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    Home»Jharkhand Top News»उन्होंने तो कर दिखाया, अब हमारी बारी
    Jharkhand Top News

    उन्होंने तो कर दिखाया, अब हमारी बारी

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskMay 29, 2020No Comments5 Mins Read
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    कोरोना संकट के इस दौर ने पूरी दुनिया को कई नयी चीजें सिखायी हैं और कई नयी परंपराएं स्थापित हुई हैं। गुरुवार 28 मई का दिन इसी कड़ी में एक दिन रहा, जब उत्साही युवाओं की एक टोली ने झारखंड के 180 प्रवासी श्रमिकों के लिए विमान की व्यवस्था कर दी और उन्हें रांची भेज दिया। इन युवाओं ने क्राउड फंडिंग के जरिये महज कुछ घंटों के भीतर 11 लाख रुपये जुटा लिये और किराये पर विमान ले लिया। युवाओं की इस टोली ने दिखा दिया है कि यदि काम करने का जज्बा हो, तो कुछ भी असंभव नहीं है। एक तरफ जहां प्रवासी श्रमिकों की वापसी के मुद्दे पर राजनीतिक दलों के बीच तलवारें खिंच रही हैं और किराये पर राजनीति हो रही है, इन युवाओं की टोली ने बिना शोर किये अपने काम को अंजाम दे दिया। राजनीतिक दलों और इसके नेताओं को इन युवाओं से सीख लेनी चाहिए कि कैसे अपने काम को अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है और सामाजिक काम को पूरा करने के लिए किसी अतिरिक्त प्रयास की जरूरत नहीं होती है। युवाओें के इस काम को आज पूरा देश-समाज और विशेष रूप से 180 प्रवासी मजदूरों का परिवार दिल से शुक्रिया अदा कर रहा है, लेकिन ये युवा संभवत: किसी दूसरे काम में जुट गये होंगे और अचानक ही हमारे सामने आयेंगे, जब उनका काम दिखने लगेगा। युवाओं की इस टोली के इस ऐतिहासिक काम और इससे मिली सीख पर आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

