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    Home»Top Story»गोड्डा में सियासी गदर : भंवर में फंसे दिख रहे निशिकांत, व्यूह तोड़ने में प्रदीप हैं परेशान
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    गोड्डा में सियासी गदर : भंवर में फंसे दिख रहे निशिकांत, व्यूह तोड़ने में प्रदीप हैं परेशान

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskMay 17, 2019Updated:May 17, 2019No Comments8 Mins Read
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    जेठ की दुपहरी, माथे पर उजला गमछा लिये चुनावी समर में भाजपा और महागठबंधन के कार्यकर्ता-नेता लगातार गोड्डा की जमीन नापते नजर आ रहे हैं। इनकी परीक्षा तो 19 मई को होगी, लेकिन इस बीच भगवान सूर्य भी आंखें तरेर कर फाइनल टेस्ट ले रहे हैं। 40 डिग्री से अधिक के तापमान में ग्लूकोज और नींबू-पानी के साथ प्रत्याशी और उनके समर्थक दर-दर वोट मांगते नजर आ रहे हैं। आलम यह है कि गोड्डा की हर गली इस बार तगड़े चुनावी मुकाबले की संकेत दे रही है। एक ओर जहां भाजपा को अपने परंपरागत वोटरों के अलावा अनुसूचित जाति और सबसे बड़े मोदी फैक्टर पर भरोसा है, तो महागठबंधन को अपने संयुक्त मतों पर।
    गोड्डा संसदीय क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इसमें गोड्डा, महगामा, देवघर और मधुपुर पर भाजपा का कब्जा है, तो जरमुंडी में कांग्रेस और पोड़ैयाहाट में झाविमो का परचम है। पिछले चुनाव की बात करें, तो यहां कांग्रेस केफुरकान अंसारी और झाविमो के प्रदीप यादव मैदान में थे। इन दोनों के टकराने से वोट के बिखराव का फायदा निशिकांत दुबे को मिला था।
    यहां भी फुरकान अंसारी ने मोदी लहर के बावजूद निशिकांत को नाको चने चबवा दिया था। निशिकांत जीते तो जरूर थे, लेकिन मार्जिन अन्य जगहों की तरह नहीं थी। इस बार की कहानी अलग है। इस बार फुरकान मैदान में नहीं हैं। महागठबंधन की एकजुटता से प्रदीप ताबड़तोड़ बैटिंग कर रहे हैं। उन्हें साफ दिख रहा है कि इस बार वोटों का बिखराव नहीं होगा। मुस्लिम मतदाताओं की एकजुटता नये संकेत दे रही है, तो संथाल भी पूरे ताव में है। प्रदीप यादव का जातिगत वोट, जो कभी गोड्डा के पूर्व विधायक संजय यादव से रंजिश के कारण बिखर जाता था, वह इस बार एक होता दिख रहा है। घटवार जाति ने अब तक पत्ता नहीं खोला है। इसकी भी संख्या यहां मायने रखती है। जातिगत बात करें तो इस लोकसभा में सबसे ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं, जिनकी संख्या 3.30 लाख है, यादव दो लाख के करीब हैं। वहीं संथालों की संख्या 1.30 लाख है। ब्राह्मण मतदाता पौने दो लाख के करीब हैं।
    वैश्य मतदाता भी यहां मायने रखते हैं। अगड़ी जातियों में राजपूत और भूमिहार की अच्छी खासी संख्या है। इन आंकड़ों के बाद यह दिख रहा है कि महागठबंधन यहां भारी है। समीकरण बता रहा है कि यदि एकमुश्त मुस्लिम, यादव और संथालियों का मत महागठबंधन के पक्ष में जाता है, तो निशिकांत को मुश्किल हो सकती है, पर सीधे तौर पर इन मतदाताओं को एकपक्षीय नहीं किया जा सकता है।
