विशेष
-अनुपमा सिंह की इंट्री के बाद ढुल्लू महतो को नये समीकरण बैठाने होंगे
-सरयू राय के मुकाबले में उतर जाने पर हर प्रत्याशी के लिए होगी मुश्किल
देश की कोयला राजधानी के रूप में चर्चित धनबाद संसदीय क्षेत्र का चुनावी मुकाबला हर बीतते हुए दिन के साथ रोमांचक होता जा रहा है। पहले यहां भाजपा द्वारा अपने बाघमारा विधायक ढुल्लू महतो को प्रत्याशी बनाये जाने पर चर्चा हुई और अब कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में अनुपमा सिंह के मैदान में उतरने से मुकाबला दिलचस्प हो गया है। अब इंतजार है चर्चित विधायक और दिग्गज सरयू राय के फैसले का, जिन्होंने धनबाद से चुनाव लड़ने का संकेत दिया है और ढुल्लू महतो के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। यदि वह मुकाबले में उतरते हैं, तो फिर धनबाद का चुनावी मुकाबला सबसे चर्चित हो जायेगा। ढुल्लू महतो जहां इलाके के दबंग विधायक के रूप में चर्चित हैं, वहीं अनुपमा सिंह दिग्गज कांग्रेसी और ट्रेड यूनियन नेता स्व राजेंद्र सिंह की बहू और उनके बेटे और बेरमो के वर्तमान विधायक कुमार जयमंगल उर्फ अनूप सिंह की पत्नी हैं। अनुपमा सिंह को टिकट दिये जाने के फैसले पर बहुत से लोगों को आश्चर्य इसलिए हुआ, क्योंकि वह एक घरेलू महिला हैं और यहां तक कि उनका अपना सोशल मीडिया अकाउंट भी नहीं है। कांग्रेस ने अनुपमा सिंह को उम्मीदवार बनाने का फैसला कर बड़ा दांव चला है। धनबाद में अभी सीधे मुकाबले की तस्वीर बनी है, लेकिन यदि सरयू राय भी उतरे, तो यह त्रिकोणीय हो जायेगा, जिसमें हर किसी के लिए बराबर की चुनौती होगी। क्या है धनबाद संसदीय सीट का चुनावी परिदृश्य और कैसे हैं हालात, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
भारत की कोयला राजधानी के नाम से मशहूर धनबाद संसदीय क्षेत्र का मुकाबला इस बार बेहद ही दिलचस्प होने जा रहा है। इस सीट से सात बार भारतीय जनता पार्टी ने और छह बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है। 2009 के बाद से लगातार भाजपा के पशुपतिनाथ सिंह यहां से जीत रहे थे, लेकिन 2024 चुनाव के लिए भाजपा ने उनकी जगह अपने बाघमारा विधायक ढुल्लू महतो को उम्मीदवार बनाया है। उम्मीदवार बनाये जाने के बाद से ही ढुल्लू महतो के खिलाफ निर्दलीय विधायक सरयू राय मोर्चा खोले हुए हैं। वहीं कांग्रेस ने बेरमो के विधायक कुमार जयमंगल की पत्नी अनुपमा सिंह पर भरोसा जताया है। ऐसे में माना जा रहा है कि इस सीट पर मुकाबला रोमांचक होगा।
कौन हैं कांग्रेस की अनुपमा सिंह
अनुपमा सिंह कांग्रेस के दिग्गज नेता स्वर्गीय राजेंद्र सिंह की पुत्रवधू और बेरमो विधायक कुमार जयमंगल उर्फ अनुप सिंह की पत्नी हैं। राजेंद्र सिंह को बेरमो विधानसभा क्षेत्र से तीन बार 2000, 2009 और 2019 में सफलता मिली थी। मई 2020 में उनके निधन के बाद बेरमो सीट पर उपचुनाव हुआ, जिसमें उनके बेटे अनूप सिंह को जीत मिली। उन्होंने भाजपा के योगेश्वर महतो बाटुल को हराया था। राजेंद्र सिंह एक प्रसिद्ध श्रमिक नेता थे, जिन्होंने दशकों तक ट्रेड यूनियन इंटक पर शासन किया। धनबाद और बोकारो में कोयला और इस्पात उद्योग से जुड़े श्रमिक वर्ग पर उनकी अच्छी पकड़ थी। कांग्रेस अनुपमा के सहारे राजेंद्र सिंह की लोकप्रियता को भुनाना चाहती है। मूल रूप से बोकारो की रहनेवाली अनुपमा की कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं है। यहां तक कि उनका अपना सोशल मीडिया अकाउंट भी नहीं है। ऐसे गैर-राजनीतिक व्यक्ति को टिकट मिल जाना जरूर किसी बड़े दांव का संकेत देता है।
दोनों प्रत्याशी बाहरी हैं
