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    Home»लाइफस्टाइल»ब्लॉग»पठान की बेटी
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    पठान की बेटी

    आजाद सिपाहीBy आजाद सिपाहीMay 6, 2017No Comments10 Mins Read
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    सुजान सिंह: गफूर पठान शाम को जब कभी अपनी झुग्गी-झोपड़ी वाली बस्ती में लौटता, वहां रहने वाले बच्चे काबुली वाला, काबुली वाला कहते हुए अपनी झोपड़ियों में जा छुपते परंतु एक छोटा-सा सिख बच्चा बेखौफ वहां खड़ा रहता और उसके थैले, ढीले-ढाले कपड़े, उसके सिर की फटी और उधड़ी हुई पगड़ी की ओर देखता रहता। गफूर को वह बच्चा बड़ा प्यारा लगता। एक दिन उसने उससे पठानी लहजे की हिंदुस्तानी जुबां में पूछा, क्या तुझे मुझसे डर नहीं लगता बच्चे? बच्चे ने मुस्कुराकर सिर हिला दिया। गफूर के चेहरे की लाली और बढ़ गयी। उसने बच्चे की ओर दोनों बाहें बड़ी कोमलता और प्यार भरे जज्बे के साथ बढ़ायीं।

    बच्चा पठान के पांव से लिपट गया परंतु गफूर उसे हाथ से उठाकर सिर के ऊपर तक ले गया और उसे हिलाडुलाकर दुलारने लगा। सामने झोपड़ी से बच्चे की बहन निकली जो मुश्किल से आठ वर्ष की होगी। पठान को भाई से प्यार करता देख वह भी पास आ खड़ी हुई। पठान बड़ी जोर से खिलखिलाकर हंस रहा था और वीरो का भाई अजमेर पांव की ठोकर से पठान की पगड़ी उछालना चाहता था। आखिरकार एक ठोकर से उसकी पगड़ी जमीन पर जा गिरी। गफूर जोर से हंसा और अजमेर को नीचे उतारकर कहने लगा, बाबा, तुम जीता। जब पठान ने वीरो को अपने पास खड़ा देखा तो उसने अजमेर से पूछा, क्या यह तेरी बहन है? अजमेर ने होंठ दबाकर मुस्कुराते हुए कहा, गफूर ने एक हाथ से वीरो और दूसरे से अजमेर को कमर से जकड़ा और लगा जोर से चक्कर लगाने।

    बच्चों के खिलखिलाकर हंसने के साथ गफूर ऊंची आवाज में किये जा रहा था। इस हु ऊं की आवाज सुनकर एक नन्ही बच्ची को गोद में लिए तेजो बाहर निकली और अपने बच्चों को गफूर के हाथों बिल्लियों की तरह झूलते देख डर गयी, परंतु पंजाबिन वाला हौसला दिखाकर बोली, अरे ओ अजमेर, वीरो! गफूर वहीं खड़ा रह गया और बच्चों की मां की चढ़ी हुई त्योरियां और गुस्सैल आंखे देखकर उसने दोनों को उतार दिया और खुद बड़ी मुश्किल से गिरने से बचा। तेजो ने बच्चों को डांटते हुए कहा, आ लेने दो आज अपने बापू को। वीरो तो झट से अंदर चली गयी परंतु अजमेर डट कर खड़ा रहा और सिपाहियों की तरह कमर पर दोनों हाथ रखकर कहने लगा, आ लेने दो फिर। तेजो ने आगे बढ़कर अजमेर को बाहों से पकड़ा और उसे घसीटते हुए अपनी झुग्गी में ले गयी।

