकसान की तरफ ले जाती है। फिर चाहे वह ज्योतिरादित्य का मामला हो, जितिन प्रसाद हों या फिर गुलाम नबी आजाद। हर मामले ने पार्टी का ढुलमुल या फिर धीमा रवैया एक बड़ी कमजोरी बनता जा रहा है। ऐसे में सवाल यह भी है कि क्या कांग्रेस आलाकमान इस विवाद को खत्म करेगा या फिर उसका अगला कदम क्या होगा।
यह बात जगजाहिर है कि पायलट और गहलोत के बीच लंबे समय से बातचीत नहीं हुई है। दोनों के बीच तल्खियां कम होने की जगह बढ़ी हैं। हाल ही में सीएम गहलोत ने एक सवाल के जवाब में तंज भरे लहजे में पायलट को लेकर कहा था कि अभी तो वह कांग्रेस में ही हैं। गहलोत समर्थक मंत्री और नेता भी पायलट पर तंज कसते आ रहे हैं। मंत्री रामलाल जाट ने पायलट पर दोगलापन के आरोप लगाये थे। तब पायलट समर्थक मंत्री हेमाराम चौधरी ने कहा था कि ये सब लोग मिल कर सचिन को कांग्रेस से बाहर करना चाहते हैं, लेकिन ऐसा होगा नहीं। इससे साफ जाहिर होता है कि पायलट और गहलोत के बीच खींचतान बहुत आगे पहुंच चुकी है। अब आलाकमान जब दोनों को आमने-सामने बैठा कर बात करेगा, तभी सुलह का रास्ता निकल सकता है। पायलट के मौजूदा स्टैंड के बाद अब हाइकमान को दखल देने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। कांग्रेस आलाकमान के लिए यह बहुत नाजुक वक्त है। कांग्रेस छोड़ कर जानेवाले नेताओं की लाइन लगी है। ऐसे में आलाकमान नहीं चाहेगा कि जिस नेता को असेट कहा, उसके खिलाफ एक्शन लिया जाये। हालांकि इस पूरे मुद्दे पर गहलोत के साथ हाइकमान को भी डैमेज कंट्रोल का तरीका तो खोजना ही पड़ेगा।