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    Home»विशेष»‘आदिवासी हार्टलैंड’ लोहरदगा में इस बार भी मुकाबला होगा ‘हार्ड’
    विशेष

    ‘आदिवासी हार्टलैंड’ लोहरदगा में इस बार भी मुकाबला होगा ‘हार्ड’

    adminBy adminApril 17, 2024No Comments9 Mins Read
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    विशेष
    समीर उरांव की मेहनत और सुखदेव भगत की रणनीति का होगा लिटमस टेस्ट
    भाजपा प्रत्याशी के साथ पार्टी के हर तबके का नेता इलाके में बहा रहा पसीना
    कांग्रेस प्रत्याशी के लिए पार्टी के हरेक खेमे का समर्थन जुटाना पड़ रहा है भारी

    लोहरदगा का लोकसभा चुनाव इस बार भी दिलचस्प होनेवाला है। इस चुनाव में मुख्य रूप से टक्कर भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशी के बीच होनेवाली है। एक तरफ जहां भाजपा प्रत्याशी समीर उरांव इस क्षेत्र में दिन-रात एक किये हुए हैं, वहीं सुखदेव भगत भी अपना समीकरण बनाने में लगे हुए हैं। वहीं समर्थन की बात की जाये तो समीर उरांव को पार्टी के हर तबके के नेताओं का पूरा समर्थन मिल रहा है। चाहे वह वर्तमान सांसद सुदर्शन भगत हों या पूर्व विधानसभाध्यक्ष डॉ दिनेश उरांव हों या फिर पूर्व विधायक शिवशंकर उरांव। इस क्षेत्र से जुड़े सभी नेता समीर उरांव के साथ कदमताल करते दिख रहे हैं। हर बूथ कार्यक्रमों में एक साथ मंच साझा कर रहे हैं। दो दिनों तक भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने भी समीर उरांव के साथ खूब पसीना बहाया। उन्होंने बसिया के कोनबीर, रायडीह, बिशुनपुर और लोहरदगा में बूथ स्तरीय कार्यकर्ताओं को चुनावी टिप्स दिये। बाबूलाल मरांडी के दौरे का उद्देश्य यह भी था कि भाजपा के तमाम नेताओं के एक छतरी के नीचे लाया जाये और ऐसा हुआ भी। प्रदेश अध्यक्ष भाजपा के दौरे का लाभ यह रहा कि यहां का हर भाजपा नेता प्रत्याशी समीर उरांव के साथ पूरी मजबूती के साथ मैदान में उतर गये हैं। वहीं महाठगबंधन के उम्मीदवार सुखदेव भगत भी मजबूती से चुनावी रणनीति बनाने में जुट गये हैं। उनके साथ कांग्रेस के कार्यकर्ता भी मैदान में उतरे हैं, लेकिन उन्हें रामेश्वर उरांव और बंधु तिर्की खेमे के नेताओं-कार्यकर्ताओं का खुल कर समर्थन प्राप्त करने के लिए मेहनत करनी होगी। ऊपर-ऊपर तो ये नेता सुखदेव भगत के पक्ष में दिख रहे हैं, लेकिन अंदरखाने इनका मन अभी नहीं मिला है। सांसद धीरज साहू भी इन दिनों राजनीति से दूर-दूर ही दिखाई दे रहे हैं, जिनका सक्रिय योगदान पाने के लिए सुखदेव भगत प्रयास करते दिख रहे हैं। लोहरदगा सीट की जो मौजूदा स्थिति है, उसमें किसी के लिए मैदान मारना बहुत आसान भी नहीं है। वहीं चमरा लिंडा के लोहरदगा लोकसभा से ताल ठोकने से फिलहाल यहां का मौसम कांग्रेस के लिए घिरे काले बादल की तरह है। माना जा रहा है कि चमरा लिंडा अगर मैदान में उतरे, तो उसका सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को होगा। क्या है लोहरदगा लोकसभा की मौजूदा स्थिति बता रहे हैं आजाद सिपाही के विदेश संवाददाता राकेश सिंह।

