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    Home»स्पेशल रिपोर्ट»‘बाहरी’ को सांसद चुनने के कलंक को मिटाना चाहता है चतरा
    स्पेशल रिपोर्ट

    ‘बाहरी’ को सांसद चुनने के कलंक को मिटाना चाहता है चतरा

    adminBy adminApril 8, 2024Updated:April 9, 2024No Comments9 Mins Read
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    विशेष
    -कभी नक्सलियों का गढ़ रहे झारखंड के चतरा को अब भी है विकास की आस
    -भाजपा ने स्थानीय को उम्मीदवार बनाया, इंडी गठबंधन के सामने है बड़ा चैलेंज

    झारखंड के 14 संसदीय क्षेत्रों में जो आठ अनारक्षित हैं, उनमें से एक है चतरा, जो पूरी दुनिया में केवल इसलिए चर्चित है, क्योंकि यहां से आज तक जितने भी सांसद चुने गये हैं, उनमें से कोई भी यहां के वोटर नहीं रहे, यानी चतरा ने अब तक ‘बाहरी’ सांसद को ही चुना है। लेकिन इस बार यह संसदीय क्षेत्र इस कलंक को मिटाने के लिए छटपटा रहा है। इसलिए चुनाव की घोषणा से पहले से ही इस मुद्दे का शोर चतरा में सुनाई देने लगा था, जिसने सभी दलों को सतर्क कर दिया। भाजपा ने अपने सीटिंग सांसद सुनील कुमार सिंह का टिकट काट कर एक स्थानीय नेता कालीचरण सिंह को चतरा से उम्मीदवार बनाया है, जिसके कारण अब इंडी अलायंस के सामने बड़ी चुनौती उत्पन्न हो गयी है। इस गठबंधन में शामिल दलों के बीच चतरा सीट को लेकर रस्साकशी चल रही है। उत्तरी छोटानागपुर डिवीजन का यह जिला बेहद पिछड़ा तो है ही, विकास के लिए उसकी छटपटाहट को भी शिद्दत से महसूस किये जाने की जरूरत है। चतरा कभी पूरी दुनिया में चर्चित हुआ था, क्योंकि नक्सलियों ने इसे पहला ‘लिबरेटेड जोन’ (स्वतंत्र क्षेत्र) घोषित किया था। बिहार के गया से सटे होने के कारण चतरा कभी नक्सलियों का गढ़ हुआ करता था, लेकिन अब यहां आम तौर पर शांति है। गरीबी और पिछड़ेपन के अलावा पलायन जैसे मुद्दे यहां भी हैं, लेकिन इस बार चारों तरफ ‘स्थानीय सांसद’ का ही शोर सुनाई दे रहा है। इसलिए राजनीतिक दलों की चिंता बढ़ गयी है। चतरा संसदीय क्षेत्र का क्या है राजनीतिक माहौल और क्या हो सकते हैं चुनावी मुद्दे, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    झारखंड का चतरा संसदीय क्षेत्र देशभर में चर्चा का विषय बनता रहता है, क्योंकि यह देश का एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां से अब तक कोई भी स्थानीय नेता सांसद नहीं बन पाया है। इस बात से चतरा की जनता में भी खासी नाराजगी रहती है। इसे देखते हुए भाजपा ने मौजूदा सांसद सुनील सिंह का टिकट काट कर स्थानीय नेता कालीचरण सिंह को टिकट थमाया है। अगर वह जीत का परचम लहराते हैं, तो चतरा में एक नया इतिहास लिखा जायेगा। उनके सामने इंडी गठबंधन की ओर से किस पार्टी से उम्मीदवार होगा, इसकी घोषणा अब तक नहीं की गयी है, लेकिन ऐसे संकेत हैं कि यहां से राजद प्रत्याशी उतार सकता है। ‘स्थानीय’ प्रत्याशी देना उसके लिए बड़ी चुनौती है। अभी तक की जो स्थिति है और मतदाताओं का जो रुझान है, उससे लगता है कि चतरा से बाहर का कोई प्रत्याशी आया, तो वह स्थानीय और बाहरी की जंग में बाहर हो जायेगा, ऐसा चतरा के निवासी कहते हैं। उनका कहना है कि चतरा की धरती पर उम्मीदवारों की कमी नहीं है। यहां के लोग इतने नाकाम नहीं हैं कि चुनाव नहीं लड़ सकते। आखिर हम कब तक बाहर के लोगों को अपना रहनुमा चुनते रहेंगे। उनकी पीड़ा है कि 2019 तक सारी राष्टÑीय पार्टियों ने बाहर से लाकर हमारे ऊपर उम्मीदवार थोप दिया। नतीजा यह रहा कि वह जीतने के बाद मेहमान बन गया। साल में कभी कभार उसके दर्शन होते थे। ऐसे में वह यहां की समस्याओं से कितना रूबरू होता। परिणाम यह रहा कि इस इलाके में स्थापित उद्योग भी दम तोड़ बैठे और आज उनका ढांचा मात्र खड़ा है। कारखाने के लालच में किसानों ने अपनी जमीन देकर ट्रक खरीद लिया कि उससे कमाई करेंगे। कारखाना बंद होने के बाद ट्रक दरवाजे पर खड़े हो गये। कुछ तो बैंक ने किश्त नहीं देने के कारण खींच लिया। जिसकी किश्त जमा हो गयी थी, उनमें से कई ट्रक खड़े-खड़े जर्जर हो गये। आज उनका ढांचा मात्र बचा है। जमीन देकर ट्रक खरीदने वाले किसान कंगाल हो गये हैं। उनके सामने भुखमरी की नौबत आ गयी है। जिन युवकों को रोजगार मिला था, वह बेरोजगार होकर फांकाकशी कर रहे हैं। अब तो कारखाने को चोरों ने खोखला कर दिया है। अरबों के कबाड़ चोरी हो चुके हैं।
    झारखंड का चतरा संसदीय क्षेत्र राज्य की आठ सामान्य सीटों में से एक है। बिहार के गया जिले से सटे चतरा को कभी नक्सलियों का गढ़ माना जाता था, लेकिन अब स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है।

