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    Home»झारखंड»लोहरदगा»लोहरदगा : विकास में कुछ पाया, तो कुछ खोया
    लोहरदगा

    लोहरदगा : विकास में कुछ पाया, तो कुछ खोया

    आजाद सिपाहीBy आजाद सिपाहीMay 17, 2017No Comments5 Mins Read
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    लोहरदगा: लगभग तीन दशक पूर्व 17 मई 1983 को लोहरदगा को जिला का दर्जा मिलने के बाद यह जिला निरंतर प्रगति की ओर अग्रसर है। समग्र विकास की ओर बढ़ते लोहरदगा जिले का औसत जीवन स्तर और नागरिक सुविधाओं में लगातार बढ़ोतरी हुई है। विकास की रफ्तार पकड़ने के साथ लोहरदगा का अतीत पीछे छूटता जा रहा है। अब स्थानीय अर्थव्यवस्था की संरचना में भी बदलाव आया है। पारंपरिक और सांस्कृतिक पहलू पीछे छूटते जा रहे हैं। तीन दशक पूर्व लोहरदगा अनुमंडल था। स्थानीय लोग छोटे मोटे कार्यों के लिए रांची जिला मुख्यालय जाते थे। उस वक्त डीसी का लोहरदगा आना बड़ी बात मानी जाती थी। कभी-कभार रांची डीसी लोहरदगा अनुमंडल क्षेत्र का परिभ्रमण करते थे, तब लोगों में इसकी चर्चा जोरों पर होती थी।
    लोहरदगा जिला बनने और झारखंड अलग होने के बाद सरकार के बड़े नुमाइंदे और राजनेताओं के पहुंचने पर भी चर्चा नहीं होती है। तीन दशक पूर्व स्थानीय अर्थव्यवस्था कृषि और वनोपज पर मूलत: निर्भर था। आबादी का एक छोटा हिस्सा वाणिज्य व्यापार के रोजगार से जुड़ा था। पेशरार बाजार और शहरी क्षेत्र का पुराना शुक्र बाजार आर्थिक गतिविधि का केंद्र था। इन साप्ताहिक बाजार में लोग एक दूसरे से मिलते जुलते थे। शादी-विवाह की भी चर्चाएं होती थीं।
    आवागमन की सुविधा नहीं होने के बावजूद लोग रिक्शा, साइकिल से पेशरार बाजार आते-जाते थे। जिला बनने के बाद पठारी इलाकों के विकास में भी तेजी आयी। अब पेशरार लोगों को दूर नहीं लगता। पेशरार में पुलिस पिकेट की स्थापना कर कई आधारभूत संरचना का निर्माण किया गया है। यह अलग बात है कि डेढ़ दशक से नक्सल की समस्या बढ़ने के कारण लोग अब पेशरार की ओर जाने से परहेज करते हैं। पेशरार समेत अन्य पठारी गांवों में भी अब जागृति और नागरिक सुविधाएं पहुंच चुकी हैं।
    संचार क्रांति के कारण पठारी एरिया के लोग भी अब मोबाईल व इंटरनेट से सीधा जुड़े है। संचार क्रान्ति का बदलाव भी पठारी इलाको में सहज दिखाई पड़ता है। बड़ी लाईन की रेलवे आने के बाद राज्य की राजधानी रांची लोहरदगा के लिए बिल्कुल घर आंगन की तरह हो गया है। रांची का विस्तृत बाजार से लोग ट्रेन के माध्यम से सहज खरीदारी कर रहे है।

    इससे जीवन स्तर भी स्थानीय स्तर पर बढ़ा है। षासन प्रषासन के समाजवाद नीति के कारण भी जनता से षासन की दूरियां घटी है। विभिन्न विभागीय कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए लोग जिला मुख्यालय आने से अब गुरेज नहीं करते है। तीन दषक के बाद के लोहरदगा में काफी बदलाव आया है। षहरी जीवन स्तर तेजी से आगे बढ़ रहा है तो गंवई जीवन स्तर भी आगे बढ़ रहा है। वर्तमान में ग्रामीण इलाको के कई परिवारों के युवक विभिन्न बड़े ओहदो पर है। विकास की दौड़ में स्थानीय पठारी जंगलो का तेजी से क्षरण होना गंभीर पहलू है। सघन पठारी वनो की लगातार अवैद्य कटाई से अब साल के सरकंडे व झाड़ियां बची है।