    लोहरदगा संसदीय क्षेत्र झारखंड के 14 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। जिला मुख्यालय होने के कारण यहां पर सभी प्रमुख प्रशासनिक कार्यालय हैं। जैन पुराणों के अनुसार भगवान महावीर ने लोहरदगा की यात्रा की थी। कोयल, शंख, नंदिनी, चौपाट, फुलझर नदियों से घिरा यह क्षेत्र झारखंड के दक्षिण पश्चिम में है। इस इलाके में छोटे-छोटे पहाड़, जंगल और झरने हैं, जिनकी वजह से यहां खूबसूरत नजारे दिखाई देते हैं। यहां का लावापानी जलप्रपात पर्यटकों को खूब लुभाता है। यहां पर बड़ी मात्रा में बॉक्साइट पाया जाता है। लोहरदगा पूरी दुनिया में अपनी बॉक्साइट खदानों के लिए प्रसिद्ध है। झारखंड का सबसे छोटा संसदीय क्षेत्र लोहरदगा राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील रहा है। आदिवासियों के बड़े नेता बाबा कार्तिक उरांव जैसे दिग्गज राजनेताओं की कर्मभूमि लोहरदगा लोकसभा सीट पर कांग्रेस और भाजपा का राज रहा है। लोहरदगा सीट के लिए अब तक हुए 16 बार के चुनाव में से सात बार कांग्रेस, छह बार भाजपा, एक-एक बार झारखंड पार्टी, निर्दलीय और जनता पार्टी के सांसद रहे हैं। 2019 में भाजपा के सुदर्शन महतो ने लोहरदगा से जीत की हैट्रिक लगायी थी, लेकिन यहां सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हर बार उन्हें कड़े मुकाबले से गुजरना पड़ा। तीन जिलों लोहरदगा, रांची और गुमला को कवर करने वाला लोहरदगा संसदीय निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। इस निर्वाचन क्षेत्र में लोहरदगा (एसटी), गुमला (एसटी), बिशुनपुर (एसटी), सिसई (एसटी) और मांडर (एसटी) विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। यहां अब तक हुए 16 चुनावों में सात बार कांग्रेस जीती है, तो छह बार यह सीट भाजपा के पास गयी है। बाकी तीन बार में एक-एक बार झारखंड पार्टी, निर्दलीय और जनता पार्टी ने इस सीट पर कब्जा जमाया है।

    किसी भी प्रत्याशी के लिए आसान नहीं डगर
    जैसे-जैसे गर्मी अपनी चरम सीमा की ओर बढ़ रही है, वैसे-वैसे लोहरदगा लोकसभा चुनाव का पारा भी गर्म होता जा रहा है। आदिवासी बहुल लोहरदगा लोकसभा की यह सीट दिलचस्प मोड़ पर है। 13 मई को यहां चुनाव होना है। इसके लिए सभी प्रत्याशी मैदान में कूद पड़े हैं। देखा जाये तो यहां मुख्य फाइट भाजपा ओर कांग्रेस प्रत्याशी के बीच होने वाली है। समीर उरांव क्षेत्र में एक्टिव हो चुके हैं। उनका बूथ स्तरीय कार्यक्रम चालू है। वह जनता के बीच पहुंच चुके हैं ओर जनता भी उनकी ओर नयी उम्मीद के रूप में देख रही है। वहीं महागठबंधन के कांग्रेस प्रत्याशी सुखदेव भगत की बात करें, तो वह अपना अलग ही समीकरण साध रहे हैं। वह भी लोगों के बीच खूब पसीना बहा रहे हैं। लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि सुखदेव भगत जब पाला बदल कर भाजपा में चले गये थे, फिर वापस कांग्रेस में आये, तो उनके इमेज में फर्क आया है। पहले कांग्रेस नेता के रूप में वह काफी लोकप्रिय थे। लेकिन जनता में एक मैसेज चला गया है कि वह टिकट के लिए ही पार्टी से जुड़ते भागते हैं। देखा जाये तो सुखदेव भगत को पिछले लोकसभा चुनाव मैं गुमला और सिसई से बड़ी बढ़त मिली थी। वहीं बिशनपुर, लोहरदगा और मांडर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी सुदर्शन भगत को जीत मिली थी। लोहरदगा लोकसभा की लड़ाई किसी भी प्रत्याशी के लिए आसान नहीं है। इस बार गुमला की राजनीतिक फिजां कुछ बदली हुई नजर आ रही है। हां गुमला के डुमरी, चैनपुर और जारी क्षेत्र जरूर सुखदेव भगत के लिए राहत देनेवाले साबित हो रहे हैं। यहां गुमला शहर, बसिया, कोनबीर और रायडीह में समीर उरांव का जलवा देखा जा रहा है, लेकिन डुमरी, चैनपुर और जारी में उनकी स्थिति कमजोर है। लोहरदगा के शहरी क्षेत्र में समीर उरांव हावी हैं।

    सभी पांच विधानसभा सीटों पर कांग्रेस और झामुमो का कब्जा
    वर्तमान में लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र की सभी पांच विधानसभा सीटों पर कांग्रेस और झामुमो का कब्जा है। अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र से गठबंधन के कांग्रेस प्रत्याशी को बढ़त और जीत दिलाने की नैतिक जिम्मेदारी विधायकों पर है। स्वाभाविक है कि, विधायक समेत महागठबंधन के संगठन अपने क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्याशी को बढ़त दिलाने में एड़ी चोटी की जोर लगायेंगे। इधर, राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि है, कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में अंतर होता है। भाजपा सूत्रों का मानना है कि लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र की सभी विधानसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी समीर उरांव बढ़त बनायेंगे। प्रबुद्ध लोगों की बात करें, तो वे राष्ट्रीय मुद्दे को ही वोट का आधार बनायेंगे। लोकल मुद्दा हावी नहीं होगा।