    गफूर बहुत देर तक अजमेर का रोना-धोना सुनता रहा। आखिरकार वह अपने झोपड़े के अंदर गया और थैले से एक छोटा-सा टूटा आईना निकालकर अपना चेहरा देखने लगा। उस दिन उसने खाने के लिए कुछ नहीं बनाया और यों ही सो गया। किसी को पता नहीं कि गफूर क्या काम करता है? कोई कहता था कि हींग, जीरा और शिलाजीत बेचता है। कोई कहता सूद पर रुपये देता है और ऊंचा ब्याज लेता है तो कोई कहता था कि इससे बचकर रहना, ये लोग बच्चों को उठाकर ले जाते हैं। इन झुग्गियों की कतार में सारे ओड़िये, बंगाली और बिहारी मजदूर रहते थे। किसी-किसी के ही बच्चे उनके साथ थे। उनके बच्चों की तो छोड़ो, वे खुद भी पठान से बड़ा डरते थे। झोपड़ियों की आमने-सामने की कतारों के एक किनारे पर अजमेर और गफूर पठान का घर था।

    अजमेर का बाप रिजर्व में आया फौजी था जो पास की मिल में चौकीदारी किया करता था। तेजो ने आते ही उसके कान खूब भरे। दिन चढ़ते ही अजमेर के बाप ने गफूर की झोपड़ी के चादर का दरवाजा खटखटाया। कुछ देर बाद सिर से नंगा गफूर आंखें मलते हुए बाहर निकला और उसे सामने देख कर कहने लगा, ह्यक्या बात है चौकीदारा, सरदारा? वीरो के बाप ने टूटी-फूटी हिंदुस्तानी में कहा, देख भई, तू मुसलमान है खान और हम सिख लोग। तू हमारे बच्चों के साथ ना। सिख है कि मुसलमान, बच्चा तो सबका एक है, सरदार। खुदा तो सबका एक है। चौकीदार ने गरम होते हुए कहा, एक-वेक कोई नहीं! तू हमारे बच्चों के साथ न खेल, नहीं तो तू पठान है तो मैं भी सिख हूं। पठान ने अपने संस्कारी स्वभाव के उलट और भी नरमी से बोला, सब बच्चे मुझसे डरते हैं, तेरे बच्चे मुझसे नहीं डरते। मुझे वे अच्छे लगे थे। तू अपने बच्चों को मना ले कि मेरे पास न आयें। मैं किसी को बुलाने नहीं जाता।

    मुझे तो अकेले रहने की आदत हो चुकी है। बस, बस, चौकीदार ने कहा—फैसला हो गया है। बच्चे अकसर आंखें बचाकर गफूर के सामने आ जाते। गफूर उन्हें घूरकर यह कहते हुए भगा देता कि तुम्हारा बाप मारेगा। फिर भी कई बार गफूर का मन पसीज जाता और वह चोरी-चोरी उन्हें काबुल का तरबूज या अनार दे देता था और कहता कि चुपके से खाकर घर जाना। बच्चे ऐसा ही करते थे। वीरो व अजमेर से भी छोटी और गोद की बेटी से बड़ी तेजो की एक और बेटी थी। वह बहुत कम घर से बाहर निकलती थी। छोटी बेटी के जन्म से पहले से ही वह बड़ी जिद्दी थी। अब मां का प्यार नये बच्चे की ओर होने के कारण वह प्यार की कमी अंदर ही अंदर महसूस करती थी और अपनी ओर पूरा ध्यान न दिए जाने पर अकसर मामूली सी बात पर रो पड़ती थी।
    वह बहुत जिद्द किया करती थी। तेजो उस पर हमेशा क्रोधित रहती। वह रोती और उसे और भी अधिक मार पड़ती। तेजो द्वारा लड़की पर हो रहे इस हालात के मद्देनजर वीरो और अजमेर भी उसे मौका मिलते ही पीट देते थे और जब वह रोती थी तो यों ही रोती रहती है, कहकर तेजो से और मार पड़वा देते। लड़की अपने आप को उपेक्षित महसूस करने लगी और उसने अपने बचाव के लिए झोपड़ी से बाहर निकलना शुरू कर दिया। बड़े बच्चे फिर भी उसका पीछा नहीं छोड़ते। गफूर रोज देखता था परंतु कुछ कह नहीं पाता था। बड़े बच्चों के प्रति उसकी चाह धीरे-धीरे घटती गई और जालिमों को छोड़कर मजलूम के साथ उसकी हमदर्दी बढ़ गई। बहुत समय तक पंजाबियों के सामने रहने के कारण वह पंजाबी काफी समझ लेता था और तेजो की छोटी लड़की को दी जा रही गालियां सुनकर बड़ा दुखी होता था। इन्हीं दिनों काम न होने के कारण दो महीनों के लिए चौकीदार की नौकरी छूट गई। फिर तो उस लड़की पर शामत आ गई।