    भाजपा की बात करें, तो कार्यकर्ताओं के मामले में वह महागठबंधन पर भारी है। सवर्ण और वैश्य मतदाता पूरी तरह से इनके पक्ष में इंटैक्ट दिख रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी के कार्यक्रम के बाद संथाल की फिजां भी बदली-बदली दिख रही है। देवघर हवाई अड्डे का सीन रुख को मोड़नेवाला दिखा। बूथ स्तर पर भाजपा मजबूत है, तो महागठबंधन में बूथों की मजबूती को लेकर साझा काम नहीं किया गया है। महागठबंधन के नेता एकजुट होकर प्रचार तो कर रहे हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर एका की कमी दिख रही है। इस मामले में निशिकांत प्रदीप यादव पर भारी पड़ रहे हैं।
    भाजपा में भी सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है। मधुपुर के विधायक और राज्य सरकार के मंत्री राज पलिवार का निशिकांत के साथ टशन जगजाहिर है। हालांकि संगठन ने अपनी ओर से पैचअप कराने का पूरा प्रयास किया है। लेकिन दिल अब भी मलीन दिख रहा है। मधुपुर में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है।
    इस विधानसभा में यदि भाजपा को लीड लेना है, तो राज पलिवार को खुलकर काम करना होगा और गैर मुस्लिम मतदाताओं को अपने पक्ष में लाना होगा। अब तक का जो सीन है, उस हिसाब से यह सफल होता नहीं दिख रहा है। देवघर विधानसभा क्षेत्र की बात करें, तो यहां निशिकांत एकतरफा भारी हैं। पिछला चुनाव भी निशिकांत ने बाबानगरी के आशीर्वाद से ही जीता था। यहां के पंडा चुनाव पूर्व निशिकांत से नाराज थे, लग रहा था कि इनकी नाराजगी दुबे के लिए घातक हो सकती है, लेकिन समय के साथ और बाद में मोदी के आगमन से पंडा समाज भाजपा के साथ खड़ा दिख रहा है। मोदी के कार्यक्रम में सरदार पंडा की उपस्थिति कुछ यही कहानी बयां कर रही थी। वहीं दूसरी कार्यक्रम के पहले मोदी का बाबा से आशीर्वाद लेना भी इसी कहानी को पुख्ता कर गया।
    जरमुंडी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस पार्टी के विधायक बादल पत्रलेख हैं। यहां के विधायक की घर-घर तक पकड़ मानी जाती है। इसके पीछे कारण यह है कि शादी हो या बर्थ डे, हर समारोह में वह व्यक्तिगत तौर पर दिलचस्पी दिखाते हैं। 2004 के बाद से यहां कमल नहीं खिला है। जाहिर है कि विपक्ष यहां मजबूत है। अंदरखाने में यह बात भी चल रही है कि निशिकांत ने यहां के विधायक के साथ जातिगत कार्ड खेल कर कुछ गुल खिलाया है। यही वजह है कि भाजपा के नेता जरमुंडी को लेकर इस बार उत्साहित दिख रहे हैं। पोड़ैयाहाट विधानसभा का मतलब ही प्रदीप यादव हैं।
    पिछले डेढ़ दशक से लाख प्रयास के बाद भी कमल नहीं खिल पाया है। जब तक प्रदीप यादव भाजपा में थे, यहां कमल ही कमल था, लेकिन भाजपा से निकलते ही यहां कंघी का क्रेज हो गया। बात गोड्डा विधानसभा की करें, तो यहां रघु के बाद अमित ने भाजपा का झंडा बुलंद कर रखा है। युवा विधायक अमित की अपनी छाप यहां है। लेकिन राजद के संजय यादव भी कमजोर नहीं हैं। जाहिर है कि संजय का साथ प्रदीप के लिए वरदान की तरह काम कर रहा है। चर्चा यह भी है कि संजय प्रदीप के साथ दिख तो रहे हैं, लेकिन अंदरखाने में कुछ और चल रहा है। महागामा विधानसभा भाजपा की परंपरागत सीट रही है। हालांकि यहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अच्छी है, लेकिन कमल को खिलने से ये नहीं रोक पाते हैं।