    28 मई को सुबह साढ़े आठ बजे के आसपास रांची के बिरसा मुंडा हवाई अड्डे पर एयर एशिया का एक विमान उतरता है और उसमें से बाहर आते हैं झारखंड के 174 श्रमिक, जो लॉकडाउन की वजह से मुंबई में फंसे थे। इनकी आंखें भींगी हुई थीं और दिल से उनके लिए दुआएं निकल रही थीं, जिन्होंने इन्हें अपने घर भेजने के लिए इतना काम किया और हवाई जहाज में उड़ने का सपना भी पूरा कर दिया। घर लौटनेवाले इन प्रवासी मजदूरों को पता भी नहीं है कि उनके लिए देवदूत बने ये युवा कौन हैं, क्या करते हैं और कहां के रहनेवाले हैं। केवल उन्हें ही नहीं, किसी को पता नहीं है कि ये युवा कौन हैं और क्या करते हैं। उनके बारे में केवल इतना ही पता है कि ये सभी नेशनल लॉ स्कूल, बेंगलुरु के पूर्व विद्यार्थी हैं और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में रहते हैं, काम करते हैं, लेकिन आपस में जुड़े हुए हैं।
    सभी के मन में यह सवाल उठ रहा है कि आखिर यह सब कैसे हुआ। तो इसकी कहानी शुरू होती है तीन दिन पहले 25 मई को। महाराष्ट्र सरकार के गृह विभाग के एक अधिकारी के पास अज्ञात नंबर से फोन आता है और फोन करनेवाला कहता है कि वह और उसके साथी प्रवासी मजदूरों की मदद करना चाहते हैं। वह अधिकारी फोन कॉल को मजाक समझ कर टाल देता है, लेकिन कुछ ही मिनट बाद उसे इ-मेल से यही प्रस्ताव मिलता है। अधिकारी तब वापस फोन करते हैं, तो उन्हें बताया जाता है कि मदद का प्रस्ताव करनेवाले युवा हैं और नेशनल लॉ स्कूल बेंगलुरु के पूर्व विद्यार्थी हैं। अधिकारी ने उस नंबर पर वापस फोन किया और आगे पूछताछ की।
    उधर से बताया गया कि उन युवाओं का एक साथी मुंबई में रहता है। उसे एक एनजीओ में काम करनेवाले उसके एक साथी ने प्रवासी मजदूरों की तकलीफ के बारे में बताया, तो उसने इस काम की रूपरेखा बनायी और देखते-देखते 11 लाख रुपये इकट्ठा कर लिये गये। युवाओं की इस टोली ने 180 प्रवासी श्रमिकों की पूरी जानकारी एकत्र की, उनके लिए आवश्यक औपचारिकताएं पूरी की और अंतत: ये श्रमिक विशेष विमान से रांची पहुंच गये। इस पूरे प्रकरण में सबसे खास बात यह रही कि प्रवासी श्रमिकों को वापस भेजनेवालों का नाम-पता भी किसी को मालूम नहीं है। यहां तक कि किसी ने भी अपना नाम नहीं उजागर किया है। युवाओं के इस काम की चौतरफा तारीफ हो रही है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी इन युवाओं के प्रति आभार जताते हुए कहा है कि झारखंड के प्रवासी श्रमिकों को वापस लाना सरकार की जिम्मेवारी है। हेमंत ने इस काम के लिए नेशनल लॉ स्कूल के पूर्व छात्रों का आभार भी जताया है। इन युवाओं ने मजबूर और बेबस प्रवासी मजदूरों की मदद कर साबित कर दिया है कि यदि ठान लिया जाये, तो कोई भी काम असंभव नहीं है। इन्होंने महज सात-आठ घंटे में विमान का किराया एकत्र कर लिया। दूसरी तरफ इन्हीं प्रवासी श्रमिकों के लिए किराया भुगतान करने के मुद्दे पर कितनी राजनीति हुई है, इसे देश देख चुका है। इन युवाओं ने बता दिया है कि काम करने के रास्ते में बाधाएं तो आती हैं, लेकिन उद्देश्य यदि साफ हो, तो फिर काम को पूरा किया जा सकता है। युवाओं ने अपना काम कर दिखाया है। अब बड़े लोगों की बारी है। समाज को नेतृत्व देनेवाले राजनीतिक संगठनों के लोगों को, जन प्रतिनिधियों को और समाज को रास्ता दिखानेवाले बुद्धिजीवियों को अब इन युवाओं द्वारा दिखाये गये रास्ते पर चलना होगा। युवाओं ने बता दिया है कि हर चीज में राजनीति नहीं होती और यह बात समझ लेनी चाहिए। संकट का यह दौर काम का संकल्प चाहता है, न कि राजनीति का दांव-पेंच। इसलिए कोरोना संकट के इस दौर में युवाओं ने देश के राजनीतिज्ञों को यह बड़ी सीख दी है कि राजनीति छोड़ कर वे समस्या की जड़ तक पहुंचें और फिर उसके समाधान के रास्ते तलाश करें।
    झारखंड के जो प्रवासी श्रमिक विमान से वापस आये हैं, वे ताउम्र अपने ऊपर किये गये इस उपकार को याद रखेंगे, लेकिन इसके साथ ही वे अपने जन प्रतिनिधियों के सामने सवाल भी उठायेंगे कि यदि कोई अपरिचित और अंजान उनकी इतनी मदद कर सकता है, तो फिर एक जनप्रतिनिधि अपने लोगों के लिए इतना क्यों नहीं कर सकता। इसलिए अब भी वक्त है। यदि प्रवासियों को अब भी राजनीतिक मुद्दा ही समझा जाता रहा, तो वह दिन दूर नहीं, जब पूरा देश बड़ों से पूछेगा कि मुसीबत के समय वे कहां थे।

    now our turn They did it
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