    चतरा का राजनीतिक परिदृश्य
    चतरा वैसे तो सामान्य सीट है, लेकिन इस सीट के जातीय समीकरण पर एक नजर डालें, तो यहां अनुसूचित जाति के वोटरों का अधिक प्रभाव है। चतरा में अनुसूचित जाति की आबादी 28.24 प्रतिशत है, वहीं अनुसूचित जनजाति की आबादी 19.39 प्रतिशत है। चतरा के अंतर्गत पांच विधानसभा सीटें आती हैं, जिसमें से दो पर भाजपा के विधायक हैं, तो एक-एक राजद, कांग्रेस और झामुमो के पास है। सिमरिया से किशुन कुमार दास और पांकी में डॉ शशि भूषण मेहता विधायक हैं। ये दोनों भाजपा के हैं। चतरा से राजद के सत्यानंद भोक्ता, मनिका से कांग्रेस के रामचंद्र सिंह और लातेहार से झामुमो के बैद्यनाथ राम विधायक हैं।

    चतरा के प्रमुख चुनावी मुद्दे
    सबसे खास बात यह है कि चतरा लोकसभा क्षेत्र ऐसा क्षेत्र है, जहां से आज तक कोई भी स्थानीय व्यक्ति सांसद नहीं बन सका है। यानी चतरा संसदीय क्षेत्र के सांसद हमेशा किसी दूसरे क्षेत्र के रहने वाले लोग रहे हैं। यहां सांसद बनने के बाद उनका दर्शन दुर्लभ हो जाता है और प्रतिनिधियों पर क्षेत्र से गायब रहने का आरोप लगता है। इसलिए लोग इस बार इस दाग को मिटाने के लिए आतुर दिख रहे हैं। शिक्षा के मामले में भी यह इलाका पूरी तरह पिछड़ा हुआ है। इसके अलावा भूमि सर्वेक्षण में अनियमितता और भूमि विवाद इस पूरे इलाके के मुख्य मुद्दे हैं। लेकिन इन मुद्दों पर जन प्रतिनिधियों द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता है।