    अलग झारखंड बनने के बाद एक बार पंजा ने इस विधानसभा को कब्जे में लिया था। यहां वैश्य मतदाताओं की संख्या अच्छी-खासी है, जो भाजपा के लिए शुभ संकेत है। बहरहाल, चुनावी तपिश में तप रहे गोड्डा में स्थानीय मुद्दों से ज्यादा व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप हावी हो गया है। गली-मुहल्लों में भी इसकी ही चर्चा आम है। अडानी फैक्टर नहीं दिख रहा है। दोनों प्रत्याशी भी खुलकर एक-दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे हैं। अब कीचड़ से यहां फिर कमल खिलता है या कंधी का क्रेज जनता के सिर चढ़कर बोलता है, यह तो 23 को पता चलेगा, लेकिन इतना तय है कि इस बार गोड्डा का गदर रोमांचकारी होनेवाला है।

    23 के बाद गोड्डा में लगा देंगे आग: निशिकांत
    गोड्डा। मैं निशिकांत दुबे बोल रहा हूं। प्रदीप यादव को पहले भी मैंने जेल भेजा है। बाबानगरी में मैं बोल रहा हूं कि 23 के बाद या तो प्रदीप यादव को फिर जेल भेजेंगे या गोड्डा में आग लगा देंगे। निशिकांत ने यह बात किसी नुक्कड़ सभा में नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंच से कही थी। मंच पर राज्य के मुखिया रघुवर दास, पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ, भाजपा के लोकसभा प्रभारी सहित झारखंड के मंत्री और विधायक उपस्थित थे। एक बार नहीं बार-बार निशिकांत ने इस बात को दुहराया। वह प्रदीप यादव के खिलाफ आग उगलते रहे। इस दौरान उपस्थित लोगों ने तालियां तो खूब बजायीं, लेकिन जैसे-जैसे निशिकांत दुबे की यह बात क्षेत्र में फैली, तो इसकी आलोचना भी होने लगी। लोगों का कहना था कि यह सिर्फ निशिकांत की चेतावनी नहीं, बल्कि उनका अहंकार बोल रहा है।
    निशिकांत भूल गये कि वह पीएम की सभा में बोल रहे हैं। वह मात्र सांसद हैं, कोई सरकार या पुलिस के आलाधिकारी नहीं। हार-जीत तो होती रहेगी, लेकिन यदि निशिकांत अपनी चेतावनी पर कायम रहते हैं और कुछ होता है, तो जवाब सरकार को देना पड़ेगा। पूरे देश में ममता दीदी के आक्रामकता की आलोचना हो रही है। भाजपा पानी पी- पीकर दीदी की दादागिरी को जनता के बीच रख रही है। बड़बोले कांग्रेस नेताओं की आलोचना हो रही है। दूसरी तरफ हजारों-हजार की भीड़ में निशिकांत के इस दंगाई भाषा का मतलब क्या है। यह तो वही बेहतर समझ सकते हैं। क्या निशिकांत ने पुलिस-प्रशासन और सरकार की व्यवस्था को अपने अहंकारी बोल से बौना बना दिया है। अडानी के खिलाफ आंदोलन में प्रदीप यादव जेल गये थे। निशिकांत ने कहा कि मैंने उन्हें जेल भेजा।
    जनता को निशिकांत को यह भी बताना था कि क्या उनके पास कानून की अलग परिभाषा है। खुले मंच से निशिकांत दुबे ने यहां तक कह दिया कि जो व्यक्ति अपनी ही पार्टी की महिला का सम्मान नहीं करता है, वह अन्य महिलाओं के साथ क्या सलूक करेगा। हम-तुम एक कमरे में बंद हों और चाबी खो जाये… और बलात्कारी क्या क्षेत्र की जनता की रखवाली करेगा। इस बिगड़े वचन के समय सभा में उपस्थित महिलाएं भी थोड़ी देर के लिए अपनी नजरें चुराती हुई दिखीं। राजनीति में खासकर चुनाव के समय आरोप-प्रत्यारोप लगाने की बात पुरानी है, लेकिन गोड्डा में यह आरोप-प्रत्यारोप निजी होता जा रहा है। निशिकांत दुबे बोलते-बोलते शब्दों की तमाम मर्यादाओं को लांघते रहे, उनके भाषण में प्रदीप यादव शुरू से अंत तक रहे। वह प्रदीप यादव पर निशाना साधते रहे और इधर, जनता उनके शब्दों का मायने निकालती रही।

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