    जो भी आए उसे पीट दे। तेजो कहती, ह्ययह रोती रहती थी, इसलिए हमारी नौकरी गयी। हर महीने तनख्वाह मिलने पर रोटी का गुजारा तो चल रहा था। मजलूम के रहम ने गफूर के दिल में जालिम के प्रति रहमी का जज्बा जागा। उसने एक दिन चौकीदार को बुलाया और कहा, सरदार, तू मेरा भाई है। मुझे पता है तू तंगी में है। मैं तेरी मदद करना चाहता हूं, ना नहीं कहना। सरदार चुप था और गफूर ने पंद्रह रुपए उसके हाथ पर रख दिए। घर में जरूरत थी, दिल पठान से मदद लेने को नहीं कर रहा था, परंतु फिर भी उसने पंद्रह रुपए रख लिए। सोचा, नौकरी लग जाएगी तो सूद समेत लौटा दूंगा। जाते समय चौकीदार को फिर से बुलाकर और अपनों की तरह उसके कांधे पर हाथ रखकर गफूर ने कहा, ह्यसरदार, तेरी औरत और दोनों बड़े बच्चे छोटी लड़की को मारते रहते हैं। नादान, बेकसूर है। उसे मत मारो। मुझे तकलीफ होती है। मत मारो। देखो, वह बहुत कमजोर है, मर जाएगी।
    न जाने कितनी देर तक पठान की नम आंखें चौकीदार को याद आती रही। उसने तेजो से कहा कि वह लड़की को न मारा करे, पर तेजो और उन बड़े बच्चों पर इसका कोई असर नहीं हुआ। जब सरदार को नई जगह पर पहली तनख्वाह मिली तो वह सबसे पहले गफूर की झोपड़ी में गया। पंद्रह रुपयों के साथ पठान का अधिकाधिक बनता सूद गिनकर उसने पांच का एक और नोट उसे थमाया। गफूर पैसे देखकर हैरान हुआ और कहने लगा, ह्यसरदार, यह क्या है? सरदार ने कहा, तुम्हारा रुपया और सूद। हम मुसलमान पठान है, सरदार। पठान ने रौब से कहा, ह्यहम सूद को हराम समझता है।
    गफूर की तमतमायी शक्ल देख कर चौकीदार ने कहा, मुझे पता नहीं था कि कोई पठान सूद नहीं भी लेता है, अच्छा लग गया पता परंतु अपने रुपए तो रखो।
    ह्ययह तो मदद था।ह्ण गफूर ने झट से सामान्य शक्ल बनाकर कहा, ह्यबच्चा सबका एक है सरदार।
    चौकीदार ने उसकी एक न सुनी और रुपए जबरन उसे देकर घर लौट आया। दरवाजे पर छोटी लड़की रो रही थी, वीरो और अजमेर उसे तंग कर रहे थे जबकि तेजो चौके से बिना देखे उसे गालियां बक रही थी। चौकीदार ने अजमेर को झिड़का, वीरो को तमाचा जड़ा और लड़की को गोद में उठा कर उसका चेहरा पोंछ चौके तक जा पहुंचा। कुछ कहना ही चाहता था कि तेजो ने उसे देख लिया और कहने लगी, ह्यबड़ी आई लाड़ली! कमजात को गोद में उठा रखा है। सारा दिन बस रोती रहती है अभागी।ह्ण
    चौकीदार ने उसे बहुत बुरा-भला कहा। सो वह मुंह फुलाकर एक कोने में बैठ गई।