धनबाद लोकसभा क्षेत्र का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि अब तक घोषित दोनों प्रत्याशी यहां के वोटर नहीं हैं। ढुल्लू महतो जहां बाघमारा के हैं, वहीं अनुपमा सिंह बेरमो की हैं। ये दोनों इलाके धनबाद संसदीय क्षेत्र में नहीं आते हैं। अब यदि सरयू राय भी यहां से ताल ठोकते हैं, तो वह भी बाहरी ही होंगे। तो इस तरह झारखंड के सबसे बड़े लोकसभा क्षेत्र के मतदाताओं को इस बार बाहरी सांसद ही चुनना होगा। धनबाद में आज सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस 2004 में रचा इतिहास दोहरायेगी। उस चुनाव में पलामू जिले के विश्रामपुर के विधायक सह श्रमिक नेता ददई दुबे को जब पार्टी का टिकट दिया गया, तो उन्होंने तत्कालीन भाजपा सांसद प्रोफेसर रीता वर्मा को एक लाख वोटों के आसान अंतर से हरा दिया था। इस बार भी कोयलांचल के मतदाताओं के लिए दो बाहरी लोगों में से किसी एक को चुनने की आ गयी है।
किसकी कितनी ताकत
धनबाद संसदीय क्षेत्र में ढुल्लू महतो की मुख्य ताकत उनके पास मौजूद अकूत संसाधन और समर्थकों की फौज है। कोयलांचल में उनका दबदबा है और उनके पीछे भाजपा के कैडर तो हैं ही। लेकिन यदि वह यह सोच रहे हैं कि भाजपा समर्थकों का पूरा वोट उन्हें मिल जायेगा, तो यह उनकी भूल साबित हो सकती है। भाजपा वोटरों का बड़ा वर्ग उनसे बेहद नाराज है और इसका खामियाजा उन्हें उठाना पड़ सकता है। दूसरी तरफ अनुपमा सिंह भले ही संसाधनों के मामले में कम न हों, लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं के मामले में वह कमतर जरूर हैं। उन्हें कांग्रेस के भीतर की खेमेबंदी को दूर करने के लिए बहुत काम करना होगा। यदि वह यह मान कर चल रही हैं कि कांग्रेस का परंपरागत वोट उन्हें मिलेगा, तो यह उनका भ्रम साबित हो सकता है। अनुपमा सिंह धनबाद की राजनीति में नयी हैं, वह अपने पति अन्ूुप सिंह और दिवंगत ससुर राजेंद्र सिंह के चेहरे पर काफी हद तक निर्भर हैं। कांग्रेस में भी कई खेमा है और इन खेमों को एक करने में अनूप सिंह को एड़ी-चोटी एक करनी होगी।
सरयू राय के फैसले का इंतजार
झारखंड के चर्चित विधायक सरयू राय ने धनबाद लोकसभा से चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस सहित तमाम नेताओं से मदद मांगी थी, लेकिन कांग्रेस ने तो अब उम्मीदवार की घोषणा कर दी है। तो क्या सरयू राय धनबाद से निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे। हांलांकि उन्होंने अपनी रणनीति का खुलासा अब तक नहीं किया है, लेकिन यदि वह जिस तरह भाजपा प्रत्याशी ढुल्लू महतो के खिलाफ हमलावर हैं और विधायक की कथित गड़बड़ियों का खुलासा कर रहे हैं, उससे तो यही संकेत मिलता है कि वह मैदान में उतरने का मन बना चुके हैं। वैसे सरयू राय ने धनबाद से चुनाव लड़ने का मन हाल-फिलहाल में नहीं बनाया है। उन्होंने काफी पहले से इसकी तैयारी शुरू कर दी थी। पहले तो यह चर्चा चली कि सरयू राय फिर से भाजपा में शामिल हो सकते हैं, लेकिन यह बात आगे नहीं बढ़ी। फिर एक हवा उठी कि नीतीश कुमार जदयू के लिए धनबाद सीट मांग सकते हैं और सरयू राय को धनबाद से चुनाव लड़ाया जा सकता है। यह भी सिर्फ चर्चा ही साबित हुई। उसके बाद सरयू राय ने धनबाद से चुनाव लड़ने का मन बनाना शुरू किया। धनबाद से जैसे ही भाजपा ने ढुल्लू महतो को अपना उम्मीदवार बनाया, सरयू राय ने वहां से लड़ने का संकेत दे दिया। अब तो वह ताल ठोक कर ढुल्लू महतो के खिलाफ बोल रहे हैं। इससे यह साफ है कि सरयू राय धनबाद सीट से चुनाव में उतरेंगे ही।
22 लाख से अधिक हैं मतदाता
