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    Home»Jharkhand Top News»संयम, संकल्प और संवेदनशीलता है कोरोना का अचूक इलाज
    Jharkhand Top News

    संयम, संकल्प और संवेदनशीलता है कोरोना का अचूक इलाज

    azad sipahiBy azad sipahiMay 24, 2020No Comments6 Mins Read
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    • प्रवासियों के प्रति संवेदनशील बनना ही होगा प्रशासन को
    • प्रवासी भी समझें, सब कुछ सरकार ही नहीं कर सकती

    लगभग दो महीने से जारी कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अब तक झारखंड का प्रदर्शन शानदार ही कहा जा सकता है। संक्रमितों की संख्या हालांकि तीन सौ के पार चली गयी है, लेकिन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी टीम झारखंड ने जिस तरह के प्रबंधकीय कौशल का परिचय दिया है, वह काबिले तारीफ है। लेकिन दुख उस समय होता है, जब पंचायतों में बनाये गये कुछ क्वारेंटाइन सेंटरों पर बदइंतजामी की सूचनाएं आती हैं। पिछले तीन दिनों के दौरान राज्य के विभिन्न हिस्सों से ऐसी सूचनाएं आ रही हैं, जहां क्वारेंटाइन सेंटरों में पीने का पानी, शौचालय और खाने की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण वहां रखे गये लोग घर लौट गये या विरोध प्रदर्शन पर उतर आये। वहीं दूसरी तरफ कई ऐसे क्वारेंटाइन सेंटरों के बारे में यह सूचना भी आयी कि वहां की व्यवस्था पूरी तरह चाक-चौबंद है। बदइंतजामी वाले क्वारेंटाइन सेंटर हालांकि संख्या में बहुत कम हैं, लेकिन यदि एक सेंटर में भी कोई खामी है, तो वह हेमंत टीम के तमाम प्रयासों के बीच एक धब्बा के समान है। ऐसे अधिकारियों को क्वारेंटाइन सेंटर में रखे गये लोगों के प्रति संवेदनशील बनना जरूरी है, ताकि कोरोना के खिलाफ जारी इस लड़ाई में झारखंड की जीत सुनिश्चित की जा सके। इसके लिए कड़े कदम उठाये जाने की भी जरूरत है। आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

    कोरोना के खिलाफ जारी लड़ाई ने झारखंड को कई सबक सिखाये हैं और यहां का प्रशासन संभाल रहे अधिकारियों को भी कई नयी चीजें सीखने का मौका मिला है। लेकिन इन अधिकारियों के बीच में से एक दो चेहरे ऐसे भी हैं, जो आज भी न तो सीखने के लिए तैयार हैं और न ही संवेदनशील बनने को। दो दिन पहले सिमडेगा और देवघर जिलों से सूचनाएं आयीं कि वहां पंचायतों में बनाये गये क्वारेंटाइन सेंटरों में रखे गये लोगों के लिए शानदार इंतजाम किये गये हैं और लोग बेहद संतुष्ट हैं। इसी तरह कोडरमा में क्वारेंटाइन की अवधि पूरी कर चुके लोग अब उन सेंटरों में ही रसोइया और सहायक की भूमिका में आ गये हैं और रोजगार हासिल करने के साथ वहां रह रहे लोगों के लिए स्वादिष्ट खाना भी तैयार कर रहे हैं। लेकिन कुछ ऐसी खबरें भी आयी हैं, जिनसे पता चलता है कि दूसरे जिलों में कुछ क्वारेंटाइन सेंटर ऐसे भी हैं, जहां की व्यवस्था से नाराज होकर लोग अपने घर चले गये हैं या विरोध करने पर उतारू हो गये हैं।

    इस बात में कोई संदेह नहीं है कि कोरोना संकट का दौर शुरू होने के बाद से राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी टीम झारखंड ने शानदार काम किया है। उनकी मेहनत और दूरदर्शी सोच का ही परिणाम है कि झारखंड में कोरोना का सामुदायिक संक्रमण अब तक नहीं हो सका है। इतनी बड़ी संख्या में बाहर से आये लोगों में भी संक्रमितों की पहचान तेजी से की जा रही है और आज झारखंड का कोई भी जिला रेड जोन में नहीं है। लेकिन जब कुछ क्वारेंटाइन सेंटरों की बदइंतजामी सामने आती है, तो थोड़ी निराशा होती है। यह निराशा सरकार और उसकी की टीम से नहीं, बल्कि वैसे सेंटरों की व्यवस्था संभालनेवाले तंत्र के प्रति होती है। ऐसा लगता है, जैसे राज्य की कार्यपालिका में कुछ ऐसे लोग शामिल हैं, जो अपने कर्तव्य का निर्वहन ठीक से नहीं कर रहे हैं, या फिर वे जानबूझ कर एक ईमानदार और संवेदनशील सरकार के किये-कराये पर पानी फेरने के लिए तैयार हैं।