    तेजो चिढ़कर लड़की को और भी अधिक मारने लगी। लड़की जिद्दी और ढीठ बनती चली गई। गफूर उस पर शामत आते हर रोज देखा करता। उसे अकेली धूप में गिरती-संभलती देख उसका मन भर आता।
    एक दिन इसी मनोदशा में छोटी लड़की को गफूर ने इशारे से बुलाया। वह पास आ गई। वह उसे उठाकर अंदर ले गया। थैले में हाथ मारा, पर वहां कुछ न था। पठान की आंखों में आंसू आ गए। वह दबे पांव बाहर निकलकर फलों की दुकान की ओर बढ़ा। वहां उसने दो-तीन किस्म के फल लेकर बच्ची को थमाए। बच्ची जल्दी में कभी एक तो कभी दूसरे फल को खाने लगी। गफूर की कराह निकल गई। उसने सोचा, इसकी मां, बड़े बच्चे और सरदार इसे मारकर ही छोड़ेंगे। इसे बचाना चाहिए। उसने पैसे वाली थैली में हाथ मारा। दो रुपए खड़के। सोचा, दौड़कर झुग्गी से कुछ और ले आऊं। वहां तो मेरे पास हजार से भी अधिक रुपए हैं परंतु फिर ख्याल आया कि बच्ची को बचाने का अवसर हाथ से निकल जाएगा। इसकी मां शोर मचा देगी। हो सकता है सरदार के साथ बखेड़ा हो जाय।
    वह घर नहीं लौटा। उसने एक मुसलमान की घोड़ागाड़ी पकड़ी और स्टेशन पर पहुंचकर कहीं का टिकट ले लिया।
    पीछे से शोर मच गया। ह्यकाबुलीवाला बच्चे को उठाकर ले गया है।
    कोई कहता, ह्यदेखा, सिख डरता नहीं था।ह्ण कोई कहे, ह्यपठान मौके की तलाश में था, ले उड़ा।ह्ण
    तरह-तरह की बातों ने सरदार का मन गफूर के प्रति घृणा से भर दिया। थाने में रपट लिखायी गई। तेजो रो रोकर निढाल हो रही थी और पठान के बच्चों को बद्दुआ देती रही। पुलिस हैरान थी कि पठान इतना रुपया और दरवाजा खुला छोड़कर क्यों चला गया।
    लगभग एक महीने बाद चौकीदार को शिनाख्त के लिए थाने बुलाया गया। बच्ची हथकड़ियों में जकड़े गफूर की गोद में थी। पिता की आवाज सुनकर बच्ची ने एक बार उसकी ओर देखा और मुंह मोड़ लिया। तेजो का भी वहां कोई चारा न चला। बच्ची सेहतमंद हो गई थी और पठान कमजोर।
    चौकीदार, तेजो और साथ आए लोगों ने शिनाख्त की। पठान उन्हें एकटक देखे जा रहा था। अंतत: जब पुलिस बच्ची को उससे लेकर चौकीदार को देने लगी तो बच्ची की चीखें और पठान का रूदन कमरे में गूंज उठा।
    पठान कह रहा था, ह्यमत दो बच्ची जालिमों के हाथ। बचाओ। बचाओ। ये मार डालेंगे। मेरी बच्ची को ये जालिमङ्घ कसाई।ह्ण
    थानेदार ने कड़ककर कहा, ह्य तो तुम इसको बचाने के लिए उठा के ले गया था।ह्ण
    चारों ओर हंसी की लहर दौड़ पड़ी। कोई कहने लगा, ह्यबड़ी चालू चीज है।
    परंतु गफूर रोये जा रहा था।

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