मतदाता संख्या के दृष्टिकोण से धनबाद संसदीय क्षेत्र पूरे झारखंड का सबसे बड़ा लोकसभा क्षेत्र है। यहां के छह विधानसभा क्षेत्रों को मिला कर कुल 22 लाख 40 हजार 276 मतदाता हैं। पूरे राज्य में इससे अधिक मतदाता किसी लोकसभा क्षेत्र में नहीं हैं। धनबाद लोकसभा क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र हैं। इनमें धनबाद, बोकारो, सिंदरी, झरिया, चंदनकियारी और निरसा विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। धनबाद में पुरुष मतदाताओं की संख्या 11 लाख 74 हजार 67 है, जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 10 लाख 66 हजार 137 है। धनबाद संसदीय क्षेत्र में सबसे अधिक मतदाता बोकारो विधानसभा क्षेत्र में पांच लाख 55 हजार 328 हैं, जबकि धनबाद विस क्षेत्र में चार लाख 43 हजार 835, चंदनकियारी में दो लाख 72 हजार 337, सिंदरी में तीन लाख 50 हजार 185, निरसा में तीन लाख 27 हजार 374 और झरिया में दो लाख 91 हजार 217 मतदाता हैं।
धनबाद का राजनीतिक परिदृश्य
धनबाद लोकसभा क्षेत्र के अंदर छह विधानसभा सीटें हैं। इनमें से पांच विधानसभा सीट फिलहाल भाजपा के कब्जे में है, जबकि एक सीट कांग्रेस के पास है। 2019 में चंदनकियारी सीट से भाजपा के अमर बाउरी जीते थे। निरसा से अपर्णा सेन गुप्ता, बोकारो से बिरंची नारायण, सिंदरी से इंद्रजीत महतो, धनबाद से राज सिन्हा चुनाव जीते थे। वहीं झरिया विधानसभा सीट पर कांग्रेस की पूर्णिमा नीरज सिंह ने जीत हासिल की थी। विधानसभावार स्थिति देखें तो धनबाद में भाजपा काफी मजबूत स्थिति में है। धनबाद लोकसभा सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है। कांग्रेस यहां से छह बार चुनाव जीत चुकी है। भाजपा ने 1991 में धनबाद में पहली बार कब्जा जमाया। 1991 से 2019 तक आठ बार यहां से भाजपा चुनाव जीत चुकी है, जबकि दो बार मासस ने भी यहां से चुनाव जीता है। कांग्रेस ने 2004 में यह सीट जीती थी।
धनबाद में काम नहीं करता स्थानीय फैक्टर
धनबाद संसदीय सीट के चुनाव परिणामों से साफ पता चलता है कि यहां लोकल फैक्टर काम नहीं करता है। कोयला और औद्योगिक इकाइयों के कारण इस संसदीय क्षेत्र में प्रवासी मतदाताओं की अधिकता है। इसलिए यहां स्थानीय प्रत्याशी की बजाय बाहर से भी प्रत्याशी जीतते रहे हैं। दूसरे इलाकों से आकर कई नेता यहां से जीत कर सांसद बनते रहे हैं।
धनबाद के चुनावी मुद्दे
धनबाद संसदीय क्षेत्र में सबसे बड़ा मुद्दा झरिया पुनर्वास है। जमीन के नीचे लगी आग और भू-धंसान के कारण झरिया का पूरा इलाका खतरे में है। यहां के लोगों के पुनर्वास के लिए योजनाएं तो बनीं, लेकिन कुछ हुआ नहीं। इसके अलावा उद्योगों को पुनर्जीवित करना और रोजगार जैसे मुद्दे भी यहां खूब उछलते हैं। श्रमिक संगठनों की आपसी प्रतिद्वंद्विता और कोयले के अवैध कारोबार के कारण धनबाद का इलाका हमेशा से पूरे देश में चर्चित रहा है। चर्चित वासेपुर इसी धनबाद में है, जहां की हवा में अपराध की गंध तैरती है। धनबाद संसदीय क्षेत्र के मतदाता अब इस तरह के तनावपूर्ण माहौल से छुटकारा पाना चाहते हैं।
धनबाद की राजनीति को जानने-समझने वाले बताते हैं कि सरयू राय अगर धनबाद से चुनाव लड़ते हैं, तो मुकाबला रोचक हो जायेगा। त्रिकोणीय संघर्ष होगा, क्योंकि सरयू राय भी चुनावी राजनीति के ‘चाणक्य’ माने जाते है। जमशेदपुर पूर्वी से उन्होंने रघुवर दास को निर्दलीय चुनाव लड़ कर पराजित कर दिया था। जिस समय सरयू राय रघुवर दास के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरे थे, उस समय किसी को यह नहीं लगा था कि वह कद्दावर रघुवर दास को उन्हीं के घर में हरा देंगे। सरयू राय का कहना है कि यह जरूर है कि कांग्रेस ने प्रत्याशी की घोषणा कर दी है, लेकिन इससे उनके चुनाव लड़ने के निर्णय पर बहुत अंतर नहीं पड़ने वाला है।