    चतरा का चुनावी इतिहास
    वर्ष 1957 से अब तक चतरा संसदीय क्षेत्र का सांसद बनने का सौभाग्य चतरा के स्थानीय लोगों को नहीं मिला है। कोडरमा और हजारीबाग संसदीय क्षेत्र से विभाजित होकर चतरा संसदीय क्षेत्र का निर्माण हुआ। अभी तक चतरा संसदीय क्षेत्र से जितने भी सांसद निर्वाचित हुए हैं, सभी चतरा जिले के बाहर के मतदाता रहे हैं। चतरा संसदीय क्षेत्र से 1957 में पहली बार महारानी विजया राजे सांसद बनीं। उनका संबंध पदमा (रामगढ़) के राजघराने से था। वह मूलत: हजारीबाग संसदीय क्षेत्र की मतदाता थीं। वह लगातार तीन बार चतरा से सांसद बनीं। वर्ष 1971 के चुनाव में शंकरदयाल सिंह चतरा के सांसद निर्वाचित हुए। वह अविभाजित बिहार के औरंगाबाद जिले के थे। वर्ष 1977 में सुखदेव प्रसाद वर्मा सांसद चुने गये। श्री वर्मा बिहार के जहानाबाद के रहने वाले थे। इसके बाद 1980 में गया निवासी रंजीत सिंह चतरा के सांसद बने। वर्ष 1984 में धनबाद के योगेश्वर प्रसाद योगेश चतरा से सांसद निर्वाचित हुए। लगातार दो बार 1989 और 1991 में चतरा के लिए निर्वाचित सांसद उपेंद्रनाथ वर्मा का संबंध गया के मानपुर से था। इनके बाद धीरेंद्र अग्रवाल को वर्ष 1996 और वर्ष 1998 में लगातार दो बार चतरा के लिए सांसद बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वह भी गया के निवासी थे। चतरा संसदीय क्षेत्र से 1999 में संसद सदस्य बनने वाले नागमणि मूलत: जहानाबाद जिले के निवासी हैं। वर्ष 2004 में एक बार फिर धीरेंद्र अग्रवाल को यह सौभाग्य प्राप्त हुआ। वर्ष 2009 के संसदीय आम चुनाव में चतरा के मतदाताओं ने इतिहास रचते हुए झारखंड विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी को मौका दिया। श्री नामधारी ने यह चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़ा था। श्री नामधारी का संबंध पलामू के डालटनगंज से है। इसके बाद 2014 में बक्सर और रांची से ताल्लुक रखने वाले सुनील कुमार सिंह ने चतरा की मार्फत लोकसभा में प्रवेश किया। 2019 में भी वह सांसद चुने गये। इस प्रकार चतरा संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद चतरा के मतदाता नहीं रहे। बाहरी उम्मीदवारों का दबदबा रहा और चतरा के निवासी यह बर्दाश्त करते रहे। अब इंतजार है 2024 के संसदीय चुनाव का। देखना है चतरा के मतदाता इस बार क्या गुल खिलाते हैं।

    क्या है ‘बाहरी’ सांसद का मुद्दा
    चतरा लोकसभा क्षेत्र का अब तक इतिहास रहा है कि यहां से कोई भी स्थानीय निवासी सांसद नहीं बना है। क्षेत्र में मजबूत समझे जाने वाले किसी भी राष्ट्रीय अथवा क्षेत्रीय दल ने चतरा संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत निवास करने वाले किसी भी व्यक्ति को अपना प्रत्याशी आज तक नहीं बनाया है। अब, जब मजबूत राजनीतिक दलों के द्वारा स्थानीय लोगों को प्रत्याशी ही नहीं बनाया जाता है, तो फिर स्थानीय सांसद की कल्पना साकार कैसे होगी। स्थानीय सांसद नहीं होने के कारण सांसदों का संपर्क आम लोगों से नहीं रहता है। बाहरी होने के कारण सांसदों के प्रति आम लोगों के मन में भी अपनत्व की भावना नहीं बन पाती है। इसका प्रभाव यह पड़ता है कि सांसद दो-चार लोगों के बीच घिर कर रह जाते हैं और जनता से पूरी तरह कट जाते हैं। परिणाम होता है कि दोबारा जब सांसद चुनाव मैदान में उतरते हैं तो उन्हें आम लोगों के साथ-साथ अपने ही लोगों के विरोध का सामना करना पड़ता है।

    2014 के बाद बदल गया है माहौल
    वर्ष 2014 के बाद देश के कई अन्य हिस्सों की तरह ही चतरा संसदीय क्षेत्र का माहौल भी बदल गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय राजनीति में आने के बाद लोकसभा चुनाव में भाजपा अब पूरी तरह प्रधानमंत्री के चेहरे पर ही निर्भर हो गयी है। भाजपा के नेता और कार्यकर्ता भी जानते हैं कि जनता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर ही भाजपा को वोट करती है। इस बात में सच्चाई है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम ही भाजपा उम्मीदवार की जीत की गारंटी होती है।
    इस बार भाजपा ने कालीचरण सिंह को प्रत्याशी बनाया है, जो अपने ‘स्थानीय’ ब्रांड को भुनाने की खूब कोशिश कर रहे हैं। अब तक उनके प्रतिद्वंद्वी की घोषणा नहीं हुई है और यह उनके पक्ष में जाता दिखाई दे रहा है। इंडी अलायंस में अब तक यह भी तय नहीं हैं कि चतरा से कौन सी पार्टी का उम्मीदवार होगा। वैसे राजद यहां से ताल ठोक रहा है। ऐसे में स्थानीय उम्मीदवार देना इंडी अलायंस के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है। यदि वह भी किसी स्थानीय को प्रत्याशी बनाता है, तो फिर चतरा के सिर से इस बार ‘बाहरी’ को चुनने का कलंक मिट जायेगा।

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