    चमरा लिंडा भी लिखेंगे भाग्य
    माना जा रहा है कि इस लोकसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चमरा लिंडा भी अपना भाग्य आजमायेंगे। राजनीति के जानकारों की मानें, तो जब-जब चमरा लिंडा चुनावी मैदान में उतरे हैं, कांग्रेस को ही उन्होंने नुकसान पहुंचाया है। अगर ऐसा होता है, तो यह भाजपा के लिए सुकून की बात होगी। वैेस कुछ लोगों का मानना है कि चमरा लिंडा मैदान में नहीं उतरेंगे। अगर ऐसा हुआ, तो इससे महाठगबंधन के उम्मीदवार सुखदेव भगत राहत की कुछ सांस लेंगे।

    आदिवासी समाज तीन गुटों में बंटा है
    वर्तमान में आदिवासी समाज एकमत नहीं होकर तीन गुटों में बंटा है। एक गुट भाजपा के साथ, दूसरा गुट कांग्रेस के साथ और तीसरे गुट के चमरा लिंडा के साथ होने की चर्चा है। वहीं समीर उरांव तेज तर्रार होने के साथ लंबे समय से क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं। फिर भी भाजपा भाजपा के लिए कमजोर क्षेत्र रहे गुमला, सिसई और लोहरदगा के ग्रामीण इलाकों को पाट कर अपने पक्ष में करने के लिए उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ेगी। वहीं शहर की बात की जाये, तो अधिकतर मोदी की ही बात कर रहे हैं। यहां मोदी बनाम एंटी मोदी है। शहरी क्षेत्र में मोदी के पक्ष में लोग ज्यादा दिखाई दिये। देखा जाये, तो लोहरदगा लोकसभा सीट में आदिवासी वोट निर्णायक साबित होते हैं। लेकिन समीर उरांव राज्यसभा सांसद के साथ-साथ भाजपा एसटी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। एसटी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते आदिवासी संगठनों के बीच उनकी छवि लोकप्रिय हुई है।

    कांग्रेस का पीछा नहीं छोड़ रही गुटबाजी
    चर्चा है कि सुखदेव भगत को रामेश्वर उरांव खेमा और बंधु तिर्की खेमा अगर साथ देता है, तो उनके लिए राह आसान हो जायेगी, क्योंकि लोगों में ये गुटबाजी चर्चित है। वहीं भाजपा के साथ भी गुटबाजी चर्चा के केंद्र रही है। पहले लोगों को लगा कि सुदर्शन भगत का टिकट काट कर समीर उरांव को दिया गया है, तो क्या सुदर्शन भगत और शिवशंकर उरांव उनका खुल कर समर्थन देंगे। लेकिन जमीन पर देखा जाये, तो ये सभी समीर उरांव के साथ दिन-रात घूम रहे हैं। कदम से कदम मिला कर चल रहे हैं। क्या धुप क्या छांव। सुदर्शन भगत तो आइडियाज भी समीर उरांव के साथ शेयर कर रहे हैं कि कैसे उनकी जीत सुनिश्चित हो। सुदर्शन भगत अपना अहम किरदार निभा रहे हैं।

    धीरज साहू शांत हैं
    धीरज साहू को लेकर क्षेत्र में चर्चा है कि आयकर की छापामारी के बाद वह बैकफुट पर हैं। बहुत कम दिखाई पड़ रहे हैं। इक्का-दुका कार्यक्रमों में अब उन्होंने शिरकत करनी शुरू की है। ईद के अवसर पर वह जरूर लोगों के बीच गये। धीरज साहू का सक्रिय नहीं रहना कांग्रेस के लिए घातक है, क्योंकि उनका क्षेत्र में काफी प्रभाव है। हवा का रुख मोड़ने में धीरज साहू उस्ताद हैं। लोहरदगा कांग्रेस में धीरज साहू के लोगों का दबदबा है। सुखदेव भगत इन दिनों धीरज साहू का साथ पाने की जुगत भिड़ा रहे हैं।

    लोहरदगा की समस्या
    लोहरदगा आज भी बड़ी इंडस्ट्री की बांट जोह रहा है। यहां बाइपास और रेल बड़ा मुद्दा है। लोगों की डिमांड बहुत सालों से है। रोजगार और कारोबार की स्थिति दयनीय है। दुकानों में ग्राहक नहीं। दुकानदार खाली बैठे हुए हैं। आॅनलाइन की मार से जूझ रहे हैं। यहां वास्तविक स्थिति पलायन की है। लोग शहर से रोजगार की आस में लोहरदगा से बाहर जा रहे हैं। ग्रामीण भी पलायन कर रहे हैं। लोग ही नहीं रहेंगे तो धंधा होगा कैसे। लोहरदगा में उद्योग लगना बहुत जरूरी है। अगर उद्योग लगेगा तब लोग रहेंगे और इसका लाभ छोटे कारोबारियों को भी होगा।
    लोहरदगा के लोगों का मानना है कि लोहरदगा लोकसभा चुनाव का राजनीतिक समीकरण चुनाव से मात्र एक दिन पूर्व बदलता है। किस पक्ष में माहौल बनेगा, वह मात्र एक दो दिन पूर्व साफ होने लगता है। लेकिन इस बार मामला बदला है। लेकिन फिर भी लोहरदगा की फाइट टाइट ही है। ऊंट किस करवट बैठेगा, यह रिजल्ट की अंत घड़ी में ही साफ होगा।

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