• देवघर की डीसी नैंसी सहाय का सामाजिक मोर्चे पर अनोखा काम
  • चाईबासा के डीडीसी आदित्य रंजन ने बना डाले कई उपकरण

    स्वाधीन भारत के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने नौकरशाही को देश-समाज की रक्षा करनेवाला फौलादी कवच बताया था। समय-समय पर नौकरशाही ने इस परिभाषा को सही भी ठहराया है और कभी-कभी गलत भी, लेकिन हकीकत यही है कि नौकरशाही या कार्यपालिका वक्त पड़ने पर पूरी मजबूती के साथ किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए खड़ी हो जाती है। खास कर आपदा या संकट के समय नौकरशाही का यह रूप बेहद प्रभावशाली होता है। ऐसे नौकरशाहों की कमी नहीं है, जो अपनी सोच और कुछ नया करने की ललक से चर्चा में रहते हैं। आजाज सिपाही ब्यूरो की इस खास रिपोर्ट में आज हम आपको बतायेंगे झारखंड के ऐसे ही दो नौकरशाहों के बारे में, जिन्होंने कोरोना संकट के इस दौर में ऐसे काम किये हैं, जिनकी चौतरफा तारीफ हो रही है। इनमें एक हैं देवघर की उपायुक्त नैंसी सहाय और दूसरे हैं चाईबासा के उप विकास आयुक्त आदित्य रंजन। इन दोनों युवा अधिकारियों ने कोरोना के खिलाफ जारी लड़ाई में अपने काम से एक नयी लकीर खींची है और साबित कर दिखाया है कि उनके ही जैसे अधिकारियों की बदौलत यह सिस्टम चल रहा है।

कोरोना के खिलाफ जारी जंग के दौरान झारखंड के विभिन्न जिलों में चल रहीं गतिविधियों के अध्ययन के क्रम में यह तथ्य सामने आया कि झारखंड के चार जिलों में प्रशंसनीय काम हो रहा है। इनमें बोकारो, देवघर, चाईबासा (पश्चिम सिंहभूम) और रांची शामिल हैं। इस अध्ययन के क्रम में हमने यह भी पाया कि देवघर और चाईबासा में कोरोना के खिलाफ जिस तरह की जंग लड़ी जा रही है, उसे दुनिया के सामने लाये जाने की जरूरत है। देवघर में कोरोना संक्रमित मरीज तो मिले हैं, लेकिन संक्रमण फैल नहीं रहा है, जबकि चाईबासा में अब तक एक भी मरीज नहीं मिला है।

सबसे पहले बात देवघर की। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ माने जानेवाले कामना लिंग बाबा वैद्यनाथ की नगरी के प्रशासन की कमान युवा आइएएस नैंसी सहाय के हाथों में है। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उनकी यहां पोस्टिंग हुई और चुनाव उनकी पहली परीक्षा थी, जिसे उन्होंने सफलतापूर्वक पास किया। उन्होंने कोरोना संकट के इस दौर में सामाजिक मोर्चे पर अनोखे काम किये हैं। उन्होंने पूरे जिले में ‘बीमारी से लड़ो-बीमार से नहीं’ नामक जागरूकता अभियान चलाया। जिले का कोई टोला या मुहल्ला ऐसा नहीं है, जहां यह स्लोगन नहीं पहुंचा। जब लॉकडाउन शुरू हुआ, तब नैंसी सहाय ने नये तरीके से सोचना शुरू किया। उन्होंने जरूरतमंदों को भोजन कराने का अभियान शुरू किया, लेकिन दूसरे जिलों से अलग उन्होंने सभी को साल के पत्तल का इस्तेमाल करने को कहा। इसका नतीजा यह हुआ कि पत्तल का खर्च कम हो गया और खाना खाने आनेवाली महिलाएं खुद से पत्तल बनाना सीखने लगीं, जिसका लाभ उन्हें बाद में मिलेगा। इसके बाद अक्षय तृतीया का पर्व आया, तो उस दिन नैंसी सहाय ने जरूरतमंदों के बीच खीर-पूड़ी का वितरण कराया।

