विशेष
धनबाद के गढ़ में भाजपा को मिल रही कांग्रेस की कड़ी चुनौती
सवर्ण और पिछडेÞ वर्ग के मतदाताओं में मतभिन्नता दिख रही है
जातीय समीकरणों को साधने में जुटीं पार्टियों के भीतर भरोसे की कमी
झारखंड में मतदाताओं के लिहाज से सबसे बड़े संसदीय क्षेत्र धनबाद का चुनावी मुकाबला हर दिन बीतने के साथ रोमांचक दौर में पहुंचता जा रहा है। इस चुनावी रोमांच में कोयलांचल की अपनी राजनीति तो है ही, पूरे इलाके का राजनीतिक परिदृश्य भी महत्वपूर्ण परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। भाजपा उम्मीदवार ढुल्लू महतो की चुनौती कम नहीं हो रही है और कांग्रेस की अनुपमा सिंह अब लोगों की नजर में राजनीति का अनजान चेहरा नहीं रह गयी हैं। उनकी स्वीकार्यता हर दिन बढ़ रही है। इसलिए भाजपा के इस गढ़ में जोरदार मुकाबला होने की संभावना है, जिसमें सामुदायिक भावनाएं और ‘भीतरी-बाहरी’ का मुद्दा यहां महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा। धनबाद को भाजपा का गढ़ माना जाता है, लेकिन इस बार इस गढ़ पर कांग्रेस ने अनुपमा सिंह को उतार कर जोरदार चढ़ाई की है। भाजपा को कांग्रेस से कड़ी चुनौती तो मिल ही रही है, पार्टी के अंदर भी एक वर्ग पूरी तरह से उनके साथ नहीं है। इस वर्ग के बीच जातीय समीकरण के तहत असंतोष का भाव फैल रहा है, जिसके कारण कांग्रेस को पिछले एक सप्ताह में काफी ताकत मिली है। भाजपा प्रत्याशी को लेकर मारवाड़ी, राजपूत, कायस्थ और अन्य समुदाय का एक वर्ग अंदर ही अंदर नाराज है। यही नहीं, धनबाद संसदीय क्षेत्र के तहत आनेवाले विधानसभा क्षेत्रों के भाजपा विधायक भी ढुल्लू महतो के समर्थन में बहुत सक्रिय नजर नहीं आ रहे हैं। यह भाजपा के लिए गंभीर चिंता का विषय है। वैसे दोनों प्रमुख प्रत्याशी जातीय समीकरणों को साधने में पूरा जोर लगा रहे हैं, लेकिन उनमें आपसी भरोसे की कमी ही धनबाद के चुनावी मुकाबले को रोचक बना रही है। क्या है धनबाद संसदीय क्षेत्र का वर्तमान परिदृश्य और क्या हैं संभावनाएं, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
देश की कोयला राजधानी और झारखंड में सर्वाधिक वोटरों वाला संसदीय क्षेत्र धनबाद इन दिनों चुनावी बुखार में बुरी तरह तप रहा है। वैसे भी धनबाद का तापमान झारखंड के बाकी शहरों से थोड़ा अधिक रहता है, क्योंकि झरिया की भूमिगत आग से यहां की हवा गर्म होती है और इसका असर कोयलांचल की राजनीति पर भी खूब पड़ता है। धनबाद संसदीय क्षेत्र में करीब 23 लाख वोटर हैं और छह में से तीन विधानसभा क्षेत्र, धनबाद, झरिया और बोकारो में ‘बाहरी’ मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
