कोरोना संकट के दौर में झारखंड समेत पूरे देश में निजी स्कूलोें की फीस माफी का मुद्दा गरमाया हुआ है। देश के विभिन्न राज्यों में अभिभावकों को राहत देते हुए सरकारों की ओर से निर्देश जारी किये गये हैं। वहीं, झारखंड में शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने भी निजी स्कूलों से फीस माफी की अपील की थी, पर इस अपील की जैसी बेअदबी निजी स्कूलों के प्रबंधन ने की, उससे यह साफ हो गया है कि निजी स्कूल किसी भी परिस्थिति में अपनी आय में कटौती करना नहीं चाहते। उन्हें कतई यह मंजूर नहीं है कि लॉकडाउन अवधि की फीस माफी हो। झारखंड में निजी स्कूलों की फीस माफी पर राजनेताओं की सियासत और अभिभावकों की धूसरित होती उम्मीद को रेखांकित करती दयानंद राय की रिपोर्ट।
मार्च के अंतिम सप्ताह में झारखंड के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने राज्य के निजी स्कूलों से अपील करते हुए कहा था कि वे लॉकडाउन अवधि की फीस न वसूल करें। उनकी इस अपील से राज्य के लाखों अभिभावकों को लगा कि राज्य सरकार न सिर्फ उनकी सुन रही है बल्कि उनके दिल की बात भी कर रही है। पर शिक्षा मंत्री की यह अपील बेअसर साबित हुई, क्योंकि सरकार की अपील पर कान न देते हुए कुछ निजी स्कूलों ने न सिर्फ शिक्षा मंत्री के आग्रह को ठुकराया, बल्कि पूरी फीस भी वसूल की। हालांकि कई स्कूलों ने शिक्षा मंत्री की अपील को ध्यान में रखते हुए फीस वसूली नहीं की। सरकार की अपील के बाद फीस माफी में असमर्थता जाहिर करते हुए स्कूलों ने अपने तर्क रखे। बुधवार को शिक्षा मंत्री के साथ हुई बैठक में निजी स्कूलों ने कहा कि वे लॉकडाउन की अवधि में दो महीने का बस भाड़ा नहीं लेंगे। इस साल फीस नहीं बढ़ायेंगे और स्कूल ड्रेस भी नहीं बदलेंगे। डीपीएस रांची के प्रिंसिपल डॉ राम सिंह ने कहा कि बच्चों से ली गयी फीस का 80 फीसदी हिस्सा स्थापना मद में खर्च होता है। इसी पैसे से सारा खर्च चलता है। अभिभावकों को यह सोचना चाहिए कि यदि निजी स्कूल फीस नहीं लेंगे तो वे शिक्षकों को पेमेंट कैसे करेंगे।
नहीं दिखी स्कूलों की दरियादिली
कोरोना संकट में जिस दरियादिली की उम्मीद निजी स्कूलों से की जा रही थी, उसे दिखाने में अधिकांश निजी स्कूल असफल रहे और उन्होंने पेशेवर रवैये का परिचय देते हुए जो तर्क दिये, उनसे साफ हो गया कि उनसे रहम की कोई उम्मीद चाहे अभिभावक रखते हों या सरकार वे नहीं सुननेवाले। निजी स्कूलों से सरकार ने पूरे साल की फीस माफी की बात नहीं की थी। यदि निजी स्कूल चाहते तो वे दो महीने की फीस माफ कर सकते थे, पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। निजी स्कूलों के पक्ष में सत्ता पक्ष के कुछ नेता भी आ खड़े हुए। कांग्रेस प्रवक्ता ने तो यहां तक तर्क दे दिया कि राज्य में 1900 से ज्यादा स्कूल हैं और उनमें तीन लाख से अधिक शिक्षक कार्यरत हैं। यदि स्कूल फीस नहीं लेंगे तो उनके समक्ष समस्याएं उठ खड़ी होंगी। भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने फीस माफी पर अभिभावकों और निजी स्कूलों के हितों को देखते हुए फैसला लेने की अपील की। वहीं सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी ने कहा कि फीस माफी पर सरकार का रवैया गैर जिम्मेदाराना है। निजी स्कूल अभिभावकों पर फीस जमा करने का दबाव बना रहे हैं। इस पर अपनी नीति स्पष्ट कीजिए। अभिभावकों के साथ न्याय कीजिए। अगर उनके साथ अन्याय हुआ तो हम आंदोलन करने को भी तैयार हैं। वहीं आॅल स्कूल पैरेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अजय राय ने कहा कि लॉकडाउन की अवधि में दिल्ली, महाराष्टÑ, गुजरात और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों ने केवल ट्यूशन फीस लेने का आदेश निकाला है। स्कूल की बाकी हर तरह की फीस माफ की गयी है। झारखंड सरकार को भी इसके अनुरूप आदेश निकालना चाहिए, नहीं तो वे लोग हाईकोर्ट जायेंगे। अजय राय की बात में दम है। अजय राय ने कहा कि यदि निजी स्कूल केवल ट्यूशन फीस लेते हैं तो कोरोना संकट के समय में अभिभावकों को बड़ी राहत मिलेगी, क्योंकि इससे उन्हें दस से लेकर 25,000 रुपये तक की बचत होगी। पर फीस माफी पर निजी स्कूलों का जो रवैया है उससे अभिभावकों के समक्ष विकट स्थिति उत्पन्न हो गयी है।
सरकार को आदेश देना चाहिए था
शिक्षा मंत्री की अपील के बावजूद झारखंड के स्कूलों की ओर से उसे नकार देने से उनकी छवि पर असर पड़ा है। अभिभावकों में यह धारणा बनने लगी है कि निजी स्कूल सरकार पर भी भारी हैं। अभिभावक मंच का कहना है कि इस मामले में शिक्षा मंत्री से चूक ये हुई कि उन्होंने निजी स्कूलों से अपील की ,जबकि उन्हें सीधे आदेश निकालना चाहिए था। निजी स्कूल ट्यूशन फीस से जितनी राशि अभिभावकों से लेते उससे आराम से वे शिक्षकों का वेतन भुगतान कर सकते थे। लंबे अरसे से वे जितनी फीस विभिन्न मदों में ले रहे हैं, उसके बाद राज्य के अधिकांश निजी स्कूल इस हालत में हैं कि सरकार की अपील के आलोक में फीस में छूट दे सकें। डीपीएस और डीएवी ग्रुप के स्कूल तो आराम से यह कर सकते थे ,पर उन्होंने संकट काल में भी संसाधनों की कमी का रोना रोया और गैरवाजिब तर्क दिये। उन्हें इस पर आत्ममंथन करना चाहिए कि आखिर मिशनरी के स्कूल कैसे कम फीस में स्कूल का संचालन करते हैं।
अब राज्य सरकार और शिक्षा मंत्री को क्या करना चाहिए
बुधवार को पैरेंटस एसोसिएशन और निजी स्कूलों के साथ हुई बैठक में शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने कहा कि वे ऐसा हल निकालने के पक्ष में हैं, जिससे किसी भी पक्ष को कोई कठिनाई न हो। निजी स्कूलों और अभिभावकों ने अपनी-अपनी बातें रखी हैं, अब इस संबंध में एक उच्च स्तरीय बैठक होगी, जिसमें मुख्य सचिव भी रहेंगे। शिक्षा मंत्री ने जो संकेत दिये हैं उनसे साफ है कि वे मध्यम मार्ग का अनुसरण करेंगे, पर कायदे से अब सरकार को फीस माफी का आदेश जारी करना चाहिए। जो स्कूल सरकार का आदेश न मानते हों उनका आॅडिट कराना चाहिए। इससे पता चल जायेगा कि स्कूलों की आर्थिक स्थिति क्या है और वे फीस माफी वहन करने में सक्षम हैं कि नहीं। लंबी अवधि से निजी स्कूल विभिन्न ऐसे मदों में अभिभावकों से राशि वसूलते रहे हैं जिनका कोई औचित्य नहीं है। सिक्यूरिटी फीस और रिएडमिशन फी तथा एनुअल फीस पर तो सरकार की ओर से ही प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। सरकार को एक कमिटी बनाकर निजी स्कूलों की विभिन्न मदों में ली जानेवाली फीस की समीक्षा होनी चाहिए।
इन स्कूलों पर मंत्री की अपील बेअसर, वसूली फीस
डीपीएस रांची, शारदा ग्लोबल स्कूल, संत फ्रांसिस हरमू, डीएवी गांधीनगर, डीएवी बरियातू, संत जेवियर्स, संत अंथोनी स्कूल, संत फ्रांसिस लोआडीह, सच्चिदानंद स्कूल
कैसी-कैसी फीस लेते हैं स्कूल
निजी स्कूल ट्यूशन फीस, बिल्डिंग फंड, लाइब्रेरी फंड, गेम्स, आउटरीच फंड, एसएमएस, मेडिकल फंड, स्कूल फंड, मैग्जीन फीस, बस फीस, टेक्नोलॉजी फीस, एसाइनमेंट फीस, मेंटेनेंस फीस, एक्जाम फीस, सिलेबस और डायरी फीस जैसी कई फीस लेते हैं।