इसके बाद इस युवा अधिकारी ने ‘हेल्प देवघर’ नामक एक ग्रुप बनाया, जिसमें जिले के तमाम अधिकारियों, बुद्धिजीवियों, व्यवसायियों और समाजसेवियों को जोड़ा। उनसे मिलनेवाली मदद को जमा करने के लिए दो ग्रेन बैंक बनाये गये। यहां सहायता के रूप में एकत्र खाद्यान्न को जमा कर पैकेट बनाया जाता है। फिर जैसे ही किसी जरूरतमंद का पता चलता है, उसे अनाज पहुंचा दिया जाता है। इस तरह राहत सामग्री का वितरण भी संगठित तरीके से हो रहा है। इसके बाद देवघर के करीब पांच हजार पुजारियों-पंडों के लिए भी जिला प्रशासन ने राहत कार्यक्रम चलाया है। इसकी चौतरफा तारीफ हो रही है। नैंसी कहती हैं, देवघर के लोगों में आज कोरोना का भय नहीं है, बल्कि वे इसे एक बीमारी मानने लगे हैं। यह हमारे लिए बड़ा पुरस्कार है। देवघर के लोग कहते हैं कि उन्हें पहली बार ऐसा लग रहा है कि प्रशासन उनके लिए है। लोग जब चाहते हैं, उपायुक्त से मिलते हैं, फोन पर बात करते हैं और यहां तक कि अपने बच्चों के बर्थ डे में उन्हें बुलाते हैं और डीसी मैम चली भी आती हैं। अनाथों और बेसहारों-दिव्यांगों का आश्रय स्थल सरस कुंज नैंसी सहाय का मनपसंद स्थान है, जहां वह अकसर आती हैं और वहां के निवासियों के साथ समय बिताती हैं।

अब बात करते हैं दूसरे युवा आइएएस अधिकारी की, जिनका नाम आदित्य रंजन है और वह चाईबासा के उप विकास आयुक्त हैं। आदित्य रंजन कोरोना संकट शुरू होने से पहले ही चर्चा में आये थे, जब उन्होंने जिले की स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव लाने का अभियान शुरू किया था। इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर आइएएस बननेवाले आदित्य रंजन ने कोरोना संकट शुरू होने के बाद से अब तक सात ऐसे उपकरण बना डाले हैं, जिनसे कोरोना के खिलाफ जंग में नयी ताकत मिल सकती है। उन्होंने महज 20 हजार रुपये की लागत से एक रिमोट नियंत्रित रोबोट बनाया, जो मरीजों तक खाना, दवा और पानी पहुंचा सकता है और उनसे बातचीत भी कर सकता है। आदित्य रंजन ने इसका नाम को-बॉट रखा है। इसे बनाने के लिए उन्होंने बच्चों की खिलौना कार का इस्तेमाल किया और फिर तीन दिन में इसे बना डाला। इस उपकरण की मदद से डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को संक्रमण से बचाया जा सकता है। इसके बाद आइसोलेशन बेड और सैंपल कलेक्शन बूथ भी उन्होंने डिजाइन किया। इसके अलावा फेस शील्ड और टच फ्री वाशिंग यूनिट भी उन्होंने बनाये। फिर नोट सेनिटाइजर और सेनिटाइजर कक्ष विकसित किया। नोट सेनिटाइजर मशीन संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए महत्वपूर्ण है। बैंक, रेलवे स्टेशन और दुकानदारों के लिए यह मशीन बेहद उपयोगी है। यह मशीन नोट को तत्काल सेनिटाइज कर देती है। इसके अलावा मील आॅन व्हील, आपदा मित्र और यात्री सुरक्षा कवच जैसे अनोखे उपाय भी आदित्य रंजन ने विकसित किये। आदित्य रंजन बताते हैं, इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के कारण उन्हें हमेशा कुछ नया करते रहने की आदत है। यह संयोग ही है कि उपायुक्त अरवा राजकमल भी इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद प्रशासनिक सेवा में आये, तो उनका पूरा सहयोग भी मिलता है।

देवघर और चाईबासा के इन दो युवा अधिकारियों ने लीक से हट कर काम किया है और कर रहे हैं। इन्होंने साबित कर दिखाया है कि इंसान यदि चाह ले, तो कोई भी बाधा उसे नहीं रोक सकती है। कहा भी जाता है कि असली कर्मवीर वही होता है, जो संकट के समय विपरीत परिस्थितियों में भी हिम्मत नहीं हारे और अपनी प्रतिभा के बल पर चुनौतियों का सामना करे। इन दोनों अधिकारियों ने यही किया है। बिना किसी अतिरिक्त खर्च के अपने पास उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल कर उन्होंने एक राह दिखायी है। झारखंड को ऐसे अधिकारियों की ही जरूरत है, क्योंकि संसाधनों की कमी का रोना तो हर कोई रोता है, लेकिन अभावों के बीच रह कर भी कुछ बड़ा और अनोखा करने का जज्बा इनमें है। उम्मीद की जानी चाहिए कि कोरोना के खिलाफ जंग में जीत का इतिहास जब भी लिखा जायेगा, इन दोनों अधिकारियों का नाम चमकीले अक्षरों में दर्ज होगा।

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