धनबाद लोकसभा क्षेत्र में मतदान 25 मई को है। यह तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, चुनाव रोचक होता जा रहा है। धनबाद का चुनाव इस बार खास है, क्योंकि भाजपा के इस गढ़ में इस बार ‘भीतरी-बाहरी’ का मुद्दा बड़ी तेजी से उभरता जा रहा है। यह अलग बात है कि धनबाद लोकसभा क्षेत्र में घात-प्रतिघात का खतरा अधिक है और यह सभी पार्टियों के साथ है। धनबाद संसदीय क्षेत्र में अब तक सवर्ण जातियों का दबदबा रहा है, लेकिन इस बार भाजपा ने ओबीसी कार्ड खेलते हुए विधायक ढुल्लू महतो को उम्मीदवार बनाया है। धनबाद लोकसभा क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र हैं, जिनमें तीन ग्रामीण क्षेत्र के रूप में चिह्नित हैं, जबकि तीन शहरी क्षेत्र माने जाते हैं। यह बात भी सच है कि धनबाद संसदीय क्षेत्र की कुर्सी धनबाद, झरिया और बोकारो होकर जाती है। इन तीन विधानसभा क्षेत्रों में जिसकी पकड़ मजबूत होगी, वह चुनाव जीत जायेगा।
अब तक सवर्ण ही चुने गये सांसद
यह बात भी सच है कि 1971 के बाद धनबाद लोकसभा क्षेत्र से जितने भी उम्मीदवार जीते हैं, सभी सवर्ण जाति से आते हैं। राम नारायण शर्मा, शंकर दयाल सिंह, एके राय, रीता वर्मा, ददई दुबे और पशुपतिनाथ सिंह सभी सवर्ण हैं। इस बार कांग्रेस ने भी सवर्ण को उम्मीदवार बनाया है, लेकिन भाजपा ने ओबीसी कार्ड खेला है। 2019 के लोकसभा चुनाव में धनबाद विधानसभा में 55.3% वोटिंग हुई थी, जबकि झरिया में 50.4% मत पड़े थे। इसी प्रकार बोकारो में 53.3 प्रतिशत मत पड़े थे, जबकि चंदनकियारी विधानसभा क्षेत्र में 73.73 प्रतिशत, निरसा विधानसभा क्षेत्र में 67.79 प्रतिशत और सिंदरी विधानसभा क्षेत्र में 71.49 प्रतिशत वोट पड़े थे। वैसे धनबाद लोकसभा क्षेत्र में कुल 60.37 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। यह अलग बात है कि धनबाद लोकसभा क्षेत्र के चुनाव परिणाम में कोयला मजदूरों की भी भूमिका होती है। कोयला मजदूर अगर एकतरफा किसी की तरफ चले जायें, तो उसकी जीत हो सकती है, लेकिन कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण के बाद कोयला मजदूरों की संख्या में लगातार कमी होती आयी है। मजदूर संगठन भी अब इतने ताकतवर नहीं रह गये हैं।
इतिहास है 1971 और 1977 का चुनाव
वैसे 1971 और 1977 में धनबाद लोकसभा क्षेत्र में जिस ढंग का चुनाव प्रचार हुआ, वह इतिहास बन गया। ऐसा उसके बाद कभी नहीं हुआ और आगे भी होने की संभावना बिल्कुल नहीं है। अब तो सब कुछ बदल गया है। 1971 में जहां एक निर्दलीय प्रत्याशी ने धन-बल का उपयोग किया, वहीं 1977 के चुनाव में धन-बल गौण हो गया। उसका कोई महत्व ही नहीं रह गया। जेल में बंद एके राय चुनाव जीत गये। 1971 और 1977 का चुनाव आज भी लोगों को रोमांचित करता है। 1971 में जहां हेलीकॉप्टर के भरोसे चुनाव प्रचार किया गया था, वहीं 1977 में कार्यकर्ताओं ने खिचड़ी के भरोसे चुनाव में एके राय को जीत दिला दी थी।
जातीय समीकरण भी महत्वपूर्ण