    नक्सल समस्या अब पठारी इलाकोे के विकास में बाधक नहीं है। पुलिस प्रषासन की सोसल व फायर आपरेषन के अभूतपूर्व व कारगार नतीजे सामने आ रहे है। बड़ी संख्या में नक्सलियो ने आत्मसमर्पण किया है। उनके गोला बारुद का भंडार पुलिस के कब्जे मे है। इससे पठारी विकास को प्रत्यक्ष गति मिली है। ेवर्तमान में षासन के दबाव के कारण प्रषासनिक तंत्र व निर्वाचित जनप्रतिनिधियों में जवाबदेही झलक रही है। इसका असर स्थानीय विकास को निष्चित मिल रहा है। लोहरदगा एक समय में कमिष्नरी के रुप में हुआ करता था। रांची जिला भी लोहरदगा कमिष्नरी के अंतर्गत आता था। परंतु एचईसी के खुलने के बाद रांची का काफी विकास होने लगा और लोहरदगा अनुमंडल में सिमट गया। 1983 में पुन: इसे जिला का गौरव मिला। अविभाजित बिहार राज्य के अंतर्गत 17 मई 1983 को लोहरदगा जिला अपने अस्तित्व में आया, तब से लेकर आज तक यह जिला प्रगति की ओर अग्रसर है। गौरवषाली पृश्ठभूमि वाले लोहरदगा जिले की अतीत से सबक लेते हुए पौराणिक धरोहरो, सांस्कृतिक परंपराओं और प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने की जरुरत है।

    आकर्षण का केंद्र है पेशरार का लावापानी जलप्रपात
    लोहरदगा। पेशरार प्रखंड में स्थित लावापानी जलप्रपात अपनी प्राकृतिक सौंदर्य के कारण दशकों से आकर्षण का केंद्र रहा है। जिला मुख्यालय से लगभग 25 किमी दूर लावापानी जलप्रपात जाने का मार्ग कच्चा होने के कारण प्राय: लोग कम ही जाते थे। इस जलप्रपात के मनोरम दृश्य पर पुलिस अधीक्षक कार्तिक एस की दृष्टि पड़ने के बाद उन्होंने लावापानी की खूबसूरती को संवारा। पेशरार पर आधारित फोटोग्राफी का प्रदर्शन कर लावापानी जलप्रपात की ओर लोगों का ध्यान सहज आकर्षित कराया। लगभग 100 फीट से पानी धान के लावे की तरह गिरने से इसका नामकरण लावापानी पड़ा है। पेशरार की खूबसूरती की चर्चा मुख्य सचिव राजबाला वर्मा, डीजीपी डीके पांडेय समेत अन्य बड़े अधिकारियों ने की है। लावापानी जलप्रपात के विकसित होने के बाद यह सैलानियों का आकर्षण का केंद्र बनेगा।

    लावापानी की खूबसूरती उजागर करने के लिए एसपी कार्तिक एस की सार्वजनिक सराहना हुई।

    मानसून पेषरार के माध्यम से पेषरार के लावापानी समेत अन्य मनोरम प्राकृतिक स्थलो को पर्यटन स्थल के रुप में विकसित कर पठारी इलाके के विकास को गति देने के प्रस्ताव को राज्य सरकार ने स्वीकारा है। इसके तहत चंद दिनो पूर्व झारखंड सरकार के पर्यटन सचिव राहुल षर्मा लावापानी जलप्रपात का पर्यटन विकास को लेकर निरीक्षण कर चुके है। पुलिस अधीक्षक कार्तिक एस व उपायुक्त विनोद कुमार ने पर्यटन सचिव को पेषरार में स्थित लावापानी समेत कई मनोरम स्थलो की ओर ध्यान आकृश्ट कराया। अब लावापानी जलप्रपात तक पहुंच पथ बनने और सैलानियो को इस ओर आकर्शित करने का मार्ग प्रषस्त माना जा रहा है। लावापानी जलप्रपात के विकसित होने के बाद यह सैलानियो का आकर्शण का केन्द्र बनेगा।

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