नई दिल्ली : लोकसभा के चुनावी दंगल को जीतने में बीजेपी को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) का पूरा साथ मिला। संघ ने जहां बीजेपी की रणनीति के हिसाब से अपने कदम पहले राम मंदिर की दिशा में आगे बढ़ाए तो बीजेपी की रणनीति को देखते हुए ही अपने कदम तुरंत पीछे भी खींच लिए। शुरू में संघ की तरफ से कुछ नाराजगी सामने आ रही थी लेकिन फिर चुनाव को देखते हुए संघ ने बीजेपी के हर कदम पर उसका साथ दिया। साथ ही कुछ आनुषांगिक संगठनों (संघ से जुड़े संगठन) की नाराजगी को भी कंट्रोल करने में मदद की।
संघ की तरफ से चुनाव से पहले अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर बड़ा आंदोलन छेड़ा गया। संघ प्रमुख मोहन भागवत की तरफ से भी राम मंदिर को लेकर कई बार बयान आए जिससे लगने लगा था कि बीजेपी यह चुनाव राम मंदिर को मुद्दा बनाकर लड़ने की तैयारी कर रही है।
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और फिर पीएम नरेंद्र मोदी दोनों की तरफ से साफ कर दिया गया कि बीजेपी राम मंदिर को मुद्दा नहीं बनाना चाहती। इसके बाद संघ जो पहले लगातार राम मंदिर निर्माण के लिए संसद में कानून बनाने या अध्यादेश लाने की मांग कर रहा था और अदालत पर भी निशाना साध रहा था, अचानक से अपने सुर बदल लिए।
सूत्रों के अनुसार, यह सुर बीजेपी के नफा-नुकसान को ध्यान में रखते हुए बदले गए। अचानक राम मंदिर मसला चुनावी परिदृश्य से गायब हो गया और संघ बीजेपी की रणनीति में सहयोग करता नजर आया। संघ के नेता भी कोई बयान देने से बचते रहे और मतदाताओं को राष्ट्र के हित में मतदान करने के लिए जागरूक करने की बात करते रहे। बिहार विधानसभा चुनाव के वक्त संघ प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण को लेकर एक बयान के बाद बीजेपी को वहां नुकसान उठाना पड़ा था। लेकिन इस बार संघ ने पूरी सतर्कता बरती कि इस तरह की कोई बात न की जाए जिसका ऐसा मुद्दा बन जाए जो बीजेपी को दिक्कत दे।