    कहा जाता है कि लोकतंत्र तभी ठीक से चल सकता है, जब इसके तीनों अंग, यानी विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका सही ढंग से अपनी भूमिका का निर्वहन करे। झारखंड की विधायिका, यानी निर्वाचित जन प्रतिनिधि और न्यायपालिका अपनी भूमिकाओं का ईमानदारी से निर्वहन कर रहे हैं, लेकिन कार्यपालिका में कुछ जगहों और कुछ अरधिकारियों में संवेदनशीलता की कमी दिखाई दे रही है। यही कारण है कि जिन क्वारेंटाइन सेंटरों में बदइंतजामी की खबरें मिल रही हैं, वहां के अधिकारी या तो स्थिति की गंभीरता को समझ नहीं रहे हैं या फिर उन्हें झारखंड से मतलब नहीं है। ऐसे अधिकारियों को अब भी चेतने की जरूरत है। उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि वे एक ऐसे प्रशासन के अंग हैं, जिसकी प्राथमिकता सूची में घर लौटनेवाले प्रवासियों का स्थान बहुत ऊपर है। उन्हें यह भी समझना होगा कि वे क्वारेंटाइन सेंटरों में रखे गये लोगों पर कोई एहसान नहीं कर रहे हैं। यह उनकी जिम्मेदारी है। ऐसे अधिकारियों को अपने उन सहयोगी अधिकारियों से भी सीखने की जरूरत है, जो अपने यहां क्वारेंटाइन सेंटरों में शानदार व्यवस्था कर प्रशंसा के पात्र बन रहे हैं।

    दूसरी तरफ लोगों को भी समझना होगा कि सब कुछ केवल मुख्यमंत्री या मुख्य सचिव के भरोसे संभव नहीं हो सकता। यह असंभव ही है कि राज्य के सभी क्वारेंटाइन सेंटरों की व्यवस्था पर मुख्यालय से ही नजर रखी जाये। लोगों को यह भी समझना होगा कि हर मर्ज की दवा विरोध या आंदोलन ही नहीं हो सकता। उन्हें थोड़ा धैर्य रख कर स्थिति को संभलने का अवसर देना चाहिए, ताकि झारखंड को कोरोना के संक्रमण के चंगुल से बचाया जा सके। क्वारेंटाइन में रह रहे लोग यदि अपनी तकलीफों को थोड़ा सह लेंगे, तो इससे पूरे राज्य और समाज का भला होगा। उनकी सुख-सुविधा और रोजी-रोटी के लिए राज्य सरकार लगातार गंभीरता से प्रयास कर रही है और यकीनन यह प्रयास सफल होगा, लेकिन सब कुछ तत्काल हो जायेगा, इसकी कल्पना भी नहीं की जानी चाहिए।

    इसलिए यह वक्त संयम, संकल्प और ईमानदारी से काम करने का है। सरकार की व्यवस्था में कुछ खामी हो सकती है, लेकिन इसका यह कतई मतलब नहीं है कि लोग उस पर अविश्वास करने लगें। दूसरी तरफ लोगों का विश्वास जीतने के लिए अधिकारियों को भी ईमानदारी के साथ काम करने की जरूरत है। झारखंड के पास जो संसाधन उपलब्ध हैं, उनसे ही उपाय निकालना होगा। रास्ता चुनौतियों के बीच से निकलता है। यदि सब कुछ सामने है, तो सफर तो आसान हो ही जायेगा। उस स्थिति में न तो किसी की भूमिका को याद किया जायेगा और न तारीफ की जायेगी। इसलिए ऐसे अधिकारियों को संवेदनशील बनने की और लोगों को धीरज बनाये रखने की जरूरत है। यकीन मानिये, झारखंड यह जंग जरूर जीतेगा और तब दुनिया में इसकी सफलता के गीत गाये जायेंगे।

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