धनबाद में अब जातीय समीकरण निर्णायक भूमिका में आ गया है। सवर्ण मतदाता जहां कांग्रेस के पक्ष में झुकते नजर आ रहे हैं, वहीं ओबीसी और पिछड़ों का झुकाव भाजपा की ओर होने लगा है। वैसे सवर्णों का बड़ा वर्ग, जो भाजपा के प्रति अब भी निष्ठावान है, अभी निष्क्रिय होने के बावजूद पार्टी के प्रति अपना कर्तव्य जरूर निभायेगा। धनबाद में मतदाताओं का लगभग 45 फीसदी हिस्सा सवर्ण है, लेकिन मतदान में यह वर्ग बढ़-चढ़ कर भाग लेता है और 55 फीसदी ओबीसी मतदाताओं पर भारी पड़ जाता है। यह स्थिति इस बार भी बनती दिखाई दे रही है।
‘भीतरी-बाहरी’ फैक्टर
गिरिडीह संसदीय क्षेत्र के मूल निवासी ढुल्लू महतो को धनबाद से मैदान में उतारने के फैसले ने ‘भीतरी-बाहरी’ की कहानी को हवा दे दी है। युवा नेता जयराम महतो, जिन्होंने अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी जेकेबीएसएस की स्थापना की और अब गिरिडीह सीट के लिए चुनाव लड़ रहे हैं, ने इस भावना को बढ़ाया है, जो क्षेत्र के विभिन्न राजनीतिक समूहों में इस चुनाव की गतिशीलता को आकार देने में महत्वपूर्ण साबित हो रहा है। हालांकि कांग्रेस की उम्मीदवार अनुपमा सिंह भी बाहरी ही हैं, लेकिन उनके ससुर दिवंगत राजेंद्र सिंह को धनबाद के लोग अपना मानते थे।
क्या भाजपा की कमजोरी का फायदा उठा पायेगी कांग्रेस
भाजपा उम्मीदवार के प्रति एक खास वर्ग में उभरे असंतोष के बीच कांग्रेस पार्टी के भीतर के नेताओं को जनता की भावनाओं को अपने पक्ष में करने का अवसर दिख रहा है। शुरूआती दौर में कांग्रेस के भीतर असंतोष था, लेकिन अनुपमा सिंह के पति और कांग्रेस विधायक जयमंगल सिंह उर्फ अनूप सिंह की अथक मेहनत के कारण अब वहां तेजी से स्थिति बदल रही है। यह ढुल्लू महतो के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है।
धनबाद में काम नहीं करता स्थानीय फैक्टर
धनबाद संसदीय सीट के चुनाव परिणामों से साफ पता चलता है कि यहां लोकल फैक्टर काम नहीं करता है। कोयला और औद्योगिक इकाइयों के कारण इस संसदीय क्षेत्र में प्रवासी मतदाताओं की अधिकता है। इसलिए यहां स्थानीय प्रत्याशी की बजाय बाहर से भी प्रत्याशी जीतते रहे हैं। दूसरे इलाकों से आकर कई नेता यहां से जीत कर सांसद बनते रहे हैं।
धनबाद के चुनावी मुद्दे
धनबाद संसदीय क्षेत्र में सबसे बड़ा मुद्दा झरिया पुनर्वास है। जमीन के नीचे लगी आग और भू-धंसान के कारण झरिया का पूरा इलाका खतरे में है। यहां के लोगों के पुनर्वास के लिए योजनाएं तो बनीं, लेकिन कुछ हुआ नहीं। इसके अलावा उद्योगों को पुनर्जीवित करना और रोजगार जैसे मुद्दे भी यहां खूब उछलते हैं। श्रमिक संगठनों की आपसी प्रतिद्वंद्विता और कोयले के अवैध कारोबार के कारण धनबाद का इलाका हमेशा से पूरे देश में चर्चित रहा है। चर्चित वासेपुर इसी धनबाद में है, जहां की हवा में अपराध की गंध तैरती है। धनबाद संसदीय क्षेत्र के मतदाता अब इस तरह के तनावपूर्ण माहौल से छुटकारा पाना चाहते हैं। ऐसे में अब धनबाद की जनता किसे कुर्सी सौंपती है, यह तो 4 जून को ही पता चलेगा, लेकिन अभी तक की जो राजनीतिक स्थिति है, उसमें अनुपमा सिंह ढुल्लू महतो को कड़ी टक्कर दे रही हैं।