नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हिरोशिमा (जापान) में आयोजित जी-7 शिखर सम्मेलन में दुनिया विशेषकर विकासशील देशों के सामने मौजूद खाद्य सुरक्षा, उर्वरक उपलब्धता और महामारी की चुनौतियों का उल्लेख करते हुए अंतरराष्ट्रीय बिरादरी का आह्वान किया कि वह इनके समाधान को प्राथमिकता दें।

अमेरिका के नेतृत्व वाले विकसित देशों के संगठन जी-7 के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने विश्व के सामने मौजूद संकटों पर केंद्रित छठे सत्र को संबोधित किया। उन्होंने ग्लोबल साउथ (विकासशील और गरीब देशों) के सामने मौजूद समस्याओं का मुख्य रूप से उल्लेख किया तथा कहा कि इन देशों की आशाओं और अपेक्षाओं को पूरा करने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

प्रधानमंत्री ने विश्व समस्याओं का सामना करने में अमीर देशों की परोक्ष रूप से आलोचना की। उन्होंने कहा कि कोविड महामारी के दौरान वैक्सीन और दवाओं की उपलब्धता को मानव भलाई के स्थान पर राजनीति से जोड़ा गया। इस महामारी के दौरान अंतरराष्ट्रीय सहयोग और सहायता प्रभावित हुई। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य सुरक्षा का भावी स्वरूप क्या हो इस बारे में आत्मचिंतन बहुत जरूरी है।

प्रधानमंत्री मोदी ने फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों के साथ की द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा

  • प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को हिरोशिमा में जी-7 शिखर सम्मेलन के दौरान फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ द्विपक्षीय बैठक की। इस दौरान दोनों नेताओं ने व्यापार, आर्थिक क्षेत्रों में सहयोग, रक्षा क्षेत्र में सह-उत्पादन, विनिर्माण और असैन्य परमाणु सहयोग सहित कई मुद्दों पर चर्चा की।

    प्रधानमंत्री मोदी ने आगामी 14 जुलाई को बैस्टिल दिवस के लिए सम्मानित अतिथि के रूप में आमंत्रित करने के लिए राष्ट्रपति मैक्रों को धन्यवाद दिया। प्रधानमंत्री ने भारत के जी-20 प्रेसीडेंसी के लिए फ्रांस के समर्थन के लिए राष्ट्रपति मैक्रों को धन्यवाद दिया। दोनों नेताओं ने क्षेत्रीय विकास और वैश्विक चुनौतियों पर विचारों का आदान-प्रदान किया।

    इन नेताओं ने व्यापार और आर्थिक क्षेत्रों में सहयोग सहित नागरिक उड्डयन, नवीकरणीय, संस्कृति, रक्षा क्षेत्र में सह-उत्पादन और विनिर्माण के साथ ही असैन्य परमाणु सहयोग के साथ विभिन्न क्षेत्रों में अपनी सामरिक भागीदारी में प्रगति की समीक्षा की। इसके साथ-साथ वे नए डोमेन में साझेदारी का विस्तार करने पर सहमत हुए।

  • जी-7 सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा- पर्यावरण सुरक्षा के लिए धरती की पुकार सुनें
    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हिरोशिमा (जापान) में आयोजित जी-7 शिखर सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन पर आयोजित सातवें सत्र में अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से धरती की पुकार सुनने का आह्वान किया। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के अनुकूल जीवन शैली अपनाने पर जोर देते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण पर हमेशा जोर दिया है। भारत की विकास यात्रा भी इसी आदर्श पर आधारित है।

    प्रधानमंत्री ने कहा कि आज हम इतिहास के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़े हैं। अनेक संकटों से ग्रस्त विश्व में जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण सुरक्षा और ऊर्जा सुरक्षा, आज के समय की सबसे बड़ी चुनौतियों में से हैं। इन बड़ी चुनौतियों का सामना करने में एक बाधा यह है कि हम जलवायु परिवर्तन को केवल ऊर्जा के परिप्रेक्ष्य से देखते हैं। हमें अपनी चर्चा का स्कोप बढ़ाना चाहिए।

    उन्होंने कहा, “भारतीय सभ्यता में पृथ्वी को मां का दर्जा दिया गया है और इन सभी चुनौतियों के समाधान के लिए हमें पृथ्वी की पुकार सुननी होगी। उसके अनुरूप अपने आप को, अपने व्यवहार को बदलना होगा। इसी भावना से भारत ने पूरे विश्व के लिए मिशन लाइफ, अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन, आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन, मिशन हाइड्रोजन, जैव ईंधन गठबंधन, बिग कैट गठबंधन जैसे संस्थागत समाधान की रचना की है।” उन्होंने कहा कि आज भारत के किसान “प्रति बूंद अधिक फसल” के मिशन पर चलते हुए पानी की एक एक बूंद बचा कर प्रगति और विकास की राह पर चल रहे हैं। हम 2070 तक नेट जीरो के हमारे लक्ष्य की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं।

    प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हमारे विशाल रेलवे नेटवर्क ने 2030 तक नेट जीरो पहुंचने का निर्णय लिया है। इस समय भारत में नवीकरणीय ऊर्जा की संस्थापित क्षमता लगभग 175 गीगावॉट है। 2030 यह 500 गीगावॉट पहुंच जाएगी। हमारे सभी प्रयासों को हम पृथ्वी के प्रति अपना दायित्व मानते हैं। यही भाव हमारे विकास की नींव हैं और हमारी विकास यात्रा के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों में निहित हैं। भारत की विकास यात्रा में पर्यावरण प्रतिबद्धताओं एक बाधा नहीं बल्कि उत्प्रेरक का काम कर रहे हैं।

    उन्होंने कहा कि जलवायु क्रिया की दिशा में आगे बढ़ते हुए हमें ग्रीन और स्वच्छ प्रौद्योगिकी आपूर्ति श्रृंखला को लचीला बनाना होगा। अगर हम जरूरतमंद देशों को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और किफायती वित्तपोषण उपलब्ध नहीं कराएंगे, तो हमारी चर्चा केवल चर्चा ही रह जायेगी। जमींन पर बदलाव नहीं आ पाएगा। उन्होंने कहा कि मैं गर्व से कहता हूं कि भारत के लोग पर्यावरण के प्रति सचेत हैं और अपने दायित्वों को समझते हैं। सदियों से इस दायित्व का भाव हमारी रगों में बह रहा है।भारत सभी के साथ मिलकर अपना योगदान देने के लिए पूरी तरह से तैयार है।

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